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राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान की पत्रिका 'जल चेतना', जुलाई 2013
रात में नींद के समय लगभग 6 घंटे तक हर व्यक्ति के शरीर में कम-से-कम हलचल होती है; लेकिन इस बीच पेट द्वारा भोजन पचाकर उसका रस सारे शरीर में पहुंचाने का क्रम बराबर चलता रहता है। इस प्रक्रिया के साथ शरीर में नए कोश बनने तथा पुराने कोशों को मल के रूप में विसर्जित करने का चयापचय का क्रम चलता रहता है। रात में शरीर की हलचल तथा शरीर में पानी के प्रबंधन की कमी से जगह-जगह शरीर से विसर्जित विषैले तत्व इकट्ठे हो जाते हैं। प्रातः जागते ही शरीर में पर्याप्त मात्रा में एक साथ पानी पहुंचाने से शरीर के अंतरंग अवयवों की धुलाई जैसी प्रक्रिया चल पड़ती है। भारत ऊषापान के नाम से उपचार विद्वानों से लेकर ग्रामीणों तक में प्रचलित रहा है। पश्चिम के सम्मोहन और संस्कृति के प्रति उपेक्षा-अवज्ञा की मानसिकता के कारण यह प्रचलन और इसका ठीक-ठाक स्वरूप भुला दिया गया था। भारत में प्राकृतिक जीवनचर्या की समर्थक कुछ संस्थाओं तथा जापान की एक संस्था ‘सिंकनेस एसोसिएशन’ ने विभिन्न शोधात्मक अध्ययनों के आधार पर इस उपचार प्रणाली को पुनः स्थापित और प्रचारित किया है।
लाभ-स्वस्थ शरीर वालों के लिए यह नियमित प्रयोग आरोग्यवर्धक (रोगों की प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ाने वाला) तथा स्फूर्तिदायक सिद्ध होता है। इस प्रयोग की नियमितता से प्रयोगकर्ताओं को तमाम रोगों से छुटकारा मिलता देखा गया है, जैसे : 1. सिरदर्द, रक्तचाप, एनीमिया, संधिवात, मोटापा, अर्थ्राइटिस, स्नायु रोग साइटिका, दिल की धड़कन, बेहोशी। 2. कफ, खांसी, दमा, ब्राँकाइटिस, टी.बी.। 3. मेनिन्जायटिस, लिवर संबंधी रोग, पेशाब की बीमारियां। 4. हाइपर एसीडीटी (अम्लपित्त), गेस्ट्राइटिस (गैस संबंधी तकलीफें), पेचिश, गुर्दा की बीमारी, कब्जियत, डायबिटीज (शर्करायुक्त पेशाब)। 5. आंखों की कई प्रकार की तकलीफें। 6. स्त्रियों की अनियमित महावारी, प्रदर (ल्यूकोरिया), गर्भाशय का कैंसर। 7. नाक और गला संबंधी बीमारियां। अनुभवों और परीक्षणों से रोग ठीक होने की अवधि निम्नानुसार सिद्ध हुई है। रक्तचाप व मधुमेह 1 माह में, कैंसर 6 माह में, कब्ज एवं गैस की तकलीफ 10 दिन में, टी.बी. 3 माह में।
विधि :
1. सवेरे ऊषाकाल में जागकर यह प्रयोग करना लाभकारी है। इसलिए इसे ऊषापान कहा जाता है। रात में देर से सोने के कारण जो लोग सवेरे जल्दी न उठा पाएं, वे जब जागें तभी इसका प्रयोग करें।
2. सवेर उठते ही आवश्यकता होने पर लघुशंका (पेशाब) से निवृत्त होकर, मंजन-ब्रश आदि करने से पहले ऊषापान करें। एकाध सादा पानी का कुल्ला किया जा सकता है। वयस्क व्यक्ति जिनका शरीर भार 60 कि.ग्रा. के लगभग है, वे एक किलो (1 लीटर) तथा अधिक भार वाले सवा किलो (सवा लीटर पानी एक साथ पीएं।
3. पानी उकड़ु बैठकर पीना अधिक अच्छा रहता है तथा तांबे के बर्तन में रखकर पानी पिया जा सकता है। ऊषापान के लगभग 45 मिनट बाद तक कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए।
ज्ञातव्य :
1. जिनको सर्दी लगती हो, शरीर ठंडा रहता हो, अग्नि मंद हो, कमजोरी हो वे कड़ी सर्दियों में सामान्य स्थिति में भी गर्म पानी या हल्का गर्म पिएं।
2. जिनके शरीर में गर्मी हो, जलन रहती हो, वे रात्रि का रखा सादा पानी पीएं।
