शोध में साबित हुआ है कि फ्लाईएश और स्लरी का ऑर्गेनिक कंपाउंड पानी में घुले फ्लोरइड को पूरी तरह सोख लेता है। इसके बाद पानी पीने लायक हो जाता है। फ्लोराइड की बहुतायत वाले इलाकों के लिये यह खोज वरदान साबित हो सकती है और लोगों को बेहद कम लागत में पीने का साफ पानी मिल सकता है। (डॉ. आशू रानी, प्रोफेसर, कोटा विश्वविद्यालय)
जहर को काटने के लिए जहर के ही इस्तेमाल की कहावत भले ही पुरानी हो गई, लेकिन कोटा विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने इसे एक बार फिर सही साबित कर दिया। रसायन विज्ञान विभाग के शिक्षकों ने पर्यावरण में लैड और मर्करी जैसे जहर घोल रहे फ्लाईएश और कोटा स्टोन स्लरी को मिलाकर ऐसा ऑर्गेनिक कंपाउंड तैयार किया है जो पानी में जाते ही उसमें घुले जानलेवा फ्लोराइड को सोख लेता है।
फ्लाईएश और कोटा स्टोन स्लरी के दुष्प्रभावों पर शोध कर रहे शिक्षकों ने जब इनकी खासियत जानने की कोशिश की तो दोनों तत्वों में जहरीले हैवीमेटल्स सोखने की क्षमता का पता चला। प्रोफेसर डॉ. आशू रानी और शोधार्थी शैफाली सक्सेना ने फ्लाईएश और स्लरी की सरफेस पर अलग-अलग मैटल ऑब्जर्व करने वाले मॉलीक्यूल्स लगाकर एक्टिवेटिड कार्बन के मिक्स ब्लैड बनाए और पानी में डाले तो यह बात साबित भी हो गई। शुरुआती नतीजों से उत्साहित शोधार्थियों ने पानी में घुले फ्लोराइड को चुनौती के रूप में लिया और फिर फ्लाईएश के कणों पर स्लरी को लोड कर ऑर्गेनिक कंपाउंड का एक नया जोड़ बनाया। बॉल नुमा इस जोड़ को जब पानी में डाला गया तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए। इस आर्गेनिक कंपाउंड ने पानी में घुले फ्लोराइड को पूरी तरह सोख लिया। इतना ही नहीं फ्लाईएश और स्लरी में पाए जाने वाले हानिकारक तत्व भी पानी में नहीं घुले।
बड़ी आबादी को मिल सकेगा साफ पानी
देश के आधे से ज्यादा राज्य पानी में घुले फ्लोराइड की समस्या से जूझ रहे हैं। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा से सटे आगरा, मथुरा, अलीगढ़, हाथरस, धौलपुर, भरतपुर, ग्वालियर, भिंड और मुरैना जैसे जिलों में तो फ्लोराइड की मात्रा इतनी ज्यादा है कि पानी पीने लायक ही नहीं रहा। पानी से फ्लोराइड अलग करने का सस्ता वैज्ञानिक तरीका उपलब्ध न होने के कारण सरकारें करोड़ों रुपये खर्च कर दूसरे इलाकों से यहाँ पानी सप्लाई करने में जुटी है। अब कूड़ा समझकर फेंक दिए जाने वाले इन दोनों चीजों से इन इलाकों में बेहद कम लागत में पानी साफ किया जा सकेगा।