पिलग्रिम लॉज में पहला क्रिसमस

Submitted by Shivendra on Mon, 11/18/2019 - 16:49
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नैनीताल एक धरोहर

पीटर बैरन 23 अक्टूबर, 1843 को पीलीभीत से चलकर 25 अक्टूबर को लोहाघाट होते हुए लोधिया (अल्मोड़ा) पहुँचे। 27 अक्टूबर को वापस लोहाघाट गए। एक नवम्बर को वहाँ से चले और अल्मोड़ा होते हुए 4 नवम्बर, 1843 तीसरी बार नैनीताल पहुँचे। उस समय नैनीताल में एक बहुत बड़ा किलेनुमा मकान बन रहा था। पाँच दूसरे बंगलों का निर्माण शुरू हो चुका था। पर कोई भी बंगला अभी पूरी तरह बनकर तैयार नहीं हुआ था। उस साल पाँच नवम्बर को नैनीताल की पहाड़ियों में खूब बर्फबारी हुई। इस बार बैरन 15 दिन तक नैनीताल में रुके, फिर लोहाघाट को चल दिए।

 

दो सप्ताह तक पहाड़ में विचरण करने के बाद बैरन थकान मिटाने के लिए 3 दिसम्बर 1843 को नैनीताल लौट आए। बैरन का मानना था कि इंसान कितना ही थका क्यों न हो, नैनीताल आते ही थकान दूर हो जाती है। 9 दिसम्बर को नैनीताल में जबरदस्त बर्फीला तूफान आया, जो 20 घंटे तक जारी रहा। तूफान की वजह से भवनों का निर्माण कार्य रोकना पड़ा था। सभी लोग नैनीताल छोड़कर मैदानी क्षेत्रों की और पलायन कर गए थे। कुछ दिनों बाद नैनीताल का मौसम तो साफ हो गया, पर सूखाताल की झील पूरी तरह जम गई थी। यहाँ तक कि नैनीताल की झील में भी बर्फ की एक परत जमा हो गई थी। बैरन के अनुसार नैनीताल के तालाब में जमीं बर्फ की परत इतनी मजबूत थी कि उसमें हाथी भी चल सकते थे। हर क्षण बदलते नैनीताल के मौसम के मिजाज को देख बैरन ने लिखा है कि- नैनीताल एक काँच की परत की तरह नाजुक है।

 

1843 में पीटर बैरन ने क्रिसमस का त्योहार अपने निर्माणाधीन बंगले पिलग्रिम लॉज में मनाया। तब तक पिलग्रिम लॉज के चार कमरे बन गए थे और उनके ऊपर छत डालने का काम पूरा हो गया था। 25 दिसम्बर, 1843 को पिलग्रिम लॉज में पीटर बैरन सहित छः पुरुषों और तीन महिलाओं ने एक साथ रात्रि भोज किया और रात में पटाखे जलाए। एक प्रकार से यह पीटर बैरन के गृह प्रवेश का भी जश्न था। 27 दिसम्बर को बैरन खुर्पाताल होते हुए मैदानी क्षेत्र को चले गए।

 

दिसम्बर 1843 तक नैनीताल में कोई भी मकान पूरी तरह बनकर तैयार नहीं हो पाया था। तालाब के पास कुछ नई नावें बनने लगी थीं। इस दौरान नैनीताल में बसने के इच्छुक अंग्रेज अपनी मनपसन्द जमीन का चयन कर पेड़ों पर खास निशान लगा जाते थे। कुछ सम्पन्न अंग्रेज उनके द्वारा चुनी गई जमीन की देखभाल के लिए चौकीदार भी रख जाते थे। चुनी गई जमीनों के निशानों को किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा मिटाना दंडनीय अपराध समझा जाता था। जमीन के चुनाव के बाद चयनित जमीन की लीज प्राप्त करने के लिए पूरे ब्योरे के साथ आवेदन-पत्र देना होता था। जमीन की लीज स्वीकृत होने के बाद ही निर्माण कार्य किया जा सकता था।

 

तब कुमाऊँ के ज्यादातर लोग पीटर बैरन को नैनीताल का मालिक मानने लगे थे। ज्यादातर लोगों की नजर में बैरन ही नैनीताल के मालिक थे। आमतौर पर पहाड़ के लोगों का बैरन से अन्य सवालों के अलावा एक सनातन सवाल यह भी होता था कि- क्या बैरन उन्हें रोजगार दे सकते हैं।