पारदर्शिता के लिए जरूरी सामाजिक अंकेक्षण

Submitted by birendrakrgupta on Sat, 03/28/2015 - 13:29
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योजना, अगस्त 2008
सामाजिक अंकेक्षण जो राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानून का एक महत्त्वपूर्ण भाग है, जो इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिए जवाबदेही तथा पारदर्शिता की प्रक्रिया को मजबूती प्रदान करता है। यह जवाबदेही और पारदर्शिता ही तमाम अनियमितताओं एवं भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाता है तथा मजदूरों के हाथों में उनका वास्तविक अधिकार सौंपता है।अनन्तपुर आन्ध्र प्रदेश का एक जिला है। 7 सितम्बर, 2008 को मैं अपने कुछ साथियों के साथ अनन्तपुर जिला के कारीदी गाँव में था। हम सभी साथी जिनमें व्योमकेश, सी.आर. मण्डल, भानूप्रिया, कृष्ण गोपाल, स्वाति एवं भाँति शामिल थे, वहाँ राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कानून के तहत सम्पादित एवं कार्यरत योजनाओं के सामाजिक अंकेक्षण का कार्यक्रम देखने पहुँचे थे। दोपहर के लगभग 12 बजे हमारी गाड़ी एमपी स्ट्रीट, कादीरी गाँव के रामचन्द्र बिल्डिंग के सामने रूकी। यहाँ रूरल एनवायरमेण्ट एण्ड डेवलपमेण्ट सोसाइटी (आरईडीएस) का मुख्य कार्यालय है जो 1992 से समुदाय के अधिकार के लिए कार्यरत है। वर्तमान में श्रीमती भानू इसकी निदेशक हैं। आरईडीएस 13 संस्थाओं के एक नेटवर्क में शामिल है जिसे एपीपीएस नाम दिया गया है। 1992 में सोसाइटी एक्ट के तहत निबन्धित एपीपीएस नेटवर्क का मुख्य उद्देश्य है- खाद्य सुरक्षा एवं आजीविका सुनिश्चित करना, समुदाय को अधिकार के प्रति जागरुक करना इत्यादि। यह नेटवर्क अनन्तपुर जिला के 63 मण्डल में से 39 मण्डलों में सक्रिय है। जिले में कुल 1,005 गाँव हैं जिसकी आबादी 36 लाख है, इनमें ग्रामीणों की जनसंख्या 27 लाख है। इस ग्रामीण जनता को संगठित करने के लिए विभिन्न समुदाय आधारित संगठन ग्राम से लेकर जिला स्तर तक गठित किए गए हैं तथा इन सामुदायिक संगठनों को सशक्त एवं आत्मनिर्भर बनाने के लिए हर सम्भव प्रयास किए जा रहे हैं। इसी एपीपीएस नेटवर्क के तहत अनन्तपुर जिले में राष्ट्रीय ग्रामीण नियोजन गारण्टी कानून के क्रियान्वयन के सम्बन्ध में एक वृहद सामाजिक अंकेक्षण या लेखापरीक्षण किया गया।

देश में इस तरह का सबसे पहला सामाजिक अंकेक्षण राजस्थान राज्य के डूंगरपुर जिले में अप्रैल 2006 में हुआ था। अनन्तपुर के कई सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों एवं आम ग्रामीणों ने उस सामाजिक अंकेक्षण को देखा था। लिहाजा यहाँ होने वाले सामाजिक अंकेक्षण में वह अनुभव बखूबी काम आ रहा था। अनन्तपुर में सामाजिक अंकेक्षण 2-7 सितम्बर, 2006 तक हुआ और इस दौरान विभिन्न समूहों ने गाँव-गाँव पदयात्रा कर कुल 39 मण्डलों के 600 गाँवों में अंकेक्षण के सामाजिक दायित्व को पूरा किया। इस प्रक्रिया में आन्ध्र प्रदेश सरकार के ग्रामीण विकास मन्त्रालय के सचिव एवं मन्त्री का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। विभाग के आदेश से सभी मण्डलों ने अंकेक्षण के लिए प्रतिनिधियों को तमाम जरूरी सूचनाएँ समय पर उपलब्ध कराया। हमारा समूह सामाजिक अंकेक्षण के अन्तिम दिन थानाकुला ग्राम पंचायत के पेडकाडा पल्लभरी पल्ली गाँव में संचालित किए जा रहे सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रिया में शामिल था।

