पानी को यों बहता देखकर दुख होता है

Submitted by editorial on Sat, 06/09/2018 - 17:31
Source
कादम्बिनी, मई, 2018

पानी का संकट कितना बड़ा हो चुका है, इसका फिलहाल हमें अभी अनुमान नहीं है। एक तरफ दैनिक जीवन में ही पानी को लेकर लड़ाई-झगड़े की नौबत आ रही है, तो दूसरी तरफ हम इसकी बर्बादी में भी पीछे नहीं हटते।

पानी की समस्या आज सिर्फ हमारे देश भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में अहम हो गई है, तभी तो जब भी इस पर कोई फिल्म बनती है, तो वह सुपरहिट होकर करोड़ों का बिजनेस कर लेती है। सभी जानते हैं कि पिछले कुछ दशकों से जल संकट भारत के लिये बहुत बड़ी समस्या है। इन दिनों जल संरक्षण शोधकर्ताओं के लिये मुख्य विषय बना हुआ है।

जल संरक्षण की बहुत-सी विधियाँ सफल हो रही हैं और लगातार इस पर काम किया जा रहा है। मैंने अपनी आधी से ज्यादा जिन्दगी गाँव में गुजारी है और इसलिये मैं जानता हूँ कि हमारे लिये पानी की क्या अहमियत है। गाँवों में पहले हर घर में नल नहीं होता था, इसलिये दोस्तों की टोली कहीं दूर से पानी भरकर लाती थी।

गर्मी के दिनों में तो यह दिनचर्या का अहम हिस्सा भी होती थी। सारा गाँव एक ही जगह पर पानी भरने आता है। ऐसे में जो पहले आता, वह पहले पाता था। कई बार उस चक्कर में लोग आपस में भिड़ भी जाते थे और वहाँ बैठे लोगों को फिर उनकी लड़ाई खत्म कराने के लिये आना पड़ता था। पानी के लिये लड़ी जाने वाली लड़ाइयों में मैं कई बार शामिल हुआ हूँ।

शहरों में जब पानी नहीं आता, तो लोग फोन करके पानी की बड़ी-बड़ी बोतलें मँगवा लेते हैं, लेकिन गाँवों में अभी भी लोग पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं। उन्हें देखकर लगता है कि सिर्फ वही हैं जो पानी की अहमियत को समझते हैं, क्योंकि उन्होंने आसानी से मिलने वाले पानी के लिये काफी मेहनत की है। कई वर्षों के इन्तजार के बाद आज उन्हें घर में एक नल मिला है जिससे वे अपनी जरूरत के हिसाब से पानी भर लेते हैं। कई लोग तो उनमें ऐसे भी हैं जिनको मोहल्ले के हिसाब से पानी मिला है। अभी भी भारत में कई गाँव और शहर ऐसे हैं जहाँ पर चार से पाँच परिवारों को पानी के लिये एक कनेक्शन मिला हुआ है और उसी से पानी भरकर वे जीवन चलाते हैं।

इसके विपरीत मुम्बई में देखता हूँ, तो यहाँ पर कई बार बिल्डिंग की छतों से घंटों तक पानी बहता है। कई घंटे बाद जब बिल्डिंग के गार्ड को पता चलता है, तो वह आता है और उस परिवार पर कुछ 500 या 1000 रुपये का फाइन काटकर चला जाता है। उन्हें इस फाइन से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि इतना पैसा उनके लिये कोई मायने नहीं रखता। इससे महँगा तो उनके घरों में हर दिन पीने का पानी मँगाया जाता है। उस समय मैं सोचता हूँ कि जो पानी यहाँ पर बेवजह बहा दिया गया असल में उसकी कीमत कितनी होगी?

शायद इतनी कि कोई अन्दाजा भी न लगा पाये। शहरों में रहने वाले ये लोग नहीं जानते कि आबादी के लिहाज से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश भारत जल संकट से जूझ रहा है और हालात दिन-प्रतिदिन खराब होते जा रहे हैं। ऐसे ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं होगा जब पानी के लिये एक देश दूसरे देश पर हमला कर देगा और इंसान, इंसान का दुश्मन बन जाएगा।

(लेखक जाने-माने फिल्म अभिनेता हैं)