इस समय देश में लोकसभा चुनाव हो रहे हैं। अब तक ज्यादातर बड़ी पार्टियों ने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिये हैं। हैं। हाल ही में आम आदमी पार्टी ने 25 अप्रैल 2019 को अपना घोषणा पत्र जारी किया। हमने कुछ मुख्य राजनीतिक पार्टियों के घोषणा पत्रों के कुछ पहलुओं को जानने की कोशिश की है जिन पर हम काम करते हैं। घोषणा पत्र में वादों को देखते हुए हम वर्तमान सरकार के रिकॉर्ड को जानेंगे। हम देखेंगे हैं कि पानी और पर्यावरण को किस पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में जगह दी है। क्योंकि पानी की समस्या और पर्यावरण संकट का सामना भारत हमेशा से करता आ रहा है।
भारतीय जनता पार्टी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा पिछले पांच वर्षों से सत्ता में है। बीजेपी भी 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए अपना मेनिफेस्टो जारी कर चुकी है। 8 अप्रैल 2019 को जारी हुए 45 पेज के मेनिफेस्टो में 2014 के मेनिफेस्टो के विपरीत इस बार के कवर पेज पर सिर्फ एक व्यक्ति ही नजर आ रहा है, नरेन्द्र मोदी। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के मेनिफेस्टो के कवर पेज पर नरेन्द्र मोदी के अलावा बीजेपी के कई बड़े चेहरों को भी शामिल किया गया था। 2014 के चुनाव के बाद सबको उम्मीद थी कि नरेन्द्र मोदी ने जो वायदे जनता से किये हैं वो जरूर पूरे होंगे। 2019 में अब पिछले पांच वर्षों का लेखा-जोखा देखें तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने निराश ही किया है।
बीजेपी के इस बारे का मैनिफेस्टो का शीर्षक संकल्प और शक्ति के बारे में बात करता है। 2014 के घोषणापत्र में जो वादे किये गये थे उनको देखते हुए भाजपा के संकल्प में विश्वसनीयता तो रत्ती मात्र की नहीं है। वे सिर्फ अपने आपको बधाई दे रहे हैं न कि किए गए दावों पर परेशान हों। 2014 में किए गए वादों का कोई हिसाब नहीं दिया गया है कि उसे कितना हासिल किया गया है?
कांग्रेस
कांग्रेस पार्टी ने 2019 के आम चुनाव के लिए अपना मेनिफेस्टो 3 अप्रैल 2019 को जारी किया। 55 पेज के कांग्रेस के इस मेनिफेस्टो के कवर पेज पर हेडलाइन है, ‘हम निभाएंगे’। कांग्रेस के इस मेनिफेस्टो में सबसे खास सामाजिक न्याय योजना है, जिसका कांग्रेस अपने रैलियों में खूब जिक्र कर रही है। इन पार्टियों के मेनिफेस्टो को हमने देखा और ढ़ूंढा कि इन जल संसाधन, नदियों और पर्यावरण जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को मेनिफेस्टो में कितनी जगह दी गई है।
जल स्रोत
कांग्रेस अपने मेनिफेस्टो में कहती है, ‘कांग्रेस पानी के संकट और स्वच्छता को टैक्नोलाॅजी और कानून की मदद से सही करने का वायदा करती है’। जो अब तक इस सरकार ने छोड़ दिया है। कांग्रेस के घोषणा पत्र में लिखा है कि वो पानी से संबंधित कामों और विभागों को एक प्राधिकरण में लाने के लिए जल मंत्रालय बनाने का वादा करती है। ऐसा ही कुछ बीजेपी ने अपने मेनिफेस्टो में कहा है कि जल शक्ति के तहत जल प्रबंधन संबंधी कामों को एकीकृत करने के लिए एक नए जल मंत्रालय का बनाया जाएगा, जो अव्यावहारिक लगता है। सभी जल संबंधी गतिविधियों और विभागों को एक मंत्रालय में लाना आसान काम नहीं है। जल मंत्रालय के बाहर ही पानी से संबंधित गतिविधियां होंगी। क्या महत्वपूर्ण है और किसको क्या करना है उसके लिए सबका काम निर्धारित है।
