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जल चेतना - तकनीकी पत्रिका, जनवरी 2015
पानी की विशिष्ट ऊष्मा लोहे की तुलना में लगभग दस गुना अधिक होती है। पानी की विशिष्ट ऊष्मा के बहुत अधिक होने के कारण इस धरती पर जीवन का अस्तित्त्व बना हुआ है। पानी के एक निश्चित द्रव्यमान को गर्म करने के लिये काफी ऊष्मा की आवश्यता होती है। जिस कारण समुद्र, झीलें, नदियाँ सौर विकिरण से न तो आसानी से गरम होते हैं और न ही ठंडे। इस तरह यह धरती अचानक ताप-परिवर्तन से बची रहती है। हम स्वस्थ रहें, इसके लिये पेयजल का शुद्ध होना आवश्यक है। असल में हमारे दैनिक जीवन में पानी की अहम भूमिका है। पानी हमारे भोजन का मुख्य घटक है। हमारे शरीर में जल की मात्रा लगभग 60-70 प्रतिशत होती है। हमारे रक्त के प्लाज्मा, कोशिकाओं, हडिड्यों और दाँतों की बाहरी परत में भी पानी की मौजूदगी है। शरीर ही क्यों हमारे इस ग्रह के लगभग तीन चौथाई भाग पर भी जल का ही अधिकार है। वैसे जल का अधिकतर भाग महासागरों में जमा है, जो खारा है। बाकी जो मीठा पानी है उसका भी अधिकांश भाग ध्रुवीय बर्फ और हिमनदों में जमा है। हमारे उपयोग के लिये जल का लगभग 1 प्रतिशत भाग ही उपलब्ध हो पाता है जो नदियों, झीलों, तालाबों एवं भूगर्भ में पाया जाता है।
जल हाइड्रोजन और आॅक्सीजन का यौगिक है। जिसका एक अणु हाइड्रोजन के दो और आॅक्सीजन के एक अणु से बनता हैं। वैसे शुद्ध रूप में जल रंगहीन, गंधहीन व स्वादहीन है जो ठोस, द्रव और तरल तीनों रूपों में पाया जाता है। शून्य डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर यह ठोस रूप में बदल जाता है। वैसे गैस, ठोस और द्रव रूप में मिलने के कारण जल का महत्त्व इतना अधिक है कि सदियों से लोग ‘जल को जीवन’ कहते आये हैं।
जल में पृष्ठ तनाव का गुण, जल के अणु की ध्रुवीय यानी पोलर प्रकृति के कारण होता है। असल में जल अणु आपस में एक-दूसरे से इतना प्यार करते हैं कि एक-दूसरे से बिछुड़ना नहीं चाहते इसलिये वह आपस में कसकर बँधे रहना चाहते हैं। इसलिये जल सतह पर एक तनाव बल उपस्थित हो जाता है जिसे पृष्ठ तनाव कहा जाता है। जल का पृष्ठ तनाव का गुण मच्छर जैसे अनेक छोटे-छोटे जीवों को आश्रय देते हैं। मच्छर जैसे दुष्ट जीव जल के इस गुण का फायदा उठाकर रुके हुए पानी में जल सतह पर अंडे देता है और फिर उन अंडों से निकले मच्छर मलेरिया, डेंगू जैसी बीमारियाँ भी फैलाते हैं। इसी गुण के कारण ‘वाटर स्ट्राइकर’ जैसे कीट बड़े आराम से पानी की सतह पर चहल-कदमी करते हैं। असल में कीट के भार के कारण नीचे की ओर कार्यरत बल, पानी की पृष्ठ तनाव के कारण लगने वाले बल के भार से कम होता है, इसलिये ऐसे कीट पानी की झिल्ली पर बड़े आराम से फिसलते रहते हैं।
गोल ओस की बूँदे क्यों गोल?
