पटना की हवा जहरीली, 15 साल पुराने वाहन सड़कों पर

Submitted by RuralWater on Mon, 01/11/2016 - 11:16
कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रस ऑक्साइड साँस की नली को प्रभावित कर देता है। धुआँ से सीओपीडी भी हो सकता है। इसलिये घर से निकलते हुए मॉस्क पहनें। धुआँ से सीओपीडी भी हो सकता है। इसलिये घर से निकलते समय मॉस्क पहनें। यदि सीने में तकलीफ़ हो तत्काल जाँच कराएँ। प्रदूषण बोर्ड के सचिव एके ओझा ने कहा कि अनियोजित निर्माण कार्यों, सड़कों की खुदाई और बालू आदि वस्तुओं को ढँके बगैर ढोना आदि भी हवा में धूलकण बढ़ने के कारण हैं। पटना की हवा ज़हरीली हो गई है। वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर को पार कर गया है। प्रदूषण बोर्ड ने बिना देर किये राज्य सरकार और विभाग को परामर्श पत्र जारी करके कहा है कि अब देर हुई तो गम्भीर नतीजे भुगतने होंगे।

दिवाली के अगले 15 दिनों तक पटना की हवा की अवस्था का विश्लेषण किया गया तो प्रदूषण बोर्ड के होश उड़ गए। दोबारा एक दिसम्बर से 15 दिसम्बर तक विश्लेषण किया गया है।

दिसम्बर के आरम्भ में जो आँकड़े आये वे नवम्बर के आँकड़ों के समान हैं। दिवाली के बाद से नवम्बर के अन्त तक हवा में धूलकण की मात्रा 400 माइक्रोन प्रति घन मीटर से नीचे नहीं उतरा। जबकि केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण परिषद ने धूलकण की मात्रा 100 माइक्रोन प्रति घन मीटर रखा है।

धूलकणों में जहरीले रसायन अर्थात सल्फर और नाइट्रोजन के ऑक्साइड मिले होते हैं। तारामंडल के पास ऑटोमेटिक एयर मानिटरिंग स्टेशन ने हर 15 मिनट पर वायु प्रदूषण को लेकर जो रिपोर्ट दी, उसके आधार पर ही प्रदूषण बोर्ड ने विश्लेषण किया।

चिन्ताजनक यह भी है कि इस बार दिवाली की रात 10 बजे से 11 बजे तक धूलकण की मात्रा मानक से करीब 17 गुना अधिक पाई गई। एक घंटे के लिये अधिकतम 1688 माइक्रोन प्रति घन मीटर धूलकण वायु में तैरते रहे।

प्रदूषण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण के इस स्तर पर होने का बड़ी आबादी के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर होगा। वायु प्रदूषण सूचकांक (एयर क्वालिटी इंडेक्स) का 400 से ऊपर रहना चिन्ताजनक है। बोर्ड के अध्यक्ष सुभाष चन्द्र सिंह ने कहा कि वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर को देखते हुए मुख्य सचिव को परामर्श-पत्र भेजा गया है।

प्रतिलिपि वन एवं पर्यावरण सचिव को दी गई है। वायु प्रदूषण सूचकांक (एक्यूआई) की गणना ‘स्वसन योग्य ठोस धूल कणों की मात्रा’ के आधार पर की जाती है। ऐसे धूल कण साँस होकर आदमी के शरीर के भीतर जाते हैं। इन धूलकणों में सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन के ऑक्साइड शामिल हैं।

हवा धीरे-धीरे पीएम 2.5 माइक्रोन से प्रदूषित होने लगी है। बोर्ड ने सरकार को सलाह दी है कि पन्द्रह साल से अधिक चले डीजल वाहनों को पटना की सड़कों से हटाया जाये।

हवा में धूल की अधिक मात्रा से साँस की जटिल बीमारी-क्रोनिक ऑब्स्ट्रक्टिव लंग डीजीज हो सकती है। लेकिन उसमें अगर पीएम 2.5 माइक्रोन हो तो सीधे मौत हो सकती है। विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ. संजय कुमार ने कहा कि पहले यह बीमारी धूम्रपान करने वालों को पकड़ती थी। पर बाद में ऐसे लोग प्रभावित होने लगे जो अधिक धूल भरे माहौल में रहते है।

