Source
दोपहर का सामना, 25 सितम्बर, 2016

जम्मू-कश्मीर की जनता को आशा है कि हिन्दुस्तान, पाकिस्तान के साथ की गई सिंधु जल संधि को समाप्त कर देगा। सभी पक्षों, यहाँ तक कि पर्यवेक्षकों का भी मानना है कि इस संधि को समाप्त करना एक परमाणु बम गिराने के समान होगा, क्योंकि अगर जल संधि तोड़ दी जाती है तो हिंदुस्तान से बहने वाली नदियों के पानी को पाकिस्तान की ओर जाने से रोका जा सकता है जिसके मायने होंगे पाकिस्तान में पानी के लिये हाहाकार मचना और यह सबसे बड़ा बम होगा पाकिस्तानी जनता के लिये और वह आतंकवाद को बढ़ावा देने की अपनी नीति को बदल लेगा। वर्ष 1960 के सितम्बर महीने में हिन्दुस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के सैनिक शासक फील्ड मार्शल अय्यूब खान के बीच यह जल संधि हुई थी। इस जल संधि के मुताबिक हिन्दुस्तान को जम्मू-कश्मीर में बहने वाली 3 दरियाओं-सिंधु, झेलम और चिनाब के पानी को रोकने का अधिकार नहीं है अर्थात जम्मू-कश्मीर के लोगों के शब्दों में हिन्दुस्तान ने राज्य के लोगों के भविष्य को पाकिस्तान के पास गिरवी रख दिया था। यह कड़वी सच्चाई भी है।
इन तीनों दरियाओं का पानी अधिक मात्रा में राज्य के वासी इस्तेमाल नहीं कर सकते। इससे अधिक बदनसीबी क्या होगी कि इन दरियाओं पर बनाए जाने वाले बाँधों के लिये पहले पाकिस्तान की अनुमति लेनी पड़ती है। असल में जनता का ही नहीं, बल्कि अब तो नेताओं का भी मानना है कि इस जल संधि ने जम्मू-कश्मीर के लोगों को परेशानियों के सिवाय कुछ नहीं दिया है। सिंधु जल संधि को समाप्त करने की माँग करने वालों में सबसे प्रमुख स्वर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारुक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला का भी है। वे पिछले कई सालों से इस माँग को दोहरा रहे हैं, यहाँ तक कि अपने शासनकाल में वे तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जम्मू-कश्मीर के 3 दिवसीय दौरे के दौरान भी फारुक अब्दुल्ला इस माँग का राग अलापने से नहीं चूके थे। उनकी माँग जायज भी थी, क्योंकि पाकिस्तान तथा पाक कब्जे वाले कश्मीर की ओर बहने वाले जम्मू-कश्मीर की दरियाओं के पानी को पीने तथा सिंचाई के लिये एकत्र करने का अधिकार जम्मू-कश्मीर को नहीं है।
आसान नहीं है समझौता तोड़ना
हिन्दुस्तान की तरफ से ‘सिंधु जल समझौता’ को तोड़ने के संकेत मिले हैं, लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है। हिन्दुस्तान की तरफ से उठाया गया कोई भी कदम चीन, नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों के साथ जल बँटवारे की व्यवस्था को प्रभावित कर सकता है। हिन्दुस्तान ने पाकिस्तान के अलावा चीन से भी एक समझौता किया है। इस प्रस्ताव के मुताबिक, चीन ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपरी तट राज्य और हिंदुस्तान, निचला नदी तट राज्य है। इसका सीधा-सीधा मतलब है कि ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपरी तल पर स्थित चीन पानी रोक देता है तो निचली तल पर स्थित हिंदुस्तान के लिये मुश्किलें बढ़ जाएँगी। ऊपरी तट नदी राज्य में स्थित चीन हाइड्रोलॉजिकल सूचनाएँ रोकने के अलावा निचले तट नदी राज्य में नदी के बहाव में अवरोध खड़ा कर सकता है। इस मुद्दे पर चीन पहले भी ज्यादा भरोसेमंद नहीं रहा है और हाइड्रोप्रोजेक्ट्स की जानकारी देने से इंकार कर चुका है। यदि हिन्दुस्तान ‘सिंधु जल समझौता’ के तहत निचला नदी तट राज्य पाकिस्तान से समझौता तोड़ता है तो उसे चीन के साथ समझौते में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।