बढ़ती हुई जनसंख्या एवं अधिक उत्पादन के लिये सीमित भूमि पर अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की उर्वरा शक्ति को ह्रास कर रही है एवं मिट्टी, जल तथा वायु तीनों को प्रदूषित कर रहा है। रासायनिक उर्वरकों का अधिक मूल्य भी किसानों की आर्थिक स्थिति को कमजोर करते जा रहा है। ऐसी परिस्थिति में यदि किसान जैविक उर्वरक एवं रासायनिक उर्वरक के बीच सन्तुलन स्थापित कर अपने फसलों में प्रयोग करें तो कम लागत में अच्छा उत्पादन प्राप्त करते हुए टिकाऊ खेती की परिकल्पना कर सकते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए कृषि विज्ञान केन्द्र, चतरा ने किसानों के घर में उपलब्ध कम्पोस्ट एवं अन्य घरेलु अवशेष के माध्यम से वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन का कार्यक्रम बनाया। इसके लिये सर्वप्रथम हंटरगंज प्रखण्ड के खुटी केवाल ग्राम के किसानों के साथ बैठक कर वैसे 25 किसानों को चयनित किया गया जिसके पास कम से कम 2 मवेशी उपलब्ध हों और उन्हें दो दिन का प्रशिक्षण कृषि विज्ञान केन्द्र में दिया गया।
प्रशिक्षण के दौरान श्रीमती बसंती पन्ना ग्राम खुटीकेवाल की महिला अति उत्साहित थी एवं उनके यहाँ करीब दस जानवर थे एवं प्रशिक्षण में प्राप्त जानकारी को अच्छी तरह से ग्रहण कर अपने घर में वर्मी कमपोस्ट उत्पादन करने की इच्छा जताई, इसमें कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने उन्हें इसिनिया फोएटिडा नाामक केचुओं की प्रजाति एस.आर. आई. से उपलब्ध करायी। शुरुआत में तो श्रीमती पन्ना की थोड़ी बहुत समस्या आयी लेकिन अब वे वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन में दक्षता प्राप्त कर ली है एवं श्रीमती पन्ना करीब 10 टन वर्मीकम्पोस्ट प्रति वर्ष उत्पादित कर करीब 70,000 रुपये प्रतिवर्ष की दर से आमदनी कर रही हैं एवं साथ-साथ अपने पाँच एकड़ के खेत में केवल वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग से सब्जी एवं अन्य फसलों की अच्छी उत्पादन पा रही है। साथ में श्रीमती पन्ना करीब 25 महिलाओं का समूह बनाकर वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन की तकनीक को किसानों तक पहुँचा रही है एवं महिलायें अपने खेतों में उपयोग के साथ-साथ वर्ष में 10-12 हजार रुपये की आमदनी कर रही है। जैविक खेती के क्षेत्र में अच्छा काम करने के लिये श्रीमती पन्ना को जिला स्तर पर प्रथम किसान के रूप में पुरस्कृत करते हुए 50,000 रुपये का नागद पुरस्कार भी दिया गया है।
पठारी कृषि (बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की त्रैमासिक पत्रिका) जनवरी-दिसम्बर, 2009 (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) |
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उर्वरकों की क्षमता बढ़ाने के उपाय (Measures to increase the efficiency of fertilizers) |
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फसल उत्पादन के लिये पोटाश का महत्त्व (Importance of potash for crop production) |
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