आपने अक्सर सुबह के समय पत्तियों पर पानी की गोल-गोल बूँदों को देखा होगा। वैसे क्या हमनें कभी सोचा है कि पानी की बूँदों का आकार गोल ही क्यों होता है? असल में पानी की बूँदों में गोल होने की प्रवृत्ति के पीछे पृष्ठ तनाव का गुण ही है। पानी अपने पृष्ठ क्षेत्रफल को कम-से-कम रखना चाहता है और हम जानते हैं कि किसी निश्चित द्रव्यमान के लिये गोलीय अवस्था में ही उसका पृष्ठ क्षेत्र सबसे कम होता है।
हाइड्रोजन बंध : अनोखा बन्धन
असल में जल के अणुओं में उपस्थित हाइड्रोजन बंध जल के अनेक अद्वितीय गुणों का कारण है। हाइड्रोजन और आॅक्सीजन आपस में एक-एक इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी कर स्थित-वैद्युत आकर्षण बल से जुड़े होते हैं। इस प्रबल आकर्षण बल के कारण ही पानी के द्रवणांक, क्वथनांक, विशिष्ट ऊष्मा, पृष्ठ तनाव और गलन की ऊष्मा अधिक होती है।
पानी की विशिष्ट ऊष्मा लोहे की तुलना में लगभग दस गुना अधिक होती है। पानी की विशिष्ट ऊष्मा के बहुत अधिक होने के कारण इस धरती पर जीवन का अस्तित्त्व बना हुआ है। पानी के एक निश्चित द्रव्यमान को गर्म करने के लिये काफी ऊष्मा की आवश्यता होती है। जिस कारण समुद्र, झीलें, नदियाँ सौर विकिरण से न तो आसानी से गरम होते हैं और न ही ठंडे। इस तरह यह धरती अचानक ताप-परिवर्तन से बची रहती है। जल के इस गुण के कारण ही हम अक्सर जलने पर उपचार के तौर पर सबसे पहले पानी का प्रयोग करते हैं। पानी जले हुए स्थान से अधिक-से-अधिक ऊष्मा अवशोषित कर लेता है और घाव की तीव्रता को कम कर देता है।
जीव जगत के लिये ऊर्जा का आधार हैं पेड़-पौधे। और पेड़-पौधे अपना खाना बनाने की क्रिया यानी प्रकाश संश्लेषण में पानी का उपयोग करते हैं। आप सोच रहे होंगे कि भला पेड़-पौधे तो जमीन से बहुत ऊँचे होते हैं उतनी ऊँचाई तक पानी कैसे पहुँचता होगा। असल में पानी के अणुओं के बीच संसंजन और आसंजन बल (पानी की अणुओं के मध्य लगने वाले बल) काम करते हैं, जिनकी वजह से पानी किसी पतली नली में गुरुत्त्व बल के विरुद्ध ऊपर चढ़ जाता है। इसे केशिकत्व (केपिलरी) कहते हैं। इसी गुण की वजह से पेड़-पौधों में पानी जमीन से उनके ऊपरी सिरों तक पहुँच जाता है। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि पानी एक घंटे में लगभग 100 मीटर ऊपर तक चढ़ सकता है।
आपने कभी बचपन में बर्फ को पानी पर तैराने का खेल खेला है। असल में पानी ऐसा ज्ञात तत्त्व है जो ठोस की बजाय द्रव अवस्था में अधिक घनत्त्व रखता है। यही कारण है कि बर्फ जल से हल्की होती है। इसलिये तो ध्रुवीय प्रदेशों से समुद्रों में टूट-टूटकर आने वाले हिमखण्ड पानी पर तैरते रहते हैं।
जल हजारों-लाखों पदार्थों को अपने में घोल लेता है इसलिये इसे ‘सार्वभौमिक विलायक’ यानी यूनिवर्सल साल्वेंट भी कहा जाता है। वैसे जल का यही गुण तो है जिसके कारण रक्त में घुले ग्लुकोज, आॅक्सीजन व अन्य तत्व पूरे शरीर में पहुँचते हैं।
पानी अपने उच्च परावैद्युतांक के कारण एक उत्तम विलायक है। असल में किसी विलायक का परावैद्युतांक उस विलायक की क्षमता है जो उसमें शामिल दो विद्युत आवेशों के मध्य लगने वाले आकर्षण बल को कम करता है। इसलिये तो नमक जैसे अनेक पदार्थ पानी में घुल जाते हैं। नमक जो सोडियम और क्लोराइड से बना होता है। सोडियम और क्लोराइड आयनों के बीच प्रबल आकर्षण बल काम करता है लेकिन जब इसे पानी में डालते हैं तो पानी के अणु इन आयनों को खींचकर एक-दूसरे से अलग कर देते हैं। मुक्त हुए आयन पानी के अणुओं से घिरे होते हैं। इस तरह पानी में सोडियम क्लोराइड घुल जाता है।
