Source
राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की, पाँचवीं राष्ट्रीय जल संगोष्ठी, 19-20 नवम्बर, 2015
सारांश
प्रस्तुत शोध पत्र में सुदूर संवेदन तकनीक और भौगोलिक सूचना प्रणाली की सहायता से जल संसाधन को ध्यान में रखते हुए यमुना अपवाह तंत्र की टोंस नदी घाटी का आकारमितीय अध्ययन किया गया है। इसके अन्तर्गत आकारमितीय आँकडों जैसे सरिता श्रेणीक्रम, सरिता लम्बाई एवं अनुपात, द्विशाखन अनुपात, वक्रता सूचकांक, चक्रिलता सूचकांक, दैर्घ्य सूचकांक, फार्म फैक्टर, उच्चावच अनुपात, ऊँचे क्षेत्र, आकार एवं विस्तार, ढाल परिच्छेदिका आदि का अध्ययन किया गया है जिसमें टोंस नदी सहित चयनित आठ उपबेसिनों में वर्षा के आधार पर जल संसाधन प्रवाह का आकलन किया गया है।
Abstract
In this paper morphomological Evaluation has been attempeted on Tons river basin tributary of Yamuna river network with special reference to water resource using geographical information system (GIS). Morphometric analysis of drainage basin includes stream order, stream length, stream length ratio, bifurcation ratio, sinusity index, circulatory index, elongation ratio, form factor, relief ratio, highland, shape and extended longitudinal profile etc. in which water resource based on rainfall data of selected eight sub-basins including Tons river have been analysed.
1. प्रस्तावना (Introduction)
किसी भी बेसिन के अपवाह तंत्र विश्लेषण में उस क्षेत्र की सभी सतत वाहिनियाँ उनकी उपशाखाओं तथा उनके द्वारा अपरदनात्मक एवं निक्षेपणात्मक क्रियाओं से निर्मित-भू-आकृतिक संरचना का अध्ययन किया जाता है। प्रवाह बेसिन किसी मुख्य सरिता एवं उसकी सहायक सरिताओं को जल प्रदान करती हैं (हार्टन 1945)। डूरी (1970) ने भू-जलीय अपवाह को मुख्य व्यवहारिक विज्ञान मानकर उसका उपयोग धरातलीय विकास, कृषि संसाधन, उपभोग व नियोजन, अभियांत्रिकी आदि के रूप में अध्ययन किया है। किसी बेसिन के अपवाह तंत्र में उस क्षेत्र की नदियों व उसकी सहायक उपत्यकाओं का विश्लेषण किया जाता है। इसी सन्दर्भ में थार्नवरी (1959) ने जल धाराओं के क्रम को प्रवाह प्रणाली का नाम दिया है। किसी भी क्षेत्र की जलधाराओं को एक प्रणाली के रूप में सम्मिलित करने में कई वातावरणीय, धरातलीय एवं भू-गर्भिक कारकों का योगदान होता है जिसमें ढाल प्रवणता, चट्टानों की सरंचना आदि मुख्य है, जो भू-गर्भिक इतिहास के स्वरूप को इंगित करते हैं। किसी भी क्षेत्र की वनस्पति स्थलरूपों के आकार का मापन तथा गणितीय विश्लेषण उच्चावचन, स्थल रूप व धरातलीय संरचना के ज्यामितीय अध्ययन को आकारमिति कहते हैं। बेसिन के गणितीय एवं मात्रात्मक विश्लेषण में उपयुक्त आँकड़े नदी व अपवाह के विभिन्न पहलुओं उपत्यकाओं एवं उसकी सहायक सरिताओं की लम्बाई, संख्या क्रम तथा उनका आनुपातिक अन्तर आकारमितिक अध्ययन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इन मापनों से प्राप्त आँकड़ों की उपलब्धता द्वारा निर्मित रेखामानचित्रों को विभिन्न सांख्यिकीय विधियों से प्रदर्शित करके स्थान विशेष के स्थल रूपों की समग्र जानकारी तथा उसके विकास के सह सम्बन्धों एवं उत्पत्ति की जानकारी प्राप्त की जाती है।