अपने मेनिफेस्टो में किसी भी पार्टी ने नहीं कहा कि कि भू-जल भारत के जल की जीवन रेखा है। इसके बजाय कांग्रेस का मेनिफेस्टो पानी के लिए अलग ही बात कहता है, ‘हम बांधों और जल निकायों में भंडारण पर ध्यान केंद्रित करेंगे, भूजल की पुनःपूर्ति के लिए राज्य सरकारों, नागरिक समाज संगठनों, किसानों सहित जल प्रबंधन के एक बड़े भागीदारी कार्यक्रम का निर्माण करके इन मुद्दों पर बात करेंगे’। ये हमारे लिए कहीं से भी मददगार नहीं है। जल संसाधनों के विकास के लिए भंडारण बांध से करना सही नहीं है।
बीजेपी का घोषणा-पत्र
जून 2018 की नीति आयोग की एक रिपोर्ट है, ‘समग्र जल प्रबंधन सूचकांकः जल प्रबंधन के लिए एक उपकरण’। जिसमें कहा गया है कि भारत जल संकट का सामना कर रहा है, यह संकट और बदतर होता जा रहा है। यह एक तरह की पुष्टि है कि केन्द्र सरकार पानी के संकट से निपटने के लिए बहुत कुछ करने में असमर्थ रही है। भाजपा सरकार ने पिछले पांच वर्षों में कुछ अच्छे काम किए लेकिन इच्छाशक्ति की कमी के कारण, वे जमीन पर नहीं उतर पाए। उदाहरण के लिए मिहिर शाह समिति की स्थापना जल संसाधन सचिव की बदौलत की गई थी। लेकिन सरकार की राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण समिति के दिए गए सुझावों को सुधार के लिए कभी लागू नहीं किया गया।
भाजपा का ट्रैक रिकॉर्ड कुल मिलाकर अच्छा नहीं रहा है, संक्षेप में कहें तो आधिकारिक रिपोर्टों के अनुसार मोदी सरकार में गंगा की स्थिति और खराब हो गई है। जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी की पोस्ट बदलती रहती है और अस्पष्ट वादे करते हैं। गंगा की स्थिति इतनी खराब है कि प्रोफेसर जी डी अग्रवाल आमरण अनशन पर चले गए और अंततः उनकी मृत्यु हो गई क्योंकि मोदी सरकार ने कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी। हरिद्वार के मातृ सदन आश्रम के स्वामी आत्मबोधानंद अक्टूबर 2018 से अनशन पर थे और हाल ही में उन्होंने 194 दिनों के बाद नेशनल क्लीन मिशन फाॅर गंगा के निदेशक के लिखित आश्वासन पर अपने अनशन को विराम दिया। गंगा की सफाई के मोदी सरकार के दावे गलत हैं, इस बारे में कई खबरें हैं। उदाहरण के लिए, नितिन गडकरी ने दावा किया कि कानपुर का सिस्मौ नाला साफ हो गया है। लेकिन उनके इस दावे को आईआईटी कानपुर ने गलत बताया है।
लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने 4-5 मई 2016 को रिसर्च इनिशिएटिव के तहत खुले मंच से स्वागत योग्य पहल की। जिसमें सूखा और नदियों के मुद्दों के सांसदों के साथ चर्चा की, लेकिन सरकार ने कोई महत्व ही नहीं दिया कि वहां क्या चर्चा हुई? बीजेपी का कहना है कि सरकार ने सिंचाई की 31 अधूरे प्रोजेक्ट को पूरा कर लिया है और दिसंबर 2019 तक 68 अधूरी सिंचाई परियोजनाओं का काम भी पूरा हो जाएगा। इस दावे में समस्या ये है कि ये सिंचाई के ये प्रोजेक्ट आंकड़ों में तो हैं लेकिन ये किसी स्तर पर लाभ नहीं पहुंचा पा रहे हैं। ऐसा हम नहीं कैग की कई रिपोर्टों ने स्पष्ट कर दिया है, इसके अलावा ये प्रोजेक्ट भ्रष्टाचार से ग्रस्त हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात ये भूजल भंडारण पर उल्टा प्रभाव डालते हैं। बीजेपी तो यह भी नहीं मानती कि कि भू-जल भारत के जल की जीवन रेखा है। बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में कहा है कि वह देश की 100 प्रतिशत सिंचाई क्षमता तय समय सीमा में प्राप्त करेगा लेकिन वो समय सीमा क्या है? वो अभी तक तय नहीं है।
