प्रकृति की अनमोल देन वृक्ष (Importance of Trees)

Submitted by Hindi on Fri, 07/15/2016 - 13:14
Source
अनुसंधान (विज्ञान शोध पत्रिका) अक्टूबर 2014

वृक्ष प्रकृति की एक अनमोल देन है और यही वजह है कि भारत में वृक्षों को प्राचीन काल से ही पूजा जाता रहा है। आज भी यह प्रथा कायम है। वृक्ष हमारे परम हितैसी निःस्वार्थ सहायक अभिन्न मित्र हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में वृक्षों का अत्यधिक महत्व है। वृक्षों के बिना अधिकांश जीवों की कल्पना भी नहीं की जा सकती। वृक्षों से ढके पहाड़, फल और फूलों से लदे वृक्ष, बाग, बगीचे मनोहारी दृश्य उपस्थित करते हैं और मन को शांति प्रदान करते हैं। वृक्षों से अनेकों लाभ हैं जैसे वृक्ष अपनी भोजन प्रक्रिया के दौरान वातावरण से कार्बन डाइ ऑक्साइड लेते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं जिससे अनेक जीवों का जीवन संभव हो पाता है। वृक्षों से हमें लकड़ी, घास, गोंद, रेजिन, रबर, फाइबर, सिल्क, टैनिन, लैटेक्स, हड्डी, बांस, केन, कत्था, सुपारी, तेल, रंग, फल, फूल, बीज तथा औषधियाँ प्राप्त होती हैं। वृक्ष पर्यावरण को शुद्ध करने का कार्य करते हैं और प्रदूषण को दूर करते हैं। ध्वनि प्रदूषण को दूर करते हैं। वायु अवरोधक की तरह काम करते हैं और इस तरह आँधी तूफान से होने वाली क्षति को कम करते हैं। वृक्ष की जड़ मिट्टी को मजबूती से पकड़ कर रखती है जिससे भूमि कटान रुकता है।

अन्यथा पहाड़ों पर से मिट्टी बह कर मैदानी क्षेत्रों में आती है और वहाँ वह नदियों के धरातल में जमा होकर नदियों की गहराई को कम कर देती है परिणाम स्वरूप मैदानी इलाकों में अधिक वर्षा होने पर जल्दी बाढ़ आती है। वृक्ष वर्षाजल को धरा पर रोकते हैं और वातावरण को नम रखते हैं। वृक्ष वर्षाजल को तेजी से बहने से रोकते हैं जिससे जल पृथ्वी में नीचे तक पहुँच पाता है और भूमिगत जल स्तर बढ़ाता है। वृक्ष सूर्य के ताप से जीवों को बचाते हैं। अनेकों जीव इसकी गोद में शरण पाते हैं और इसके फल, फूल, जड़, तना तथा पत्तों से अपना पोषण करते हैं। इस बात को यूँ भी समझ सकते हैं-

वृक्षों को नहि काटिये रहे सदा ये ध्यान। निर्जीव नहीं ये बसते इनमें प्राण।।
शुद्ध वायु को करते जीव अनेक हैं पलते। पाकर आश्रय इन पर फूलते फलते।।
वृक्ष सदा ही देते क्या बदले में कुछ लेते। भूस्खलन को रोक रहे ये वृक्ष हमारे।।
वर्षा है निर्भर इन पर इतना सब जान रहे। फिर भी आँखें मूंदे इनको काट रहे।।
आवश्यकता जितनी हो उतना ही लेना। नियम प्रकृति का शाश्वत वेद सिखाते।।