अपवाह तंत्र द्वारा निर्मित अपरदनात्मक स्थलरूपों के गणितीय मापक एवं विश्लेषण को ज्यामितीय आकारमिती कहते हैं इसमें स्थलीय संरचना सम्बन्धी आँकड़े एकत्रित कर उनका विश्लेषण किया जाता है। फेनमेन (1908) ने ज्यामितिक, आकारमितीय विश्लेषण हेतु भौतिक प्रदेशों का चयन किया। डेविस (1899) के अनुसार सामान्य रूप से नदियाँ किसी पत्ती की भाँति मुख्य उपत्यका में समाहित होकर प्रवाहित होने लगती है जिसमें प्रवाह जल धारायें पूर्ण रूप से पत्ती के समान संरचना प्रदान करती है। हार्टन (1945) ने प्रवाह बेसिन को भू-आकृतिक इकाई का रूप माना तथा स्ट्रहलर (1964) ने इसका समर्थन किया है। वर्तमान अध्ययन का उद्देश्य जल संसाधनों को ध्यान में रखते हुए टोंस नदी सहित उसकी आठ प्रमुख सहायक उप बेसिनों का आकारमितीय अध्ययन एवं विश्लेषण करना है।
2. अध्ययन क्षेत्र (Study Area)
टोंस नदी का उद्गम स्थल बंदरपूँछ हिमनद का दाहिना किनारा है और 210 कि.मी. की लम्बी दूरी तय करने के पश्चात इसका कालसी में यमुना नदी से संगम हो जाता है। इसका भौगोलिक विस्तार 300 30’ उत्तरी अक्षांश से 310 25’ उत्तरी अक्षांश तथा 770 29’ पूर्वी देशान्तर से 780 38’ पूर्वी देशान्तर के मध्य फैला है जिसका कुल क्षेत्रफल 5145.41 वर्ग कि.मी. है (चित्र सं. 1)। इसकी अधिकतम ऊँचाई 6102 मी. तथा न्यूनतम ऊँचाई 750 मी. है। यह नदी उत्तराखण्ड एवं हिमाचल प्रदेश के बीच की राजनैतिक सीमा का निर्धारण करती है।
3. आँकड़े तथा विधितंत्र (Materials & Methods)
3.1 आँकड़े: प्रस्तुत शोध पत्र को पूर्ण करने के लिये धरातलीय भू-पत्रक भारतीय सर्वेक्षण विभाग से (1:50000 मापक) के भूपत्रक क्रम सं. 53इ 11, 12, 15, 16; 53एफ 9, 10, 13 14 सुदूर संवेदन के आँकड़ों एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली की तकनीक का प्रयोग किया गया है। उपग्रहीय सुदूर संवेदन आँकड़े टी.आर.एम.एम. जिसका स्थानिक विभेदन 0.250 से 0.250, स्थानिक आवरण 500 दक्षिण से 500 उत्तर अक्षांश तक फैला है तथा अमरीका के नासा (NASA) एवं जापान के जाक्सा (JAXA) संगठनों का संयुक्त मिशन है जिससे वर्षा के आँकड़े प्राप्त किये जा सकते हैं।
3.2 विधितत्र: आँकड़ों का परिकलन
भिन्न-भिन्न स्रोतों से किया गया है जिसमें प्रकाशित तथा अप्रकाशित दोनों स्रोत हैं। इसके अलावा क्षेत्रीय आधार पर टरशियरी आँकड़ों को भी एकत्र किया गया है। अपवाह तंत्र का मानचित्र तथा आँकड़े भौगोलिक सूचना प्रणाली के अनुप्रयोग से धरातलीय भूपत्रक को डिजिटाईजेशन करके प्राप्त किये गये हैं। नदियों को आधार मानकर भू-आकृतिक विकास को जानने के लिये विभिन्न आकारमितीय आँकड़ों का विश्लेषण किया गया है। आकारमितीय अध्ययन के लिये हार्टन (1945), स्ट्रालहर (1952), किंग (1896), सिहं (1969) आदि जिन्होेंने विभिन्न पर्वतीय पठारी अंचलों के लिये कार्य किया है इनकी विधि को प्रयोग में लाया गया है। वर्षा के आँकड़े टी.आर.एम.एम. उपग्रह द्वारा 1998 से 2014 तक प्राप्त किये गये हैं जिससे बेसिन में जल संसाधन का आकलन किया गया है।
टी.आर.एम.एम.डाटा के टोंस बेसिन में कुल 15 पिक्सल आते हैं तथा प्रत्येक पिक्सल की एक स्पेक्ट्रल परिच्छेदिका बनाई गई है। इसी क्रम में अन्य आठ लघु बेसिनों में भी स्पेक्ट्रल परिच्छेदिका बनाई गई है, जिसमें नीरागाड़ में 2 परिच्छेदिका, मीनस नदी में 3 परिच्छेदिका, शाणों गाड़ में 5 परिच्छेदिका, पबार नदी में 7 परिच्छेदिका, अपर टोंस में 8, दारागाड़ तथा बेनाल में 1-1 परिच्छेदिका व अमतयार में 2 परिच्छेदिका बनाई गई है। विभिन्न आकारमितिक आँकड़ें जैसे सरिता श्रेणीक्रम, सरिता लम्बाई, सरिता लम्बाई अनुपात, द्विशाखन अनुपात, वक्रता सूचकांक, चक्रिलता सूचकांक, अपवाह घनत्व एवं बारम्बारता, उच्चावचन अनुपात, घाटी परिच्छेदिका, लम्बाई अनुपात, फार्म फैक्टर आदि टोंस नदी सहित उसकी 8 उपशाखाओं से प्राप्त किया गया है।
