पश्चिम बंगाल के पश्चिमी हिस्से में छोटानागपुर पहाडि़यों की श्रृंखला का प्रसार है। यहां की भूस्थिति ऊबड़-खाबड़ है। पहाडि़यों के ऊपर पेड़-पौधों का कोई निशान नहीं है और ये बिल्कुल बंजर हैं। यहां की मिट्टी में कंकड़ हैं और इसके पानी सोखने की क्षमता बहुत कम है। वार्षिक वर्षा का स्तर 1200 से 1400 मिलीमीटर के बीच है, लेकिन पूरे वर्ष में 2 महीने की अवधि के भीतर ही वर्षा होती है। बाकी बचा हुआ पूरा वर्ष सूखा रहता है जो सूखे जैसी स्थिति को बढ़ाता है। पूरा अर्द्ध सूखा क्षेत्र एक फसली क्षेत्र है जो वर्षा पर निर्भर करता है। पानी की अनुपस्थिति में 8-9 महीने के दौरान कोई भी फसल नहीं हो सकती। बारिश के मौसम में होने वाली फसल भी अब जलवायु में हालिया परिवर्तन के चलते बाधित हो रही है।
इसलिए अधिकतर भूमि लंबे समय से प्रयोग में नहीं लाई गईं। खाद्यान्न की कमी के चलते पुरुष और महिलाएं काम की तलाश में अपने पड़ोसी जिलों में चले जाते हैं।
तालाब की खुदाई मुश्किल हैं और छिपी हुई चट्टानों के चलते महंगी भी है। इसलिए तालाब सामान्यत: काफी संकरे होते हैं और वे गर्मियों तक पर्याप्त वर्षा जल को टिका नहीं सकते। कुएं भी सूख जाते हैं। कुछ नदियां में पानी 10 से 12 महीनों रहता है, लेकिन गरीब आदिवासियों के पास संसाधन और सूखे महीनों के दौरान इस पानी को सिंचाई के लिए इस्तेमाल करने के ज्ञान की कमी है।
- करणीय काम नं 1
छोटे और मझोले किसान समूहों में बांट दिए जाते हैं और नए तालाब खोदने तथा पुराने तालाबों का पुनर्निर्माण करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है। इन तालाबों का डिजाइन तीन या चार टायर का होता है। बीच में पहुंचने के लिए चारों तरफ तीन या चार चौड़ी सीढ़ी बनाई जाती हैं। ये सीढि़यां बारिश के दौरान डूबी रहती हैं। तालाब में गिर रहे बारिश के पानी के अलावा आसपास की जमीन से तालाब में पानी लाने के लिए मोरियां बनाई जाती हैं। तालाब के चारों किनारों पर बाड़ लगाई गई है जिससे तालाब में लगाए गए पौधों जैसे लौकी, सीताफल और करेले की बेलें उस पर रेंग कर चढ़ सकें। सूखे महीनों में जब तालाब में पानी का स्तर कम होता है, तो सब्जियां उसकी सीढि़यों पर उगाई जाती हैं। तालाब के किनारे का इस्तेमाल विभिन्न किस्म की सब्जियों, दालों, मटर और मौसमी पेड़ों को उगाने में किया जाता है। अतिरिक्त आय के लिए तालाब में मछलियां भी पाली जाती हैं। तालाब के पानी से उसके इर्द-गिर्द की मेड़ों को सींचा जाता है जिसमें सब्जियां पैदा होती हैं। तालाब के किनारे, उसके भीतर और सीढि़यों पर पैदावार जैविक तरीके से की जाती है। समूह की कुल जरूरत के मुताबिक यहां होने वाली उपज को समान रूप से बांट दिया जाता है। इसमें से बचे हुए एक हिस्से को गांव वालों में मुफ्त बांट दिया जाता है। अतिरिक्त उपज को बाजार में बेच दिया जाता है और बिक्री से अने वाले पैसे को समूह के बैंक खातों में जमा करा दिया जाता है। - करणीय काम नं 2
इस तरह से व्यवस्था की जाती है कि वर्षा वाली एक फसल उगाने वाला भूस्वामी किसान मौसमी पैदावार की जमीन को सूखे के मौसम में इस्तेमाल के लिए छोटे किसानों को दे देता है। नदी से सिंचाई के लिए जल उठाने के लिए एक सस्ता मॉडल विकसित किया गया है। - करणीय काम नं 3
तालाब का आकार 1.3 एकड़ हेता है- 180 फुट गुणा 160 फुट गुणा 10 फुट - करणीय काम नं 4
जिस जमीन पर तालाब खोदा गया है, वह 5 लोगों की है जिन्होंने पट्टे पर इसे 30 किसानों को देने का तय किया। पट्टे की अवधि खत्म होने पर इस तालाब को इसके मालिकों को लौटा दिया जाएगा लेकिन इसके पानी का इस्तेमाल किसान समूह करता रहेगा।
- प्रभाव
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- इस्तेमाल में नहीं आने वाले प्राकृतिक संसाधन खाद्य-चारे-ईंधन को बढ़ाने के लिए लाभदायक साबित हो सकता है।
- एक व्यक्ति से ज्यादा दिनों तक काम करवाया जा सकता है जिससे मौसमी पलायन को रोका जाना संभव है। तालाब की खुदाई के लिए 2979 दिन व्यक्ति का सृजन किया जबकि आसपास की जमीनों पर फसल पैदावार के लिए 831 दिनों का सृजन किया गया।
- मिट्टी का उपजाऊपन बढ़ा है।
- वर्ष भर परिवार के लिए खाद्य और पोषक तत्वों की आपूर्ति को सुनिश्चित किया जा सका है। तालाब के किनारे खेती को छोड़कर इसमें दस एकड़ खाली भूमि की सिंचाई की क्षमता होता है। 2006 में मिश्रित कृषि के जरिए लगभग 40 तरह की सब्जियां उगाईं गईं।