अंकेक्षण का विवरण


हमलोगों के पहुँचने के पूर्व ही गाँव में सामाजिक अंकेक्षण की कार्रवाई शुरू हो चुकी थी। एक विशाल आम के वृक्ष के नीचे गाँव के विशिष्ट जन एवं कार्डधारी तथा पड़ोसी गाँव गोलावरी पल्ली के दलित वाड़ा टोले के कार्डधारी अपने अनुभव एवं वास्तविक स्थिति का आदान-प्रदान कर रहे थे। इस गाँव में सामाजिक अंकेक्षण के आयोजन में जन जागृति संस्था की अग्रणी भूमिका थी। बलरामजी जो जन जागृति संस्था के अध्यक्ष हैं तथा संस्था की ही समन्वयक लक्ष्मी देवम स्वयं वहाँ मौजूद थे और अपने कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर कार्यक्रम का संचालन कर रहे थे। यहाँ सीडब्ल्यूएस, हैदराबाद के दो साथी सुधा एवं वागेश भी उपस्थित थे।

सामाजिक अंकेक्षण जो राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानून का एक महत्त्वपूर्ण भाग है, जो इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिए जवाबदेही तथा पारदर्शिता की प्रक्रिया को मजबूती प्रदान करता है। यह जवाबदेही और पारदर्शिता ही तमाम अनियमितताओं एवं भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाता है तथा मजदूरों के हाथों में उनका वास्तविक अधिकार सौंपता है। सामाजिक अंकेक्षण को संचालित करने की जिम्मेदारी मुख्य रूप से मण्डल या प्रखण्ड स्तर के विभागीय कर्मचारियों और ग्रामीणों को संयुक्त रूप से है। लेकिन जहाँ यह कानून लागू है उन तीन सौ तीस जिलों में अंकेक्षण की इस प्रक्रिया से लोग अनभिज्ञ हैं। राजस्थान के डूंगरपुर के बाद आन्ध्र प्रदेश का अनन्तपुर ही ऐसा दूसरा जिला है जहाँ वृहद सामाजिक अंकेक्षण का काम पूरा किया गया। पर, डूंगरपुर की ही तरह यहाँ भी इसे संचालित करने में एक गैर-सरकारी संगठन की ही अग्रणी भूमिका रही।

इस अंकेक्षण प्रक्रिया में जो तथ्य सामने आए और जिन वास्तविक स्थितियों का पता चला वे इस प्रकार हैं :

1. कार्डधारियों से बातचीत द्वारा पता चला कि काम के लिए आवेदन की संख्या कम है। सभी कार्डधारियों को मार्च, अप्रैल एवं मई, 2008 तक कार्ड उपलब्ध हो चुका था।

2. इस गाँव (पेडकाडा पल्लभरी पल्ली) के 113 एकल परिवारों में से 103 परिवारों को जॉबकार्ड मिल चुका है। जिन 10 परिवारों को कार्ड नहीं मिला उसका कारण यह है कि वे परिवार काम के लिए दूसरे प्रान्त पलायन कर गए थे। इस अंकेक्षण के दौरान उन परिवारों को भी इसके बारे में जानकारी मिली एवं उन 10 परिवारों ने जॉबकार्ड के लिए आवेदन जमा किया।

3. 103 जॉब कार्डधारी परिवार में से मात्र 30 परिवार के कुल 50 सदस्य को प्रति कार्ड औसत 22 दिन का रोजगार प्राप्त हुआ एवं इन सभी परिवारों को अपने क्षेत्र के डाकघर बचत खाता के माध्यम से मजदूरी का भुगतान प्राप्त हुआ।

4. सभी मजदूरों के लिए अलग-अलग पासबुक खोला गया। भले ही वे एक ही कार्ड के सदस्य क्यों न हों।

5. इस ग्राम में जो भी काम हो रहा है उसका नियोजन मण्डल, प्रखण्ड एवं जिला के कार्यालय में किया गया। योजना बनाने की प्रक्रिया में ग्राम सभा की भूमिका मजबूत करने की जरूरत थी, जो देखने को मिला और ग्राम सभा को अपने अधिकार के बारे में और अधिक जानकारी की जरूरत है।

5. इस प्रक्रिया के दौरान यह देखा गया कि जहाँ भी काम चल रहा है, वहाँ ग्राम सभा द्वारा गठित निगरानी समिति का गठन नहीं है, जिसके चलते भ्रष्टाचार की स्थिति बनी हुई है। मस्टर रोल एवं जॉबकार्ड में अलग-अलग विवरण पाया गया तथा उनकी मजदूरी में भी अन्तर पाया गया। अर्थात यहाँ अनियमितता हर पग में देखने को मिली। किसी भी मजदूर को साप्ताहिक मजदूरी का भुगतान नहीं किया गया और सभी को डाकघर के माध्यम से 21 दिन के बाद मजदूरी का भुगतान किया गया। ऐसा सभी कार्डधारी के साथ तीन बार हो चुका है। अन्तिम सप्ताह को हुए भुगतान का प्रतिवेदन तक नहीं किया गया।