4. परिणाम एवं विवेचन
प्रवाह बेसिन में विभिन्न सरिताओं तथा सहायक सरिता खण्डों की संख्या उनकी लम्बाई एवं श्रेणियों का अध्ययन किया गया है। इसके अन्तर्गत छोटी-छोटी जलधाराओं को भी सम्मिलित किया गया है।
4.1 सरिता श्रेणीक्रम (Stream order Nu): अपवाह बेसिन का सहायक सरिताओं के पदानुक्रम में किसी सरिता की स्थिति के मान को सरिता श्रेणीक्रम कहा जाता है जिसे स्ट्रालर (1952) प्रतिपादित विधि द्वारा प्राप्त किया गया है। स्ट्रालर के अनुसार पहली श्रेणी की सरिताएं वे होती हैं जिनकी कोई सहायक सरिता नहीं होती है। पहली दो सरिताओं के मिलने से दूसरी श्रेणी का निर्माण होता है। दूसरी श्रेणी की दो सरिताओं के मिलने से तीसरे क्रम की श्रेणी का उद्भव होता है। जहाँ तृतीय श्रेणी की दो सरिताओं के श्रेणी करण के लिये यही विन्यास आगे बढ़ता रहता है। टोंस नदी अष्टम क्रम की उपत्यका है। सारणी संख्या 1 से स्पष्ट होता है कि प्रथम श्रेणी क्रम की सरिताओं की संख्या 16374 है जिनकी कुल लम्बाई 9793.46 कि.मी. है। इसी प्रकार द्वितीय क्रम की सरिताओं की संख्या 3654 है, जिसकी लम्बाई 2520.94 कि.मी. तथा तृतीय क्रम की सरिताओं की संख्या 782 एवं लम्बाई 1200.45 कि.मी., चतुर्थ क्रम सरिताओं की संख्या 182 एवं लम्बाई 592.10 कि.मी., पंचम क्रम की सरिताओं की संख्या 41 लम्बाई 355.60 कि.मी., इसी प्रकार षष्टम, सप्तम एवं अष्टम पदानुक्रम की सरिताओं की संख्या क्रमशः 11,3 एवं 1 है लम्बाई कमशः 123.60, 85.88 एवं 85.04 कि.मी. है। टोंस उपत्यका के अन्तर्गत निहित कुल सरिताओं की संख्या 21048 है जिनकी कुल लम्बाई 14757.07 कि.मी. है (सारणी संख्या 7, क्रम सं.1)।
मानचित्र संख्या 2 से स्पष्ट होता है कि प्रत्येक सरिता क्रम को भिन्न-भिन्न श्रेणीक्रमों में स्पष्ट किया गया है। जैसे-जैसे लघु जलधारा एक दूसरे से मिलकर अपने जल भण्डारण स्वरूप एवं क्रम में परिर्वतन कर निम्नतल की ओर अग्रसर होती है, वैसे-वैसे उसके घाटी के विस्तार में कमी आती रहती है। क्योंकि जब नदी अपने प्रथम द्वितीय एवं तृतीय पदानुक्रम के स्वरूप में प्रवाहित होती है तो उस समय नदी का फैलाव विस्तृत- भू-भाग पर होता है तथा कटकीय स्वरूप फैला रहता है। परन्तु जब नदी अपने अन्तिम क्रम में पहुँचती है तो घाटी का विस्तार मात्र दो जलविभाजकों केे मध्य एक गहरी कन्दरा के रूप में शेष रह जाता है। यह स्वरूप प्रायः पर्वतीय क्षेत्रों में देखने को मिलता है। अध्ययन क्षेत्र में नदी के अन्तिम पड़ाव पर लगभग 2 कि.मी. दूरी तक घाटी की चौड़ाई लगभग 5 कि.मी. शेष रह जाती है तथा 8 कि.मी. की लम्बाई तक नदी द्वारा गहरी घाटी का निर्माण किया गया है।
4.2 सरिता लम्बाई (Stream Length, Lu)
किसी भी प्रवाह बेसिन के सरिताओं में लम्बाई श्रेणीक्रम के अनुसार प्रतिवर्ग कि.मी. इकाई में ज्ञात की जाती है, जिससे बेसिन के आकार एवं स्वरूप की स्थिति का पता चलता है। चित्रसंख्या 2 तथा सारणी सं. 7 के क्रम सं. 2 के आधार पर टोंस नदी बेसिन के लघु बेसिनों में श्रेणीक्रम के अनुसार प्रत्येक सरिताओं की लम्बाई ज्ञात की गयी है। सारणी संख्या 2 में सरिताओं की लम्बाई का यह अनुपात बेसिन के ऊपरी भू-भाग का फैला हुआ स्वरूप तथा निम्न भाग कम विस्तृत होने का संकेत देता है। इसी प्रकार अध्ययन क्षेत्र के अन्तर्गत स्थित लघु बेसिनों के अध्ययन से पता चलता है कि जिस भू-भाग में प्रायः प्रथम एवं द्वितीय क्रम की सरिताओं की लम्बाई अधिक है उन सभी बेसिनों का ऊपरी भाग फैला हुआ तथा निम्न भाग अपेक्षाकृत कम फैला है। सारणी संख्या 2 से स्पष्ट होता है कि अमत्यारगाड़ में प्रथम श्रेणी सरिताओं की कुल लम्बाई 86.24 कि.