फरवरी के आखिरी दिनों में बढ़ते तापमान और पछुआ हवा ने गेहूं की खेती किये किसानों के चेहरे की हवा उड़ा दिया है। माना जा रहा है कि ऐसा ही रहा तो उत्पादन पर खासा बुरा असर होगा। फसलें गिर जायेंगी और दाने ठीक से गदरायेंगे नहीं। लेकिन कुछ एहतियातों के साथ किसान इस नुकसान से बच सकते हैं या फिर इसे कम कर सकते हैं। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश में 2.1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की बुवाई हुई है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के महराजगंज के घुघली क्षेत्र के रहने वाले किसान संत सिंह बताते हैं कि उनके यहां धान और गेहूं के साथ गन्ना की भी खेती प्रमुखता से होती है। गन्ना काटने के बाद अधिसंख्य किसान उस खेत में गेहूं की फसल लगते हैं। इसमें देर हो जाती है। पंद्रह दिसंबर से जनवरी के बीच बोई गई फसल को ही इस हवा से सर्वाधिक नुकसान का खतरा है।
इस साल देश भर में कुल 325.35 लाख हेक्टेयर खेत में गेहूं बोया गया है। बिहार में 2.33 लाख, महाराष्ट्र में 4.59 लाख, राजस्थान में 2.87 लाख और मध्य प्रदेश में 0.32 लाख हेक्टेयर में इसकी बुवाई हुई है। लेकिन साथ ही समय से पहले ही दिन के तापमान में औसत से छ-सात डिग्री तक की बढ़ोत्तरी दिख रही है। बाराबंकी के किसान अमरेंद्र दास ने बताया कि गेहूं की फसल तीन महीने की हो रही है। दाने पड़ने लगे हैं लेकिन ठीक इसी समय तेज पछुआ हवा के चलने से नुकसान भी होने लगा है। फसल की सिंचाई के बाद यह हवा पौधे को या तो गिरा देगी या फिर हिल जाने से पौधा कमजोर पड़ जायेगा। जिन किसानों ने बुवाई देर से की है वे अपनी फसल में पानी नहीं लगा पा रहे हैं। तापमान बढ़ जाने से फसल जल्दी पक जायेगी लेकिन दाने तंदरुस्त नहीं होंगे। इससे समग्र उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
उन्नाव जिले के राजाराम यादव बड़े पैमाने पर गेहूं उगते हैं। इनका कहना है कि पौधों में फूल आने के समय ही हवाएं शुरू हो गई। इससे फूल झड़ने लगे। यही वक्त दूसरी सिंचाई का भी था। लेकिन सिंचाई कर देने पर फसल के गिर जाने का डर भी है। यह हवा अमूमन होली के आसपास शुरू होती थी लेकिन इस बार काफी पहले चलने लगीं। यह किसानों के लिये किसी आफत से कम नहीं है। तेज धूप में अविकसित पौधे सूखने लगे हैं। देखने से तो वे पक्के लगेंगे लेकिन दाने नहीं होंगे। किसानों की इस फिक्र पर कृषि विशेषज्ञों की भी नजर है। कृषि वैज्ञानिक डॉ अविनाश चंद बताते हैं कि इस समय सिंचाई की खासी जरूरत होती है। लेकिन सिंचाई करते समय किसान दो बातों पर ध्यान दें। पहली बात तो यह कि मौसम देख कर ही खेतों में पानी लगायें। क्योंकि कई बार सिंचाई के बाद बारिश भी हो जाती है। ऐसे में फसल गिर जायेगी और किसान को काफी नुकसान उठाना पड़ जायेगा। दूसरे खेत में पानी हल्का दिया जाना चाहिये। अधिक पानी नुकसानदायक साबित होगा। उन्होंने किसानों के लिये यह भी बताया कि तेज हवाओं के मौसम में उर्वरक या कीटनाशक का प्रयोग कतई न करें। उर्वरक से फसल बढ, जायेगी लेकिन कमजोर होगी।
तेज हवा और तापमान से सिर्फ गेहूं की खेती करने वाले किसान ही नहीं चिंतित हैं बल्कि फलों के राजा आम और लीची की फसल को लेकर भी किसानों के चेहरे उड़े हैं। यूपी, बिहार, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, उड़ीसा, महाराष्ट्र और गुजरात में आम की अच्छी फसल बड़े पैमाने पर होती है। वहीं बिहार के मुजफ्फर- पुर की लीची देश भर में मशहूर है। उप निदेशक उद्यान आर.एम शर्मा ने बताया कि जनवरी में किसानों को बागवानी में सिंचाई कर देनी चाहिये। उसी समय कीटनाशक का भी छिड़काव होना चाहिये। दूसरा छिड़काव जब फल चने के बराबर हो जायें तब करना चाहिये। बौर के समय कीटनाशक का छिड़काव अच्छा नहीं होता। ऐसा करने से परागण नहीं हो पाता जिससे फल कम कम हो जाते हैं। शर्मा ने आगे बताया कि सिंचाई और कीट प्रबंधन कर के आम की अच्छी फसल पाई जा सकती है। इस समय जब हवा तेज चलनी शुरू हो गई है, किसानों को सिंचाई पर ध्यान देने की जरूरत है। लेकिन जब तक फल चने के आकार के न हों तब तक सिंचाई से दहिया कही जाने वाली बीमारी की भी आशंका होती है। इसलिये विशेषज्ञों की सलाह को मानें।
-लेखक किसान सरोकार के प्रमुख संवाददाता हैं.