पानी की बूँद-बूँद बचाने का संकल्प (Resolve to save water)

Submitted by Hindi on Sat, 07/29/2017 - 16:39
Source
भगीरथ, जनवरी-मार्च 2016, केन्द्रीय जल आयोग, भारत

आज समूचा विश्व गम्भीर जल संकट से जूझ रहा है। दिनों-दिन बढ़ रही आबादी इसका बहुत बड़ा कारण है। साथ ही आधुनिकता व विकास ने पानी की खपत में अभूतपूर्व वृद्धि की है इसलिये पानी की आपूर्ति माँग से बेहद कम है।

बूँदनदियों का जल प्रदूषित हो रहा है और ऐसा जल पीने से लोग बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। दूसरी तरफ, कई नदियाँ विलुप्त होने के कगार पर पहुँच रही हैं। कड़वा सच यह भी है कि विकासशील देशों में साफ पानी न मिलने के कारण बच्चे व बड़े भी बीमारियों से मौत के मुँह में चले जाते हैं। देश में महिलाओं एवं लड़कियों को खासतौर से पहाड़ी व मरुस्थलीय क्षेत्रों में पानी सिर और कन्धे पर रखकर लाना पड़ता है।

हमारे यहाँ पानी की किल्लत या संकट के पीछे मूल कारण है जल उपलब्धता की तुलना में माँग में वृद्धि। जिसका प्रमुख कारण है तेजी से बढ़ती आबादी, पानी की बेतहाशा बर्बादी को भी नकारा नहीं जा सकता। पाइप लाइनों की टूट-फूट, रख-रखाव व लापरवाही के चलते अन्धाधुन्ध पानी बेकार बहता रहता है। हमारी आबादी बढ़ रही है। साथ-ही-साथ ऊर्जा की आवश्यकता भी बढ़ रही है। औद्योगीकरण तेजी से बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप पानी का उपयोग, उपभोग भी बढ़ रहा है।

वास्तव में पानी की कीमत अभी हमने जानी ही नहीं। बिना इसे बेशकीमती समझे जल का संरक्षण, इसकी बर्बादी रोकना तथा एकाधिक उपयोग समझ मे आएगा ही नहीं।

जल के प्रबन्ध में भी कमी है। वहीं दुर्योग ऐसा भी है कि लोग पानी के बारे में संजीदगी से सोचते तक नहीं। जबकि आज पानी की एक बोतल की कीमत कोर्ल्ड ड्रिंक्स से कम नहीं है। जल कोल्ड ड्रिक्स से महंगा है फिर जल का दुरुपयोग क्यों? पीने के लिये जल का महत्त्व समझना होगा। पानी की किल्लत से गर्मी में सभी, खासतौर से बड़े-बड़े महानगर जूझते हैं। पानी के संरक्षण के लिये गम्भीरता से विचार करने तथा उचित जल प्रबन्धन की त्वरित आवश्यकता है।

भू-जल स्तर


वर्षाजल संग्रहण के ढाँचे का समुचित विकास नहीं हो पाने तथा भूगर्भीय कारणों से भूजल की दृष्टि से काफी जगहें अतिदोहित अवस्था की श्रेणी में आ चुके हैं। कहीं-कहीं तो भूजल समाप्ति की कगार पर है। डार्क जोन चिन्हित है तथा वहाँ ट्यूबवेल खोदने पर प्रतिबन्ध है परन्तु जल चोरी में संलग्न भूजल माफिया पानी की चोरी कर महंगे मूल्यों पर बेच रहे हैं। वर्षाजल बेकार न जाये इसके लिये पर्याप्त प्रबन्ध नहीं किये जा सके हैं। परिणामस्वरूप वर्षाजल संग्रहण ढाँचों के निर्माण नहीं हो पाये तथा भूजल स्तर में सुधार नहीं हो पाया।

परम्परागत जलस्रोतों को महत्त्व


पानी का महत्त्व रेगिस्तान, मरुधरा के बाशिन्दों से अधिक कौन जान सकता है। मरुधरा में पानी का महत्त्व इतना है कि उसकी एक-एक बूँद को बचाने के लिये कठोर तपस्या युक्त प्रयास किया जाता है। वर्षाजल संग्रह, पानी की बचत, सूझ-बूझ के साथ उसको खर्च करने की प्राणपण से चेष्टा करते हैं। उनके लोकगीतों में ताल, तलैया, नाले-नालियाँ, कुएँ-बावड़ी, झील, छोटे नाले, खाले, पणिहारी, तिस प्यास के मीठे स्वर हैं। यहाँ पानी की पूजा होती है। पानी को सुरक्षित रखने वाले तालाबों, घड़े, मटके-मटकियाँ, नदी-नालों का पूजन परम्परागत तरीके से होता है। यही नहीं, लोक परम्परा के साथ तालाब की खुदाई होती थी। गाद और साद निकाली जाती थी। जब तालाब भर जाता तो भरे तालाब की पूजा भी होती थी। दोनों स्थितियों में दीप प्रज्वलित कर उन्हें जल में प्रवाहित किया जाता था। चावल, कुमकुम, नारियल से जल पूजा सम्पन्न की जाती थी। तालाब में नारियल व सिक्का फेंककर पूजा अर्चना की जाती थी। विवाह के पश्चात तथा बच्चा होने के बाद कुआँ पूजन होता था। इससे पता चलता है कि मरुप्रदेश में पानी को कितना परम्परागत एवं धार्मिक महत्त्व दिया जाता था। पानी मरुप्रदेश के हर प्राणी के जीवन संस्कारों में रचा बसा था। वह पानी की व्यवस्था अपने लिये ही नहीं बल्कि अपने पशुओं के लिये भी खेली (कुंड) बनाकर करता था, प्याऊ बनवाना, टाँके बनवाना, कुएँ खुदवाना, तालाब बावड़ियाँ बनवाना इत्यादि सेवा कार्य को पूर्ण महत्त्व दिया जाता था, ऐसे कार्य करने वाले दानवीर, भामाशाह को समाज सम्पूर्ण आदर से देखता था।

