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राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान की पत्रिका 'जल चेतना', जुलाई 2013
जल प्रदूषण की बढ़ती मात्रा भविष्य में उत्पन्न होने वाल खतरे की घंटी साबित हो सकती है। आज की तारीख में बढ़ रहे जल प्रदूषण के कारक हम मनुष्य ही हैं। जल प्रदूषण को बढ़ावा देने में कचरों की अहम् भूमिका है। नदियों में कूड़े-कचरे फेंकने की यह प्रक्रिया आम हो गई है। चाहे शहर हो या गांव, लगभग प्रत्येक घरों के कचरे फेंकने का सार्वजनिक स्थान पास के नाले नालियां एवं अन्य जलाशय हैं, जिससे इन जलाशयों से संबंधित नदियां, नहर अथवा तालाब प्रभावित होते हैं।
जल एक अनमोल प्राकृतिक संपदा है, जो प्रकृति द्वारा वरदान स्वरूप इस संपूर्ण जगत को प्राप्त है। हमारी पृथ्वी पर इसके पूरे क्षेत्रफल का 71 प्रतिशत जल है, परंतु पृथ्वी के समूचे जल का मात्र 2.6 प्रतिशत ही पीने योग्य (मीठा जल) है, जिसमें 1.8 प्रतिशत भाग बर्फ के रूप में उपस्थित है एवं मानव को उपभोग हेतु सिर्फ 0.8 प्रतिशत भाग जल ही मिल पाता है।पानी का उपयोग विभिन्न जीव-जंतु भिन्न-भिन्न रूपों से करते हैं। अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार जल ही एकमात्र ऐसा द्रव पदार्थ है जो रंगहीन, स्वादहीन एवं गंधहीन होने के बावजूद मनुष्य, पशु-पक्षी, कीट-पतंगों व पेड़-पौधों के साथ-साथ प्राकृतिक एवं कृत्रिम संसाधनों के निर्माण में भी अत्यावश्यक है। यद्यपि सागरों में जल की सर्वाधिक मात्रा अवस्थित रहती है तथापि एक लीटर सागरीय जल मे 35 ग्राम तक लवणीयता रहने के कारण इसका प्रयोग ज्यादातर स्थलीय जंतुओं के लिए उचित नहीं है। प्राकृतिक एवं अम्ल रहित वर्षा से प्राप्त ताजा जल ही पृथ्वी पर सबसे शुद्ध जल के रूप में होता है।
यदि अतीत के गर्त में झांक कर देखें तो जहां विज्ञान एवं आध्यात्म यह स्पष्ट परिलक्षित करते हैं कि जीवन की उत्पत्ति सर्वप्रथम जल में ही हुई थी वहीं इतिहास व भूगर्भशास्त्र इसके साक्षात् प्रमाण हैं कि सर्वप्रथम जलमार्गों के माध्यम से ही अनेक देशों के बीच आपस में सभ्यता, संस्कृति, अर्थव्यवस्था एवं व्यापार वाणिज्य का प्रचार-प्रसार हुआ। ‘The Water is the base of the earth and the sky.’
आधुनिक परिवेश में बढ़ते प्रदूषण, बढ़ती जनसंख्या एवं पानी के बढ़ते दुरूपयोग के कारण पानी पर छाया संकट एक अपरिहार्य विश्वव्यापी समस्या है।
आज के युग में दिनोंदिन बढ़ते लोग पानी ही नहीं अपितु सभी प्रमुख संसाधन घटा रहे हैं। बढ़ती आबादी का ही यह परिणाम है कि भारतवर्ष में जहां वन ही वन, वृक्ष ही वृक्ष दृष्टिगोचर होते थे, जहां साधारण पुश-पक्षी से लेकर हिंसक जीव तक स्वच्छंद विचरण करते थे, वहीं वन्य क्षेत्र की मात्रा 23 प्रतिशत (लगभग) तथा अभ्यारण्य एवं प्राणी विहारों की संख्या शामिल है। आज से पांच छः दशक पीछे के जनसंख्या रिकार्ड का अवलोकन करें तो भारत की आबादी महज 40-50 करोड़ के बीच थी, जो आज एक अरब पार कर चुकी है और हमारा देश दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा जनसंख्या वाला देश हो गया है। विगत दशकों पूर्व पूरे संसार की आबादी 4 अरब के समीप थी, जो आज 7 अरब पार कर चुकी है। विकास की दौड़ में आगे निकलने के लिए हमें जनसंख्या पर नकेल कसने के साथ-साथ अशिक्षा और अंधे सिद्धांतों को मात देनी होगी। यह तभी संभव है जब भारत का प्रत्येक परिवार प्रशिक्षित एवं सीमित हो, क्योंकि सीमित परिवार ही सुखी रहता है एवं शिक्षा ही एकमात्र ऐसी शक्ति है, जो सभी प्रकार के बुरे तत्वों से लोहा लेने में सक्षम है। राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा अत्यधिक आवश्यक है इस कारण समाज एवं राष्ट्र के सभी जाति, सभी वर्गों के लोगों को शिक्षित बनाना अनिवार्य है।
