चीन द्वारा प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये साल-दर-साल अपनाए गए उपायों की वजह से वहाँ की आबोहवा में सुधार हुआ है जबकि भारत का प्रदूषण स्तर पिछले दशक में धीरे-धीरे बढ़कर अधिकतम स्तर पर पहुँच गया है। चीन ने प्रदूषण से लड़ाई को सबसे जरूरी माना है और अपने यहाँ सभी विकास योजनाओं में पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी है। यहाँ “प्रदूषण के खिलाफ जंग” काफी संवेदनशील मुद्दा बन चुका है। पाँच-छः वर्ष पूर्व तक चीन में प्रदूषण की समस्या काफी गम्भीर थी, विशेषकर वायु-प्रदूषण की। घनी धुंध के कारण सर्दियों में पूर्वी चीन के स्कूल कई दिनों तब बन्द किये जाते थे। कई शहरों में धुंध की अधिकता से सूर्य के दर्शन नहीं हो पाते थे जिसे स्क्रीन पर लोगों को बताया जाता था। देश के 90 प्रतिशत शहरों की आबोहवा निर्धारित मानकों से ज्यादा थी एवं 74 बड़े शहरों में से केवल 08 में वायु प्रदूषण निर्धारित स्तर से कम था। वहाँ के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री चेन झू ने 2015 में कहा था कि यहाँ वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष लगभग 05 लाख लोगों की मौत समय पूर्व हो जाती है। प्रदूषण रोकथाम की असफलता पर न्यायालय ने भी एक नागरिक लीगुई झीन की याचिका पर सरकार की काफी आलोचना की थी। अन्ततः प्रदूषण की इस विकराल समस्या के समाधान हेतु सरकार ने लगभग 19 हजार करोड़ रुपए की योजनाएँ बनाई एवं उन पर अमल प्रारम्भ किया।
इन योजनाओं के तहत जो कार्य किये गए उनमें कारखानों का स्थानान्तरण, बन्द करना, उत्पादन कम करना, कोयले का कम उपयोग, बेकार वाहनों को सड़कों से हटाना एवं नए की बिक्री पर रोक, एअर प्यूरीफायर तथा ताजी हवा के गलियारे (विंड कोरीडोर, बनाना, अवशिष्ट पदार्थों के आयात पर रोक, वृहद वृक्षारोपण तथा वन-शहर (फॉरेस्ट-सिटी) की स्थापना आदि प्रमुख थे। चीन में औद्योगिक प्रदूषण सर्वाधिक होने से उसे नियंत्रण के ज्यादा प्रयास किये गए।
सरकार ने दावा किया कि देश के प्रमुख शहरों में वर्ष 2020 तक प्रदूषण 60 प्रतिशत तक कम किया जाएगा एवं अन्य शहरों में भी स्थापित मानकों अनुसार रखने के प्रयास किये जाएँगे। देश की राजधानी बीजिंग शहर सर्वाधिक प्रदूषित था। अत: वहाँ सबसे ज्यादा ध्यान दिया गया। वर्ष 2014 में शहर के आसपास के 392 कारखाने बन्द किये गए जिनमें सीमेंट, कागज, कपड़ा व रसायनों के प्रमुख थे। स्टील तथा एल्यूमिनियम के कारखानों में एक तिहाई उत्पादन कम करने के आदेश दिये गए। कारों के पार्ट्स बनाने वाली जर्मन की शेफलर कम्पनी भी सरकार की सख्ती से परेशान हो गई। सिमप्लांट फूड प्रोसेसिंग कारखाने पर उचित ढंग से प्रदूषण नियंत्रण नहीं करने पर लगभग चार करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया गया।
बीजिंग में ही वर्ष 2014 में बेकार पाँच लाख वाहनों को सड़क से हटाया गया एवं जनवरी 2018 से 553 वाहनों के माड्ल्स की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगाया गया। यहाँ प्रमुख बाजारों में छः साफ हवा के गलियारे (विंड-कोरीडोर) भी बनाए गए जहाँ आसपास से साफ हवा खिंचकर प्रवाहित की जाएगी। यहाँ के जोझियांग प्रान्त में एक रसायन का कारखाना ज्यादा प्रदूषण फैलाने के कारण 2009 में ही बन्द कर दिया गया था परन्तु फिर भी इसके आसपास दुर्गन्ध फैल रही थी। फैल रही इस दुर्गन्ध को रोकने हेतु सारी इमारत को पोलिएस्टर फाइबर के कपड़े से ढँका गया जिस पर करोड़ों रुपया व्यय हुआ। शांक्शी प्रान्त के झियान शहर में 330 फीट ऊँचा एअर-प्यूरीफायर लगाया गया।
