पृथ्वी पर अग्नि युग का आगाज

Submitted by Shivendra on Fri, 12/06/2019 - 09:57
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डाउन टू अर्थ, दिसम्बर 2019

फोटो - Hindustan

पतझड़ का एक और मौसम, और अधिक आग, और ज्यादा शरणार्थी और उनके खाक हुए घर। कैलिफोर्निया के लिए आग की लपटें पतझड़ का पर्याय बन चुकी हैं। जंगलों में भड़क रही यह अनियंत्रित आग तबाही को निमंत्रण दे रही है। इसकी लपटें पूरे इलाके को निगल रही हैं। लेकिन, अगर इंसानों की बात करें तो उनकी लगाई आग भी ऐसी घटनाओं  एक बड़ी वजह है।

आधुनिक समाज पथरीले इलाकों को जला रहा है, जहाँ कभी मौजूद रहा जैव ईंधन आज जीवाश्म के तौर पर कोयले, गैस और तेल में तब्दील हो चुका है। अब इनके लिए हरे-भरे इलाकों को भी जलाया जा रहा है। दावानल की इन घटनाओं के पीछे जलवायु परिवर्तन भले ही एक स्पष्ट कारक नजर आता हो, लेकिन यह सिर्फ जलवायु परिवर्तन का असर नहीं है। आधुनिक सभ्यता जीवाश्म ईधन पर निर्भरता के दौर से गुजर रही है। ऐसे में औद्योगिक समाज के लोगों को रहन-सहन और आग के इस्तेमाल के उनके तौर-तरीके भी दावानल जैसी घटनाओं पर असर डालते हैं। जलवायु परिवर्तन के बिना भी आग की यह समस्या उतनी ही गम्भीर होगी। अमरिकी भूमि एजेंसियों ने 40 से 50 साल पहले आग को लेकर नीतियों में सुधार किए, लेकिन कुछ जगहों के अलावा इस पर पर्याप्त काम नहीं हुआ, जिससे लक्ष्य पूरे नहीं हो सके। पथरीली भूमि को खुदाई करके नंगा कर दिया गया है, जिससे अब वह जैव परत के नीचे नहीं रही।

वास्तव में खनन के बाद यह पथरीली परत जैव परत को ढंक लेती हैं। वहीं, ये दोनों प्रकार की आग जिन तरीकों से आपस में सम्पर्क में आती हैं, वह कभी प्रतिस्पर्धात्मक होते हैं, तो कभी सहयोगात्मक। कई सारे दावानल भड़काने वाले बिजली के तारों की तरह ये दोनों आग भी एक-दूसरे से टकरा रही हैं, जिनके घातक परिणाम दिखाई दे रहे हैं।

आग की संरचना

अग्नि के इतिहासकार के तौर पर मैं जानता हूँ कि इसके पीछे कोई एक ही वजह नहीं होती। लपटें अपने परिवेश को संश्लेषित करती हैं। आग बिना ड्राइवर की उस कार की तरह है, जो ढलान वाली सड़क पर अपने साथ आस-पास की सारी चीजों को साथ में लुढ़काते हुए चलती है। कभी उस कार की तरह ही इसे जलवायु परिवर्तन के तीखे मोड़ का सामना करना पड़ता है, तो कभी इसके सामने गाँव और शहर को जोड़ने वाले मुश्किल चौराहे जैसी परिस्थितियाँ मौजूद होती हैं। कई दफा दुर्घटनाओं के बाद सड़कों पर पड़ी रह गई पेड़ों की शाखाएँ, खर पतवार, या फिर आग के बाद पैदा हुए वातावरण दावानल को भड़काने में अपनी भूमिका निभाते हैं। जलवायु परिवर्तन इसे और बढ़ावा देने वाले कारक के तौर पर काम करता है।