6. आरएसएसआर के हिसाब से काम की उचित मजदूरी नहीं दी गई। इसमें विभाग के फील्ड असिस्टेण्ट, टेक्निकल असिस्टेण्ट तथा ग्रामीणों के बीच यह जानकारी नहीं है।

7. इस गाँव में तीन तरह का काम चलाया जा रहा है :
- फार्म पौण्ड
- अरदन बन्डिंग
- बायो डीजल प्लांटेशन पिट

8. एनआरईजीए एक कानूनी अधिकार है। इस अधिकार में काम के लिए आवेदन देने के बाद अगर काम समय पर नहीं दिया जाता है तो वे बेरोजगारी भत्ते के दावेदार होते हैं, लेकिन इस गाँव में इस तरह की जानकारी का अभाव पाया गया।

9. इस सामाजिक अंकेक्षण कार्यक्रम में सूर्यनारायण रेड्डी, पी नागेन्द्र, 2 फील्ड असिस्टेण्ट एवं जी. रामन जनानी आसु जो तकनीकी सहायक हैं, सक्रिय रूप से कार्यरत थे।

10. इस गाँव की कुल आबादी 386 है जिसमें पिछड़ा वर्ग एवं अन्य जातियाँ शामिल हैं।

11. जो भी काम सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया। वह पहले के सीएलडीपी एवं एनएफएफपी कार्यक्रम के तहत पूर्व निर्मित योजनाओं के अनुसार हो रहा है जिसे ग्राम सभाओं ने अनुमोदित नहीं किया था।

12. जितने भी सिविल सोसाइटी इस क्षेत्र में कार्यरत हैं, वे इस कानून के बुनियादी एवं जरूरी पहलुओं को ग्रामीणों तक सही मायने में कम पहुँचा पाए हैं। आंशिक जानकारी के कारण तमाम त्रुटियों एवं भ्रष्टाचार का सिलसिला क्रमबद्ध रूप में बढ़ता चला गया है जिसका प्रमाण इस सामाजिक अंकेक्षण के दौरान पाया गया।

13. जितनी भी मिट्टी कटाई का काम हो रहा है, चौका नापी एवं विभिन्न स्तर के मिट्टी कटाई के लिए जो न्यूनतम दर उसकी नापी के अनुसार तय किया हुआ है, उसके आधार पर कहीं भी मजदूरों को भुगतान नहीं हो रहा है।

14. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानून के तहत 50 जॉब कार्डधारी मजदूर के बीच एक मुंशी के होने का प्रावधान है, जिसके ऊपर मस्टर रोल की जिम्मेदारी होती है, परन्तु ग्रामीणों से पता करने पर जानकारी मिली कि मुंशी की नियुक्ति नहीं हुई है।

15. छोटे-छोटे बच्चों की माताएँ यदि मजदूरी में भागीदारी लेती हैं तो उनके बच्चों की देख-रेख हेतु 5 बच्चों पर एक व्यक्ति को रखने का कानूनी प्रावधान है। इस विषय पर पूछे जाने पर पता चला कि ऐसा कहीं भी नहीं हो रहा है।

16. प्रत्येक कार्यस्थल पर एक समिति का होना कानूनी प्रावधान है, परन्तु ऐसा कहीं भी होने की जानकारी नहीं मिली। 20 जॉब कार्डधारी के बीच मजदूरी करने के समय पेयजल प्रबन्ध करने हेतु एक अलग मजदूर का रहना कानूनी प्रावधान है, इस सम्बन्ध में भी ग्रामीणों को कोई जानकारी नहीं है।

17. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानून के तहत प्रत्येक कार्यस्थल में मजदूरों के बीमार अथवा चोट लगने पर प्राथमिक चिकित्सा हेतु एक सरकारी स्वास्थ्यकर्मी द्वारा 8 घण्टे तक दवा उपलब्ध कराने का प्रावधान है। परन्तु किसी भी कार्यस्थल में ऐसा प्रबन्ध होने की जानकारी नहीं मिली।

