पानी को न जाना कुछ भी

Submitted by Hindi on Sat, 03/19/2011 - 10:08
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विकास संवाद द्वारा प्रकाशित 'पानी' किताब
मीरा बाई ने बरसों पहले एक भजन में कुछ सवाल पूछे थे। उनका पहला प्रश्न था- जल से पतला कौन है? सभी जानते हैं कि जल से पतला ज्ञान बताया गया था। बात इतनी सी है कि जल की इस तरलता को समझने में हमने बरसों लगा दिए, फिर भी अज्ञानी ही रहे।

वेद जल को विष्णु का पर्याय कहते हैं। हो भी क्यों न, विष्णु सृष्टा हैं और जल जीवन का आधार। विज्ञान कहता है कि साधारण माना जाने वाला पानी उत्तम विलायक भी है। हाइड्रोजन के दो और ऑक्सीजन के एक परमाणु से बने पानी विशेषता है कि इसका ठोस रूप (बर्फ) द्रव रूप से हलका होता है। पानी का कमजोर ही सही लेकिन विशेष हाइड्रोजन बंध इसे कई गुण देता है।

पानी के इस विज्ञान में भी कितना बड़ा अध्यात्म छुपा है! देखें तो पानी जोड़ने का काम ही करता है। जन्म, विवाह और मृत्यु सहित तमाम संस्कारों के आवश्यक तत्व पानी को तुलसी बाबा ने उत्तर और दक्षिण भारत को जोड़ने के लिए उपयोग किया था। उन्होंने रामेश्वरम् में शिवलिंग की स्थापना के बाद श्री राम के मुख से कहलवाया कि जो गंगोत्री से गंगाजल लाकर यहाँ अभिषेक करेगा वह मुक्ति पाएगा। पानी देश के दो छोर को जोड़ने का ही नहीं बल्कि अंचलों को जोड़ने का माध्यम भी बना। जगह-जगह निकलने वाली काँवड़ यात्राएँ, नर्मदा यात्राएं और नदी स्नान का महत्व धार्मिक कम पानी के प्रति आदरांजलि ज्यादा है। इस्लाम में भी पानी की अहम भागीदारी है। इस्लाम का मूल नमाज है और नमाज का मूल वजू है। वजू के बिना नमाज नहीं हो सकती और बिना पानी के वजू नामुमकिन है। यहां भी पानी के संरक्षण की बात कही गई है। माना जाता है कि कयामत के दिन जिसे नेकी के साथ रखा जाएगा वह वजू का पानी है। यानि ज्यादा से ज्यादा नमाज हो और वजू में एक भी बूँद पानी की बर्बादी की तो आखिर में उसका हिसाब देना होगा।

आज पानी जब कम हो रहा है तो उत्तर-दक्षिण ही नहीं, अड़ोस-पड़ोस के विवाद का कारण बन रहा है। बर्फ के हल्के होने का भी अपना संदेश है। आप चाहे जितना कठोर हो जाएँ यह आपका हल्कापन (उथलापन) हो होगा। आप तरल हैं तो सहज हैं। तभी वस्तुतः भारी भी हैं।

सभ्यताओं और संस्कृति के जलस्रोतों के किनारे होने की वजह पानी का बहुपयोगी होना ही तो है। हम भी जितना बहुपयोगी, बहुगुणी और बहुआयामी होंगे, उतना ही विस्तार और महत्व पाएँगें।

पानी जहां जाता है, जिसमें मिलता, वैसा हो जाता है।

पानी का एक गुण और है। यह राह बनाना जानता है। पत्थरों में रुकता से नहीं, अवरोधों से सिमटता नहीं। दबकर, पलटकर, कुछ देर ठहरकर यह अपनी राह खोज लेता है। और यही पगडंडी धीरे-धीरे दरिया का रास्ता बनती है। देख लीजिए जिन्होंने अपनी पगडंडी चुनी, जो पानी की तरह तरल, सहज और विलायक हुए वही समाज के पथप्रदर्शक भी बने। उन्हें ही सुकून भी मिला।

हम हर बार कहते हैं, पढ़ते हैं- पानी गए न ऊबरे... लेकिन हर बार जब आकलन करते हैं तो पाते हैं कि पानी के बारे में जितना भी जाना, न जाना कुछ भी और जिसने पानी को जान लिया वह पानी-पानी हो गया। जिसने पानी को समझ लिया वह पानीदार हो गया।