जनसंख्या के ग्राफ को देखने से यह साफ है कि भविष्य में यह स्थिति गंभीरतम हो सकती है, इसलिए बढ़ती जनसंख्या को रोकना हमारा परम कर्तव्य है।
जल प्रदूषण की बढ़ती मात्रा भविष्य में उत्पन्न होने वाल खतरे की घंटी साबित हो सकती है। आज की तारीख में बढ़ रहे जल प्रदूषण के कारक हम मनुष्य ही हैं। जल प्रदूषण को बढ़ावा देने में कचरों की अहम् भूमिका है। नदियों में कूड़े-कचरे फेंकने की यह प्रक्रिया आम हो गई है। चाहे शहर हो या गांव, लगभग प्रत्येक घरों के कचरे फेंकने का सार्वजनिक स्थान पास के नाले नालियां एवं अन्य जलाशय हैं, जिससे इन जलाशयों से संबंधित नदियां, नहर अथवा तालाब प्रभावित होते हैं। प्रदूषित जल से ही मच्छर एवं अन्य कई घातक कीट पनपते हैं तथा डेंगू, मलेरिया, फाइलेरिया आदि रोगों को बढ़ावा देते हैं। खैरियत यह है कि सरकार द्वारा चलाई गई साफ-सफाई की योजनाएं कुछ हद तक प्रभावशाली हैं।
जल प्रदूषण को अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा देने में कुछ अवांछित वनस्पतियां प्रमुख हैं। जैसे वाटर लिली, एक आकर्षक जलपुष्प है, जिसका विकास तीव्रता से होता है और यह जल से ऑक्सीजन की ज्यादा मात्रा सोख लेता है। यह फूल जल में लवणीयता बढ़ाता है जिसके कारण जल से महत्वपूर्ण घटकों का क्षय हो जाता है।
पेड़-पौधों के अलावा गिद्ध, बाज, श्रृंगाल, कौआ, सुकर आदि जीव पर्यावरणीय संतुलन के रक्षक हैं, परंतु कैसी विडंबना है कि रक्षकों की संख्या सीमित है एवं भक्षक बढ़ते ही जा रहे हैं।
ऐसा होता रहा तो महज कुछ दशकों में ही पेड़-पौधे, शुद्ध जल एवं पशु-पक्षी देखने के लिए नसीब नहीं होंगे। हालांकि यह अत्यंत हर्ष की बात है कि हमारे देश के राष्ट्रीय विज्ञान केंद्र ‘इसरो (ISRO) Indian Space Research Organization)’ द्वारा निर्मित ‘चंद्रयान के उपकरण के माध्यम से चंद्रमा पर जल की उपस्थिति का पता लग पाया लेकिन पृथ्वी पर पानी प्रदूषण, अनावश्यक खर्च एवं अन्य कारण से प्रतिदिन ग्रस्त हो रहा है, यह दुःख की बात है। फ़ैक्टरियों, कचरों व व्यापक यातायात के कारण तमाम अवशेष समुद्रों एवं नदियों में गिरते हैं, जिससे पानी दूषित होने के अतिरिक्त विषाक्त भी हो जाता है, जो हमारे साथ-साथ जीव-जंतुओं के लिए भी घातक है।’
लगातार बढ़ते जल पर खतरे के निदान के लिए सरकार के साथ-साथ हर जागरूक नागरिक को इस नितांत समस्या का समाधान खोजना होगा। वर्षा के जल को संचयन एवं संरक्षण प्रदान करने के लिए कृत्रिम जलकोषों जैसे तालाबों, पोखरों, नहरों, आहरों, एवं बांधों की संख्या बढ़ानी होगी। कृषि के क्षेत्र में व्यापक प्रयोग करने होंगे ताकि जल का खर्च कम से कम हो, वृक्षारोपण को विकसित करना होगा, वनों को संरक्षित करना होगा, प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करनी होगी, तभी पृथ्वी पर जीवन की ली बरकरार रह सकती है।
पानी के अभाव में संपूर्ण ब्रह्माण्ड सूना है, रहीम कवि ने भी सम्यक अर्थों में स्पष्ट लिखा है :
“रहिमन पानी राखिए,
बिन पानी सब सून।”
सम्पर्क
कुमार अमर नाथ, कक्षा-9
उच्च विद्यालय, भलुनीधाम,
द्वारा श्री हर्षनाथ पाण्डेय, एडवोकेट,
सिविल कोर्ट, सासाराम, रोहतास,
बिहार - 821115, मो.: 8002255218