पानी पर वैश्विक टकराव की आहट

Submitted by birendrakrgupta on Sun, 03/08/2015 - 07:03
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डेली न्यूज एक्टिविस्ट, 6 मार्च 2015
सभी देशों को पारदर्शिता अपनानी होगी। पानी से सम्बन्धित आँकड़े साझा करें, नदियों का प्राकृतिक प्रवाह न मोड़ें और सीमा पार से आने-जाने वाली नदियों का जलक्रम बाधित न करें। यदि सरकारें इस मामले में मूकदर्शक बनी रहीं तो वास्तव में दुनिया एक बड़े संकट का सामना करने के लिए विवश होगी।संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने वर्ष 2001 में आशंका जताई थी कि पश्चिम एशिया की भूमि तेल के कारण युद्ध की विभीषिका से लहूलुहान हुई थी, भविष्य में स्वच्छ जल का अभाव ही अनेक युद्धों का मूल कारण बन सकता है। आज पानी अन्तरराष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है। सभी देश अधिकाधिक जल संसाधन हथियाने की कोशिश कर रहे हैं। एशियाई देशों में यह लड़ाई वास्तव में उन्हीं सीमापार करके बहने वाली नदियों के लिए है, जिनके किनारे कई देश बसे हैं।

तेजी से विकास करते एशियाई देशों को ऊर्जा के साधन के रूप में बिजली बनाना प्रतिस्पर्धा की मुख्य वजह है। इन्हीं जरूरतों को पूरा करने के लिए एशियाई देश तिब्बत और हिमालय से शुरू होने वाली नदियों पर बड़े-बड़े बाँध बना रहे हैं। नदियों पर बनाए जा रहे बड़े बाँध, बैराज आदि सिंचाई तन्त्र पानी को राजनीतिक हथियार बना सकते हैं। यह एक ऐसा हथियार होगा, जो भविष्य में युद्ध के दौरान तबाही मचा सकता है और शान्ति के समय देशों के बीच मित्रता बढ़ाने का एक माध्यम भी बन सकता है।

अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने कहा था कि व्हिस्की पीने के लिए है और पानी लड़ने के लिए। ऐसे हालात अब बनते दिखने लगे हैं। पिछले 50 वर्षों में पानी के लिए सैंतिस भीषण हत्याकाण्ड हुए। इन हालात का सामना करने वाले महाद्वीपों में एशिया और अफ्रीका सबसे आगे हैं। आने वाले समय में दक्षिण एशिया, पूर्वी एशिया और पश्चिम एशिया को बड़े संकट का सामना करना पड़ सकता है।

नदियों पर पैदा हुए तनाव पर एक नजर डालें तो देखें कि इराक की टिगरिस तथा यूफरेटिस नदियों पर इस्लामिक स्टेट की बुरी नजर है। मोसुल बाँध पर इस्लामिक स्टेट ने कब्जा भी किया था। सिन्धु, ब्रह्मपुत्र, तीस्ता और गंगा पर चीन, पाकिस्तान, नेपाल तथा बांग्लादेश और भारत का आपस में तनाव बना रहता है। पाकिस्तान के कश्मीर के मुद्दे को लगातार उठाने का उद्देश्य उस राज्य से बहने वाली नदियों पर वर्चस्व स्थापित करना है। पाकिस्तानी पंजाब को भारतीय नदियों से काफी पानी मिलता है। भारत और पाक के बीच सिन्धु और झेलम नदी जल विवाद पनपा।

पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि भारत बाँध निर्माण कर जल रोकने का प्रयास कर रहा है। पाक ने नीमू बाजगो पनबिजली परियोजना का विरोध किया। चिनाब नदी पर पाक ने भारत पर जल के असमान वितरण और बगलिहार बाँध बनाने का आरोप लगाया। रावी और सतलज के लिए भी पाक ने भारत पर उंगली उठाई और पानी के असमान बँटवारे पर बिफरा। किशनगंगा पर पाकिस्तान ने भारत द्वारा जलमार्ग बदलने और जलविद्युत संयन्त्र का विरोध किया और मुँह की खाई जब हेग स्थित अन्तरराष्ट्रीय मध्यस्थता अदालत द्वारा फैसला भारत के पक्ष में आया।

