पर्यावरण पूरी दुनिया के लिये चिंता का विषय

Submitted by Hindi on Mon, 08/29/2011 - 09:13
Source
पर्यावरण डाइजेस्ट, 16 अगस्त 2011

पर्यावरण केवल इंदौर की ही नहीं, पूरे देश और दुनिया की चिंता का विषय है। भू-स्खलन, भूकंप, बाढ़ और पेड़ों की कटाई के कारण सारी दुनिया आज पर्यावरण के बढ़ते खतरे के समाने खड़ी है। हिमालय से हिंद महासागर तक नदियों में बढ़ते प्रदूषण के दुष्प्रभाव के खतरे भी बढ़ रहे हैं। बाढ़ से तबाही के कारण देश में प्रतिवर्ष सैकड़ों लोग मारे जा रहे हैं। यह सब पहाड़ों के कटाव और पेड़ों की कटाई के कारण हो रहा है। अब भी समय है जब हम पर्यावरण और प्रकृति को सहेजने का संकल्प लेकर इस खतरे को टाल सकते हैं क्योंकि पर्यावरण, पेड़ और जल हम सबके जीवन का आधार है।

ये विचार हैं प्रख्यात पर्यावरणविद् चंडीप्रसाद भट्ट के, जो उन्होनें पिछले दिनों इन्दौर में सेवा सुरभि द्वारा आयोजित पर्यावरण परिदृश्य - आप और हम जैसे सामयिक विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए। पर्यावरण डाइजेस्ट के संपादक डॉ. खुशालसिंह पुरोहित भी इस संगोष्ठी के प्रमुख हिस्सा थे। पत्रकार और संस्था के संरक्षक राजेश चेलावत एवं शहर के पर्यावरणविद् ओ.पी.जोशी भी विशेष रूप से उपस्थित थे। प्रारंभ में संस्था की ओर से संयोजक ओमप्रकाश नरेड़ा, अतुल सेठ एवं अनिल मंगल आदि ने अतिथियों का स्वागत किया। संचालन किया कुमार सिद्धार्थ ने। अंत में आभार माना संस्था के संयोजक ओमप्रकाश नरेड़ा ने। संस्था की ओर से सर्वश्री अतुल सेठ, कमल कलवानी, अरविंद जायसवाल, मुकुंद कारिया, अरिवंद बागड़ी, अनिल मंगल आदि ने अतिथियों की आगवानी की।

अभिभाषक अनिल त्रिवेदी प्रो. सरोज कुमार, पूर्व पर्यावरण सचिव रामेश्वर गुप्त, बाबू भाई महिदपुरवाला सहित अनेक प्रबुद्धजन इस संगोष्ठी में उपस्थित थे। संगोष्ठी की शुरुआत डॉ. पुरोहित ने की। उन्होंने कहा कि डग-डग रोटी पग-पग नीर वाले मालवा क्षेत्र में अब सड़कों को चौड़ा करने नाम पर इतनी जगह घेर ली गई है कि पेड़ लगाने की जगह नहीं बची है। इन्दौर में भी यही हालात है। पेड़ की उपेक्षा का आलम यह है कि उसकी हालत घर के बुजुर्ग की तरह हो गई है। शहर में पेड़ों के बजाय प्लास्टिक के पौधे टांगे जा रहे हैं जो बाद में कचरे के ढेर में बदल जाते हैं। जरूरी यह है कि हम अपनी दिनचर्या में भी इस बात को शामिल करें कि पर्यावरण को बचाने या बर्बाद करने के लिए हम कितने जिम्मेदार हैं। धरती हम सबकी है। मालवा सात नदियों का मायका है। सबसे बड़ी चंबल नदी है और सबसे छोटी क्षिप्रा। सेवा सुरभि की सुगंध अब शहर और प्रदेश से निकलकर सारे देश में फैल रही है। पर्यावरण के प्रति इंदौर की चेतना अनुकरणीय है।
 

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