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डॉ. दिनेश कुमार मिश्र की पुस्तक 'दुइ पाटन के बीच में'
आज की तारीख में पश्चिमी कोसी नहर कुछ चुनिन्दा लोगों की रोजी-रोटी का जरिया है जिसमें इंजीनियर, ठेकेदार, ईंट भट्ठों के मालिक, निर्माण सामग्री के सप्लायर्स आदि और उनके माध्यम से, मुमकिन है, छोटे-बड़े राजनीतिज्ञ आदि फलते-फूलते हैं। किसानों के हित में काम करने वाले सभी लोगों का वर्तमान और भविष्य सब कुछ सुरक्षित है जबकि किसानों के हक में केवल भविष्य के वायदे हैं।
पश्चिमी कोसी नहर परियोजना (दरभंगा) ने इस नहर का पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन 2000 में पूरा किया है। इसमें नहर से होने वाली सिंचाई, उससे पैदा होने वाली समृद्धि, जमीन के नीचे के पानी की सतह पर कोई भी प्रभाव न पड़ने की भविष्यवाणी, बहुत से इलाकों की इस नहर की खुदाई के कारण बाढ़ से मुक्ति, नहर के किनारे वृक्षारोपण (लागत 56.44 करोड़ रुपये), नहर का पूरा काम 2002 के अन्त तक पूरा कर लिए जाने का दावा, इत्यादि बहुत सी अच्छी-अच्छी बातों की ओर संकेत किया हुआ है।यह दावे और वायदे किसी भी उस आदमी को प्रभावित करने के लिए काफी हैं जो कि इस क्षेत्र से, परियोजना के कार्य-कलाप से और इसकी समस्या से पूरा-पूरा अनजान हो। इस रिपोर्ट में एक जगह यह भी लिखा हुआ है कि, ...”(पश्चिमी कोसी नहर) के कमान क्षेत्र में किसानों द्वारा नहर के पानी का आवश्यकता से अधिक उपयोग किये जाने के कारण मच्छरों का उत्पादन बढ़ गया है जिसके लिए सरकार को जरूरी कदम उठाने चाहिये वरना मलेरिया और फाइलेरिया नहर के कमान क्षेत्र में फिर बड़े पैमाने पर फैलेगा।’’ (चेक लिस्ट पृ. टप्प्द्ध। जिस नहर से सिंचाई के लिए पानी ही न मिलता हो उस नहर से किसान इतनी सिंचाई करने लगें कि उससे मलेरिया और फाइलेरिया फैलने लगे तो इस अनर्गल बात का क्या जवाब हो सकता है? जाहिर है कि इस तरह के अध्ययन दफ्तर में ही बैठ कर पूरे कर लिये जाते हैं और यह मान कर किये जाते हैं कि इन रिपोर्टों को कोई पढ़ेगा नहीं।
अगर कहीं कुछ हुआ है तो यह नहर के कारण पैदा हुये जल-जमाव से है और इसके लिए पश्चिमी कोसी नहर का अवैज्ञानिक और अपूर्ण निर्माण जिम्मेवार है। इस रिपोर्ट में नहर के बांधों पर पहले से लगे शीशम के सूखते पेड़ों का कोई जि़क्र नहीं है मगर 56.44 करोड़ रुपये के वृक्षारोपण की बात जरूर है। नहर के बालू से पटे रहने का भी कोई जिक्र नहीं है और न ही तीस साल से ज्यादा से बन रही इस नहर से मूल अनुमान (13.49 करोड़ रुपये) से 53 गुने से ज्यादा पैसा खर्च कर देने के बाद और अनुमानित खर्च 67 गुना हो जाने पर किसी के भी चेहरे पर कहीं कोई शिकन दिखाई पड़ती है। 1975 में विधायक तेज नारायण झा को इसलिए पसीना आता था कि योजना की लागत पाँच-छः गुना बढ़ जायेगी।