एक कनाडाई पर्यावरणविद ने चेतावनी दी है कि अगर तिब्बत में नदियों पर चीन के प्रस्तावित सारे बड़े बाँध चालू हो जाते हैं तो ब्रह्मपुत्र नदी कभी अपने मूल स्वरूप में नहीं रहेगी।ब्रह्मपुत्र को लेकर भारत, बांग्लादेश, भूटान और चीन में तनातनी है। हाल ही में एक कनाडाई पर्यावरणविद ने चेतावनी दी है कि अगर तिब्बत में नदियों पर चीन के प्रस्तावित सारे बड़े बाँध चालू हो जाते हैं तो ब्रह्मपुत्र नदी कभी अपने मूल स्वरूप में नहीं रहेगी। चीन में ब्रह्मपुत्र और अन्य नदियों पर बड़े बाँधों के निर्माण से असम और अरुणाचल प्रदेश की पारिस्थितिकी खतरे में है। खेती और बड़े उद्योग भारत और चीन में पानी की माँग बढ़ा रहे हैं। भारत के लगातार विरोध के बावजूद चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर देश के सबसे बड़े हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य पूरा कर लिया। जानकारी के अनुसार जांगमू हाइड्रोपावर स्टेशन की पहली जनरेटिंग यूनिट समुद्र की सतह से 3300 मीटर की ऊँचाई पर बनी है।

पर्यावरणविद आशंका जता रहे हैं कि चीन की इस परियोजना से भारत और बांग्लादेश पर बाढ़ और भू-स्खलन का खतरा बढ़ेगा। ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह के साथ छेड़छाड़ का असर असम और अरुणाचल प्रदेश समेत पूरे उत्तर-पूर्व क्षेत्र में पड़ेगा। चीन तिब्बत क्षेत्र से अन्य नदियों को जोड़ने की परियोजनाओं पर काम कर रहा है। इससे यहाँ से निकलने वाली नदियों का पानी भारत नहीं पहुँच पाएगा और भारत व इससे जुड़े देशों की कई नदियां सूख जाएंगी।

चीन की अरुणाचल प्रदेश पर गिद्ध दृष्टि है, जिसकी एक खास वजह अरुणाचल प्रदेश के जल संसाधन हैं। उधर दक्षिण-पूर्व एशिया में बहने वाली विशाल नदी मेकांग है, जो तिब्बत से निकलती है, पर बाँध बनाकर लाओस देश बिजली का भरपूर उत्पादन कर रहा था और उस बिजली का नब्बे फीसदी भाग थाईलैण्ड को निर्यात होता था। चीन ने चुपके से मेकांग नदी पर बड़े बाँध बनाकर लाओस के क्षेत्र में बहने वाली मेकांग का पानी रोक लिया।

बांग्लादेश के साथ भारत का तीस्ता जल विवाद है। आपसी तनाव के बीच पानी का बहाव मोड़ने के लिए भारत ने तीस्ता नदी पर गोजालडोबा बाँध बनाया तो बांग्लादेश ने दलिया बाँध बना लिया। भारत और बांग्लादेश लगभग 54 नदियों का जल आपस में साझा करते हैं और 1972 के ज्वाइंट रिवर कमीशन के गठन के बावजूद दोनों पक्षों में जल के बँटवारे को लेकर तनाव होता रहता है। बांग्लादेश ने फरक्का बाँध का भी विरोध किया। अधिकतर बांग्लादेशी मानते हैं कि भारत फरक्का बैराज का पानी हुगली में मोड़कर दादागीरी दिखा रहा है। नेपाल द्वारा बाँध पानी छोड़े जाने को बिहार की बाढ़ का कारण माना जाता है।

गौरतलब है कि वर्ष 2050 तक दुनिया की आबादी लगभग नौ अरब तक पहुँच जाएगी। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि जल सम्पदा का दोहन मौजूदा रफ्तार से ही होता रहा तो 2027 तक दुनिया में 270 करोड़ लोगों को पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ेगा। वर्ष 2025 तक दुनिया के दो-तिहाई देशों में पानी की दिक्कत बढ़ जाएगी, जबकि एशिया और विशेष तौर पर भारत में 2020 में ऐसी स्थिति आ सकती है।

पानी, भोजन की माँग और जलवायु परिवर्तन की समस्या बढ़ने पर विभिन्न देश अपने आर्थिक और राजनीतिक लाभ के लिए जल का इस्तेमाल करने से नहीं हिचकेंगे, अस्थिरता और तनाव बढ़ेंगे। इन उभरते संघर्षों का हल वक्त रहते निकालना जरूरी है। आपसी संघर्ष से बचने के लिए इन देशों को ऊर्जा के नए स्रोत ढूँढ़ने होंगे ताकि नदियां अपने वास्तविक रूप में फलती-फूलती रहें। आपसी सहयोग पर आधारित समझौते करने होंगे। सभी देशों को पारदर्शिता अपनानी होगी। पानी से सम्बन्धित आँकड़े साझा करें, नदियों का प्राकृतिक प्रवाह न मोड़ें और सीमा पार से आने-जाने वाली नदियों का जलक्रम बाधित न करें। यदि सरकारें इस मामले में मूकदर्शक बनी रहीं तो वास्तव में दुनिया एक बड़े संकट का सामना करने के लिए विवश होगी। यदि कहा जा रहा है कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा, तो इसमें संशय कैसा, आसार तो बनते दिख ही रहे हैं।

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