बीजेपी के मेनिफेस्टो में एक प्राधिकरण का गठन करके नदियों को जोड़ने की बात कही गई है। इस प्रोग्राम का कोई वैज्ञानिक औचित्य नहीं है, यह एक और आपदा का निमंत्रण है। केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने जून 2016 में मूल्यांकन समिति को धमकी दी थी कि अगर समिति केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना को मंजूरी नहीं देती है, तो वह समिति के खिलाफ आंदोलन शुरू करेगी। केन-बेतवा एक विनाशकारी प्रोजेक्ट है। सरकार ने इसे पूरा करने के लिए हर संभव हेरफेर का इस्तेमाल किया, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। पन्ना और बुंदेलखंड के लोग इसका विरोध कर रहे हैं और दूसरे विकल्पों की मांग कर रहे हैं। इसके बावजूद बीजेपी अपने मेनिफेस्टो में इस प्रोजेक्ट को पूरा करने का वादा करती है।
बीजेपी मेनिफेस्टो में भू-जल के संरक्षण और जल निकास को अंतिम बिंदु के रूप में रखा है और इसके बारे में अधिक जानकारी भी नहीं दी है। 2019 के चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनजाने में, एक बहस शुरू कर दी है- क्या बड़े बांध राजनेताओं के लिए एटीएम मशीन हैं? नरेन्द्र मोदी ने पोलावरम बांध का मुद्दा आंध्र सरकार को घेरने के लिए उठाया होगा, लेकिन ये सवाल तो पूरे देश के बड़े बांधों के लिए भी लागू होता है जैसे कि सरदार सरोवर बांध। इस चुनाव में कोई भी पार्टी इन मुद्दों पर गंभीर नहीं हैं और न ही मीडिया ही इस तरह की बहस करना चाहती है। आखिर कब एक अच्छी बहस होगी जिसमें हमारे इस सवाल का जवाब मिलेगा कि क्या बांध राजनेताओं के लिए एटीएम मशीन हैं?
बीजेपी ने वादा किया है कि छोटी सिंचाई योजनाओं के तहत 10 करोड़ हेक्टेयर लाया जाएगा। इससे भी महत्वपूर्ण बात जिसके बारे में कोई बात नहीं करता जैसे कि सिस्टम ऑफ राइस इंटेंसिफिकेशन या मिट्टी की नमी और भूजल पुनर्भरण को बढ़ाना। हाल ही में कैग की एक रिपोर्ट आई है जिसमें पाया गया है कि कि मोदी सरकार का राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम का काम बेहद खराब रहा है। इस कार्यक्रम ने पांच वर्षों के दौरान 82,000 करोड़ रुपये खर्च किए लेकिन वो केवल 5.5 प्रतिशत ग्रामीण बस्तियों तक ही पहुंच सका। हालांकि इस सरकार के पांच वर्ष पूरे होने के बावजूद भी 82 प्रतिशत ग्रामीण आबादी और 83 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास पानी की आपूति पर्याप्त नहीं है। 15 प्रतिशत ग्रामीण स्कूलों में पीने के साफ पानी की सुविधा नहीं है। इस कार्यक्रम के प्रत्येक चरण में योजना, कार्यान्वयन, फंड प्रबंधन, निगरानी और मूल्यांकन से लेकर शिकायत निवारण तक विफलता दिखाई।
नदियां