मी. है। इस बेसिन का आकार कम क्षेत्र पर फैला है जबकि पबार नदी में प्रथम श्रेणी की सरिताओं की लम्बाई 3170.78 कि.मी. है, जिससे इसका आकार ऊपरी भाग में विस्तृत रूप से फैला हुआ है तथा निम्न तल पर संकरी घाटी के रूप में सीमित है। इसी प्रकार अन्य लघु बेसिनो में प्रथम पदानुक्रम की लम्बाई निरागाड़ (351.27), मीनस नदी (700.29), शाणोगाड (1170.25), ऊपरी टोंस नदी (2972.04), दारागाड़ (212.94), बेनालगाड़ (213.39) है। इस प्रकार लम्बाई क्रम के अनुसार इनके शीर्षपथ स्वरूप में भी विस्तार एवं संकुचन स्पष्ट दृष्टिगत हुआ है।
द्वितीय श्रेणी क्रम में सरिताओं की न्यूनतम लम्बाई 25.11 कि.मी. अमत्यारगाड़ की है तथा अधिकतम लम्बाई (819.11 कि.मी.) पबार नदी की है जो बेसिन के मध्य भू-भाग के विस्तार एवं संकुचन को प्रदर्शित करती है। इसी प्रकार अन्य सरिताओं में अधिकांश सरितायें केवल सातवें पदानुक्रम तक ही सीमित है इसके उपरान्त ये सरितायें मुख्य नदी टोंस में समाहित हो जाती है जोकि इन लघु सरिताओं के मिलन से पहले ही अष्टम पदानुक्रम का रूप धारण किये हुये है। इन लघु प्रवाह बेसिनों में सातवें श्रेणी क्रम की सरितायें शाणोंगाड, पबार नदी एवं ऊपरी टोंस नदी है जिनकी लम्बाई क्रमशः 15.73 कि.मी. से लेकर 36.85 कि.मी. तक है, मानचित्र संख्या 2 से स्पष्ट होता है कि इन सभी सरिताओं का आकार उद्गम स्थल की ओर फैला है तथा निर्गत तल की ओर क्षेत्रफल का विस्तार मात्र दो जल विभाजकों के मध्य ही सिमटकर रह गया प्रतीत होता है।
4.3 लम्बाई अनुपात (Length Ratio, RL)
किसी भी प्रवाह तंत्र की लम्बाई अनुपात के अन्तर्गत प्रत्येक प्रवाह श्रेणी का पदानुक्रम के अनुसार अनुपात ज्ञात किया जाता है। इसमें प्रत्येक श्रेणी के पदानुक्रम का अगली श्रेणी यानी द्वितीय पदानुक्रम ज्ञात किया जाता है तथा इसमें सभी क्रम की सरिताओं के मध्यमान भी ज्ञात किये जाते हैं, जिससे किसी भी प्रवाह बेसिन की लम्बाई के अनुपात में अंतर स्पष्ट होता है। सरिताओं की लम्बाई का अनुपात ज्ञात करने के लिये हार्टन (1945) द्वारा सारणी संख्या 7 के क्रम सं. 3 में दी गई विधि का प्रयोग किया है।
इस विधि द्वारा विश्लेषण के पश्चात अध्ययन क्षेत्र के अन्तर्गत निहित सम्पूर्ण लघु प्रवाह बेसिनों की लम्बाई का अनुपात सारणी सं. 3 में दिया गया है जिसमें सम्पूर्ण प्रवाह बेसिन की लम्बाई का अनुपात 139.65 है जबकि लघु प्रवाह बेसिनों में यह अनुपात भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग दृष्टिगोचर होता है। इनमें न्यूनतम लम्बाई अनुपात 13.82 बेनाल गाड में दृष्टिगोचर होता है। इसके बाद अन्य सभी उपत्यकाओं में यह अनुपात भिन्न-भिन्न है जोकि क्रमशः नीरागाड (30.26), मीनस नदी (31.87), शाणोगाड (35.95), पबार नदी (61.53), ऊपरी टोंस नदी (66.64), दारागाड (22.89), अमत्यारगाड (18.22) आंकलित किया गया है।
टोंस नदी बेसिन के ऊपरी भू-भाग में हिमानीकृत भूखण्डों, जल स्रोतों, वनस्पति की अधिकता तथा आर्द्रता के कारण अधिक अपवाह संख्या, अंगुल्याकार नलिकायें ढाल के अनुरूप फैली हैं इनकी संख्या अधिक होने के परिणाम स्वरूप मध्यमान लम्बाई अनुपात में कमी आ जाती है, जबकि मध्य भू-भाग पर ये सरितायें द्वितीय एवं तृतीय श्रेणीक्रम को प्राप्त कर लेती है तथा इनकी संख्या में कमी आ जाती है परिणाम स्वरूप सरिताओं के संगठित रूप में बहने से जलधारा का बहाव बढ़ जाता है और भूमि कटाव की प्रक्रिया में तेजी आ जाती