भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और चीन की यांगची नदी में जल का स्तर पिछले कई वर्षों से 'ठहराव पर है। लेकिन लंबे समय तक ऐसा संभव नहीं हो पाएगा। वैज्ञानिकों के अनुसार इन नदियों को पानी देने वाले ग्लेशियर धीरे-धीरे लुप्त होने की कगार पर हैं। पूरी दुनिया में नदियों के घटते जलस्तर के कारण वातावरण में बदलाव आना स्वाभाविक है।
इस साल बरसात के दिनों में जहां भारत और चीन के कई हिस्से बाढ़ की चपेट में रहे वहीं इन दिनों भारतीय उपमहाद्वीप में मानो आग बरस रही है। इस मौसम के अतिवादी रवैये से जीवन तो अस्तव्यस्त हुआ ही है पर्यावरण भी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया है। इस सबके पीछे वैज्ञानिकों के मुताबिक एकमात्र वजह है, ग्लोबल वार्मिंग। ग्लोबल वार्मिंग ने नदियों के जलस्तर का गणित बिगाड़ के रख दिया है। साल के ज्यादातर समय नदियों में कम रहने वाला जलस्तर पिघलते ग्लेशियरों और सूखती नदियों की कहानी कहता है। विशेषज्ञों का दावा है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते दुनिया के सघन आबादी वाले देशों में नदियों में लगातार पानी का स्तर घट रहा है। इन नदियों में उत्तरी चीन में पीली नदी, भारत में गंगा, पश्चिमी अफ्रीका में नाइजर और दक्षिण पश्चिमी अमरीका के पोलोराइडो में स्थित नदियों में जल का स्तर लगातार घट रहा है। इसके अलावा मृत सागर (डेड सी) में लगातार जल का स्तर घट रहा है। यदि उसके घटने का स्तर यही रहा तो 2050 तक या तो यह एक छोटे से तालाब में परिवर्तित हो जाएगा या पूरी तरह इसका अस्तित्व मिट जाएगा। मध्यपूर्व की नदियां सूख रही हैं। यह एक गंभीर चिंता का विषय है। जॉर्डन वैली में काम करने वाले जल विशेषज्ञ डूरियड महासमेह ने `टेलीग्राफ' में इस तथ्य का हवाला दिया था। उनके अनुसार दुनिया की सबसे मशहूर झील जिसका पर्यटन की दृष्टि से बेहद महत्व है और ऐसा माना जाता है कि वहां के पानी में चिकित्सीय गुण विद्यमान हैं।
उस जल में मौजूद खनिज लवण मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं। उस झील में भी जल का स्तर लगातार कम हो रहा है। इसकी लंबाई 1 कि.मी.कम हो गई है। यदि स्थिति यही रही तो 2050 तक यह झील पूरी तरह से सूख जाएगी। मृत सागर झील जॉर्डन, इजराइल और पश्चिम किनारे तक फैली है। इसके जल स्तर में लगातार कमी हो रही है। इसके घटते जल स्तर का मुख्य कारण है कि पहले इसमें जो पानी छोड़ा जाता था उस पानी को अब झील में छोड़ने की बजाय उसका इस्तेमाल औद्योगिक और कृषि कार्यों के लिए होने लगा है। नमकीन झील फिलहाल 67 कि.मी. लंबी और 18 कि.मी. चौड़ी है। वैज्ञानिकों द्वारा पूरी दुनिया में ताजे पानी की उपलब्धता में लगातार होने वाली घटोत्तरी को लेकर चिंता जताई जा रही है। नदियों पर बड़े-बड़े बांध बनाना, ग्लोबल वार्मिंग के चलते मानसून का अनियमित होना और धरती का तपना। ये तमाम वजह हैं जिसके कारण लगातार जलस्तर में कमी हो रही है। उत्तरी चीन की पीली नदी हो या भारत में गंगा नदी या फिर अमरीका की कोलोरोडो नदी, इन सबमें ताजे पानी की लगातार कमी हो रही है।
पूरी दुनिया में आबादी के बढ़ने के कारण भी इनका जलस्तर लगातार कम हो रहा है। विभिन्न अन्वेषण कर्ताओं ने 2004 में पिछले 50 वर्षों में 900 नदियों के जलस्तर का अध्ययन किया। इस अध्ययन में यह पाया गया कि नदियों में पानी के लगातार घटते जलस्तर के कारण पूरी दुनिया में समुद्र के जलस्तर में भी कमी आ रही है। इस घटते जलस्तर का मुख्य कारण नदियों पर बनने वाले बांध और कृषि के लिए जल का अधिकाधिक उपयोग भी एक बड़ा कारण है। अन्वेषणकर्ताओं ने नदियों में घटते जलस्तर के लिए पर्यावरण में होने वाले बदलावों को सबसे महत्वपूर्ण माना है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते तापमान में निरंतर बढ़ोत्तरी हो रही है जिसके कारण मानसून में लगातार अनियमितता बढ़ रही है। विभिन्न जलस्रोतों में वाष्पीकरण की तीव्र होने के कारण भी लगातार नदियों में जल की मात्रा घट रही है। पूरी दुनिया में बढ़ती आबादी के कारण ताजे पानी में होने वाली कमी की और ज्यादा बढ़ने की आशंका भी वैज्ञानिकों के लिए चिंता का एक बड़ा कारण है। दक्षिण एशिया में बड़ी नदी ब्रह्मपुत्र और चीन में यांगची नदी में पर्याप्त पानी रहता है। इन नदियों की विशालता का बड़ा कारण है हिमालय के ग्लेशियर के पिघलने से इनके जलस्तर में बढ़ोत्तरी होती रही है।
विशेषज्ञों के लिए चिंता का सबसे बड़ा कारण यह भी है कि भविष्य में यदि ग्लेशियर इसी गति से पिघलते रहे तो नदियों का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। मानव द्वारा यदि विकास के लिए इसी गति से बांधों का निर्माण किया जाना जारी रहा तो स्थिति भयावह हो सकती है। सिंचाई के लिए जल का उपयोग मानव के लिए आने वाले दिनों में एक बड़ी परेशानी का सबब बन सकता है। कुछ महीने पहले अमरीकन मेट्रोलॉजिकल सोसाइटी के जनरल में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार पानी की कमी से आने वाले दिनों में व्यक्ति को खाद्यान्न और पीने योग्य पानी दोनों की कमी से जूझना पड़ सकता है। इस रिपोर्ट के अनुसार नदियों का जलस्तर 2.5 से 1 प्रतिशत रह गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार 1970 के दशक से पर्यावरण में तेजी से बदलाव आया है। जिसके कारण पहाड़ों में पिघलने वाली बर्फ का स्तर लगातार बढ़ रहा है। बर्फ पिघलने के कारण विकसित देशों की नदियों में जलस्तर बढ़ गया है। हालांकि भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और चीन की यांगची नदी में जल का स्तर पिछले कई वर्षों से 'ठहराव पर है। लेकिन लंबे समय तक ऐसा संभव नहीं हो पाएगा। वैज्ञानिकों के अनुसार इन नदियों को पानी देने वाले ग्लेशियर धीरे-धीरे लुप्त होने की कगार पर हैं। पूरी दुनिया में नदियों के घटते जलस्तर के कारण वातावरण में बदलाव आना स्वाभाविक है। महासागर में यदि जल का स्तर इसी गति से घटता रहा तो उनके पानी में नमक की मात्रा में और ज्यादा वृद्धि होगी जिससे पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो सकता है।