नदियों ने मानव इतिहास में एक बड़ी भूमिका निभाई है। कई सभ्यताओं का पोषण नदियों द्वारा किया गया है और नदियां हमारे भविष्य के लिए हमेशा महत्वपूर्ण बनी रहेंगी। इसलिए, नदियों का पुनरुद्धार हमारे समाज के लिए एक स्वच्छ और स्वस्थ भविष्य, हमारे लिए आर्थिक अवसरों और हमारी विरासत के नवीकरण के लिए मेरे संकल्प का एक अनिवार्य हिस्सा है। हमें अपने लक्ष्य को पाने के लिए बेहतर नीति, निवेश और प्रबंधन की आवश्यकता है। लेकिन हम तभी सफल होंगे जब हम अपनी कोशिश में टेक्नोलाॅजी, इंजीनियरिंग को एकीकृत करेंगे और न केवल अपनी नदियों को साफ करने के लिए बल्कि भविष्य में भी उन्हें अच्छा रखेंगे। हमें शहरीकरण, खेती, औद्योगीकरण, भूजल उपयोग और नदी के इको सिस्टम पर प्रदूषण के प्रभाव पर वैज्ञानिक समझ की भी आवश्यकता है। नदी प्रकृति की आत्मा है और उनकी प्रकृति को बनाए रखने के लिए हमें नवीनीकरण करने की आवश्यकता है’। आपको पता है ये बात किसने बोली है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3 जनवरी 2016 को भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 103वें सत्र में उद्घाटन भाषण में ये बातें कहीं थीं लेकिन अफसोस वो सिर्फ बातें थीं हुआ कुछ भी नहीं।
गंगा
बीजेपी मेनिफेस्टो में सांस्कृतिक विरासत को आधार बनाकर ‘नमामि गंगे’ पर कहती है, ‘हम गंगोत्री से गंगा सागर तक गंगा नदी के स्वच्छ और निर्बाध प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि गंगा के शहरों से 100 फीसदी गंदे पानी से निपटने के लिए सीवरेज का बुनियादी ढांचा पूरा हो गया है और प्रभावी रूप से काम कर रहा है और नदी के प्रवाह को बढ़ाने के लिए कदम उठाया जा रहा है‘। उन्होंने पहले जो वादा किया था उसे कितना हासिल किया उस पर कुछ नहीं कहा बल्कि और नए वादे जोड़ दिये है। इसमें भी उन्होंने नहीं बताया कि इसे पूरा कैसे करेंगे।
भाजपा का ट्रैक रिकॉर्ड कुल मिलाकर अच्छा नहीं रहा है, संक्षेप में कहें तो आधिकारिक रिपोर्टों के अनुसार मोदी सरकार में गंगा की स्थिति और खराब हो गई है। जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी की पोस्ट बदलती रहती है और अस्पष्ट वादे करते हैं। भाजपा सरकार ने गंगा बेसिन में जल विद्युत, जल मार्ग, चार धाम राजमार्ग, ड्रेजिंग, रिवर लिंकिंग और कई बड़ी संख्या में परियोजनाएं की हैं। ज्यादातर मामलों में मूल्यांकन प्रक्रियाओं से बचने के लिए स्थितियों में हेर फेर किया गया है। गंगा की स्थिति इतनी खराब है कि प्रोफेसर जी डी अग्रवाल आमरण अनशन पर चले गए और अंततः उनकी मृत्यु हो गई क्योंकि मोदी सरकार ने कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी। हरिद्वार के मातृ सदन आश्रम के स्वामी आत्मबोधानंद अक्टूबर 2018 से अनशन पर थे और हाल ही में उन्होंने 194 दिनों के बाद नेशनल क्लीन मिशन फाॅर गंगा के निदेशक के लिखित आश्वासन पर अपने अनशन को विराम दिया। गंगा की सफाई के मोदी सरकार के दावे गलत हैं, इस बारे में कई खबरें हैं। उदाहरण के लिए, नितिन गडकरी ने दावा किया कि कानपुर का सिस्मौ नाला साफ हो गया है। लेकिन उनके इस दावे को आईआईटी कानपुर ने गलत बताया है।
कांग्रेस गंगा एक्शन, नदी की सफाई और दोगुना बजट देने का वादा कर रही है। इसमें नई तकनीक और विज्ञान का उपयोग करेगी और कार्यप्रणाली की समीक्षा भी होगी लेकिन फिर से कांग्रेस भी वही गलती करती है। मेनिफेस्टो में इस बात का जिक्र ही नहीं है कि ये सब काम होंगे कैसे? भाजपा की ही तरह कांग्रेस भी बयान ही दे रही है, ‘हम सीवेज के उपचार और सही हल के लिए एक बड़ी योजना को लागू करेंगे’।