है जिससे सरितायें विसर्प तथा नदी घाटियों का निर्माण करने लग जाती है। इन घाटीनुमा तथा विसर्प स्वरूपों के परिणाम स्वरूप अपवाह की लम्बाई का अनुपात बढ़ जाता है। षष्टम, सप्तम और अष्टम श्रेणी के अन्तर्गत सभी लघु पदानुक्रम की सरितायें आपस में संगमित होकर एक संगठित रूप प्रदान करती है, जिससे नदी के जल में वृद्धि होनी शुरू हो जाती है। परिणाम स्वरूप बहाव तेजी से बढ़ने लगता है और नदी अपने तल को गहरा करने लगती है तथा विसर्प महाखड्डों तथा घुमावदार तलछटों का निर्माण होता है। इसके अन्तर्गत नदियों की संख्या सीमित हो जाती है, परन्तु अपेक्षाकृृत लम्बाई में वृद्धि होती रहती हैै, साथ-साथ लम्बाई अनुपात व मध्य मान में भी वृद्धि हो जाती है। इस प्रक्रिया में अनेक भू-स्वरूपों का विकास नदी द्वारा किया जाता है जिसमें मुख्यतः नदी विसर्प, महाखड्ड, तीक्ष्ण ढाल कन्दरायें आदि प्रमुख हैं।
4.4 द्विशाखन अनुपात (Bifurcation Ratio)
किसी भी प्रवाह बेसिन के सरिता खण्डों का विभिन्न पदानुक्रम के साथ अर्न्तसम्बन्धों के अध्ययन को द्विशाखन अनुपात कहा जाता है। इसके अन्तर्गत किसी भी क्रम की सरिताओं की संख्या को उससे अगली श्रेणी क्रम की सरिताओं की संख्या से शूम (1956) द्वारा प्रतिपादित विधि से गणना करने पर उस श्रेणी का द्विशाखन अनुपात ज्ञात किया जाता है (सारणी संख्या 7, क्रम सं. 6)। प्रायः प्रथम तथा द्वितीय पदानुक्रम की सरिताओं का द्विशाखन अनुपात आदर्श सरिता क्रम को प्रकट करता है। द्विशाखन अनुपात पर उस क्षेत्र की धरातलीय बनावट, जलवायु आदि का प्रभाव स्पष्ट रूप से पड़ता है। यदि समान रूप की चट्टानें, समान जलवायु तथा धरातलीय विकास की समान अवस्थायें रही हों तो द्विशाखन अनुपात स्थिर रहता है और यदि किसी प्रवाह बेसिन का द्विशाखन अनुपात 3-5 के मध्य होता है तो वह आदर्श सरिता क्रम को प्रकट करता है, इसी प्रकार टोंस बेसिन का द्विशाखन अनुपात 3.00 आदर्श सरिताक्रम को प्रदर्शित करता है जोकि मानचित्र सं. 2 के आधार पर विश्लेषित सारणी संख्या 4 में प्रस्तुत किया गया है।
सारणी संख्या 4 के अनुसार टोंस नदी बेसिन के द्विशाखन अनुपात के अध्ययन हेतु प्रमुख 8 लघु अपवाह बेसिनों में बाँटा गया है। इनमें मुख्यतः प्रथम व द्वितीय श्रेणी का द्विशाखन अनुपात न्यूनतम 4.41 तथा अधिकतम 5.35 पबार नदी व डारागाड में पाया गया है। इसी क्रम में द्वितीय अधिकतम अनुपात 4.78 मीनस नदी में विद्यमान है तथा अन्य लघु बेसिनों में प्रथम श्रेणी का द्विशाखन अनुपात 4.43 से 4.69 के मध्य स्थिर है। इस प्रकार द्वितीय एवं तृतीय क्रम की सरिताओं का द्विशाखन अनुपात न्यूनतम 4.43 बेनालगाड में है जबकि अधिकतम अनुपात 5.00 अमत्यार गाड में है, द्वितीय सर्वाधिक 4.76 तथा 4.71 क्रमशः नीरा नदी और दारागाड में है द्वितीय श्रेणीक्रम में शेष सभी सरिताओं का द्विशाखन अनुपात 4.43 से 4.67 के मध्य स्थिर है। लघु बेसिनों में तृतीय श्रेणीक्रम में अधिकतम 7.00 अरम्यगाड तथा न्यूनतम 3.00 बेनालगा, चतुर्थ श्रेणीक्रम में अधिकतम 10.00 नीरागाड तथा न्यूनतम 3.00 बेनालगाड एवं पाँचवे श्रेणी क्रम में अधिकतम है 4.67 पबार नदी और न्यूनतम 2.00 बेनालगाड, छठे क्रम में तीन लघु बेसिनों की द्विशाखन अनुपात 3.00 है, अधिकतम टोंस नदी बेसिन का 3.67 है, सातवें श्रेणीक्रम में सभी लघु बेसिनों की द्विशाखन अनुपात नगण्य है तथा 3.00 टोंस नदी बेसिन का है। सप्तम श्रेणी की कुल लम्बाई 85.88 कि.मी. तथा अष्टम श्रेणी की कुल लम्बाई 85.04 कि.मी. है। इससे स्पष्ट होता है कि क्षेत्रफल के आधार पर द्विशाखन अनुपात भी घटता है, क्योंकि लघु बेसिनों के अन्तर्गत तृतीय, चतुर्थ एवं पंचम श्रेणी क्रम में क्षेत्रफल का विस्तार नगण्य है।
