छत्तीसगढ़ के राजनांद गांव में स्वयं-सहायता समूह की महिलाओं ने जल संरक्षण की दिशा में प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किया है। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में हैंडपंपों और कुओं के व्यर्थ बह जाने वाले पानी को सहेजने के लिए स्थानीय स्वयं-सहायता समूहों की महिलाओं ने अपने बूते 20 हजार सोखता गड्ढे बनाए। यह गड्ढे न केवल जल स्रोतों को रिचार्ज कर रहे हैं, वरन जल-जमाव से होने वाली गंदगी और बीमारियों से भी लोगों को बचा रहे हैं।
डेढ़ से दो हजार रुपये में तैयार होने वाले सोखता गड्ढों को इन महिलाओं ने श्रमदान और खुद के खर्चे से बनवाया है। समूह की महिलाओं ने बीते सात-आठ साल में अब तक करीब चार करोड़ रुपये इस काम पर खर्च किए हैं। अब उनकी टीम छोटे नालों को बांधकर जलस्रोतों को सहेजने की बड़ी मुहिम शुरू करने की तैयारी में है।
नई दुनिया की खबर के मुताबिक जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में 18 हजार 401 सरकारी हैंडपंप हैं, जबकि कुओं की संख्या चार हजार से अधिक है। उपयोग के दौरान बड़ी मात्रा में हैंडपंप और कुओं का पानी गांव की कच्ची नालियों के जरिए बेकार बह जाता था और जलस्रोतों के निकट भी जमा होकर गंदगी का कारक बनता था।
मां बम्लेश्वरी फेडरेशन से जुड़ीं स्वयं-सहायता समूह की महिलाओं ने पानी की बर्बादी को रोकने के लिए करीब आठ साल पहले सोखता गड्ढा बनाने का अभियान शुरू किया था। पहले यह काम ग्राम पंचायतों के माध्यम होता था, लेकिन फंड न मिलने पर महिलाओं ने इसका बीड़ा खुद ही उठा लिया। एक हैंडपंप के पास बना सोखता गड्ढा एक दिन में चार सौ लीटर तक पानी को व्यर्थ होने से बचा रहा है। इस तरह इन 20 हजार गड्ढों से प्रतिदिन लाखों लीटर पानी बच रहा है।
हर जिले के लिए प्रेरक
एक सोखता गड्ढा तैयार करने में डेढ़ से दो हजार रुपये खर्च आता है। समूह से जुड़ी गांव की महिलाएं श्रमदान से इसे तैयार करतीं हैं। बोल्डर, पत्थर और ईंट के टुकड़ों का इंतजाम करने के बाद रेत का जुगाड़ करतीं हैं। अपने घर से कोयला लातीं हैं। 13 हजार 300 महिला स्वयं-सहायता समूह इस कार्य में जुड़ गए हैं।
इनमें शामिल महिलाओं की संख्या करीब दो लाख है। इसका नेतृत्व महिला सशक्तीकरण व समाजसेवा में उल्लेखनीय कार्यों के लिए पद्मश्री से सम्मानित फुलबासन यादव करतीं हैं। मई के दूसरे हफ्ते में मनाए जाने वाले महतारी दिवस यानी मदर्स डे से हर साल अभियान शुरू करतीं हैं और बारिश के पहले तक काम करतीं हैं।
इनका कहना है
मां बम्लेश्वरी फेडरेशन के पद्मश्री फुलबासन यादव का कहना है कि यह काम हमारे 13,300 महिला स्वयं-सहायता समूहों की दो लाख महिलाएं जिले में आठ साल से कर रही हैं। इस साल हालांकि कोरोना संकट के कारण हमारा अभियान गति नहीं पकड़ सका। शुरुआत में लोग हमारे अभियान को हल्के में ले रहे थे, लेकिन बाद में सब ने इसका महत्व समझा और महिलाओं के साथ गांव वाले भी इससे जुड़ने लगे।