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विज्ञान प्रगति, अगस्त, 2018
पौधों की किस्मों की सुरक्षा एवं संरक्षण तथा पौधों की नई किस्मों के विकास के लिये पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण (पीपीवी एंड एफआर) अधिनियम 2001 को भारत सरकार द्वारा लागू किया गया। यह अधिनियम नई किस्मों के विकास के लिये पादप आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण, उनमें सुधार तथा उन्हें उपलब्ध कराने में किसानों के योगदान को मान्यता प्रदान करता है। यह प्राधिकरण एनएएससी कॉम्पलेक्स पूसा परिसर, टोडापुर गाँव के पास नई दिल्ली में स्थापित किया गया है।
पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 के उद्देश्य
1. पौधों की किस्मों, कृषकों और प्रजनकों के अधिकार की सुरक्षा और पौधों की नई किस्म के विकास को बढ़ावा देने के लिये एक प्रभावी प्रणाली की स्थापना करना।
2. पौधों की नई किस्मों के विकास के लिये पादप आनुवंशिक संसाधन उपलब्ध कराने तथा किसी भी समय उनके संरक्षण व सुधार में किसानों द्वारा दिए गए योगदान के सन्दर्भ में किसानों के अधिकारों को मान्यता देना व उन्हें सुरक्षा प्रदान करना।
3. देश में कृषि विकास में तेजी लाना, पादप प्रजनकों के अधिकारों की सुरक्षा करना। पौधों की नई किस्मों के विकास के लिये सार्वजनिक और निजी क्षेत्र, दोनों में अनुसन्धान और विकास के लिये निवेश को प्रोत्साहित करना।
4. देश के बीज उद्योग की प्रगति को सुगम बनाना जिससे किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीजों तथा रोपण सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके। पौधों की नई किस्म और कृषक अधिकार सरंक्षण अधिनियम, 2001 के अन्तर्गत पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण बना जो 2005 से अस्तित्व में आया। यह प्राधिकरण इस मायने में सबसे अलग है कि यह किसानों को उनके अधिकार प्रदान करता है जिसका प्रावधान विश्व के अन्य किसी देश द्वारा नहीं किया गया है।
प्राधिकरण का मुख्य कार्य विभिन्न पादप किस्मों का पंजीकरण करना है। वैसे तो सभी किस्मों का लेकिन कृषक किस्मों का संरक्षण उनके दुर्लभ गुणों के कारण अति आवश्यक है। कृषक किस्में स्थानीय रूप से अनुकूलित होती हैं और उनमें रोग, सूखा, लवण अवरोधी एवं औषधीय विशेष गुण होते हैं। कृषक किस्मों का प्रजनन हेतु आनुवंशिक संसाधन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। अधिनियम द्वारा कृषक किस्मों को बौद्धिक सम्पदा सुरक्षा प्रदान की जाती है।
कृषकों के अधिकार
जिस किसान ने कोई नई किस्म खोजी या विकसित की हो उसे उसी प्रकार अपनी किस्म को सुरक्षा प्रदान करने और पंजीकृत करने का अधिकार है जिस प्रकार प्रजनक अपनी किस्म को पंजीकृत कराकर सुरक्षा प्रदान करता है। कृषक किस्म को विद्यमान किस्म के रूप में भी पंजीकृत किया जा सकता है। कोई भी किसान पीपीवी एंड एफआर अधिनियम, 2001 के अन्तर्गत संरक्षित किस्म के बीज सहित अपने उत्पाद को उसी प्रकार बचाकर रख सकता है, उपयोग में ला सकता है, बो सकता है, पुनः बो सकता है, उसका विनिमय कर सकता है, साझेदारी कर सकता है या बेच सकता है, जैसे कि वह अधिनियम के लागू होने से पूर्व कर सकता था। लेकिन इसमें शर्त यह है कि कोई भी किसान पीपीवी एंड एफआर अधिनियम, 2001 के अन्तर्गत सुरक्षित किस्म के ब्रांड युक्त बीज की बिक्री नहीं कर सकता है।
किसान आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण भू-प्रजातियों तथा उनके वन्य सम्बन्धियों के पादप आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण के लिये मान्यता प्राप्त किये जाने तथा पुरस्कृत किये जाने के पात्र हैं। उदाहरणार्थ- कर्नाटक राज्य की एक कृषक महिला श्रीमती अंज्जुमा जो अपने 15 बीघे खेत में तकरीबन 18 किस्म की फसलें लगाती हैं और इन सभी किस्मों के बीजों को मिट्टी के बर्तनों में संरक्षित करती हैं। बीज खराब न हो इसके लिये गोबर और नीम की पत्तियों के मिश्रण से मिट्टी के बर्तन के मुँह को ढककर रखती हैं ताकि वे कीट, फफूँदी आदि के नुकसान से बचे रहें। साथ ही वह बहुत सारे किसानों के बीच इन बीजों का वितरण भी करती हैं। उनके इस महत्त्वपूर्ण योगदान के लिये वर्ष 2017 में उन्हें 1.5 लाख रुपए का पादप जीनोम संरक्षण पुरस्कार माननीय कृषि मंत्री जी द्वारा प्रदान किया गया।