महाराष्ट्र कांग्रेस पर्यावरण विभाग की उपाध्यक्ष साधना महाशबदे कहती है ‘नदी क्षेत्र, जिसे राज्य में लागू किया गया था। बीजेपी की सरकार ने उसे निरस्त कर दिया गया है जिसका मुख्य उद्देश्य नदियों और बाढ़ के मैदानों में हो रहे अतिक्रमण को रोकना था। हम उसे फिर से लागू करंगे और शहर/राज्य की कम से कम एक बड़ी नदी को पुनर्जीवित किया जाए’। यह एक स्वागत योग्य है कदम है। कांग्रेस के अन्य वादों में बालू का अवैध खनन रोकना, ठोस कचरा प्रबंधन योजना का क्रियान्वयन, अपशिष्ट पृथक्करण को बढ़ावा देना, स्थानीय समुदायों को जंगल का संरक्षक बनाना शामिल करना है। आम आदमी पार्टी ने 2019 के अपने मैनिफेस्टो में स्थानीय जल निकायों का उपयोग कर विकेंद्रीकृत सीवेज उपचार संयंत्रों जैसे कुछ स्वागत योग्य मुद्दों का उल्लेख किया है। लेकिन यमुना नदी की स्थिति और दिल्ली से संबंधित जल मुद्दों की संभावनाओं के बारे में बहुत अधिक नहीं कहा गया है।
ब्रह्मपुत्र और उत्तर पूर्व भारत
बीजेपी अपने मेनिफेस्टो में कहता है ‘हम पूर्वोत्तर राज्यों में पनबिजली की जबर्दस्त क्षमता का लाभ उठाने के लिए आवश्यक कदम उठाते रहेंगे‘। इस चौंकाने वाले बयान का मतलब है कि बीजेपी उत्तर-पूर्व भारत में बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं को आगे बढ़ाएगी। हालांकि प्रधानमंत्री ने 2014 में उत्तर-पूर्व के लोगों से वादा किया था कि अगर उन्हें बड़े बांध नहीं चाहिए तो उनकी सरकार बड़े बांध नहीं बनाएगी। पिछले पांच वर्षों के दौरान बीजेपी सरकार लगातार असम में 2000 मेगावाट की लोअर सुबानसिरी जलविद्युत प्रोजेक्ट करने पर लगी हुई है। जिसके विरोध में असम के लोगों ने आंदोलन भी किए।
2019 में अपने चुनाव अभियान के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा, ‘पूर्वोत्तर में नए भारत के ऊर्जा केंद्र बनने की शक्ति है और सरकार इस सपने को साकार करने के लिए इस क्षेत्र को विकसित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है’। उत्तर पूर्वी भारत के लोगों के लिए ये प्रोजेक्ट गंभीर रूप से समस्या बन चुका है। 8 मार्च, 2019 को चुनावों को मोदी सरकार ने ऐलान किया कि अधिक सब्सिडी वाली जलविद्युत परियोजनाओं को रियायतें दी जाएंगी। जलविद्युत परियोजनाओं के लिए इस तरह की रियायत ने सरकार पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
कांग्रेस का घोषणा पत्र समस्या भरा वादा करती है ‘ब्रह्मपुत्र के पानी का दोहन करने, बाढ़ और मिट्टी के कटाव की समस्याओं का स्थायी समाधान खोजने के आधुनिक तकनीक का उपयोग करेंगे’। हम उत्तर पूर्वी क्षेत्र में एक बहु-माॅडल ट्रांसपोर्ट सिस्टम बनाने के लिए अवसर की जांच करेंगे। यह दृष्टिकोण भाजपा से अलग कैसे है? बाढ़ और मिट्टी के कटाव की समस्याओं के स्थायी समाधान की बात करें तो मूल रूप से जिस समाधान की बात की जा रही है वो प्रभावी नहीं हैं। सही समाधान पर पहुंचने के लिए कम से कम भागीदारी की प्रक्रिया जरूरी है।
मत्स्य पालन