वृक्षों की सुरक्षा के साथ पर्यावरण की रक्षा तो हो ही जाती है उसका आवश्यक संतुलन भी बना रहता है। आज के आधुनिक युग में शहरीकरण तथा औद्योगीकरण के फलस्वरूप वृक्षों का उपयोग बढ़ा है। आज वृक्षों का उपयोग कृषि जगत में ऊर्जा एवं ईंधन के श्रोत में भवन, पुल, रेल तथा साज सजावट इत्यादि के निर्माण में किया जाता है। जैसे-जैसे आधुनिक सभ्यता का विकास होता गया उसके साथ-साथ आदमी की इच्छायें, लोभ, लालच विस्तार पाते गये। अपने लोभ, लालच और स्वार्थों की पूर्ति एवं धन लिप्सा ने मनुष्य का ध्यान वनों की ओर आकर्षित किया और स्वार्थी मनुष्य ने अपने परम हितैशी वृक्षों का सफाया करना आरम्भ कर दिया। फलस्वरूप वन कटते चले गये और हरे-भरे घने पहाड़ नग्न हो गये। परिणाम स्वरूप अनेकों वनस्पतियां, औषधीय पौधे मुरझाकर जड़ मूल से समाप्त होने लगे। साथ ही अनेकों पशु-पक्षियों की जातियाँ, प्रजातियाँ रहने का ठौर ठिकाना न पाकर विलुप्त होते गये।

जब एक वृक्ष कटता है तो वह केवल वृक्ष ही नहीं कटता उससे मिलने वाली सभी चीजें तथा उस पर उगने वाली वनस्पतियाँ, जड़ी बूटियाँ, औषधीय तत्व, पेड़ों पर रहने वाले पशु पक्षी, कीड़े मकोड़े सभी का ह्रास होता है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई का मूल कारण बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण तथा औद्योगीकरण है। उपरोक्त समस्याओं की वजह से मनुष्य की आवश्यकताएं बढ़ी हैं। स्वार्थी मनुष्य के कृत्यों से आज पर्यावरण को खतरा पैदा हो गया है। यदि समय रहते इस ओर विशेष ध्यान न दिया गया तो आने वाले समय में

1. पेड़ों से प्राप्त होने वाली समस्त चीजों की कमी
2. बाढ़
3. मृदानाश
4. प्रदूषण
5. तापमान में वृद्धि
6. सूखा
7. तमाम भूमि का मरूस्थल में बदलना
8. अनियंत्रित वर्षा
9. जल संकट
10. ध्रुवीय बर्फ के पिघलने से समुद्र तटीय क्षेत्रों का जलमग्न होना
11. जीवन संकट
12. बीमारियाँ

तथा अन्य अनेकों समस्यायें सामने आयेंगी। अत: यह कहना उचित ही होगा-
वृक्ष
दाता
मौन
जड़
असहाय नहीं
किंचित
भ्रम था
मानव का टूटा!

वृक्ष पर्यावरण का अति महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। असुरक्षित पर्यावरण धरती पर रहने वाले सभी जीवों के लिये प्राणलेवा साबित हो सकता है। अत: आवश्यक है कि पर्यावरण को संतुलित और सुरक्षित बनाया जाए। हरे-भरे जंगल इस बात का प्रमाण हैं कि वहाँ जलवायु मिट्टी तथा वहाँ के सभी जीव जन्तुओं में आपसी तालमेल है तथा वे स्वाभाविक जीवन-यापन कर रहे हैं। इसी ताल को बिगाड़ने का कार्य इंसान करता आया है। उसने न केवल जीव जन्तुओं के साथ अन्याय किया बल्कि जाने अनजाने स्वयं का भी अहित किया है।

प्रसन्नता की बात यह है कि आज वन संरक्षण का कार्य वैज्ञानिकों, सरकार तथा स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा किया जा रहा है। अत: आशा की जाती है कि हालात और बिगड़ने से पहले ही उन पर काबू पा लिया जायेगा।

संदर्भ
फतेअली, लइक (2004) ‘‘अवर एनवायरनमेंट’’, पृष्ठ सं 1-137, डायरेक्टर, नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया, न्यू दिल्ली।

दास, आरआर (2005) ‘‘कॉन्सेप्टस ऑफ एनवायरनमेंटल साइंस’’, पैरागॉन इंटर नेशनल पब्लिशर्स, नई दिल्ली, पृ. 1-227।

अंजनेयूलू वाई. (2005) ‘‘इन्ट्रोडक्शन टू एनवायरनमेंटल सांइस’’, बीएस पब्लीकेशन, हैदराबाद, पृ. 1-745।

उदय शंकर अवस्थी
वनस्पति विज्ञान विभाग, बप्पा श्री नारायण वोकशनल महाविद्यालय, लखनऊ-226001, यूपी, भारत