जाहिर है कि सबसे ज्यादा ध्यान इसी पर जाता है, क्योंकि यह वैश्विक स्तर पर घटित हो रहा है और इसका प्रसार आग की लपटों से परे महानगरों, सामूहिक विनाश और ऐसे ही अन्य प्रभावों तक दिखाई देता है। लेकिन सिर्फ जलवायु परिवर्तन ही इन विशाल दावानलों की इकलौती वजह नहीं है जैसे जलवायु में बहुत से घटक समाहित हैं, ठीक उसी तरह आग के पीछे भी कई कारक काम करते हैं। एक-दूसरे पर इनके प्रभाव के चलते इनमें से किसी एक को दोषी ठहराना काफी मुश्किल काम है। बल्कि, आग के हर रूप पर गौर करें और उसे सूचना स्रोत के तौर पर देखें। आधुनिक काल में जब इंसानों ने जैविक ईंधन की जगह जीवाश्म ईंधन जलाना शुरू किया, तो हालात और नाजुक हो गए।

इस बदलाव ने ‘पायरिक संक्रमण’ की शुरुआत की, जो काफी हद तक औद्योगीकरण के साथ होने वाले जनसांख्यिकीय परिवर्तन की तरह है जिसमें इंसानों की जनसंख्या पहले बढ़ती है, फिर घटती है। आग के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है। पुराने प्रज्वलन स्रोतों और ईंधन के होते हुए भी नए का पता चलता रहता है। संयुक्त राज्य में इसी बदलाव की वजह से आग की वह भयंकर लपटें उठीं, जो आबाद बस्तियों से होकर गुजरी। यह आग हाल के दशकों की तुलना में कहीं बड़ी और घातक परिणामों वाली है। जमीन की सफाई और पेड़ों के अवशेष ने लगातार ऐसे अग्निकांडों को जन्म दिया। लघु हिमयुग के अन्तिम दशकों, यानी 19वीं सदी के आखिर व 20वीं सदी की शुरुआत में ऐसी घटनाओं में काफी बढ़ोतरी हुई।

यह आग के कहर का वह दौर था, जिसने राज्य प्रायोजित संरक्षण कार्यक्रमों और जंगलों में लगने वाली आग से निपटने के लिए सरकारों को प्रेरित किया। इसी दौरान, भट्टियों में मौजूद आग को देखकर सबसे पहले वनवासियों और फिर दूसरों में भी यह धारणा फैली कि जंगलों में भड़कने वाली आग को कैद किया जा सकता है। आखिरकार, तकनीकी प्रतिस्थापना या कहें कि बदलावों (मोमबत्तियों की जगह आए बिजली के बल्बों पर गौर करें) और सक्रिय नियंत्रण कार्यक्रमों के चलते खुले में आग की मौजूदगी कम हुई।

इस तरह, आग की उपस्थिति उस स्तर तक गिर गई है, जहाँ यह अब आवश्यक पारिस्थितिक कार्य भी नहीं कर पा रही है। इस बीच, समाज ने अपने आस-पास जीवाश्म ईंधन को पहचाना और जंगलों में छिपी आग की अनदेखी करते हुए पथरीले इलाकों में खनन शुरू कर दिया। इतना ज्यादा जीवाश्म ईंधन जला दिया गया कि प्राचीन पारिस्थितिकीय सीमाएँ उसका भार नहीं सह पा रही हैं। जंगलों में मौजूद ईंधन जमा होकर खुद को व्यवस्थित करता रहता है। जलवायु पर इसका असर नहीं पड़ता है। जब आग की लपटें लौटती हैं, जिन्हें लौटना ही है, तो वह दावानल बनकर आती हैं।

