तमाम बातों के बावजूद उपलब्धि पाना आसान नहीं था। गाँव कोई भी हो, उसमें राजनीतिक अलग-अलग स्तर पर चलती रहती है। विषय कोई भी हो। पहल कुछ भी हो। आलोचना, विरोध और अड़चन पैदा करना सब जगह होता है। पैगम्बरपुर इन सबसे अछूता नहीं था। यहाँ भी, चाहे सड़क निर्माण की बात हो या पौधे लगाने की या फिर आँगनबाड़ी की दशा सुधारने की हो या स्कूलों के सही-सही संचालन का, गाँव की राजनीति चलती रही। विरोध और अड़चन पैदा करने वाले छोटे-छोटे समूह बनते रहे। मुजफ्फरपुर जिले की पैगम्बरपुर पंचायत सरकारी योजनाओं का लाभ लेने और इसके जरिए गाँवों की तस्वीर बदलने के लिये आज बिहार की ब्रांड पंचायत है। इस पंचायत में करीब निजी व सरकारी को मिलाकर 10 से ज्यादा तालाब है। इनमें से दो तीन तालाब ही सूखे हैं। बाकी तालाबों में मछली पालन के अलावा खेतों की सिंचाई तक होती है।
इस पंचायत में सिचाई के लिये बोरिंग भी कराया गया है। यहाँ अधिकतर तालाब का निर्माण मनरेगा के तहत किया गया। यहाँ विकास के इतने काम हुए हैं कि विदेशी अध्ययन दल भी यहाँ पहुँच रहे हैं। इसे डेवलपमेंट ब्रांड के रूप में जाना जाता है।
इसे इस सफलता के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले हैं। इनमें पंचायत सशक्तिकरण पुरस्कार और राष्ट्रीय गौरव ग्राम सभा पुरस्कार शामिल हैं। अशाोक ने कहा कि इस पंचायत में स्वच्छता अभियान के तहत पंचायत में सौ प्रतिशत शौचालय का निर्माण कराया गया है। इतना ही निशक्त के लिये कई कल्याणकारी योजनाएँ भी इस पंचायत में चल रही है।
ऐसे मिली सफलता
यह सफलता मुखिया इंदू भूषण सिंह के नेतृत्व और सहभागिता के सिद्धान्त पर चलने से मिली। आज अकेले मुखिया नहीं, पंचायत के एक-एक जन-प्रतिनिधि, स्थानीय विधायक, सांसद और ग्रामसभा के एक-एक व्यक्ति का सर इस सफलता की बदौलत गर्व से ऊँचा है। श्री इंदू भूषण इस पंचायत के मुखिया हैं।
पुरस्कार में मिली राशि को पंचायत के विकास में लगाते हैं। अब तक पुरस्कार में तीस लाख रुपए प्राप्त हुए हैं। उस राशि का उपयोग गाँव के आर्थिक विकास का आधार तैयार करने में खर्च करने जा रहे हैं। की राशि से ग्राम सभा के लिये जीविका भवन को बनाने का प्रस्ताव है।
चुनौतियाँ कम नहीं रहीं
तमाम बातों के बावजूद उपलब्धि पाना आसान नहीं था। गाँव कोई भी हो, उसमें राजनीतिक अलग-अलग स्तर पर चलती रहती है। विषय कोई भी हो। पहल कुछ भी हो। आलोचना, विरोध और अड़चन पैदा करना सब जगह होता है। पैगम्बरपुर इन सबसे अछूता नहीं था। यहाँ भी, चाहे सड़क निर्माण की बात हो या पौधे लगाने की या फिर आँगनबाड़ी की दशा सुधारने की हो या स्कूलों के सही-सही संचालन का, गाँव की राजनीति चलती रही। विरोध और अड़चन पैदा करने वाले छोटे-छोटे समूह बनते रहे।
ऐसे समूह हर अच्छे काम की आलोचना करता। लोगों को गोलबन्द करने का प्रयास करता। पौधे रात के अन्धेरे में या तो उखाड़ दिये जाते या फिर मवेशियों से चरा दिये जाते। ये सब ऐसी ही बातें और घटनाएँ हैं, जो राज्य की दूसरी गाँव-पंचायत में होती हैं, लेकिन एक बात थी, जो इस पंचायत को उन गाँव-पंचायतों से अलग थी। वह थी संयम, सकारात्मक सोच और सबको साथ लेकर चलने की जिद।
इस तरह के प्रयोग किये
ऐसे लोगों और समूहों को सबक सिखाने और उनसे निबटने का इस पंचायत ने अनोखा रास्ता चुना। इसमें मारपीट और थाना-पुलिस की बजाय संगठनात्मक भावना के विकास को आधार बनाया गया। मुखिया के साथ-साथ गाँव के सही सोच वाले लोगों ने तय किया कि नकारात्मक सोच वाले और बुरे लोग कम होते हैं। वे अपने इरादे में सफल केवल इसलिये होते हैं कि अच्छे और सकारात्मक सोच वाले लोग संगठित नहीं होते। बस, वहीं से शुरू हुई गाँधीगिरी। लोगों ने तय किया। गाँव से जब भी निकलेंगे, जिधर भी निकलेंगे, समूह में निकलेंगे और एकता का सन्देश देने वाले नारे लगाएँगे। गाँव में इसी भावना के साथ प्रभातफेरी निकलने लगी। जिसने पौधे उखाड़े, उनके खिलाफ थाना-पुलिस या पंचायत-दंड लगाने की सोच से परहेज किया गया। इसका असर हुआ। जो लोग विरोध, आलोचना और अड़ंगा लगाने में विश्वास रखते थे, गाँव की मुख्यधारा में जुड़ते चले गए।
इन कार्यों की बदौलत पंचायत बनी विकास ब्रांड
1. सांसद योजना के जरिए सौ घरों में चापाकल की व्यवस्था।
2. सांसद योजना के जरिए सामुदायिक भवन और महादलित सामुदायिक भवन।
3. स्थानीय विधायक के कोष से गनियारी गाँव में अतिरिक्त स्वास्थ्य केन्द्र।
4. पशु चिकित्सालय का काम।
5. आँगनबाड़ी के दस सेंटरों के भवन निर्माण।
6. पंचायत की सभी पाँच मध्य विद्यालयों का सही-सही संचालन।
7. सोनबरसा, पैगंबरपुर पंचायत सरकार भवन।
8. पुस्तकालय निर्माण।
9. निजी शौचालय का निर्माण।
10. पाँच सौ लोगों की क्षमता लायक ग्रामसभा हॉल का निर्माण।
इस पंचायत के अधीन पाँच गाँव हैं। पैगम्बपुर, गनीआरी, बखरी, मुंडीआरी व एक अन्य। इन गाँवों से दूर से पहचाना जा सकता है। चारों ओर हरा-भरा दिख रहा है पंचायत।