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जनसत्ता, 16 मार्च 2015
जल प्रदूषण के बारे में न्यायमूर्ति भण्डारी का कहना था कि आज देश का 70 फीसद पानी प्रदूषित और विषाक्त हो चुका है। जो पीने लायक तो है नहीं। हमारे पर्यावरण को भी बुरी तरह तबाह कर रहा है। संसाधनों के बेजा दोहन और जंगलों के अंधाधुंध कटान से स्थिति विकट हुई है। पर्यावरण संरक्षण का एक ही उपाय है कि हम टिकाऊ विकास की राह पर चलें।
नई दिल्ली। अन्तरराष्ट्रीय अदालत के जज न्यायमूर्ति दलबीर भण्डारी ने कहा है कि भारत का सुप्रीम कोर्ट पर्यावरण संरक्षण के अभियान की लम्बे समय से अगुवाई कर रहा है। लेकिन अफसोस की बात है कि विभिन्न सरकारी एजेंसियों ने अदालत की हिदायतों को वक्त पर और कारगर तरीके से लागू नहीं किया। अगर किया होता तो अब तक पर्यावरण के कई मुद्दे सुलझ जाते। राजधानी में वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों पर अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन का समापान करते हुए उन्होंने यह बात कही।राष्ट्रीय हरित पंचाट के केन्द्रीय पर्यावरण मन्त्रालय, भारतीय विधि संस्थान और व्यावसायिक संगठन फिक्की के सहयोग से इस सम्मेलन का आयोजन किया गया है। न्यायमूर्ति भण्डारी ने मोटे तौर पर वायु और जल प्रदूषण के मुद्दों को ही ज्यादा रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि स्वस्थ रहते हुए जिन्दा रहने के लिए शुद्ध वायु जितनी जरूरी है उतना ही मानवता के अस्तित्व को बचाने के लिए स्वच्छ पेयजल स्रोत। सुप्रीम कोर्ट के 1998 के एक फैसले का उन्होंने जिक्र किया, जब डीटीसी को दिल्ली में सीएनजी बसें चलाने की हिदायत दी गई थी। उन्होंने कहा कि इस फैसले पर अदालत की काफी आलोचना हुई थी। लेकिन परिणाम बेहद सुखद रहे हैं। और राजधानी में वायु प्रदूषण का स्तर नियंत्रित हो पाया है। हालाँकि इसमें सुधार की अभी भी काफी गुंजाइश है।
जल प्रदूषण के बारे में न्यायमूर्ति भण्डारी का कहना था कि आज देश का 70 फीसद पानी प्रदूषित और विषाक्त हो चुका है। जो पीने लायक तो है नहीं। हमारे पर्यावरण को भी बुरी तरह तबाह कर रहा है। संसाधनों के बेजा दोहन और जंगलों के अंधाधुंध कटान से स्थिति विकट हुई है। पर्यावरण संरक्षण का एक ही उपाय है कि हम टिकाऊ विकास की राह पर चलें। सुर्पीम कोर्ट के जज न्यायमूर्ति पीएस ठाकूर ने कहा कि देश की सर्वोच्च अदालत और राज्यों के हाइकोर्ट मिलकर पर्यावरण संरक्षण के आन्दोलन को गति दे रहे हैं। उन्होंने प्रवर्तन से जुड़ी एजेंसियों के और संवेदनशील होने की जरूरत भी बताई। उन्होंने कहा कि विकसित देशों को भी पर्यावरण संरक्षण के प्रति संतुलित नजरिया अपनाना चाहिए।
केन्द्रीय उर्जा मन्त्री पीयूष गोयल ने कहा कि सरकार पर्यावरण संरक्षण की गरज से ही देश में नवीकृत और गैर प्रम्परागत ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना चाहती है। उन्होंने माना कि कोयले जैसे ईंधन से भी पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है। न्यायपालिका के रुख की सराहना के साथ ही गोयल ने यह शिकायत भी की कि कई बार न्यायपालिका के अतिरेक और बेजा पाबन्दियों से स्थिति और बिगड़ जाती है। महान्यायवादि रंजीत कुमार और राष्ट्रीय हरित पंचाट के अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार के अलावा पर्यावरण मन्त्रालय के विशेष सचिव शशि शेखर ने भी सम्मेलन को सम्बोधित किया।