अतः स्पष्ट होता है कि मुख्य उपत्यका टोंस नदी के अन्तर्गत निहित लघु बेसिनों में प्रत्येक श्रेणी के पदानुक्रमों के मध्य द्विशाखन अनुपात में जो न्यूनतम तथा अधिकतम अंतर की भिन्नता स्पष्ट हुई है, उस पर बेसिन के स्वरूप, ढाल, भू-गर्भिक संरचना का स्वरूप आदि का प्रभाव स्पष्ट रूप से पड़ा है।
4.5 वक्रता सूचकांक (Sinuosity Index)
वक्रता सूचकांक के ज्यामितीय विश्लेषण से किसी भी प्रवाह बेसिन के भू-आकारिका स्वरूप के अध्ययन में सहायता प्राप्त होती है। नदी के वक्रता सूचकांक के अध्ययन हेतु गुणात्मक तथा मात्रात्मक विधियों का सहारा लिया जाता है सर्व प्रथम मुलर (1967) ने इस अध्ययन के लिये वक्रता मॉडल तैयार किया (सारणी संख्या 7 के क्रम सं. 7) में दिया गया है तथा इसी विधि से वक्रता सूचकांक का ज्यामितीय अध्ययन किया गया है।
किसी भी प्रवाह बेसिन में जलमार्ग की लम्बाई CL तथा उसकी घाटी की लम्बाई VL के अनुपात को वक्रता सूूचकांक कहते हैं इस विधि के द्वारा खर्कवाल (1969), दत्त (1983), नैथानी (1992) व जयाल (2012) ने अपवाह जलागम पर प्रमुख कार्य किया है। मुलर के अनुसार किसी भी अपवाह क्षेत्र में वक्रता सूचकांक का अनुपात 1 से 1.3 होता है, तो नदी वक्राकार कहा जाता है, और जब यह अनुपात 1.3 से अधिक होता है तो नदी विसर्पित हो जाती है।
बेसिन के अध्ययन हेतु चयन की गयी 8 लघु प्रवाह बेसिन एवं टोंस नदी के प्रमाणिक वक्रता सूचकांक 1.02 से कम तथा 0.95 से अधिक है जिससे यह सिद्ध होता है कि सभी लघु प्रवाह बेसिन वक्र सरिता की श्रेणी में आते हैं। अन्य लघु बेसिनों में न्यूनतम वक्रता सूचकांक दारागाड 1.02 तथा शाणोगाड (1.01) है। इन नदियों का स्थलीय वक्रता सूचकांक क्रमशः 0.01 तथा 0.02 है जोकि इनके युवावस्था में भू-गर्भिक विकास को दर्शाता है। इसके बाद अन्य लघु बेसिन क्रमशः नीरागाड 0.96, मीनस नदी 0.99, पबार नदी 0.98, ऊपरी टोंस 0.95, बेनालगाड 0.97, अमत्यारगाड 0.99 एवं टोंस नदी बेसिन 0.98 है जोकि अपने विकास की युवावस्था को दर्शाती है इससे यह स्पष्ट होता है कि टोंस नदी बेसिन की लघु सहायक उपत्यकाएं भू-आकृतिक विकास के युवावस्था की दशाओं से गुजर रही है।
4.6 चक्रिलता सूचकांक (Circulatrity Index)
अपवाह बेसिन के चक्रिलता सूचकांक के ज्यामितीय अध्ययन से उसके आकार का तुलनात्मक अध्ययन एवं उत्पत्ति के सम्बन्ध में पर्याप्त सहायता मिलती है। निम्न, माध्यम तथा उच्च चक्रिलता सूचकांक के द्वारा प्रवाह बेसिन के विकास की तरूण, प्रौढ़ व जीर्ण अवस्थाओं का आकलन किया जा सकता है। प्रवाह बेसिन में नदी की अवस्था, उत्पत्ति के अध्ययन हेतु अनेक भू-विज्ञानियों एवं भूगोलवेताओं ने भिन्न-भिन्न विधियों का प्रदिपादन किया जिसमें चक्रिलता सूचकांक, दैर्ध्य वृद्धि सूचकांक, फार्म फैक्टर आदि प्रमुख हैं।
अध्ययन क्षेत्र के लघु बेसिनों की चक्रिलता सूचकांक, दैर्ध्य वृद्धि सूचकांक (सारणी संख्या 7 के क्रम सं. 8, 9, 10) में दिए गए सूत्रों के आधार पर ज्ञात किया गया है। सारणी सं. 