पशु-पक्षियों को आपदाओं का सहज नैसर्गिक पूर्वाभास होता है

Submitted by Hindi on Tue, 02/07/2012 - 12:55
Source
नैनीताल समाचार, सितम्बर 2011
विकसित सभ्यता के इस दौर में ऐसा लगता है, जैसे मनुष्य प्रत्येक प्रकार की विपदाओं से निपटने में पूरी तरह सक्षम है। जबकि ऐसा है नहीं। पहले जब मनुष्य प्रकृति के घनिष्ठ सम्पर्क में रहता था, तब उसे शायद आने वाली विपदाओं का पूर्वाभास हो जाता था। पशु-पक्षियों में आज भी इस तरह की क्षमतायें देखी जाती हैं। जरूरत है कि उनकी इस क्षमता का उपयोग किया जाये। हमारे अध्ययन बतलाते हैं कि भूकम्प से पूर्व पशु-पक्षी असामान्य व्यवहार करते हैं, जैसे-

भूकम्प से पहले घरेलू पशु-पक्षी अपने स्थान से आजाद होने की कोशिश करते हैं और स्वतंत्र होकर भागने लगते हैं; कुत्ते जोर-जोर से भौंकने लगते हैं; बिल्लियाँ रोने लगती हैं; कौए अपने घोंसले छोड़ कर हवा में उड़ने लगते हैं और भयंकर क्रंदन करते रहते हैं तथा साँप और चूहे अपने अपने बिलों से बाहर आ जाते हैं।

इस पूर्वाभास को कुछ घटनाओं के रूप में समझा जा सकता है-


घटना-1: सन् 1998 में उत्तरकाशी में भूकम्प आया था। भूकम्प से पहले रात के लगभग 2 बजे एक सज्जन अपने सरकारी कार्य में लगे हुये थे। अचानक बहुत से कौओं के चिल्लाने के कारण उनकी एकाग्रता खंडित हो गई। बाहर आकर उन्होंने देखा तो पाया कि अन्यान्य अनेक चिड़ियायें भी चीं-चीं करके आसमान में उड़ रहीं हैं। 10 मिनट पश्चात् धरती की सतह के नीचे बुलडोजर जैसी किसी भारी मशीन के चलने की गड़गड़ाहट हुई। फिर धरती ने डोलना शुरू कर दिया। उन सज्जन को मालूम पड़ गया कि भूकम्प आने वाला है। समय पर सावधान होने से वे अपने परिवार और पड़ौसियों की प्राणरक्षा कर सके और बहुत सारी क्षति को बचा सके।

घटना-2: अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह में सुनामी के आने से पहले ही अधिकतर जानवर ऊँचाई वाले क्षेत्रों में सुरक्षित पहुँच चुके थे। सुनामी में कोई भी स्वस्थ जानवर मृत अवस्था में नहीं मिला। श्रीलंका की सरकारी समाचार विज्ञप्ति के अनुसार वहाँ मानवीय नुकसान अवश्य हुआ, लेकिन मुख्य जंगल (रिजर्व) में समुद्री लहरें 35 मील तक अन्दर आ जाने के बावजूद पशु-पक्षी नहीं मरा। माला नेशनल पार्क के हाथी, सियार, हिरण एवं मगरमच्छ सुनामी आने से पहले उच्च स्थानों पर चले गये। श्रीलंका में रोज समुद्र के किनारे घूमने वाले पालतू जानवरों ने सुनामी से पहले समुद्र की ओर जाना बंद कर दिया। दक्षिणी भारत में कुडुलोर जिले में भैसों, बकरियों, भेड़ों ने अपने रहने के स्थानों से भागना शुरू कर दिया और फ्लेमिंगो पक्षी ने वहाँ से उड़कर ऊँचे स्थान पर शरण ले ली। अण्डमान निकोबार द्वीप पर पाषाणकालीन सभ्यता के 40 लोग समय पर उच्च स्थानों पर जाने से सुरक्षित रह पाये।

घटना-3: ब्रिटिश शासन काल में एक बार बहुत तेज वर्षा हो रही थी और ऐसा लग रहा था कि बदायूँ जिले में गंगा नदी के किनारे रहने वाले महात्मा ‘हरिबाबा‘ के द्वारा गंगा पर बनवाया गया कच्चा बाँध बह जायेगा। नदी में प्रवाह लगातार बढ़ रहा था। लोग गाँव छोड़ कर सुरक्षित स्थान की ओर जाने लगे। लेकिन यह तय कर पाना असम्भव था कि पानी कितनी ऊँचाई तक चढ़ेगा। तब एक बुजुर्ग व्यक्ति ने चींटियों की एक कतार को देखा, जो अण्डे मुँह में दबाये नीचे से ऊपर जा रही थीं और एक निश्चित ऊँचाई पर जाकर रुक जाती थीं। उसी को सुरक्षित ऊँचाई मान कर वहाँ पहुँच गये और बच गये।

घटना-4: थाईलैंड में एक ग्रामीण ने देखा कि समुद्र के किनारे घास चर रहे भैंसों का एक झुण्ड अचानक सिर उठाकर, अपने कान सीधे कर समुद्र की ओर देखने लगा। फिर उसने मुड़ कर दौड़ना शुरू कर दिया। उनके पीछे-पीछे ग्रामीण भी भागे और मरने से बच गये।

घटना-5: टिहरी बांध के विस्थापितों के एक गांव में एक बारात के आगमन सा आभास होता था। जिस घर के सामने जाकर बारात का शोर बन्द हो जाता, वहाँ किसी व्यक्ति की मौत हो जाती थी। इस घटना का पूर्वाभास वहाँ के कुत्ते-बिल्लियों को भी हो जाता था और वे उस घर के सामने दो-तीन दिन पहले से रोना शुरू कर देते थे।

घटना-6: गुजरात भूकम्प के दौरान एक महिला को उसके कुत्ते ने साड़ी पकड़ कर खींचा और घर से बाहर निकलने को विवश कर दिया। जैसे ही महिला बाहर आयी, भूकम्प से मकान भरभरा कर गिर पड़ा। गुजरात में भूकम्प आने से ठीक पहले कई स्थानों पर गायों ने जोर-जोर से रंभाना प्रारम्भ कर दिया था।

इन घटनाओं से लगता है कि पशु-पक्षियों को निश्चित रूप से आने वाली विपत्तियों की जानकारी होती है। चीन, ग्रीस, तुर्की, जापान आदि देशों में यह अनुसंधान चल रहा है कि कैसे इस सहज ज्ञान का उपयोग किया जाये। इंडोनेशिया में जंगली चीतों के संरक्षण पर कार्य कर रहीं डेब्बी मार्टियर इस बात पर कोई आश्चर्य नहीं करतीं कि सुनामी से कोई भी पशु-पक्षी प्रभावित नहीं हुआ। उनके अनुसार आपात स्थितियों, हवा में दबाव की स्थितियों में परिवर्तन आता है और इस परिवर्तन से ही पशु-पक्षी आने वाली आपदा को महसूस करते हैं।