प्लास्टिक की दुनिया बहुत बड़ी है। आजकल प्लास्टिक का उपयोग हर जगह हो रहा है। एक प्लास्टिक बैग में उसके वजन से 2,000 गुना ज्यादा भार ढोया जा सकता है। हर साल दुनिया में 500 खरब प्लास्टिक बैग प्रयोग में लाए जाते हैं। अर्थात हर मिनट 20 लाख प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल लोग करते हैं। एक अनुमान के अनुसार हिन्दुस्तान में एक व्यक्ति एक वर्ष में लगभग 9.7 किलो प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जिन प्लास्टिक की बनी चीजों का आप उपयोग कर रहे हैं वह आपके लिये सही है या नहीं?
प्लास्टिक के सामान के उपयोग से 90 प्रतिशत कैंसर की सम्भावना होती है। यह वैज्ञानिकों द्वारा प्रमाणित किया गया है। जितना हो सके उतना प्लास्टिक के पात्र का उपयोग करना कम कर दें, इसी में हम सबकी भलाई है। तो इस संडे हम यही संकल्प लेंगे कि पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाले प्लास्टिक से बने उत्पादों का इस्तेमाल करने से बचेंगे, ताकि हम पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचा सकें।
प्लास्टिक की बनी चीजों का हिन्दुस्तान में जितना उपयोग होता है उतना शायद दुनिया में और कहीं नहीं होता। प्लास्टिक मूल रूप से विषैला या हानिप्रद नहीं। परन्तु प्लास्टिक के थैले एवं दूसरे उत्पाद रंग और रंजक, धातुओं और अन्य तमाम प्रकार के अकार्बनिक रसायनों को मिलाकर बनाए जाते हैं। रंग और रंजक एक प्रकार के औद्योगिक उत्पाद होते हैं जिनका इस्तेमाल प्लास्टिक उत्पादों को चमकीला रंग देने के लिये किया जाता है।
इनमें से कुछ खाद्य पदार्थों को विषैला बनाने में सक्षम होते हैं। ये कैंसर पैदा करने की सम्भावना से युक्त होते हैं। कई शोधों से यह बात सामने आई है कि प्लास्टिक के बने उत्पादों को हम जितनी सुलभता से इस्तेमाल में लाते हैं वह हमारे लिये उतना ही घातक है। हम बेफिक्र होकर प्लास्टिक के कप और डिस्पोजेबल में हम चाय कॉफी एवं अन्य गर्म खाद्य पदार्थ खाना-पीना शुरू कर देते हैं लेकिन उसमें ऊपरी भाग में एक परत मोम की होती है जो गर्म चीजों के पड़ते ही पिघलने लगती है।
इसी तरह प्लास्टिक गर्मी और धूप में पिघलती है और उसके साथ जहरीली रासायनिक पदार्थ भी पिघलने लगते हैं जो खाने के साथ हमारे शरीर के अन्दर जाकर कैंसर को जन्म देती है। प्लास्टिक से बने बच्चों के खिलौने उनमें जिन रंगों का उपयोग होता है वह भी बहुत ज्यादा खतरनाक होता है। प्लास्टिक के बने खिलौनों में रासायनिक रंगों का उपयोग किया जाता है। इन प्लास्टिक से बने खिलौनों में सीसा और आर्सेनिक का उपयोग होता है जो विषैले होते हैं और इनसे बने खिलौनों को छोटे-छोटे बच्चे मुँह में लेकर खेलते हैं।
प्लास्टिक की बोतल में पानी रखना और पीना आजकल का फैशन बन गया है लेकिन इन बोतलों में मिले हुए रसायन पानी में मिलकर पानी को नुकसानदेह बना सकते हैं। प्लास्टिक से सिर्फ इंसानों की ही नहीं बल्कि पेड़-पौधे, जमीन, मिट्टी, जल और वायु सभी को नुकसान हो रहा है लेकिन फिर भी हम इनका इस्तेमाल रोकने की जगह बढ़ा रहे हैं। प्लास्टिक की आधी वस्तुएँ (50 प्रतिशत) हम सिर्फ एक बार काम में लेकर फेंक देते हैं।
हर साल पूरे विश्व में इतना प्लास्टिक फेंका जाता है कि इससे पूरी पृथ्वी के चार घेरे बन जाएँ। सबसे ज्यादा प्लास्टिक समुद्र में फेंका जाता है जो कि भविष्य में बहुत हानिकारक हो सकता है। प्लास्टिक थैलियों का निपटान यदि सही ढंग से नहीं किया जाता है तो वे जल निकास (नाली) प्रणाली में अपना स्थान बना लेती है, जिसके फलस्वरूप नालियों में अवरोध पैदा होकर पर्यावरण को अस्वास्थ्यकर बना देती है। इससे जलवाही बीमारियाँ भी पैदा होती है।
रिसाइकिल किए गए अथवा रंगीन प्लास्टिक थैलों में कतिपय ऐसे रसायन होते हैं जो निथर कर जमीन में पहुँच जाते हैं और इससे मिट्टी और भूगर्भीय जल विषाक्त बन सकता है। प्लास्टिक की कुछ थैलियों, जिनमें बचे हुए खाने को प्रायः पशु अपना आहार बनाते हैं, जोकि उनके लिये नुकसानदेह साबित होता है। इसलिये प्लास्टिक थैलियों के विकल्प के रूप में जूट और कपड़े से बनी थैलियों और कागज की थैलियों को लोकप्रिय बनाया जाना चाहिए और इसके लिये कुछ वित्तीय प्रोत्साहन भी दिया जाना चाहिए। यहाँ, ध्यान देने की बात है कि कागज की थैलियों के निर्माण में पेड़ों की कटाई निहित होती है और उनका उपयोग भी सीमित है। आदर्श रूप से केवल धरती में घुलनशील प्लास्टिक थैलियों का उपयोग ही किया जाना चाहिए।