18. पूछने पर पता चला कि कार्यस्थल में जॉब कार्डधारी मजदूर कार्यकाल में आकस्मिक दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं या घायल हो जाते हैं तो उन्हें प्राथमिक चिकित्सा के अतिरिक्त अस्पताल में इलाज, दुर्घटना मुआवजा तथा जितने दिन अस्पताल में रहेगा उतने दिनों का 50 प्रतिशत मजदूरी प्राप्त करने का हक है। विकलांग अथवा मृत्यु हो जाने की स्थिति में 25,000 रुपए मिलने का अधिकार भी इस कानून में है। इस विषय पर जानकारी बढ़ाने की जरूरत दिखी।

19. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानून के अनुसार, यहाँ विकलांगों को उनके क्षमता के आधार पर विशेष रोजगार देने की कोई व्यवस्था नहीं देखी गई। जबकि वृद्ध एवं विकलांगों के लिए भी एनआरईजीए में प्रावधान है।

20. समुदाय के उपेक्षित महिलाओं को जॉबकार्ड नहीं मिलने की बात भी सामने आई। जबकि विधवा/तलाकशुदा/उपेक्षित महिलाओं को इस योजना में प्राथमिकता देने का संकल्प किया गया है। जॉबकार्ड अधिकतर पुरुषों के नाम पर बनाए गए थे। इससे स्पष्ट जाहिर होता है कि वर्णित ग्रामों में एनआरईजीए सम्बन्धी जानकारी एवं जागरुकता को बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।

दूसरा दिन : 8 सितम्बर, 2006


सुबह के लगभग 8 बजे थे, जब हमलोग सोमेद पल्ली मण्डल के लिए निकले। आज हमारे समूह में तीन नये सदस्य आ जुड़े थे- दिल्ली से सुब्रत डे, हैदराबाद से कोलप्पा एवं छत्तीसगढ़ से पारोमिता। सोमेद पल्ली मण्डल मुख्यालय अनन्तपुर से 70 कि.मी. दूरी पर स्थित है।

यहाँ जन सुनवाई का कार्यक्रम मण्डल कार्यालय एवं किड्स ने मिलकर किया था। किड्स एपीपीएस नेटवर्क का सदस्य है जो इस मण्डल में सामाजिक विकास के लिए कार्यरत है। इस जन सुनवाई के पूर्व में की गई तैयारियाँ इस प्रकार हैं : सामाजिक अंकेक्षण हेतु 10 ग्राम पंचायत के 20 गाँवों का चयन। चुने हुए गाँवों के सामाजिक अंकेक्षण के लिए दो समूह का गठन। एक समूह का नेतृत्व श्री मल्लिकार्जुन और दूसरे का श्री नरसिंहा मूर्ति कर रहे थे। ये दोनों एपीपीएस के संगठक हैं। इस समूह में 14 सदस्य थे।

जन सुनवाई के दौरान उपस्थित जिला एवं राज्य स्तरीय पदाधिकारियों ने जनता की शिकायत एवं तथ्यों के आधार पर अनियमितता एवं भ्रष्टाचार में लिप्त कर्मचारियों पर मौके पर ही कार्रवाई की। कई रोजगार सेवकों एवं अभियन्ताओं को निलम्बित किया गया एवं कारण बताओं नोटिस जारी किया गया। जिन योजनाओं में गम्भीर अनियमितताएँ पाई गईं उन पर जाँच दल गठित कर तत्काल जाँच का आदेश दिया गया।पहले समूह ने सामाजिक अंकेक्षण की प्रक्रिया जिन गाँवों में चलाई उन गाँवों के नाम हैं : मण्डाली, मधुपाकुण्ठा, रूकाला पल्ली, जुलूकुण्ठा, एडेलावाल कुरम, ब्रह्मणा पल्ली, भाड़ाँच पल्ली, पण्डिपाथी। जबकि दूसरे समूह ने भगाचोरो, रंगापल्ली, मारकण्डो पल्ली, वालाडाला काला, तुंगारो, कोलिनी पल्ली, कुकात मानी पल्ली, चिनवावे पल्ली, गुडी पल्ली, वालाकामालम पल्ली, चाट कुरो, कोनाताया पल्ली गाँवों में सामाजिक अंकेक्षण को संचालित किया।

