पड़ाई धारा संरक्षण एवं संवर्धन-एक पहल

Submitted by Hindi on Thu, 09/03/2015 - 15:18
Source
जल स्रोत अभयारण्य विकास हेतु मार्गदर्शिका, 2002

वर्तमान में जल स्रोत के नियमित प्रबन्धन व रखरखाव से प्रत्येक परिवार को बिना इन्तजार किये शुद्ध पेयजल मिल रहा है तथा पानी के संग्रहण हेतु टैंक का प्रयोग करने से महिलाओं के समय की बचत हो रही है, साथ ही साथ पशुओं के पानी पीने की अलग से व्यवस्था करने से पशुओं को भी शुद्ध जल प्राप्त हो रहा है।

पड़ाई गाँव अल्मोड़ा जिले के धौलादेवी ब्लाक में स्थित एक छोटा से गाँव है जिसमें रहने वाले परिवारों की कुल संख्या 23 है। इस गाँव का एक मात्र जल स्रोत गाँव से तीन सौ मीटर नीचे की तरफ स्थित है। इस स्रोत पर पड़ाई के 23 परिवारों के अलावा निकटवर्ती गाँव खूना के 20 परिवार गर्मियों में पेजयल एवं अन्य घरेलू उपयोग हेतु निर्भर रहते हैं। ग्रामवासियों के अनुसार 50 वर्ष पूर्व यह स्रोत नौले के रूप में था जो कि भू-स्खलन से दब गया, जिसे बाद में खोद कर धारा बना दिया गया। किन्तु इस धारे की निरन्तर उपेक्षा एवं कुप्रबन्धन के कारण इसमें पानी का प्रवाह काफी कम हो गया था, जिससे गाँव में जल संकट काफी गहरा गया था। गाँव का एक परिवार जब अपने जानवरों को पानी पिलाकर लाता था तभी दूसरा परिवार अपने जानवरों को पानी पिलाने जा पाता था। स्रोत के आस-पास कीचड़ व गन्दगी हो जाने के कारण गर्मी के मौसम में अनेक बीमारियाँ फैल जाती थी।

गाँव में जल संकट को दूर करने के लिये पड़ाई की महिलाओं ने कस्तूरबा महिला उत्थान मण्डल, दन्या, के साथ मिलकर इस धारे के जीर्णोद्धार व रखरखाव का बीड़ा उठाया। गाँव की क्रियान्वयन समिति की देखरेख में दिसम्बर 2000 में जल स्रोत के संरक्षण व संवर्धन के लिये निम्न कार्य किये गयेः

1. स्रोत के संरक्षण के लिए गधेरे में दीवार, चैक डेम निर्माण व स्रोत के ऊपरी भूमि में बाँस, केला व उतीस के पौधों का रोपण।
2. स्वच्छ पेयजल हेतु स्रोत पर चैम्बर का निर्माण।
3. जल संग्रहण के लिए भण्डारण टैंक का निर्माण।
4. पशुओं के लिये स्वच्छ पानी हेतु अलग से ‘खुली’ निर्माण।
5. नहाने व कपड़े धोने के लिये फर्श निर्माण।

जल स्रोत के जीर्णोधार में कुल लागत 25,850 रुपये आई जिसमें से 15,400 रुपया संस्था द्वारा वहन किया गया जबकि 10,450 रुपये का कार्य ग्रामवासियों द्वारा किया गया। इस कार्य हेतु पड़ाई के 23 परिवारों ने 224 दिन का श्रमदान किया जिसमें से महिलाओं का श्रमदान 80 दिन का रहा। स्रोत का पुनर्निर्माण कार्य पूर्ण होने के उपरान्त महिला मंडल ने स्रोत के संरक्षण व रखरखाव हेतु निम्न नियम बनायेः

1. स्रोत के आस-पास मल त्याग करने, कूड़ा करकट फेंकने या स्रोत के प्रांगण में गन्दगी करने पर कम से कम 100 रु. जुर्माना।
2. शरारती तत्वों द्वार स्रोत की टंकी, चरी, फर्श आदि को नुकसान पहुँचाने वाले को नुकसान का 10 गुना जुर्माना किया जायेगा। जुर्माना न भरने पर महिला मण्डल अग्रिम कानूनी कार्यवाही करेंगी।
3. स्रोत का समस्त उपभोक्ता समूह समय-समय पर स्रोत की सफाई हेतु श्रमदान करेगें।

वर्तमान में जल स्रोत के नियमित प्रबन्धन व रखरखाव से प्रत्येक परिवार को बिना इन्तजार किये शुद्ध पेयजल मिल रहा है तथा पानी के संग्रहण हेतु टैंक का प्रयोग करने से महिलाओं के समय की बचत हो रही है, साथ ही साथ पशुओं के पानी पीने की अलग से व्यवस्था करने से पशुओं को भी शुद्ध जल प्राप्त हो रहा है। इस जल स्रोत का औसत जल प्रवाह वर्ष 2002 में 5 लीटर/मिनट मापा गया जोकि पूर्व की अपेक्षा अधिक है। ग्रामवासी अब अतिरिक्त जल का उपयोग सब्जी उत्पादन में करने लगे हैं।