पानी में कुछ-न-कुछ मात्रा में हर चीज घुल जाती है चाहे वह कोई पत्थर का टुकड़ा ही क्यों न हो। बहुत से यौगिक, चाहे वे जलीय हों या निर्जलीय, पानी में घुलकर वैद्युतविश्लेषी घोल बनाते हैं। ध्रुवीय यौगिकों के साथ-साथ बहुत से सहसंयोजी यौगिक जैसे एल्कोहल, कार्बनिक अम्ल, कीटोंस और ईथर्स भी पूर्णतः या आंशिक तौर पर जल में घुल जाते हैं। ऐसा हाइड्रोजन बंध के साथ इन यौगिकों की क्रिया के कारण होता है।
लेकिन कभी-कभार किसी के गुण उसी पर भारी पड़ जाते हैं। उत्तम विलायक होने वाला पानी का यही गुण उसे प्रदूषित बनाने के लिये भी कुछ मात्रा में जिम्मेदार है। पानी में अनेक प्रदूषक भी घुल जाते हैं। ये प्रदूषक पानी में घुलकर पानी को विषैला बना देते हैं। जिसके कारण विभिन्न बीमारियाँ पैदा हो सकती है। औद्योगिक गतिविधियों के दौरान उत्पन्न अनेक संश्लेषित रसायन, कीटनाशकों में शामिल विभिन्न विषैले रसायन नदी, तालाब, झीलों जैसे जलस्रोतों में मिलकर जल को प्रदूषित कर देते हैं जिससे उन जलस्रोतों में रहने वाले जीवों का जीवन खतरे में पड़ जाता है। प्रदूषित जलस्रोतों के जल का उपयोग करने पर त्वचा रोग, पेट की बीमारियाँ उत्पन्न हो सकती है। निरन्तर प्रदूषित होता जल एक गम्भीर समस्या बन रहा है।
असल में पिछले कुछ दशकों के दौरान मानवीय गतिविधियों और औद्योगिक गतिविधियों से निकले अपशिष्ट उत्पादों के जल स्रोतों में मिलने के कारण जल की शुद्धता प्रभावित हुई है। आज जल गम्भीर रूप से प्रदूषित हुआ है। रासायनिक उर्वरकों, विभिन्न प्रकार के रसायनों और कल-कारखानों से निकले जहरीले रसायनों के मिट्टी और पानी में मिलने से पानी की गुणवत्ता घटी है। आज अमृत समझा जाने वाला पानी विषैला होने लगा है।
आज हमारे देश के अनेक राज्यों के भूजल में आर्सेनिक, फ्लोराइड, कैडमियम, लैड व पारा जैसे सूक्ष्मतत्त्वों की मात्रा निरन्तर बढ़ रही है। कहते हैं न अति किसी भी चीज की बुरी होती है। बस यही बात इन सूक्ष्मतत्त्वों पर भी लागू होती है। पेयजल में इनकी बढ़ी मात्रा आज हानिकारक साबित हो रही है। असल में इन तत्वों की बढ़ी मात्रा हमारे शरीर में जमा होती जाती है। आर्सेनिक की बढ़ी मात्रा के कारण आँत, लीवर, किडनी और मूत्राशय के कैंसर की सम्भावना बढ़ जाती है। त्वचा कैंसर और किडनी फेल होने का खतरा रहता है। शरीर में फ्लोराइड की अधिक मात्रा होने पर हड्डियाँ कमजोर पड़ने लगती हैं। जोड़ों में दर्द और अकड़न से शुरू होकर फ्लोरोसिस रोग रीढ़ की हड्डी को जकड़ लेता है। व्यक्ति चलने-फिरने से भी लाचार हो सकता है। पेयजल में कैडमियम की बढ़ी मात्रा गुर्दों को क्षति पहुँचा सकती है। इससे आनुवांशिक परिवर्तन भी हो सकते हैं। पारा मस्तिष्क और केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र को क्षति पहुँचाता है।
प्रदूषित पानी के कारण अनेक बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। जब नाइट्रेट युक्त जल का सेवन किया जाता है तो मनुष्य के शरीर में नाइट्रेट नाइट्राइट में परिवर्तित हो जाता है। जो फिर हीमोग्लोबिन के साथ मिलकर मैटहीमोग्लोबिन बनाता है जो रक्त में आॅक्सीजन का स्तर घटा देता है। इस प्रकार प्रदूषित जल अबोध और नवजात शिशुओं को भी प्रभावित करता है। यह कितनी दुःखद बात है कि वह जल जिसे जीवनदायी कहा जाता है वही प्रदूषित होकर बीमारियों का कारण बन सकता है।
