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नवचेतन प्रकाशन
पानी की मुख्य मांग सिंचाई के लिए है। 1974 में देश में जितना पानी इस्तेमाल हुआ, इसका 92 प्रतिशत सिंचाई में गया। बचे 8 प्रतिशत से घरेलू और औद्योगिक जरूरतें पूरी की गईं। देहातों में या तो पानी है नहीं, या पानी उनकी पहुंच में नहीं है, इसलिए कम से कम पानी से उन्हें काम चलाना पड़ता है। अगर मान लें कि सन् 2025 तक घरेलू और औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुसार पूरा और पर्याप्त प्रबंध होता है, तो कुल पानी का 73 प्रतिशत सिंचाई के काम में आएगा।
अनुमान है कि हम वास्तव में सालाना 8.6 क.हे.मी. से 10.5 क.हे.मी. तक पानी प्राप्त कर सकते हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान दिल्ली के वैज्ञानिकों के मत में हमारी क्षमता ज्यादा-से-ज्यादा 8.65 क.हे.मी. प्राप्त करने की है, जबकि भारतीय तथा अमेरिकी विशेषज्ञों के एक दल का विश्वास है कि हम 9.27 क.हे.मी. तक जा सकते हैं। श्री नाग और श्री कठपालिया का अंदाज 10.5 क.हे.मी. तक का है, क्योंकि उन्हें लगता है कि नगर पालिकाओं और उद्योगों के गंदे पानी को साफ करके फिर से काम में लाया जा सकता है।
लेकिन मान लें कि 10.5 क.हे.मी पानी मिलने लगेगा, तो भी सन् 2025 के साल बाद पानी की जो नाना प्रकार की मांग बढ़ेगी, उनकी पूर्ति इतने पानी से नहीं हो सकेगी। नई दिल्ली के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलोजी के श्री एमसी. चतुर्वेदी ने जो चित्र खींचा है, वह बड़ा निराशजनक है। प्रो. चतुर्वेदी कहते हैं कि अगले दशक में ही देश भर में पानी की किल्लत होने लगेगी। श्री चतुर्वेदी अंतिम उपयोग-क्षमता को बहुत कम, यानी 9.27 क.हे.मी. मानते हैं और सिंचाई में काम आने वाले पानी की मात्रा को ज्यादा आंकते हैं। इसलिए उक्त अनुमानों में इतना फर्क दिखाई देता है। श्री नाग और श्री कठपालिया यह मानकर हिसाब लगाते हैं कि सिंचाई में पानी का उपयोग ज्यादा अच्छा होगा और कम-से-कम इस सदी के अंत तक तो वैसे ही बने रहेंगे। ये दोनों प्रकार के अनुमान दस साल पहले के हैं। इस बीच जैसी परिस्थिति बन रही है, उसको देखते हुए लगता है कि श्री चतुर्वेदी का निराशाजनक अनुमान ही ज्यादा सही है।
श्री चतुर्वेदी ने हिसाब लगाया है कि पानी का उपयोग करने वाले उद्योगों के अपशेष में बढ़ोतरी होगी और उससे प्रदूषण का खतरा भी बढ़ेगा। बिजली का उत्पादन बढ़ेगा, तो गरम गंदे पानी के कारण नदियों के पानी में आक्सीजन घटेगी। अपने अध्ययन का उपसंहार उन्होंने इस शब्दों से किया है, “हमारे सामने समस्या बड़ी गंभीर है। अनेक नदियों के थालों में उपयोग के योग्य स्रोत खत्म हो जाएंगे। सभी नदियों के थालों में प्रदूषण की समस्या भयंकर हो जाएगी और सदी के पूरा होते-होते पर्यावरण की अवनति सार्वत्रिक हो जाएगी। इन सबका दिल दहलाने वाला संकेत यह है कि अगर हम तत्काल हिम्मत के साथ ठीक कदम नहीं उठाएंगे तो ऐसी परिस्थिति टाले नहीं टलेगी। ”
अनुमान है कि हम वास्तव में सालाना 8.6 क.हे.मी. से 10.5 क.हे.मी. तक पानी प्राप्त कर सकते हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान दिल्ली के वैज्ञानिकों के मत में हमारी क्षमता ज्यादा-से-ज्यादा 8.65 क.हे.मी. प्राप्त करने की है, जबकि भारतीय तथा अमेरिकी विशेषज्ञों के एक दल का विश्वास है कि हम 9.27 क.हे.मी. तक जा सकते हैं। श्री नाग और श्री कठपालिया का अंदाज 10.5 क.हे.मी. तक का है, क्योंकि उन्हें लगता है कि नगर पालिकाओं और उद्योगों के गंदे पानी को साफ करके फिर से काम में लाया जा सकता है।
लेकिन मान लें कि 10.5 क.हे.मी पानी मिलने लगेगा, तो भी सन् 2025 के साल बाद पानी की जो नाना प्रकार की मांग बढ़ेगी, उनकी पूर्ति इतने पानी से नहीं हो सकेगी। नई दिल्ली के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलोजी के श्री एमसी. चतुर्वेदी ने जो चित्र खींचा है, वह बड़ा निराशजनक है। प्रो. चतुर्वेदी कहते हैं कि अगले दशक में ही देश भर में पानी की किल्लत होने लगेगी। श्री चतुर्वेदी अंतिम उपयोग-क्षमता को बहुत कम, यानी 9.27 क.हे.मी. मानते हैं और सिंचाई में काम आने वाले पानी की मात्रा को ज्यादा आंकते हैं। इसलिए उक्त अनुमानों में इतना फर्क दिखाई देता है। श्री नाग और श्री कठपालिया यह मानकर हिसाब लगाते हैं कि सिंचाई में पानी का उपयोग ज्यादा अच्छा होगा और कम-से-कम इस सदी के अंत तक तो वैसे ही बने रहेंगे। ये दोनों प्रकार के अनुमान दस साल पहले के हैं। इस बीच जैसी परिस्थिति बन रही है, उसको देखते हुए लगता है कि श्री चतुर्वेदी का निराशाजनक अनुमान ही ज्यादा सही है।
श्री चतुर्वेदी ने हिसाब लगाया है कि पानी का उपयोग करने वाले उद्योगों के अपशेष में बढ़ोतरी होगी और उससे प्रदूषण का खतरा भी बढ़ेगा। बिजली का उत्पादन बढ़ेगा, तो गरम गंदे पानी के कारण नदियों के पानी में आक्सीजन घटेगी। अपने अध्ययन का उपसंहार उन्होंने इस शब्दों से किया है, “हमारे सामने समस्या बड़ी गंभीर है। अनेक नदियों के थालों में उपयोग के योग्य स्रोत खत्म हो जाएंगे। सभी नदियों के थालों में प्रदूषण की समस्या भयंकर हो जाएगी और सदी के पूरा होते-होते पर्यावरण की अवनति सार्वत्रिक हो जाएगी। इन सबका दिल दहलाने वाला संकेत यह है कि अगर हम तत्काल हिम्मत के साथ ठीक कदम नहीं उठाएंगे तो ऐसी परिस्थिति टाले नहीं टलेगी। ”