सनातन संस्कृति में भी ऐसे परोपकार के कार्य करने वाले व्यक्तियों को इहलोक-परलोक में, दिव्य लोक में स्थान मिलने की बात कहीं गई है। इस सेवा को बहुमूल्य सेवा माना गया है। परन्तु आज इस वर्तमान पीढ़ी की शिक्षा संस्कारों ने पानी की, पानी के स्रोतों की वह कीमत नहीं जानी। कारण, आज ऐसे कार्य नरेगा/मनरेगा (राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) के माध्यम से कराए जा रहे हैं। तालाबों की खुदाई गाँव हो या शहर सभी लगभग भुला चुके हैं। दूसरे जलग्रहण वाले आगोर पर भूमाफिया कब्जा कर बैठे हैं। जल तालाब में आएगा भी कहा से। आज पारम्परिक जल संग्रहण की व्यवस्था में तालाब, बावड़ियों की सामूहिक श्रमदान आधारित खुदाई तथा साफ-सफाई कठिनाई से ही देखने को मिलती हैं।

पारम्परिक रूप से हर घर में वर्षाजल संग्रहण के लिये बड़े-बड़े जल कुंड बनाए जाते थे। जहाँ छतों पर वर्षा का पानी एकत्रित होकर जल कुंड में एकत्रित हो जाता था उसे पालर पानी कहते थे। यह जल वर्ष भर पीने के काम में आता था। दक्ष स्मृति में उल्लेख मिलता है कि निःस्वार्थ भाव से कुआँ, बावड़ी, तालाब, आदि बनवाना तथा उनका जीर्णोंद्धार करना और छायादार एवं फलदार वृक्ष लगाना तथा मार्ग आदि बनवाना ये सभी लोकोपकारी सेवा एवं जनहित के कार्य करना करवाना कलियुग में लोकोपकारी सेवा है। आचार्य बृहस्पति ने कहा कि जो नए तालाब का निर्माण करवाता है अथवा पुराने तालाब का जीर्णोंद्धार कराता है वह अपने कुल का उद्धार कर देता है और स्वयं भी स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। पुराने बावड़ी, कुआँ, तालाब, बाग-बगीचे का जीर्णोंद्धार कराने वाला नए तालाब आदि बनवाने का फल प्राप्त करता है। जिसके बनाए हुए तालाब आदि में गर्मी के दिनों में भी पानी बना रहता है। सूखता नहीं उसे कभी कठोर विषम दुःख प्राप्त नहीं होता अर्थात वह सर्वदा सुखी रहता है।

विष्णुधर्म के मत से जो व्यक्ति जलसेवा के लिये कूप, तालाब खुदवाता है वह सदा वरुण लोक में प्रसन्न रहता है। जनऋषियों ने तो यहाँ तक कहा है कि तालाबों, वाटिकाओं एवं मन्दिर के निर्माण से संसार से मुक्ति हो जाती है। इसी प्रकार तीर्थ स्थलों के जल को गन्दा करने से रोकने के लिये वर्जना है।

यह कड़वी सच्चाई है कि बदलते समय के साथ धार्मिक एवं पारम्परिक आस्थाओं में कमी दिखाई दे रही है। आज गाँव शहर में सरकारी जल प्रदाय योजनाओं से घर बैठे ही जल प्राप्त हो रहा है वह भी नाममात्र के मूल्य पर और तथा बिना कठिनाई के।

इस नई सोच ने हमारी पुरानी जल संस्कृति व पारम्परिक जलस्रोतों को विपरीत रूप से प्रभावित किया है। आज ‘पानी बचाओ’ के नारे कहीं सुनाई देता हो ऐसा अहसास कठिनाई से हो पाता है। वर्षाजल संग्रहण के लिये हर घर में कितने जल कुंड हैं, इसकी कीमत आज भी समझने की जरूरत है। खेतों में भी जल कुंड का निर्माण कर वर्षाजल से पीने योग्य पानी एकत्रित किया जा सकता है। वहाँ भूजल को रिचार्ज करने की प्रक्रिया भी सरलता से अपनाई जा सकती है। वनों में तालाब इत्यादि का निर्माण कार्य करके वन्य पशुओं, पक्षियों के लिये पीने का पानी उपलब्ध कराया जा सकता है। इससे इन वन्य पशु-पक्षियों की रक्षा हो सकेगी और इकोलॉजिकल सन्तुलन बना रहेगा। साथ ही वे शहर-गाँव से भी दूर रह सकेंगे।