6 से स्पष्ट है कि टोंस नदी बेसिन का चक्रिलता सूचकांक (0.33) सबसे न्यून है जोकि उनके अधिक दैर्ध्य वृद्धि आकार का सूचक है। इनके अन्य सूचकांक है R = 0.14 F = 0.18 जोकि इन सरिता बेसिनों के लम्बे आकार को प्रदर्शित करते हैं। इसी प्रकार अन्य प्रवाह बेसिनों में चक्रिलता सूचकांक तथा दैर्ध्य सूचकांक क्रमशः नीरा गाड (C = 0.55 R = 0.13, F = 0.15), मीनस गाड (C = 0.59, R = 0.18, F = 0.33), शाणोगाड (C = 0.52, K = 0.16, F = 0.24), पबार नदी (C = 0.48, R = 0.14, F = 0.20), ऊपरी टोंस नदी (C = 0.38, R = 0.17, F = 0.28), दारागाड (C = 0.57, K = 0.12, F = 0.15), बेनालगाड (C = 0.63, K = 0.20, F = 0.41), अमत्यारगाड (C = 0.56, K = 0.15, F = 0.21) आदि हैं जोकि 0 से 1 के मध्य क्षेत्र की सामान्य चक्रिलता तथा हल्के गोलाकार से लेकर सामान्य लम्बाई वाली संरचना को प्रदर्शित करते हैं। ये सभी अपवाह सप्तम एवं अष्टम श्रेणी क्रम की होने के परिणाम स्वरूप बाल्यावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक विकसित हुई है। इन सभी सरिता बेसिनों पर संरचना निरपेक्ष उच्चावचन, ढाल आदि के प्रभाव अलग-अलग रूप से स्पष्ट परिलक्षित होते हैं।
4.7 अपवाह घनत्व एवं अपवाह बारम्बारता (Drainage Densit yand Drainage Frequency)
किसी भी क्षेत्र का अपवाह घनत्व सम्पूर्ण बेसिन के क्षेत्रफल में प्रतिवर्ग कि.मी. में सरिताओं की लम्बाई तथा सरिताओं की संख्याओं के अनुपात को कहते हैं यह घनत्व स्थान-स्थान पर सरिताओं की लम्बाई तथा संख्याओं में भिन्नता के कारण अलग-अलग पाया जाता है। इस प्रकार की सकंल्पना हार्टन (1945) तथा स्ट्रालर (1952) ने सरिताओं की लम्बाई व क्षेत्रफल के अनुपात को घनत्व मानकर प्रतिपादित की है, तथा मिलर (1964) ने इसकी विवेचना की है (सारणी संख्या 7, क्रम सं. 12, 13)। इस प्रकार की प्रवाह गठन का आकलन भू-पत्रक मानचित्र से ज्ञात किया जाता है। किसी क्षेत्र के प्रवाह के घनत्व में कई प्रकार के भौतिक कारकों के प्रवाह के कारण भिन्नता आती है जिसमें मुख्य रूप से भू-गर्भिक संरचना, कमजोर चट्टानें, भूमिगत जल, ढाल, जल की तीव्रता, प्रवणता आदि सरिता नलिकाओं में अपरदन को प्रभावित करते हैं। द्वितीय कारक मुख्य रूप से वर्षा का जल, बहता हुआ जल है, जोकि धरातलीय अपवाह रेखा को उष्ण-उपोष्ण जलवायु की दशा में प्रभावित करता है। इसके साथ-साथ वनस्पतियों की अल्पता तथा गहनता का प्रभाव भी अपवाह तंत्र के निर्माण आदि पर पड़ता है। मुख्य रूप से ढाल का प्रभाव भी अपवाह तंत्र निर्माण पर पड़ता है। प्रवाह घनत्व में निम्न प्रवाह 3.91 ऊपरी टोंस नदी का है तथा अधिकतम 6.93 नीरा नदी का है। इसके मध्य मीनस नदी 5.48, शाणोगाड 6.01, पबार नदी 5.66, दारागाड 6.73, बेनालगाड 6.29, अमत्यारगाड 6.30 तथा टोंस नदी बेसिन का 5.09 है।
सबसे निम्न क्रम बारम्बारता ऊपरी टोंस नदी 3 एवं अधिकमत बारम्बारता नीरा नदी और दारा गाड में 6 है, शेष लघु बेसिनों की बारम्बारता 5, मीनस नदी, शाणोगाड, पबारगाड, बेनलगाड, अमत्यारगाड तथा 4 टोंस नदी बेसिन है। निम्न बारम्बारता सरिता संख्या की दुर्बलता को तथा अपवाह घनत्व की कमी को दर्शाता है। उसी प्रकार मध्य आवृत्ति क्रम, मध्यम घनत्व तथा उच्च आवृत्ति क्रम अधिक घनत्व को प्रदर्शित करता है जिससे स्पष्ट होता है कि निम्न बारम्बारता सरिता की चट्टानें कठोर और उच्च बारम्बारता सरिता की चट्टानें आसानी से भू-कटाव कर अपने लिये नालीनुमा संरचना का निर्माण कर देती है जिससे अंगुल्याकार रूप में सरिता की संख्या ढालों पर अधिक पाई जाती है।
4.8 उच्चावच अनुपात (Relief Ratio)
