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जल स्रोत अभयारण्य विकास हेतु मार्गदर्शिका, 2002
उत्तरांचल के मध्य हिमालयी क्षेत्रों के अधिकतर जनसंख्या बाहुल्य ग्रामों में तो वर्ष भर जल स्रोतों पर लम्बी कतारें देखी जा सकती है। कुछ जगहों पर गर्मियों में पानी 5 रू. से 25 रू. प्रति कनस्तर की दर से खरीदा जाता है। अधिकतर गाँवों में पानी आपसी द्वेष-वैमनस्य का एक महत्त्वपूर्ण कारण बन गया है। जल स्रोतों में पानी की कमी के कारण अधिकतर स्रोत जल प्रदूषण से ग्रस्त हो चुके हैं।
उत्तरांचल में असंख्य प्राकृतिक जल स्रोत विद्यमान हैं। अनादिकाल से ही ग्रामीण समुदाय अपनी जलापूर्ति नदियों, प्राकृतिक झरनों, स्रोतों, धारों व नौलों से करते रहे हैं। इस क्षेत्र में बसाहटें अधिकतर सदाबहार प्राकृतिक स्रोतों के इर्द-गिर्द बसी व विकसित हुई हैं। औपनिवेशिक काल से पूर्व जल स्रोतों (जैसे नौले, धारे, मंगरे इत्यादि) का स्वामित्व व प्रबन्धन व्यवस्था स्थानीय समुदाय के हाथों में था। पूर्व में इन प्राकृतिक जल स्रोतों का प्रबन्धन स्थानीय समुदाय द्वारा किया जाता था। जल स्रोतों के संरक्षण व प्रबन्धन की गौरवशाली संस्कृति विकसित थी जिसमें जल स्रोतों के प्रति अपार श्रद्धा थी, उन्हें पूजा स्थल के समान पवित्र माना जाता था तथा इन्हें प्रदूषित करने को पाप की संज्ञा दी जाती थी। स्थानीय समुदाय ने प्रकृति के साथ अपने पीढ़ी दर पीढ़ी के अनुभवों के आधार पर जल स्रोतों की प्रकृति का ज्ञान अर्जित किया और उन्हीं के अनुरूप परम्परागत जल संग्रहण व संरक्षण की पद्धतियाँ विकसित की थी जिससे वर्षभर जल स्रोतों में पानी बना रहता था।किन्तु औपनिवेशिक काल से संसाधनों पर राज्य की घुसपैठ और नियन्त्रण की प्रक्रिया शुरू हुई और इसके साथ-साथ इनके प्रबन्धन में जनता की हिस्सेदारी घटती चली गई। आजादी के बाद पाइप-लाइन संस्कृति के आने से लोगों का जल स्रोतों के साथ भावनात्मक रिश्ता धीरे-धीरे टूटने लगा और जल को सिर्फ व्यावसायिक वस्तु (Commodity) के रूप में देखा जाने लगा। परिणाम स्वरूप आज लोग पेयजल की साधारण सी जरूरत के लिए भी सरकार पर पूर्ण रूप से निर्भर हो चुके हैं। स्थानीय समुदाय और सरकार दोनों द्वारा जल स्रोतों की निरन्तर उपेक्षा के कारण जल स्रोतों से जल प्रवाह कम हुआ है औ कुछ स्रोत तो पूर्ण रूप से सूख गये हैं। इस कारण इन स्रोतों से बनाई गई अनेक पाईप-लाइन योजनायें जनता की जलापूर्ति करने में अक्षम साबित हुई हैं।
यह उत्तरांचल की विडम्बना है कि जल प्रचुर मात्रा में उपलब्धता के बावजूद पिछले कुछ दशकों से जल सम्बन्धी समस्यायें लगातार बढ़ी हैं। उत्तरांचल के मध्य हिमालयी क्षेत्रों के अधिकतर जनसंख्या बाहुल्य ग्रामों में तो वर्ष भर जल स्रोतों पर लम्बी कतारें देखी जा सकती है। कुछ जगहों पर गर्मियों में पानी 5 रू. से 25 रू. प्रति कनस्तर की दर से खरीदा जाता है। अधिकतर गाँवों में पानी आपसी द्वेष-वैमनस्य का एक महत्त्वपूर्ण कारण बन गया है। जल स्रोतों में पानी की कमी के कारण अधिकतर स्रोत जल प्रदूषण से ग्रस्त हो चुके हैं।