आज आवश्यकता है पुनः परम्परागत तरीके से जल संग्रहण, बचत एवं उपयोग को अपनाने की जिस प्रकार पुराने समय में एक बाल्टी पानी से नहाने, फर्श धोने व पेड़ों में पानी देने का चलन था अब फिर से उन्हें तरीकों को अपनाने की आवश्यकता है।

प्राथमिक स्कूली शिक्षा में पर्यावरण एवं जल संरक्षण शिक्षा को शुरू करना चाहिए। आज बच्चों को यह भी बताने की आवश्यकता है कि जो पीने का पानी है वह कहाँ से आता है, तथा जल संग्रहण की कितनी आवश्यकता है। हर व्यक्ति यदि अपने स्तर पर यह संकल्प ले कि पानी बचाने की आदत आज से शुरू करेगा तो घर परिवार में पानी की बचत की आदत बनेगी। जल के बर्बाद होने पर सम्पूर्ण नियंत्रण आवश्यक है। फिर वह चाहे पाइप लाइन टूटने से हो, सार्वजनिक नल के खुला रहने से या घर के ओवर हेड टैंक के ओवरफ्लो से अथवा जल प्रदाय विभाग से हो।

गिरते भूजल को रोकने के लिये अन्धाधुन्ध भूजल दोहन को रोकना और नियंत्रित करना होगा। इसमें यदि प्रबन्ध व्यवस्था की नीति में कोई कमी है तो उसे दूर करने के प्रयास किये जाने चाहिए। पारम्परिक जल स्रोतों को पुनः विकसित करना चाहिए तथा जल की बचत कर इसके कहीं दुरुपयोग व व्यर्थ बर्बादी पर प्रभावी नियंत्रण अत्यावश्यक है।

स्कूली शिक्षा, धर्म गुरू निश्चित रूप से प्रारम्भिक संस्कार के रूप में जल के महत्त्व को समझा सकते हैं तथा जल संरक्षण के तरीके समझा सकते हैं। बच्चे, युवा, स्त्रियाँ इन शिक्षकों की बातें शीघ्र ही मान भी लेते हैं। ऐसा कदम प्रभावी सिद्ध होगा।

जल संरक्षण में गाड़ी धोने का अन्तराल बढ़ाने, घर व सार्वजनिक नल खुला न छोड़ना, जलदाय विभाग की टूटी लाइन, ओवर हेड से पानी का व्यर्थ बहना इत्यादि की सूचना जल विभाग को देना सुनिश्चित करना चाहिए। आरओ सिस्टम से पानी फिल्टर के समय व्यर्थ बहने वाले पानी को नाली में न बहाकर उसका समुचित उपयोग करना चाहिए। घरों में माता, बहनों व बच्चों को जल के सदुपयोग के महत्त्व को समझाना चाहिए।

जल संरक्षण के लिये तत्काल उठाए जाने वाले कदम


1. भूजल दोहन की अनुमति नियंत्रित हो।
2. ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिस्टम से ही सिंचाई हो।
3. वर्षा के पानी के संरक्षण को सख्ती से लागू किया जाये। इसके लिये सरकार प्रोत्साहन देने पर भी विचार करें।
4. सार्वजनिक नल, पाइप लाइन टूटने, ओवर हेड रोकना, टैंक से जल व्यर्थ न बहने दें, क्षतिग्रस्त पाइप लाइन, पानी लीक होने की सूचना देने के लिये जलप्रदाय विभाग, टोल फ्री नम्बर दें ताकि सभी उस पर सूचना दे सकें। वर्षाजल संग्रहण को आवश्यक बनाया जाना चाहिए।

भरे रहें जल-भण्डार


कुछ दशक पहले पानी के भण्डारों को असीमित माना जाता था। मनुष्य सोचता था कि पानी तो किसी-न-किसी तरीके से हमेशा मिलता रहेगा। परन्तु अब सहज ही पता चल रहा है कि यह सोच कितनी गलत थी।

जितना पानी हम दोह रहे हैं उतना पानी तो रिसाइक्लिंग से वापस प्रकृति को दें तभी जल की उपलब्धता बनी रह सकेगी।

वर्षाजल संरक्षण को अन्य स्रोतों से प्राप्त होने वाले जल की तुलना में श्रेष्ठ माना गया है। इसमें हानिकारक लवण एवं बैक्टीरिया (जीवाणु) कम होते हैं। जल व अन्य प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग हमारी जरूरत है। लेकिन उनका संरक्षण भी हमारा दायित्व है। इसलिये विदित रहे कि प्रकृति से हम जितना लें उतना लौटाएँ अवश्य।

संपर्क


ओपी शर्मा
एस-5, कांता खूतरिया कॉलोनी,
बीकानेर-334003