गाँवों को सशक्त बनाकर नए भारत का निर्माण करना वर्तमान सरकार का मुख्य उद्देश्य है, जिसे तभी हासिल किया जा सकता है, जब गाँव में सुशासन एवं विकास के लिये प्रयास एकीकृत एवं सतत हों। ग्रामीण विकास में एक महत्त्वपूर्ण पहलू ‘एक्शन’ है। ग्रामीण विकास का मापन आय के स्तर में बढ़ोत्तरी, रोजगार के सृजन में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ यह देखना जरूरी है कि जो पिछड़े क्षेत्र हैं या जो पिछड़े लोग हैं, उनको कितनी तवज्जो दी जा रही है। इसके अतिरिक्त गरीब समाजों एवं पिछड़े क्षेत्रों की कितनी भागीदारी उनके विकास में हो रही है या नहीं।
इसमें दो राय नहीं है कि एनडीए सरकार के आने के बाद एवं पहले के वित्तीय संसाधनों को देखें, तो काफी बढ़ोत्तरी हुई है। उदाहरण के लिये ग्रामीण विकास मंत्रालय का बजट जो 2013-14 में 74,429 करोड़ था, वह बढ़कर 2018-19 में 1,14,915 करोड़ रुपए हो गया है। यह वृद्धि लगभग 55 प्रतिशत है और इसका अर्थ यह हुआ कि पिछले चार सालों में ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा लागू हो रहे विभिन्न कार्यों एवं योजनाओं का वित्तीय स्तर बढ़ा है।
यही नहीं, कई नई योजनाएँ शुरू हुई हैं, जिनमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन, सांसद आदर्श ग्राम योजना एवं मिशन, अंत्योदय योजना प्रमुख हैं। श्यामा प्रसाद मुखर्जी रुर्बन मिशन की शुरुआत 21 फरवरी, 2016 को हुई थी, जिसके तहत चयनित 300 रुर्बन क्लस्टरों में प्रत्येक के अनुमानित व्यय का 30 प्रतिशत निवेश अनिवार्य पूरक वित्त पोषण के रूप में दिए जाने का प्रावधान है। बाकी 70 प्रतिशत वर्तमान स्कीमों के समायोजन एवं तालमेल से निवेश किए जाने का प्रावधान है। यह इस तरह की योजना है, जिसमें गाँवों की आत्मा को बरकरार रखते हुए शहरों की सुविधाएँ गाँव में मुहैया कराई जाएगी।
सांसद आदर्श ग्राम योजना के अन्तर्गत पहली बार ग्राम पंचायत स्तर पर विकास करने के लिये सांसदों के नेतृत्व, क्षमता, प्रतिबद्धता और ऊर्जा का उपयोग प्रत्यक्ष रूप से करने का प्रावधान है। अक्टूबर, 2014 में शुरू की गई इस योजना के मुताबिक विकसित ‘आदर्श ग्रामों’ से ग्रामीण समुदाय में स्वास्थ्य, स्वच्छता, हरियाली और सौहार्द को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी और ये ग्राम स्थानीय विकास एवं शासन का ‘स्कूल’ बनकर पड़ोसी ग्राम पंचायत को प्रेरित करेंगे। इसी तरह से मिशन अंत्योदय के तहत 2022 तक 5,000 क्लस्टरों में 50,000 ग्राम पंचायतों को गरीबी से मुक्त करने का इरादा है।
वास्तव में ये नए कार्यक्रम हैं, लेकिन तीन कार्यक्रम क्रमशः राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, ग्रामीण कौशल्य योजना एवं इंदिरा आवास योजनाओं में कोई खास मूल्य वृद्धि न कर मात्र नामों का बदलाव किया गया है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन का नाम बदलकर दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन किया गया है। ग्रामीण कौशल योजना का नाम बदलकर दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना और इंदिरा आवास योजना का नाम बदलकर प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण कर दिया गया है।
अब जरा इन कार्यक्रमों की प्रगति पर गौर करें महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) का उद्देश्य देश के ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे प्रत्येक ग्रामीण परिवार, जिनके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक श्रम कार्य करना चाहते हैं, को एक वित्तीय वर्ष में कम-से-कम 100 दिनों का गारंटीयुक्त मजदूरी रोजगार उपलब्ध कराना है। उपलब्ध आँकड़े बताते हैं कि बीते चार सालों में औसतन परिवारों के रोजगार का स्तर 50 दिनों तक भी नहीं पहुँचा है।
वर्तमान चालू वर्ष 2018-19 के चार महीनों के अन्तर्गत औसतन मानव दिवसों की संख्या 29.99 दिन है। दीन दयाल उपाध्याय राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन एक ऐसा कार्यक्रम है, जो ग्रामीण समाज में सामाजिक पूँजी का निर्माण कर गरीब परिवारों को स्व-रोजगार के अवसरों को बढ़ाता है। यह कार्यक्रम अधिक सफल नहीं हो पाया, इसका कारण सभी राज्यों में कार्यक्रम का ताना-बाना एक जैसा नहीं था। उदाहरण के लिये, उत्तर-प्रदेश में तो कार्यक्रम लागू करने के लिये विभिन्न स्तरों पर 1,704 कर्मियों के पद भरने का विज्ञापन ही 10 अगस्त, 2018 को प्रकाशित किया गया है।
दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना के जो लक्ष्य थे, वे भी पूरे नहीं हुए हैं। इस कार्यक्रम को लागू करने के लिये सभी राज्यों में एक मॉडल एजेंसी का प्रावधान है, लेकिन असम, ओडिशा, राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश को छोड़कर अन्य राज्यों में जरूरी मानव संसाधन भी उपलब्ध नहीं हैं। जोर-शोर से रोजगार सृजन एवं कौशल रोजगार की बात हो रही है। अगर उपरोक्त तीन कार्यक्रम प्रभावी रूप से 2014 से चलते, तो ग्रामीण स्तर पर रोजगार सृजन भी होते एवं संरचनात्मक विकास भी होता।
ग्रामीण विकास के विभिन्न कार्यक्रमों को प्रभावी करने के लिये कार्यक्रमों के ‘आपूर्ति पक्ष’ यानी ग्राम पंचायत स्तर पर उचित संख्या में कर्मियों को भर्ती करने की जरूरत है तथा ग्राम पंचायतों का पुनः गठन कर उनकी जनसंख्या अनुकूलतम करने की जरूरत है। वास्तव में सुमित बोस की अध्यक्षता में गठित परफॉर्मेंस बेस्ड पेमेंट फॉर बेटर आउटकम्स इन रूरल डेवलपमेंट प्रोग्राम्स की सिफारिशों को अमल में लाने की जरूरत है।
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