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जल स्रोत अभयारण्य विकास हेतु मार्गदर्शिका, 2002
खेतों में भू-आर्द्रता बनी रहने के कारण गाँव के किसान अपनी परम्परागत फसलों के साथ-साथ सब्जी उत्पादन करके अपनी आजीविका चलाते हैं। गाँव को ऊपरी तौर पर देख कर आश्चर्य होता है कि जो गाँव पेयजल के संकट से जूझ रहा हो वह गर्मियों में सब्जी उत्पादन कर रहा है। इस गाँव में गर्मी के मौसम में किसान 2-5 नाली भूमि में मिर्च, फूलगोभी, टमाटर आदि की खेती करते हैं तथा प्रति परिवार औसतन 5 से 6 हजार की सब्जियाँ प्रतिवर्ष बेचते हैं।
नैनीताल जिले के रामगढ़ ब्लॉक में समुद्र तल से 1600-1700 मीटर ऊँचाई पर बसा है-कफलाड़ गाँव। गाँव के पहाड़ की चोटी पर स्थित होने के कारण इस गाँव में जल स्रोतों की कमी है जिससे वर्ष भर जल संकट बना रहता है।इस गांव के ऊपर की भूमि में अनेक परम्परागत खाल विद्यमान हैं। इन खालों का निर्माण पीढ़ियों पूर्व गाँव के पूर्वजों ने किया था जिनका रख-रखाव आज भी ग्रामवासी करते आ रहे हैं।
इन खालों की नियमित सफाई व रख-रखाव के कारण इनमें वर्ष भर पानी रहता है। गाँव में इन खालों को लेकर यह कहावत प्रचलित है कि इन खालों में पानी कभी नहीं सूखता क्योंकि खालों का पानी सूखने से पहले ही वर्षा हो जाती है।
ऊपरी तौर पर देखने पर लगता है कि ग्रामवासी इन खालों का रख-रखाव अपने जानवरों की पेयजल आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिये करते हैं किन्तु ग्रामवासियों से चर्चा के उपरान्त इन खालों की उपयोगिता का दूसरा पहलू भी सामने आता है जो कि बहुत महत्त्वपूर्ण व गाँव के अस्तित्व से जुड़ा है वह है कृषि भूमि में भू-आर्द्रता का संरक्षण। इन खालों में वर्षा के पानी के संग्रहण के कारण नीचे की तरफ की कृषि भूमि में भू-आर्द्रता बनी रहती है।
खेतों में भू-आर्द्रता बनी रहने के कारण गाँव के किसान अपनी परम्परागत फसलों के साथ-साथ सब्जी उत्पादन करके अपनी आजीविका चलाते हैं।
गाँव को ऊपरी तौर पर देख कर आश्चर्य होता है कि जो गाँव पेयजल के संकट से जूझ रहा हो वह गर्मियों में सब्जी उत्पादन कर रहा है। इस गाँव में गर्मी के मौसम में किसान 2-5 नाली भूमि में मिर्च, फूलगोभी, टमाटर आदि की खेती करते हैं तथा प्रति परिवार औसतन 5 से 6 हजार की सब्जियाँ प्रतिवर्ष बेचते हैं।
ग्रामवासियों के अनुसार सब्जी पौध के रोपण के समय केवल 5-6 दिन तक ही पौधों को सिंचाई की आवश्यकता होती है जो कि वे निकटवर्ती जल स्रोतों, खालों से पूरी हो जाती है।
खालों से भूमि में निरन्तर बनी हुई भू-आर्द्रता के कारण बाद में इन रोपित पौधों को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।