इस जन सुनवाई में सभी 10 गाँव के कार्डधारी एवं अन्य ग्रामीण मण्डल कार्यालय पहुँचे। कुल 550 लोगों ने इस जन सुनवाई में भागीदारी की। इनमें महिलाओं की संख्या मात्र 35 थी। इस जन सुनवाई में हैदराबाद से एपीआरईजीएस की निदेशक श्रीमती भान्ता कुमारी (आईएएस) एवं एपीआरडी के वरिष्ठ पदाधिकारी ने भाग लिया। रजनीकान्त प्रोजेक्ट एग्जिक्यूटीव (फाइनेंस) एसपीआईयूआरडी (सोशल ऑडिट) जो ग्रामीण विकास की इकाई हैं तथा मण्डल स्तरीय पदाधिकारी भी इस जन सुनवाई कार्यक्रम में उपस्थित थे। इसके अतिरिक्त एमकेएसएस राजस्थान के सोमाया किडंवी एवं प्रियंका तथा झारखण्ड, बिहार, आन्ध्र प्रदेश के प्रतिनिधि सहित चार प्रमुख समाचारपत्र-पत्रिकाओं के पत्रकारों ने भी प्रक्रिया में सहभागी भूमिका निभाई।

दिन के 12 बजे से शुरू हुई यह जन सुनवाई शाम के चार बजे तक चली। मण्डल के सभी ग्राम पंचायतों के लोगों ने एक-एक कर विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की तथा योजना सम्बन्धी समस्याओं को खुलकर रखा। जन सुनवाई में 5 पंचायत के सामाजिक अंकेक्षण प्रतिवेदन एवं संग्रहित दस्तावेजों का निरीक्षण किया गया और उसकी जन समीक्षा की गई। इस जन सुनवाई के दौरान निम्नलिखित बातें सामने आईं :

1. एक कार्ड में 71,000 रुपए की निकासी अवैध तरीके से की गई।
2. एक दूसरे कार्ड में 59,000 रुपए की निकासी अवैध तरीके से की गई।
3. एक ही प्रकार के कामों में अलग-अलग दर से मजदूरी का भुगतान किया गया।
4. पोस्टमास्टर पासबुक अपने पास ही रखते हैं। अवैध निकासी का भी प्रमाण मिला।
5. लोगों के बीच मीटर और फीट के बारे में जानकारी नहीं होने के कारण नापी में व्यापक गड़बड़ी मिली, जिसके परिणामस्वरूप मजदूरों को उचित मजदूरी से वंचित होना पड़ा।
6. अधिकतर फार्म पौण्ड का निर्माण बड़े किसानों की जमीन पर किया जा रहा है, जिसमें ग्राम सभा का अनुमोदन तथा निगरानी में ग्राम सभा की कोई भूमिका नहीं है।
7. पोंगामिया वृक्ष के पौधारोपण का कार्य व्यापक रूप से सभी प्रकार की जमीन में किया जा रहा है। इसमें समुदाय का कम तथा किसी निजी कम्पनी का मुनाफा ज्यादा दिख रहा है।

जन सुनवाई के दौरान उपस्थित जिला एवं राज्य स्तरीय पदाधिकारियों ने जनता की शिकायत एवं तथ्यों के आधार पर अनियमितता एवं भ्रष्टाचार में लिप्त कर्मचारियों पर मौके पर ही कार्रवाई की। कई रोजगार सेवकों एवं अभियन्ताओं को निलम्बित किया गया एवं कारण बताओं नोटिस जारी किया गया। जिन योजनाओं में गम्भीर अनियमितताएँ पाई गईं उन पर जाँच दल गठित कर तत्काल जाँच का आदेश दिया गया।

सामाजिक अंकेक्षण की इस प्रक्रिया ने हमारे समूह सहित उन तमाम लोगों के मन में, जो इस योजना से भारत की आम गरीब जनता के जीवन में बदलाव देखना चाहते हैं, एक नयी उम्मीद जगाई। इस उम्मीद को हम सभी साथियों ने अपने दो दिनों के अनुभव में अनन्तपुर के आम ग्रामीणों के चेहरों पर स्पष्ट रूप से देखा और महसूस किया। आजादी के बाद सम्भवतः यह पहला अवसर था, जब अनन्तपुर के ग्रामीणों और उनकी ग्राम सभा ने अपनी लोकतान्त्रिक ताकत को व्यवहार में लिया। आम आदमी कैसे विकासीय योजनाओं को कारगर बना सकता है तथा इसमें होनेवाली लूट, अनियमितता एवं भ्रष्टाचार पर अंकुश रख सकता है, सामाजिक अंकेक्षण इस सामाजिक पारदर्शिता और सामूहिक जिम्मेदारी के नागरिक बोध को सुनिश्चित करता है। जरूरत है इस कानून और प्रावधान को जन-जागरुकता से भारत के सभी गाँवों में लागू करने की।

(लेखक राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कार्यक्रम पर जमीनी स्तर पर अध्ययन कर रहे हैं)