बीजेपी के वायदों के बारे में छोटे पैमाने पर मछली पकड़ने वालों ने कहा, भाजपा ने हमारे प्राकृतिक संसाधनों को कॉरपोरेट और व्यापारिक घरानों को बेचने का एक नया रिकॉर्ड छू लिया है। यह पूरे देश के मछली पकड़ने वालों सहित भारत के लोगों से झूठ बोला गया था। पिछले संसदीय चुनावों से पहले उनके वोट लेने के लिए उनके साथ छल किया गया था। इससे भी अधिक साहस का काम ये है कि 2019 के भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में 2014 में पांच साल के लिए किए गये वायदों पर बात ही नहीं की गई है। वे बड़े आराम से अपने पिछले वायदों को भूल जाते हैं और नए के बारे में बात करने लगते हैं।
कांग्रेस के मेनिफेस्टो ने स्वीकार किया है कि 14 मिलियन लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मत्स्य पालन पर निर्भर हैं। मंत्रालय और राष्ट्रीय आयोग मत्स्य पालन के लिए वादा करती है। यह बताने की जरूरत है कि मछुआरों की जनगणना होगी और उनकी आजीविका के संसाधनों का सर्वेक्षण किया जाएगा। उन्हें बनाए रखने और बढ़ाने के लिए उपाय भी किए जाएंगे।
पर्यावरण
वन और पर्यावरण के लिए भाजपा दावा करती है, कि वन और पर्यावरण के लिए हमने कुछ परियोजनाओं में गति और उसका प्रभाव निश्चित किया है। जिसके कारण हमने लगभग 9000 वर्ग किलोमीटर भूमि को देश के वन आवरण में जोड़ा है। हम अपने देश को एक हरियाली वाला देश बनाने के लिए इस गति को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। ये केवल दिखाता है कि पर्यावरण और जंगलों के बारे में उनकी समझ कितनी खराब है? बहार दत्त जिन्होंने कांग्रेस और भाजपा के मैनिफेस्टो का विश्लेषण किया। वे पर्यावरण वकील रित्विक दत्ता के हवाले से कहते हैं, बीजेपी की बातों में एक गंभीर विरोधाभास है क्योंकि ये बात कोई नहीं जानता कि वन भूमि को मंजूरी देने के लिए अनुमति कैसे ली जाती है? वन क्षेत्र में वृद्धि करने का अर्थ है कि गैर-वन भूमि क्षेत्र को वनीकरण करना। हमने देश का लगभग 9000 वर्ग किमी प्राकृतिक वन भूमि को साफ करके वन-विहीन कर दिया है।
भाजपा सरकार के तीनों पर्यावरण मंत्रीं प्रकाश जावड़ेकर, स्वर्गीय अनिल माधव दवे और डॉ. हर्षवर्धन का रिकॉर्ड बेहद खराब है। पर्यावरण मंत्रालय पिछले पांच वर्षों में गैर-पारदर्शी और गैर-उत्तरदायी बन गया है। 2016 में एमओइएफ ने वेटलैंड्स नियमों को गंभीरता से लिया जबकि 2010 के पहले के नियम लागू ही नहीं हुए थे। दिसंबर 2016 में रिवर वैली प्रोजेक्ट्स पर पुनर्गठित ईएसी ने अपनी पहली बैठक में विरोधी लोगों और पर्यावरण विरोधी रवैये दिखाया। कई और भी उदाहरण हैं कि भाजपा ने पर्यावरण के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया है। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने गोवा के मोपा एयरपोर्ट पर पर्यावरण मंजूरी रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आलोचना करते हुए पर्यावरण पर भाजपा सरकार की बुरी समझ को उजागर किया था। रितविक दत्ता, अमिताभ कांत को जवाब देते हुए कहते हैं, सुप्रीम कोर्ट का फैसला न्यायिक हस्तक्षेप नहीं है, जैसा कि अमिताभ कांत कहते हैं। ये तो बस कानून को कायम रखने का एक तरीका है।