सदियों से हम पानी को साफ करने के विभिन्न तरीके इस्तेमाल करते आ रहे हैं। हिप्पोक्रेटस ने ईसा पूर्व चौथी सदी में पानी को उबालकर, फिर कपड़े से छानकर पीने की बात कही थी। हम जब पानी को उबालते हैं तो इससे पानी में मौजूद ज्यादातर कीटाणु मर जाते हैं या निष्क्रिय हो जाते हैं। प्रदूषित पानी को शुद्ध करने के लिये आज अनेक विधियों का प्रयोग किया जाता है। पानी को उबालकर, छानकर और फिल्टर कर शुद्ध किया जाता रहा है। आजकल बाजार में अनेक फिल्टर भी मौजूद हैं जो जल को शुद्ध करने के लिये प्रयोग किये जाते हैं। हालांकि पानी को उबालकर ठंडा करके पीना सस्ता और सुलभ है। इसलिये दक्षिण भारत के अनेक राज्यों में आज भी पानी को ऐसे ही शुद्ध किया जाता है।
हम जल चक्र का सिर्फ साफ पानी वाला हिस्सा इस्तेमाल करते हैं। पानी सार्वत्रिक विलायक होने के कारण अपने में अनेक अशुद्धता भी घोल देता है। इसलिये दूर-दूर नहरों और नदियों से लिया जाने वाला पानी जाहिर है सीधे पीने के काबिल नहीं होता उसे साफ करना होता है। अब ऐसी क्रियाविधि की आवश्यकता पड़ी है जिससे हम इस प्रदूषित जल को पीने योग्य बना सकें। रोजमर्रा की जरूरतों के लिये पानी स्वच्छ करने के ये काम न सिर्फ चुनौतियों भरा है बल्कि काफी मुश्किल भी है। इसके लिये सबसे पहले पानी को सलाखों के ऐसे जार में से गुजारा जाता है ताकि तैरने वाले मोटे कूड़े जैसे-लकड़ियाँ, फूल पत्ते, प्लास्टिक वगैरह को निकाला जा सके।
मोटा कूड़ा निकल जाने के बाद पानी पम्प हाउस में जाता है, जहाँ पम्पों की मदद से उस पानी को साफ करने वाले टैंकों में भेजते है। सफर के इस पड़ाव में पानी में क्लोरीन गैस मिलाई जाती है, ताकि पानी में मिले जीवाणुओं को नष्ट किया जा सके और फिटकरी या पोली एल्युमिनियम क्लोराइड मिलाया जाता है, ताकि पानी में मिली मिट्टी और काई वगैरह को पानी से अलग किया जा सके। अब पानी वहाँ पहुँचता है जहाँ पानी की सारी गन्दगी और मिट्टी को हौज की तली पर जमने का मौका दिया जाता है। धीरे-धीरे गन्दगी नीचे बैठ जाती है और ऊपर से साफ पानी अलग कर दिया जाता है। यहाँ से पानी फिल्टरेशन के लिये जाता है जहाँ महीन मिट्टी वगैरह को एक बार फिर अच्छी तरह से छानकर पानी से अलग किया जाता है। फिल्टरेशन के लिये बनाए गए फिल्टर बेल्ट्स की नियमित ढंग से सफाई की जाती है। फिल्टर हाउस में जगह-जगह इन्सपेक्शन चैम्बर बने होते हैं, ताकि फिल्टरों की लगातार जाँच परख की जा सके।
पानी की सफाई व गुणवत्ता बनाए रखने के लिये विशेषज्ञ आधुनिक प्रयोगशालाओं में साफ पानी के नमूनों की लगातार परख करते हैं। इन सब के बाद ही पानी जलाशयों में भेजा जाता है, जहाँ से ये पाइप लाइनों द्वारा हमारे नलों तक पहुँचता है। आजकल हमारे घरों में नलों से आने वाले पानी को प्रायः इसी प्रकार साफ किया जाता है। असल में पानी हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। इसीलिये सदियों से लोग ‘जल को जीवन’ कहते आये हैं। हमें सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि शुद्ध पानी का उपयोग ही पेयजल के रूप में करें ताकि जल के जीवनदायी गुण बने रहें।
नवनीत कुमार गुप्ता
परियोजना अधिकारी (एडूसेट)
विज्ञान प्रसार, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग
सी-24, कुतूब संस्थानिक क्षेत्र
नई दिल्ली-16