इस रिपोर्ट में सेन्ट्रल ग्राउण्ड वाटर बोर्ड, भारत सरकार की भी एक रिपोर्ट संलग्न है जो कि सम्भवतः 2000 में तैयार की गई है। इस रिपोर्ट में एक जगह लिखा है कि, ‘‘... पश्चिमी कोसी नहर का क्षेत्र के भू-जल पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। इस इलाके में प्रस्तावित नहर के माध्यम से बाहर से पानी लाया जायगा जो कि यहाँ की वर्तमान फसल पद्धति की जरूरतों के दुगुने से भी ज्यादा है। इस आयातित पानी का कुछ हिस्सा सिंचाई के जरिये जमीन के अन्दर चला जायेगा और दूसरे स्रोतों से भी जमीन के अन्दर पानी जाता रहेगा और भू-जल की सतह ऊपर उठेगी। इस बात की गणना की गई कि इस परियोजना को पूरा कर लिए जाने के बाद अगर नहर अपनी आधी क्षमता पर भी काम करती है तब भी, भविष्य में पूरे इलाके में जल-जमाव फैलेगा। यह भविष्यवाणी भारत सरकार की ही एक संस्था ने की है। यह कथन किसी गैर-जिम्मेदार नागरिक या एन.जी.ओ. का नहीं है। रिपोर्ट ने भू-जल के समेकित उपयोग की सिफारिश इस इलाके के लिए की है।
पश्चिमी कोसी नहर से सिंचाई का भविष्य
हमने देखा है कि इस नहर की खुद की सुरक्षा अपने आप में बहुत बड़ा प्रश्न है। 1987 में एक बार भुतही बलान ने अपने तटबन्धों को तोड़ कर इस नहर को पाट दिया था और कई वर्षों तक नहर बन्द रही थी। जब तक इस संकट से उबरा जाता तब तक दुबारा उसने 1998 में नहर को ऐसा तोड़ा और बालू से पाटा कि तब से इस स्थल के नीचे सिंचाई बन्द है। भविष्य में भी जब-जब नहर इन कारणों से टूटेगी या जल-जमाव के कारण काटी जायगी, तब-तब उस स्थान के नीचे लम्बे समय के लिए सिंचाई बन्द रहेगी। यह एक ध्रुव सत्य है।
इसके बाद यह भी तय है कि यह नहर प्रायः उसी तरह काम करेगी जैसे पूर्वी मुख्य नहर कर रही है। उससे भिन्न होने का कोई कारण नहीं है क्योंकि इलाके की टोपोग्राफी, पानी का स्रोत, जमीन का ढलान, नहर का अलाइनमेन्ट, नहर की योजना बनाने वालों से लेकर बाकी के इंजीनियर, ओवरसियर, सर्किल इन्सपेक्टर, अमीन यहाँ तक कि जनता और किसान, उनकी कार्य संकृति, फसल पद्धति इत्यादि सारी चीजें दोनों नहरों में एक जैसी हैं। तब अगर पश्चिमी कोसी नहर में भी जल-जमाव वाले क्षेत्र का रकबा सिंचित क्षेत्र से ज्यादा हो तो किसे आश्चर्य होगा? पश्चिमी कोसी नहर में भी पानी बाद में आये और परची पहले तो नया कुछ क्या होगा?
पूर्वी कोसी मुख्य नहर को अगर किसान अररिया या सुपौल में काट देते हैं तो यहां मधुबनी में बरदेपुर और भलनी में क्यों नहीं काटेंगे? सिल्ट इजेक्टर के बावजूद अगर पूर्वी कोसी मुख्य नहर अपनी पफुल-सप्लाई डेप्थ तक बालू से पट गई तो पश्चिमी कोसी नहर में ऐसा होने से कौन रोक पायेगा? फिर इतनी मेहनत और मशक्कत के बाद अगर पूर्वी कोसी मुख्य नहर अपने मूल लक्ष्य से 16-18 प्रतिशत पर काम कर रही है तो पश्चिमी कोसी नहर बहुत सक्षम रूप से काम करेगी तो 60,000 हेक्टेयर में सिंचाई करेगी-ऐसा सोचने में गलत क्या है? आज की तारीख में पश्चिमी कोसी नहर कुछ चुनिन्दा लोगों की रोजी-रोटी का जरिया है जिसमें इंजीनियर, ठेकेदार, ईंट भट्ठों के मालिक, निर्माण सामग्री के सप्लायर्स आदि और उनके माध्यम से, मुमकिन है, छोटे-बड़े राजनीतिज्ञ आदि फलते-फूलते हैं। किसानों के हित में काम करने वाले सभी लोगों का वर्तमान और भविष्य सब कुछ सुरक्षित है जबकि किसानों के हक में केवल भविष्य के वायदे हैं।