बीजेपी एक और विवादित दावा करती है कि हमने वनवासियों खासकर आदिवासी समुदायों के हितों की लगातार रक्षा की है। वनवासी वन अधिकार अधिनियम, 2005 की अवहेलना के लिए सरकार से नाराज हैं। ध्रुव राठी ने एक महत्वपूर्ण बात कही, “यूपीए सरकार का पर्यावरण पर कोई रिकॉर्ड नहीं था, लेकिन पिछले पांच वर्षों में जो हुआ है वो बेमिसाल है। इसका सबसे बड़ा सबूत पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक है। भारत पिछले साल 180 में से दुनिया में चौथा सबसे खराब देश 177वें स्थान पर था। पांच साल पहले इसी सूचकांक में भारत 155वें पायदान पर था।
मौलिक सिसोदिया ने ईपीडब्ल्यू में अपने विश्लेषण में कहा है, ‘राजग सरकार ने कानूनों को कमजोर किया है, खुले परामर्श और सार्वजनिक सुनवाई करने में विफल रही है। निजी कंपनियों के लिए देश के प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग करना आसान बना दिया, जिसमें वन, वन्यजीव, जलीय जीवन, पहाड़, और नदियां भी शामिल हैं। शिकागो यूनिवर्सिटीज की ऊर्जा नीति संस्थान के अनुसार, भारत दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित देश बन गया है।
कांग्रेस के कुछ महत्वपूर्ण वायदे
- हम पर्यावरणीय मानकों को देखते हुए कानून के द्वारा एक स्वतंत्र, सशक्त और पारदर्शी पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण (ईपीए) का गठन करेंगे। ये वही है जिस पर जयराम नरेश ने पर्यावारण मंत्री रहते हुए काम करना शुरू किया है। इससे पहले कि वे इसे पूरा करते उनको इस पद से हटा दिया गया था।
- हम स्थानीय समुदायों के अधिकारों को प्रभावित किए बिना एक व्यापक भूमि और जल उपयोग नीति योजना तैयार करेंगे। जिसमें पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण, जैव-विविधता और वन्यजीवों को शामिल किया जाएगा।
- कांग्रेस “हिमालयी रेंज और पश्चिमी घाटों की समृद्ध जैव-विविधता को संरक्षित करने के लिए” काम करेगी। वह माधव गाडगिल समिति की सिफारिशों को पूरा करेगी। उम्मीद है कि इस पर योजना भी लागू की जाएगी।
- हम निर्माण के लिए बालू के आयात को अनुमति देंगे और नदी के किनारों की बालू के अवैध खनन को रोकेंगे।
जलवायु परिवर्तन
कांग्रेस ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की समीक्षा करने का वादा किया है और बीजेपी के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का पूरी तरह से ठप्प हो गया है। बीजेपी अपने मेनिफेस्टो में कहती है कि भारत ने कोयले का अधिकतम उत्पादन किया है। हालांकि, मेनिफेस्टो में जलवायु परिवर्तन के पीड़ितों की पहचान करने की बात कहता है और न ही उनके सुधार के लिए कुछ करने की वकालत करता है। किसी ने भी निर्णय लेने की प्रक्रिया में जलवायु परिवर्तन को मैन स्टीम में लाने का प्रस्ताव नहीं किया है।
निष्कर्ष
हमने मैनिफेस्टो के विश्लेषण करते हुए देखा कि 2014 में आम आदमी पार्टी ने अपने मैनिफेस्टो में मतदाताओं से ईमानदार पार्टी को वोट देने की अपील की गई थी और ये यह अपील इस बार के चुनाव में लागू होती है। मई 2014 में नरेन्द्र मोदी के शपथ होने से पहले हमने एक लेख लिखा था, नई सरकार के जोखिम और चुनौतियां। बीजेपी को 2004 के लोकसभा चुनाव के नतीजों को याद कर लेना चाहिए। जो वायदे पूरे किये गये थे, वो पूरे नहीं किये गये। परेशानी और चिंताएं अब पहले से ज्यादा बढ़ गई हैं। लेकिन सरकार कुछ नहीं कर रही है सिवाय वादों के।