राजस्थान के थार मरुस्थल के बीस प्रतिशत भूभाग से ही सात लाख मेगावाट सौर आधारित बिजली पैदा की जा सकती है जो भारत की वर्तमान विद्युत क्षमता से अधिक है। ऐसे में सौर ऊर्जा पर ध्यान नहीं देकर परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने का कोई तुक नहीं है। वैसे भी परमाणु उर्जा संयंत्रों से जो कचरा निकलता है, उसके निपटारे की तकनीक आज के विज्ञान के पास नहीं है। वह रेडियोधर्मी विकिरण युक्त कचरा ढाई लाख वर्षों तक संयंत्र के पास ही पड़ा रहने वाला है। चुटका फिर उजड़ने वाला है। पहली बार नर्मदा घाटी के तीस विशालकाय बाँधों में पहला बरगी बाँध की वजह से उजड़ा था। बाँध से 162 गाँव उजड़े थे जिनमें 70 प्रतिशत आबादी गोंड आदिवासियों की है। इस बार परमाणु ऊर्जा परियोजना की गाज इन पर गिरने वाली है। बरगी बाँध विस्थापित संघ के राजकुमार सिन्हा के अनुसार आसपास के 54 गाँव बिजली परियोजना का विरोध कर रहे हैं। 18 ग्रामसभाओं ने बाकायदा प्रस्ताव पारित कर अपना विरोध दर्ज किया है। परमाणु संयंत्र से ग्यारह वर्ग किलोमीटर के दायरे में विकिरण का खतरा होगा, बरगी जलाशय पर निर्भर करीब दो हजार मछुआरों की आजीविका संकट में होगी।
परियोजना से प्रभावित होने वाले सभी गाँव संविधान की पाँचवीं अनुसूची में हैं। पंचायत (अनुसूचित जातियों पर विस्तार) अधिनियम-1996 के अनुसार विस्थापन के पूर्व ग्रामसभा की सहमति आवश्यक है। वनाधिकारी कानून-2006 के अन्तर्गत भी वनक्षेत्र के ग्रामवासियों के दावों का निराकरण होने के पूर्व उनका विस्थापन नहीं किया जा सकता। लेकिन राज्य प्रदूषण बोर्ड ने स्थानीय आदिवासी आबादी के विरोध के बावजूद भारी पुलिस बल की तैनाती के बीच 17 फरवरी 2014 को जन सुनवाई की कवायद पूरी की। इसके पहले भारी जन दबाव में जन सुनवाई स्थगित कर देनी पड़ी थी।
इस परमाणु संयंत्र में पहले चरण में 700 मेगावाट क्षमता की दो इकाईयाँ लगेगी। बाद में इसे बढ़ाकर 2800 मेगावाट करने की योजना है। प्रारम्भिक लागत साढ़े सोलह हजार करोड़ बताई गई है। परमाणु संयंत्र के लिये सात करोड़ घनमीटर से अधिक पानी हर वर्ष निकाला जाएगा। संयंत्र को ठंडा करके वापस आया पानी यूरेनियम के रेडियोधर्मी विकिरण से युक्त होगा। इससे जलाशय प्रदूषित होगा, मछलियों और वनस्पति पर प्रतिकूल प्रभाव होगा। विकिरण से दूषित जल पीने और उसके मछलियों को खाने वाले लोगों के सामने गम्भीर स्वास्थ्यगत समस्याएँ पैदा होंगी।
संयंत्र से निकलने वाले पानी का तापमान समुद्र के तापमान से पाँच डिग्री अधिक होगा जिससे जलाशय में मौजूद जीव-जन्तुओं का खात्मा हो सकता है। लेकिन पर्यावरणीय प्रभाव रिपोर्ट इस बारे में पूरी तरह खामोश है।
बरगी बाँध विस्थापित संघ के राजकुमार सिन्हा ने बताया कि प्रभावित गाँवों के कुछ लोग सरजमीनी हालत को देखने के लिये रावतभाटा परमाणु संयंत्र का भ्रमण करने गए। उन्हें पता चला कि संयंत्र के आसपास 12 किलोमीटर क्षेत्र में प्रवेश प्रतिबन्धित है और 35 किलोमीटर के दायरे में कैंसर, विकलांगता, नपुंसकता एवं पशुओं में बीमारियाँ फैली हैं। प्रस्तावित चुटका परमाणु परियोजना से निकला रेडियोधर्मी वाष्प 50 किलोमीटर के दायरे में फैलेगा और बरसात में खेतों के गिरेगा। वहाँ उगने वाली फसल पर रेडियोधर्मिता का प्रभाव होगा। उसे खाने वाले मनुष्य और पशु बीमार होंगे।
चुटका के आसपास घने जंगल है। यह इलाका जैव विविधता के लिहाज से काफी समृद्ध माना जाता है। कई तरह के जीव-जंतु कीट-पतंग इसमें पलते हैं। आदिवासी सदियों से इस जंगल का संरक्षण करते आये हैं। उनकी रोजमर्रा की जिन्दगी इस पर निर्भर है। परमाणु संयंत्र से जंगल नष्ट हो जाएँगे। इसकी भरपाई बनावटी हरित पट्टी और फूलों की क्यारियों से नहीं हो पाएगी जैसाकि दावा किया जा रहा है। इसी तरह का दावा भूकम्प संवेदी क्षेत्र में होने का है।
सबसे बढ़कर जिस समय चुटका परमाणु परियोजना को योजना आयोग की मंजूरी मिली थी, तब सौर ऊर्जा से बिजली पैदा करना महंगा पड़ता था। आज स्थिति बदल गई है। अब सौर ऊर्जा परमाणु ऊर्जा से सस्ती पड़ती है। वर्तमान कीमतों पर वैकल्पिक उर्जा स्रोतों का तुलनात्मक अध्ययन करने से यह बात साफ हो जाता है।
राजस्थान के थार मरुस्थल के बीस प्रतिशत भूभाग से ही सात लाख मेगावाट सौर आधारित बिजली पैदा की जा सकती है जो भारत की वर्तमान विद्युत क्षमता से अधिक है। ऐसे में सौर ऊर्जा पर ध्यान नहीं देकर परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने का कोई तुक नहीं है। वैसे भी परमाणु उर्जा संयंत्रों से जो कचरा निकलता है, उसके निपटारे की तकनीक आज के विज्ञान के पास नहीं है। वह रेडियोधर्मी विकिरण युक्त कचरा ढाई लाख वर्षों तक संयंत्र के पास ही पड़ा रहने वाला है।