3. एक साथ न पी पाएं तो 5-10 मिनट रूककर दो बार मे पी लें। एक दिन में न पी पाएं, तो धीरे-धीरे निर्धारित आधार तक बढ़ा लें।
4. पहले 10-15 दिन पेशाब बहुत ज्यादा व जोर से लगेगा, बाद में ठीक हो जाएगा।
5. जो लोग वात रोग एवं संधिवात के रोगों से ग्रस्त हों, उन्हें लगभग 1 सप्ताह तक यह प्रयोग दिन में तीन बार (सवेरे जागते ही, दोपहर भोजन विश्राम के बाद एवं शाम को) करना चाहिए। बाद में केवल सवेरे का क्रम प्रारंभ रखें।
6. पानी पीकर पेट पर हाथ फेरते हुए 10-15 मिनट जहां सुविधा हो वहां टहलें या कटि मर्तनाशन करें। यह क्रिया कब्ज के मरीजों के लिए विशेष उपयोगी है।
पथ्य :
ऊषापान करने वाले शरीर के रोगों की प्रकृति के अनुसार आहार पर ध्यान दें।
वात प्रधान रोगों में :
तला-भुना पदार्थ, मिर्च, चाय-काफी, गरम मसाले, अचार, खटाई आदि बंद कर दें।
कफ प्रधान रोगों में :
मैदा, चावल, उड़द, आलू, अरबी (घुइयां), भिंडी व केला ना लें। मुख से कम खाएं व चबा-चबा कर खाएं। भोजन के बाद पानी न पीएं व भोजन के लगभग एक-डेढ़ घंटे बात खुब पीएं। भोजन के बीच में 4-5 घूंट पानी पीना लाभदायक होता है।
आयुर्वेद का मानक नियम है कि अपच (आहार के सार तत्व से शरीर के आवश्यक रस-रक्तादि बनने तक की प्रक्रिया में गड़बड़ी) की स्थिति में जल प्रयोग औषधि रूप है। निरोग स्थिति में बल-स्फूर्तिदायक है। खाद्य सामग्री में स्वाभाविक जल की उपस्थिति अमृत तुल्य होती है तथा भोजन के तत्काल बाद पानी पीना पाचन तंत्र की गड़बड़ा देता है।
वैज्ञानिक दृष्टि :
यह प्रयोग रोगी, स्वस्थ सभी के लिए अपनाने योग्य है। शरीर विज्ञान की दृष्टि से इसके लाभ के पीछे निम्न सूत्र कार्य करते हैं : रात में नींद के समय लगभग 6 घंटे तक हर व्यक्ति के शरीर में कम-से-कम हलचल होती है; लेकिन इस बीच पेट द्वारा भोजन पचाकर उसका रस सारे शरीर में पहुंचाने का क्रम बराबर चलता रहता है। इस प्रक्रिया के साथ शरीर में नए कोश बनने तथा पुराने कोशों को मल के रूप में विसर्जित करने का चयापचय (मेटाबॉलिज्म) का क्रम चलता रहता है। रात में शरीर की हलचल तथा शरीर में पानी के प्रबंधन की कमी से जगह-जगह शरीर से विसर्जित विषैले तत्व इकट्ठे हो जाते हैं। प्रातः जागते ही शरीर में पर्याप्त मात्रा में एक साथ पानी पहुंचाने से शरीर के अंतरंग अवयवों की धुलाई (फ्लशिंग) जैसी प्रक्रिया चल पड़ती है। अतः सहज प्रवाह में शरीर के विजातीय पदार्थ शरीर से बाहर नहीं निकल पाते हैं, तो तमाम रोगों का कारण बन जाते हैं। शरीर में पथरी या गांठों के रूप में भी उन्हीं पदार्थों का जमाव होता है। ऊषापान से ऐसी विसंगतियों का निवारण भी होता है तथा उन्हें पनपने का अवसर भी नहीं मिलता है।
ऊषापान बासी मुंह करने का नियम है। मुख में सोते समय कुछ शारीरिक विषयों (माउथ पॉयजस) की पर्त जम जाती है। एक साथ काफी मात्रा में पानी पीने से उनका बहुत घोल शरीर में पहुंचता है, जो वैक्सीन का काम करता है। उसके प्रभाव से शरीर में उन विषयों को निष्प्रभावी बनाने वाले प्रतिक्रमण (एंटीबॉडीज) तैयार होने लगते हैं। इससे शरीर की रोग रोधक क्षमता का विकास होता है।
निश्चित रूप से यह प्रयोग स्वस्थ रोगी, अमीर-गरीब और हर उम्र के नर-नारी द्वारा अपनाए जाने योग्य है। इस स्वयं प्रयोग करना तथा अपने प्रभाव क्षेत्र में प्रचारित करना स्वस्थ जीवन की दृष्टि और पर्चों के माध्यम से इसे कोई भी भावनाशील जन-जन तक पहुंचा सकते हैं।
संपर्क
इं. वाई.के. सिंघल
17-भागीरथी कुंज रुड़की