अधिनियम 2001 की धारा 39(3) के अन्तर्गत किसी किस्म के निष्पादन न देने पर किसानों को क्षतिपूर्ति किये जाने का भी प्रावधान है। किसानों को प्राधिकरण, पंजीकरण, न्यायाधिकरण अथवा उच्च न्यायालय में कोई भी मुकदमा दाखिल करने के लिये इस अधिनियम के तहत कोई शुल्क अदा नहीं करना होगा।
लाभ में भागीदारी कृषकों के अधिकारों का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटक है। धारा 26 में प्रावधान है कि भारत के नागरिकों या फर्मों अथवा गैर-सरकारी संगठनों अथवा भारत में स्थापित संगठनों द्वारा लाभ में भागीदारी के दावे प्रस्तुत किये जा सकते हैं।
किसी किस्म के विकास में दावेदार के आनुवंशिक संसाधन के उपयोग की सीमा प्रगति के साथ-साथ उस किस्म की बाजार में माँग तथा उसके वाणिज्यिक उपयोग के अनुसार प्रजनक को जीन निधि में निर्धारित राशि जमा करानी होगी। जमा की गई यह राशि राष्ट्रीय जीन निधि से दावेदार को अदा की जाएगी। प्राधिकरण भारतीय पौधा किस्म जर्नल में लाभ में भागीदारी दावों को आमंत्रित करने के उद्देश्य से प्रमाण-पत्र के अंश भी प्रकाशित करता है। कोई भी व्यक्ति-व्यक्तियों का समूह सरकारी या गैर-सरकारी संगठन भारत के किसी गाँव-स्थानीय समुदाय की ओर से किसी भी अनुसूचित केन्द्र में किसी भी किस्म के विकास में किए गए योगदान का दावा दाखिल कर सकता है।
रजिस्ट्रेशन का तरीका
सबसे पहले किसान की जिस किस्म का रजिस्ट्रेशन करना है किसान से उसका आवेदन मंगाया जाता है। इस आवेदन को उस क्षेत्र विशेष का जिला कृषि अधिकारी अनुमोदित करता है तथा किसान उस आवेदन में उस क्षेत्र के कृषि विज्ञान केन्द्र के इंचार्ज को फार्म पीवी-1 के माध्यम से उसे पत्राचार करने के लिये स्वीकृति प्रदान करता है।
आवेदन में फसल के हिसाब से बीज की मात्रा मंगाई जाती है जो डीयूएस मार्गदर्शिका में दी गई मात्रा की आधी होती है किस्म विशेष का कोई खास गुण हो तो उसका तथा परम्परागत ज्ञान जो इस किस्म विशेष से सम्बन्धित हो उसका उल्लेख करने को कहा जाता है। बीज प्राप्त होने के पश्चात उसे डीयूएस केन्द्र पर परीक्षण हेतु भेज दिया जाता है। रजिस्ट्रेशन और परीक्षण का कोई शुल्क किसान से नहीं लिया जाता है। डीयूएस परिणाम आने के बाद चेक लिस्ट तैयार की जाती है। तथा सम्बन्धित डाटा पौधा किस्म जर्नल में प्रकाशित कर दिया जाता है ताकि यदि किसी को कोई आपत्ति हो तो वह वाद दाखिल कर सके। निर्विवाद होने की स्थिति में 90 दिन पश्चात उस किस्म का रजिस्ट्रेशन सर्टीफिकेट किसान के नाम पर जारी कर दिया जाता है। पेटेन्ट के समकक्ष पादप किस्मों के लिये इस रजिस्ट्रेशन सर्टीफिकेट की मान्यता है। इस मद में भी यह प्राधिकरण अन्य पेटेन्ट देने वाले प्राधिकरण से भिन्न है।
प्राधिकरण किसान की किस्मों का पंजीकरण कराकर उनके इस बहुमूल्य पादप आनुवंशिकी संसाधन का गलत उपयोग होने से बचाता है। जागरुकता कार्यक्रमों द्वारा किसान की किस्मों का पंजीकरण संरक्षण एवं सुरक्षा सम्बन्धी जानकारी देता है। पादप आनुवंशिक संसाधनों का संरक्षण कर रहे किसानों को सम्मानित किया जाता है। व्यक्तिगत रूप से 1.50 लाख रुपए का पुरस्कार और सामूहिक रूप से 10.00 लाख रुपए का पुरस्कार प्रदान किया जाता है। किसानों के लिये प्राधिकरण प्रतिवर्ष 35 पादप जीनोम संरक्षण पुरस्कार उनके कार्य को मान्यता प्रदान करने और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिये देता है। किसान को अपनी किस्म के पंजीकरण के लिये कोई शुल्क नहीं देना होता।
डॉ.राजवीर सिंह नागर
पूर्व मुख्य तकनीकी अधिकारी (भा.कृ.अ.प्र) पीपीवी एंड एफआर, एनएएससी कॉम्पलेक्स, नई दिल्ली 110012
मो- 9911409912
ई मेल- dr.rvsnagar@gmail.com
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