साँस लेने में कठिनाई होती है। दमा जैसी हालत हो जाती है। साँस लेने में कठिनाई की वजह से मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ. बसन्त सिंह के अनुसार हवा में धूलकणों (आरएसपीएम) की मात्रा अधिक रहने पर कार्डियों वैकुलर प्रोबलम्स हो सकते हैं। हृदय गति का असामान्य ढंग से तेज होना आदि समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

अगर फौरन इलाज शुरू नहीं हो पाता तो जल्दी ही हालत हाथ से बाहर निकल जाती है। इसका सर्वाधिक असर दमा, एन्फ्लूएंजा, फेफड़ा या हृदय रोगियों और बच्चों व बुढ़ों पर होता है। पीएमसीएच के चेस्ट रोग विशेषज्ञ डॉ अशोक शंकर सिंह के अनुसार वायु प्रदूषण से साँस की नली में संक्रमण का खतरा रहता है।

कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रस ऑक्साइड साँस की नली को प्रभावित कर देता है। धुआँ से सीओपीडी भी हो सकता है। इसलिये घर से निकलते हुए मॉस्क पहनें। धुआँ से सीओपीडी भी हो सकता है। इसलिये घर से निकलते समय मॉस्क पहनें।

यदि सीने में तकलीफ़ हो तत्काल जाँच कराएँ। प्रदूषण बोर्ड के सचिव एके ओझा ने कहा कि अनियोजित निर्माण कार्यों, सड़कों की खुदाई और बालू आदि वस्तुओं को ढँके बगैर ढोना आदि भी हवा में धूलकण बढ़ने के कारण हैं। लेकिन सबसे अधिक प्रदूषण वाहन जनित है।

पटना की हवा जहरीली हुई है तो इसके लिये व्यावसायिक वाहन ज़िम्मेवार हैं। सड़कें संकरी होने के कारण वाहनों की रफ्तार कम होती है। सड़कों पर वाहनों का भारी दबाव बना रहता है। एक आँकड़े के अनुसार शहर के 16 किलोमीटर के दायरे में 16 हजार 993 व्यावसायिक ऑटो और 421 बसें प्रतिदिन चलती हैं। 100 ऐसी बसें हैं जो 15 साल से अधिक पुरानी हैं।

फिर भी सड़कों पर चल रही हैं। निजी वाहनों की संख्या भी बेतहाशा गति से बढ़ी है। उनका दबाव सड़कों पर अधिक होता है। सड़कों पर बेतरतीब ढंग से चलते और पार्क हुए वाहनों की वजह से सड़कों पर आवाजाही की गति कम हो जाती है। वाहनों की गति धीमी होने के कारण धुआँ और धूलकण वायु में आसानी से घुलते रहते हैं।

सड़कों की सफाई नहीं होने से धूल की परतें जमी रहती हैं, वाहनों की आवाजाही से उड़कर हवा में मिलकर लोगों को बीमार करती हैं। व्यावसायिक वाहनों के संचालन में 15 वर्ष की उम्र सीमा की परवाह नहीं की जाती। फिटनेस जाँच के बाद वाहन के व्यावसायिक इस्तेमाल की अनुमति दे दी जाती है।

परिवहन से सम्बन्धित नियमों का पालन नहीं करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का प्रावधान नहीं है। जुर्माने की राशि तय है, उसका भुगतान करके वाहन फिर सड़क पर आ जाता है।

गाँधी मैदान और उसके आसपास का खुला इलाक़ा भी वायु प्रदूषण का शिकार हो गया है। दिन में चलना लोगों के लिये मुश्किल हो गया है। गाँधी मैदान और उसके बाहर सड़क के किनारे धूल की मोटी परत बिछी हुई है। गाँधी मैदान में नए गेट बनाने के दौरान 60 से अधिक पेड़ काटे गए थे। लेकिन उसके बदले पेड़ पौधे लगाने की कवायद तेज नहीं हो पाई है।