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दैनिक जागरण, 03 जनवरी, 2017
स्वच्छ और स्वस्थ भारत के बिना श्रेष्ठ भारत की संकल्पना अधूरी है। गंदगी एवं बीमारी श्रेष्ठ भारत के रास्ते में बाधा हैं। भारत आज सभ्यता एवं संस्कृति के एक आधारभूत पैमाने स्वच्छता के मामले में विश्व में निचले पायदान पर खड़ा है। यह सही बात है कि विशाल जनसंख्या, अनियंत्रित शहरीकरण, बाजार का विस्तार, उपभोक्तावादी प्रवृत्ति ने स्वच्छता को गम्भीर चुनौती दी है, लेकिन प्रश्न यह है कि इन चुनौतियों का सामना करना किसका दायित्व है। हम सभी अपने उपभोग के अधिकार सुनिश्चित करना चाहते हैं, लेकिन इन चुनौतियों का सामना करने के दायित्व से मुँह फेर लेते हैं। हम टॉफी, केले, सिगरेट आदि खरीदने एवं उपयोग करने का अधिकार तो रखते हैं, लेकिन टॉफी के रैपर, केले के छिलके, सिगरेट के टुकड़े आदि को डस्टबिन में फेंकने के दायित्व से मुँह फेर लेते हैं। हममें से जो भी ऐसा करते हैं वे गंदगी फैलाने के लिये जिम्मेदार हैं। यह सत्य है कि तकनीक और आर्थिक रूप से हम कितने भी विकसित हो जाएँ, लेकिन यदि हम ‘स्वच्छता’ के मानदंड पर ऐसे ही पिछड़े रहे, तो कभी भी सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से विकसित नहीं हो पाएँगे। पर्यावरणीय निष्पादन सूचकांक में सबसे स्वच्छ राष्ट्र का दर्जा आइसलैंड को मिला है। यह दुखद है कि इस 163 देशों की सूची में भारत 123वां स्थान प्राप्त कर सका है, वहीं चीन 121वें स्थान पर रहा।
‘स्वच्छ भारत अभियान’ एक ऐसा अभियान है जो यह आशा एवं उम्मीद जगाती है कि भारत को गंदगी की परतंत्रता से देर-सबेर छुटकारा मिल जाएगी। देश के प्रधानमंत्री के हाथ में झाड़ू का उठना भारत में ‘स्वच्छता क्रांति’ के उद्घोष का प्रतीक है। अफसोस की बात यह है कि इस राष्ट्र निर्माण के अभियान को समाज ने तो अपनाया है, लेकिन देश के कुछ राजनीतिक दलों एवं संगठनों ने नहीं अपनाया है। दुर्भाग्य की बात है कि इस आंदोलन को संकुचित राजनीतिक हित के नजरिये से देखा जा रहा है। वहीं आँकड़ों द्वारा सरकार को प्रति दिन घेरने की कोशिश की जा रही है।
वास्तव में यह स्थिति हमारे देश के कुछ राजनीतिक दलों के मानसिक खालीपन का परिचायक है। उन्हें मालूम होना चाहिए कि यह कार्यक्रम किसी दल विशेष का राजनीतिक कार्यक्रम नहीं है। यह तो विशुद्ध रूप से राष्ट्र निर्माण का कार्यक्रम है, जो देश की जनता द्वारा निर्वाचित सरकार द्वारा चलाया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि विपक्ष के कुछ नेता समय-समय पर सरकार पर निशाना तो साधते हैं, परन्तु कभी भी इसमें आगे आकर सहयोग नहीं करते हैं। ऐसा लगता है कि वे बड़े ही उत्सुकता से इस कार्यक्रम की असफलता का इन्तजार कर रहे हैं। उन्हें निश्चित रूप से विचार करना चाहिए कि यह देश के निर्माण का कार्य है जिसमें सबकी सहभागिता की जरूरत है।
स्वच्छ भारत अभियान दो अक्टूबर, 2014 को शुरू किया गया था। यह अभियान अपने स्वरूप में पूर्णतः सामाजिक एवं राष्ट्र निर्माण का कार्य है। इसमें नागरिक-समाज को जोड़कर एक आंदोलन बनाने का भी प्रयास हुआ है। अब समय आ गया है कि ‘स्वच्छता’ को संविधान में व्यक्ति के मौलिक कर्तव्य के रूप में शामिल किया जाए। जिससे सभी नैतिक रूप से स्वच्छता के प्रति उत्तरदायी बन सकें। स्वच्छ भारत के लिये सरकारी प्रयास के साथ आम लोग एवं नागरिक समाज का प्रयास महत्त्वपूर्ण है। यदि लोग सड़क पर या अन्य कहीं भी कूड़ा नहीं फैलाने का संकल्प कर लें तो आधी स्वच्छता स्वतः हो जाएगी।
लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक एवं उत्तरदायी बनाने में मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। लोगों को जागरूक करने के दूसरे उपायों के तहत स्वच्छता पर बैठकों का आयोजन किया जा सकता है। इसमें नागरिक समाज का कोई भी सदस्य बाजार, मेले और कॉलोनियों में तथा धार्मिक स्थलों पर लोगों को जागरूक करके स्वच्छता के प्रति प्रेरित कर सकता है। वहीं शिक्षण संस्थानों में छात्रों के बीच जाकर उन्हें जागरूक बनाने का कार्य किया जा सकता है। यदि स्कूली बच्चे जागरूक हो गए, तो वर्तमान के साथ भविष्य की पीढ़ी भी जागरूक हो जाएगी। स्कूलों के पाठ्यक्रम में स्वच्छता के विषय को प्रमुखता से जोड़ा जाना चाहिए। जिससे स्कूली बच्चों में एक संस्कार एवं मानसिक आदत के रूप में स्वच्छता का विचार स्थापित हो सके।
दरअसल पिछले दो सालों से यह स्वच्छता अभियान एक जागरूकता अभियान के रूप में चलाया जा रहा है, परन्तु अब स्वच्छता के लिये आग्रह के साथ-साथ निरोधात्मक उपाय के रूप में कानून भी बनाने पर विचार किया जाना चाहिए। स्वच्छता के लिये सिंगापुर जैसे देश में कड़े कानून बनाए गए हैं। अमेरिका में भी गंदगी फैलाने पर अर्थदंड की व्यवस्था है। इस प्रकार अब भारत में भी स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिये कानून बनाए जाने की आवश्यकता है। वैसे स्वच्छता के लिये स्थानीय निकायों और राज्यों को पुरस्कृत करने की योजना एवं राज्यों को स्वच्छता आधारित रैंक निर्धारित किये जाने की बात उनको स्वच्छता के लिये प्रेरित करने का बहुत अच्छा साधन साबित होने वाला है। स्वच्छता अभियान को सफल बनाने के लिये केन्द्र सरकार, विभिन्न राज्य सरकारें एवं स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी एवं उत्तरदायित्व के निर्वहन को सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)