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राजस्थान पत्रिका, 01 अप्रैल, 2016
फ्लोराइड पानी से आँतों में अल्सर, पुरुषों में नपुसंकता व स्त्रियों में बार-बार गर्भपात की परेशानी होती है।
प्रकृति द्वारा जल एक अनमोल सौगात है, जिसे धरती पर अमृत की संज्ञा दी गई है। जलविहीन पृथ्वी की कल्पना मानव जाति के लिये साँस रहित जिन्दगी के समान है। भूजल में पाये जाने वाले अवयवों की मात्रा जरूरत से ज्यादा हो जाये तो यही जल मानव जीवन को खतरे में डालकर कष्टमय जिन्दगी जीने को मजबूर कर देता है। ऐसी त्रासदी के शिकार राजस्थान के कुछ हिस्से हैं। यहाँ के पानी में फ्लोराइड की मात्रा इतनी अधिक है कि मानव शरीर में विभिन्न प्रकार की विकृतियाँ पैदा हो रही हैं।
पश्चिमी राजस्थान अधिक प्रभावित
सामान्य तौर पर पीने योग्य जल में फ्लोराइड की मात्रा एक से डेढ़ मिग्रा. प्रति लीटर तक शरीर के लिये हानिकारक नहीं होती है। भारत में फैले रेगिस्तान में पश्चिमी राजस्थान का रेगिस्तान का हिस्सा ही अधिक है, जो प्रकृति के प्रकोप को लगातार झेलता रहा है। पश्चिमी राजस्थान के अधिकांश गाँवों में पीने के पानी में फ्लोराइड की मात्रा बहुत ज्यादा है। फ्लोराइड युक्त पानी का लगातार सेवन करने से शरीर के विभिन्न अंगों जैसे दाँत, आँत, रीढ़ की हड्डी व शरीर के सभी जोड़ों पर इसका दुष्प्रभाव दिखाई देने लगता है। दाँतों में फ्लोराइड का जमाव दो से तीन वर्ष के पचास प्रतिशत बच्चों में एक लकीर के रूप में शुरू हो जाता है। इसी प्रकार चार से आठ साल के बच्चों के खोखले दाँत पूर्ण रूप से गिर जाते हैं।
जोड़ों का दर्द
फ्लोराइडयुक्त पानी के सेवन से युवावर्ग के साथ-साथ बड़ी उम्र के लोग भी जोड़ों के असहनीय दर्द के शिकार हो जाते हैं। फ्लोराइड युक्त पानी पीते रहने के कारण रीढ़ की हड्डी में यह जमाव शुरू हो जाता है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति आंशिक व पूर्णतया कुबड़ेपन का शिकार हो जाता है। राजस्थान के जालोर, सांचोर, नागौर, चुरु, पाली के कई भागों में ऐसे मरीज बड़ी संख्या में देखे जा सकते हैं।
नसों में शिथिलता
फ्लोराइड युक्त पानी पीते रहने के कारण रीढ़ की हड्डी में जमाव के कारण स्पाइनल कोड व इसकी नसों पर दबाव बढ़ने से हाथ पैरों की नसों में शिथिलता आ जाती है और मरीज लकवे का शिकार हो जाता है और बाकी उम्र उसे बिस्तर पर गुजारने को मजबूर होना पड़ता है। आँतों में अल्सर, पुरुषों में नपुंसकता व स्त्रियों में बार-बार गर्भपात होकर बाँझपन का शिकार होने का कारण भी यही फ्लोराइड बनता है।
बचाव ही उपाय
इन बीमारियों से निजात पाने के लिये बचाव ही एकमात्र उपाय है। राजीव गाँधी ड्रिंकिंग वाटर मिशन क्षेत्र के गाँवों में फ्लोराइड रहित पानी पहुँचाने का कार्य कर रहा है। मिशन के अनुसार गाँव में बरसात के पानी को संग्रह कर उसे शुद्ध करके पीने योग्य बनाया जाये।
फ्लोराइड युक्त पानी को शुद्ध करने के लिये आईआईटी कानपुर व यूनीसेफ द्वारा विकसित यंत्र जिसका खर्च मात्र पन्द्रह सौ रुपए है, गाँव-गाँव में उपलब्ध करवाकर इसकी उपयोगिता की जानकारी प्रचार-प्रसार माध्यमों द्वारा दी ताकि फ्लोराइड रहित पानी सर्वत्र उपलब्ध हो सके।। जिन हैण्डपम्पों, कुओं या अन्य भूमिगत स्रोतों में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है, उनको बन्द करवाकर पीने योग्य पानी की अन्य योजना बनाई जाये।
पानी का संग्रह
गाँव के हर घर में बरसात के पानी का संग्रह करने के लिये हौद या टांका बनाया जाये और वर्ष भर इसी पानी का सेवन किया जाये। सावधानी इस बात की रखने की आवश्यकता है कि इस जल को भी पूर्णतः शुद्ध रखा जाये। इसे कीड़े-मकोड़ों और अन्य विषाणुओं व विषैले पदार्थों से बचाने की आवश्यकता है।
शल्यक्रिया की जरूत
जो मरीज रीढ़ की हड्डी के टेढ़ेपन के कारण लकवे के शिकार हो जाते हैं, उनका एकमात्र उपचार रीढ़ की हड्डी की शल्यक्रिया है। करीबन तीन सौ सफल ऑपरेशन के बाद मेरे अनुभव के अनुसार शल्यक्रिया से इन बीमारों को रात मिलती है। यह बात खुलकर सामने आती है कि सावधानी और पूर्ण सजगता से ही लोगों, विशेष तौर से पश्चिमी राजस्थान के लोगों को कुबड़ेपन और आंशिक विकलांगता से बचाया जा सकता है। इसके लिये सरकारी मशीनरी के अतिरिक्त स्वयंसेवी संस्थाओं को भी आगे आने की जरूरत है।
1. दाँतों में फ्लोराइड का जमाव दो से तीन वर्ष के पचास प्रतिशत बच्चों में लकीर के रूप में शुरू हो जाता है।
2. जिन हैण्डपम्पों, कुओं या अन्य स्रोत में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है, उनको बन्द करवाया जाना चाहिए
डॉ. नगेन्द्र शर्मा
वरिष्ठ न्यूरोसर्जन जोधपुर