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पंचायतनामा डॉट कॉम

दूबराज के चेहरे पर यह चमक जैविक खेती से आयी है। उन्होंने रासायनिक खाद से तौबा कर लिया है। वे कहते हैं : रासायनिक खाद जमीन को बर्बाद कर देती है, इसलिए हम उसका उपयोग अपने खेत में नहीं करते हैं। वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ सतीश चंद्र प्रसाद कहते हैं कि अधिकतर किसान आज खेती छोड़ना चाहते हैं। योजना आयोग के सामने भी यह विषय आ चुका है। इसका कारण है खेती की बढ़ती लागत व घटता मुनाफा. डॉ प्रसाद बताते हैं कि झारखंड में खेती के साथ एक बड़ी समस्या है पानी की। पानी का प्रबंधन यहां खेती की लागत को कम करने में मददगार होगी। वे कहते हैं कि किसान पानी से खेती न करें, खेती से खेती करें। वे लाभकारी खेती के लिए बहुफसली खेती व पशुपालन पर जोर देते हैं।
कृषि वैज्ञानिकों ने भी अपने अध्ययन के आधार पर बताया है कि रासायनिक उर्वरकों के निरंतर प्रयोग से जमीन बंजर हो जाती है। बिरसा कृषि विश्वकविद्यालय में भी इस तरह का अध्ययन किया गया है। पिछले 50 सालों से एक भूमि पर लगातार उर्वरकों के उपयोग किये जाने से वह जमीन बंजर हो गयी, जबकि जैविक विधि से खेती किये जाने पर भूमि की स्थिति अच्छी रही। डॉ प्रसाद कहते हैं दुनिया के जाने-माने कृषि अनुसंधान संस्थान इंग्लैंड के रोथमस्टेटड में इस तरह का शोध अध्ययन और भी ज्यादा लंबे समय से हो रहा है, जिससे यह बात प्रमाणित हुई है कि रासायनिक खाद का लंबे समय तक उपयोग भूमि को बंजर बनाने के लिए जिम्मेवार है। वे किसानों की जागरूकता पर जोर देते हैं।
ओरमांझी के ही कुरूम गांव के गंदौर महतो कहते हैं कि रासायनिक उर्वरकों की कीमत काफी है और उसका स्टॉक भी व्यापारी छिपाते हैं। आठ एकड़ भूमि में खेती करने वाले महतो कहते हैं कि प्रति एकड़ भूमि पर धान की फसल लगाने में 15 से 20 हजार रुपये खर्च होता है। अनुमानत: इसमें छह से सात हजार रुपये खाद पर खर्च हो जाते हैं। मौसम बढ़िया रहा तो इससे 30 से 40 हजार फसल बेचकर आ जाता है। गंदौर महतो पूर्व मुखिया भी हैं। वे कहते हैं कि समय पर बारिश नहीं हुई और सिंचाई नहीं हो सकी तो नुकसान भी होता है।
गांवों में पशुधन का घटना व परंपरागत जल स्रोतों का सीमटना भी खेती के महंगे होने का बड़ा कारण है। लिफ्ट इरीगेशन से खेती करना काफी महंगा पड़ता है। डॉ सतीश चंद्र प्रसाद के अनुसार, झारखंड की भौगोलिक बनावट ऐसी है कि किसी भी सरकार के लिए यह संभव नहीं है कि वह सभी भूमि पर सिंचाई सुविधा उपलब्ध करा सके। ऐसे में कृषि लागत में कमी लाने के लिए यह जरूरी है कि किसान सतह पर पानी बचायें। पुराने जमाने में यह परंपरा मजबूत थी। डॉ प्रसाद के अनुसार, खेती को लाभदायक बनाने व लागत कम करने के लिए इसमें विविधता लाने की जरूरत है। खेती को पशुपालन, मछलीपालन से जोड़ना जरूरी है। साथ ही किसानों को व्यावसायिक बैंकों से भी जोड़ना होगा। साहिबगंज-पाकुड़ जिले में 300 किसानों पर ऐसा प्रयोग किया गया। खेती को पशुपालन व मछलीपालन जैसे वैकल्पिक आय स्रोत से जोड़ने पर इससे छोटे किसानों का मुनाफा भी सालाना 70 हजार रुपये से एक लाख रुपये के बीच हो गया।