अर्थ साइंस संस्थान के वैज्ञानिक इसका पूरा कार्य देखकर निरीक्षण कर रहे हैं। टावर की क्षमता एक करोड़ घनमीटर हवा प्रतिदिन शुद्ध करने की है एवं आसपास के 10 कि.मी. की हवा यह साफ कर सकता है। प्रारम्भिक परीक्षणों में पाया गया है कि टॉवर हवा की गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ स्मॉग को भी 15 से 20 प्रतिशत तक कम करता है। टॉवर की सारी कार्य प्रणाली सौर ऊर्जा से नियंत्रित है। वर्ष 2017 में चीन ने 55 गीगावाट की सौर क्षमता विकसित की है।
जुलाई 2017 में 24 प्रकार के अवशिष्ट- पदार्थों (वेस्ट प्रोडक्ट्स) के आयात पर प्रतिबन्ध लगाया गया। इसका कारण यह था कि इन पदार्थों की रिसाइकिल से जब कई वस्तुएँ बनाई जाती थी तो प्रदूषण के साथ-साथ वहाँ के मजदूरों के स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव होता था।
औद्योगिक प्रदूषण की रोकथाम के साथ-साथ वन सम्पदा बढ़ाने के भी प्रयास किये गए। देश की शान्त सीमाओं (जहाँ युुद्ध की गतिविधियाँ नहीं होती हैं) पर कार्यरत 60 हजार सैनिक को वर्ष 2018 में 84 हजार वर्ग कि. मी. के क्षेत्र में पौधे लगाकर उनकी देखभाल की जिम्मेदारी प्रदान की गई है।
सैनिक भी इससे प्रसन्न हैं कि उन्हें बर्फीले क्षेत्रों से दूर जाकर एक नया कार्य करने का अवसर मिल रहा है। वर्तमान में चीन में 21 प्रतिशत वन क्षेत्र है जिसे 23 प्रतिशत तक बढ़ाने का प्रयास है। गुआंगशी प्रान्त के लुइझ शहर के पास वन नगर (फॉरेस्ट-सिटी) बनाया जा रहा है। लगभग 175 हेक्टर में बनाए जाने वाले इस नगर में 30-35 हजार लोग रह सकेंगे। इस वन नगर में 100 प्रजाति के 10 लाख पेड़-पौधे लगाए जाएँगे जो लगभग 10 हजार टन कार्बन डाइऑक्साइड तथा 50 टन से ज्यादा धूल के कणों को कम करेंगे।
पिछले वर्षों में चीन द्वारा किये गए प्रयासों के परिणाम भी अब सामने आने लगे हैं। वहाँ की सरकार ने बताया कि पिछले शीतकाल में बीजिंग में 53 प्रतिशत वायु प्रदूषण में कमी का आकलन किया गया जिससे आसपास नीला आकाश दिखाई देने लगा। आसपास के 27 शहरों में भी वायु प्रदूषण 35 प्रतिशत कम हुआ। चीन सरकार की इस रिपोर्ट को पर्यावरण की अन्तरराष्ट्रीय संस्था ग्रीनपीस ने भी अपना आकलन कर इसे सही बताया है। चीन द्वारा प्रदूषण नियंत्रण के सारे प्रयासों की विशेषता यह रही कि उसने बेरोजगारी बढ़ने तथा जीडीपी कम होने की चिन्ता छोड़कर केवल पर्यावरण सुधार पर ध्यान दिया।
हमारे देश के भी ज्यादातर शहरों में वायु प्रदूषण की समस्या गम्भीर स्वरूप ले चुकी है अतः यहाँ भी चीन के समान प्रयास जरूरी है। शायद चीन से ही प्रेरणा लेकर हमारे देश में भी अभी-अभी 100 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में प्रदूषण के विरुद्ध महा अभियान प्रारम्भ करने की घोषणा की गई है। इसके तहत आगामी 03 एवं 05 वर्षों में क्रमशः प्रदूषण 35 एवं 50 प्रतिशत कम करने के प्रयास किये जाएँगे।
ये प्रयास तीन स्तरों पर होंगे। प्रथम-प्रदूषण के खिलाफ कार्य कर रहे संगठनों में समन्वय बनाना। द्वितीय-बच्चों एवं युवाओं में जागरुकता लाना एवं तृतीय-केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा बनाए दलों द्वारा प्रदूषण पर कानूनी निगरानी रखना। वैसे अभी 16 फरवरी को दिल्ली के विज्ञान-भवन में एनर्जी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (टेरी) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने भी कहा है कि देश पर्यावरण बचाने हेतु प्रतिबद्ध है एवं इसके लिये सरकार सारे जरूरी कदम उठाएगी।
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