पाइरोसिन युग में स्वागत है

नजरिए को थोड़ा और विस्तार दें तो आप कल्पना कर पाएंगे कि पृथ्वी के अग्नि युग में प्रवेश करने की घटना बहुत हद तक प्लाइस्टोसीन के हिम युगों जैसी है, जब इसकी वजह से बर्फ की परतों, बरसाती झीलों, परिहिमानी प्रक्रियाओं वाले मैदानों, सामूहिक विनाश और समुद्र के स्तर में परिवर्तन जैसी घटनाएँ हो रही हैं। यह एक ऐसा युग है, जिसमें आग आदि प्रवर्तक और प्रमुख घटना, दोनों ही है यहाँ तक कि जलवायु इतिहास भी आग के इतिहास का एक हिस्सा बन गया है। मानवता की आग को इस्तेमाल करने की क्षमता एंथ्रोपोसीन युग का परिचायक है, जो सिर्फ मानवयी हस्तक्षेप का ही नहीं, बल्कि मानव प्रजाति के आग पर एकाधिकार के जरिए होने वाले एक विशेष प्रकार के हस्तक्षेप का भी परिणाम है।

आग के इन दो क्षेत्रों के परस्पर सम्पर्क का अधिक अध्ययन नहीं किया गया है। इंसान के आग के इस्तेमाल के तौर-तरीकों को बमुश्किल पारम्परिक पारिस्थितिकी विज्ञान में शामिल किया गया है। दावानल के विपरीत औद्योगिक आग पूरी तरह से इंसानों के स्वार्थी रवैये का नतीजा है। इसलिए यह क्षेत्र पारिस्थितिकीय विज्ञान की सीमाओं से परे ही रहा है। हालांकि, दहन के नए दायरों को मानवीय बुद्धिमत्ता उतना ही संभाल सकती है जितना कि प्रकृति इसके उत्सर्जन को। फिर भी लौकिक दहन के वे दो खंड, पृथ्वी पर आग के लिए आधारभूत प्रजाति यानी मानवता में उसी तरह विलीन हो रहे हैं, जैसे अलग-अलग अग्निकुडों से निकला धुआं एक संवहनीय स्तम्भ में खींचा चला जाता है। उनका यह लेन-देन इस ग्रह को फिर से आकार दे रहा है।

विकसित दुनिया में औद्योगिक दहन के द्वारा कृषि, वातावरण में निर्माण, परिनगरीय समायोजन और वनभूमि के संरक्षण की व्यवस्था की जाती है। ये सभी दावानल के लिए सबसे उपयुक्त सामान हैं। यहाँ तक कि समाज भी पम्प, इंजन, विमान और वाहनों के रूप में औद्योगिक आग से लैस दल-बल के साथ ही दावानल से मुकाबला करता है। आग के इन दो क्षेत्रों के बीच का यह सम्पर्क सिर्फ यही तय नहीं करता कि क्या जलना चाहिए था, लेकिन नहीं जला। इससे आग की राह बदल जाती है। अगर आप प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सभी तरह के प्रभावों पर गौर करेंगे, तो पाइरोजियोग्राफी असामान्य रूप से अग्नि के हिम युग की तरह लगेगी। इन प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रभावों में, जल रहे क्षेत्रों और उन क्षेत्रों, जिन्हें जलाए जाने की जरूरत है, के साथ ही दूसरी जगहों पर भी वॉटरशेड-एयरशेड को हो रहे नुकसान,जैवक्षेत्र की अनावृत्ति, जलवायु परिवर्तन की तीव्रता में बढ़ोत्तरी, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि, प्रजातियों की विलुप्ति, मानव जीवन और आवासों का विघटन आदि शामिल हैं। इस आग के धुएँ में ऐसे युग का आकार-प्रकार पहले से ही दिखने लगा है। यदि आपको संदेह है, तो बस कैलिफोर्निया से पूछ लें।

(लेखक एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज में एमेरिटस प्रोफेसर हैं। यह लेख द कन्वर्सेशन से विशेष अनुबंध के तहत प्रकाशित)

लेखक - स्टीफन पाइन

सोर्स - डाउन टू अर्थ, दिसम्बर 2019

 

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