उच्चावच अनुपात वास्तव में प्रवाह बेसिन की ऊँचाई-लम्बाई का अनुपात होता है उच्चावच अनुपात और जलमार्ग ढाल प्रवणता में प्रायः सीधा सम्बन्ध होता है जितना भी उच्चावच अनुपात कम होता है उतनी ही औसत जलमार्ग प्रवणता कम होती है (सारणी संख्या 7, क्रम संख्या 11)। उच्चतम उच्चावच अनुपात अमत्यारगाड का (0.21) और न्यूनतम उच्चावच अनुपात टोंस नदी बेसिन का 0.04 है, शेष सभी बेसिन इसके मध्य में आते हैं। सम्पूर्ण टोंस नदी के परिप्रेक्ष्य में उच्चावच अनुपात तथा ढाल अतिउच्च क्रम के अन्तर्गत निहित है। इससे स्पष्ट है कि अधिक ऊँचाई के साथ-साथ ढालों की प्रवणता तथा उच्चावच अनुपात में कमी होती है तथा अपवाह की लम्बाई तथा उच्चावच बढ़ने के साथ-साथ ढाल प्रवणता तथा उच्चावच अनुपात में वृद्धि होती है (सारणी संख्या 6)।
4.9 घाटी परिच्छेदिका (Valley Profile)
घाटी परिच्छेदिका को दीर्घ परिच्छेदिका भी कहते हैं तथा इससे अपवाह के जलमार्ग की लम्बी घाटी का बोध होता है। अध्ययन क्षेत्र में मुख्य टोंस नदी उपत्यका में ढाल की तीव्रता तथा अपरदन की स्थिति को ज्ञात करने के लिये घाटी परिच्छेदिका की रूपरेखा तैयार की गयी है जोकि चित्र संख्या 3 में स्पष्ट रेखांकित की गयी है।
मुख्य टोंस नदी उपत्यका की लम्बाई 210 कि.मी. है तथा इसकी ढाल प्रवणता 1.60 है यह परिच्छेदिका उद्गम से 2500 मी. की ऊँचाई तक तीव्र ढाल-युक्त घाटी को प्रदर्शित करती है इसके पश्चात 2000 मी. से 1500 मी. की ऊँचाई तक ढाल मध्यम तीव्र हो जाता है इस क्षेत्र में ग्रेनाइट की चट्टानें विद्यमान है जिनकी कठोर संरचना के परिणाम स्वरूप उत्तल ढाल का निर्माण हुआ है। 2000 मी. की ऊँचाई पर ग्रेनाइटिक, माइकाशिस्ट की चट्टानें विद्यमान है, यहाँ पर अनुदैर्ध्य परिच्छेदिका यह प्रदर्शित करती है कि इस भाग पर नदी द्वारा वी (V) आकार की घाटी का निर्माण किया गया है। 1500 मी. की ऊँचाई पर नदी तीव्र उत्तल ढाल का निर्माण किये हैं यह भाग माइकाशिस्ट की चट्टानों द्वारा निर्मित है। यहाँ पर अनुदैर्ध्य परिच्छेदिका से यह ज्ञात होता है कि नदी द्वारा गहरी घाटी का निर्माण किया गया है तथा मध्यम घाटी भाग पर अवतल ढालयुक्त संरचना का निर्माण हुआ है। 600 मी. से 1400 मी. की ऊँचाई तक नदी मंद ढाल तल पर प्रवाहित होती है तथा यहाँ खड्ड के मध्य होकर गुजरती है।
चित्र संख्या 3 में टोंस नदी की परिच्छेदिका के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि सभी अपवाह 1600 मी. से अधिक ऊँचाई भाग तक बाल्यावस्था तथा तरूणावस्था के मध्य विकसित होकर प्रवाहित हुई है जिसके कारण इस क्षेत्र में अपरदन की क्रिया तीव्र है तथा नदी तीव्र ढालयुक्त सतह पर प्रवाहित होती है इससे निम्न ऊँचाई की ओर नदी प्रौढ़ावस्था से युवावस्था का स्वरूप धारण कर देती है तथा अपरदन की तीव्रता मंद ढाल के साथ-साथ कम हो जाती है, जिससे अपवाह गहरे महाँखड्डों के मध्य प्रवाहित होना प्रारम्भ कर देती है।
5. टोंस नदी में जल संसाधन
जल संसाधन की दृष्टि से उत्तराखण्ड को 35 प्रतिशत भाग मॉनसून से, 40 प्रतिशत भाग हिम पिघलने से तथा 25 प्रतिशत भाग स्रोतों तथा झीलों से प्राप्त होता है। हिमालय से निकलने वाली नदियों का प्रवाह लगभग 1100000 मिलियन क्यूबिक मीटर जल प्रतिवर्ष प्रवाहित होता है, जिसकी विद्युत उत्पादन क्षमता 24000 मिलियन किलोवाट है। यद्यपि समग्र रूप से कुल प्रवाह के आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन उपलब्ध आँकड़ों से मालूम होता है कि उत्तराखण्ड की प्रमुख नदियों का वार्षिक औसत बहाव, यमुना नदी का 670.9 क्यूबिक मी. प्रति सेकेंड जबकि टोंस का 1861.2 क्यूबिक मी. प्रति सेकेंड है। सरयू का 95.21, काली नदी का 180.58, पश्चिमी राम गंगा का 119.10, कोसी नदी का 21.34, गोला नदी का 42.21, क्यूबिक मी. प्रति सेकेंड है। कुल मिलाकर क्षेत्र से 22,575 मिलियन क्यूबिक मी. जल प्रतिवर्ष प्रवाहित होता है जिसकी विद्युत उत्पादन क्षमता लगभग 9000 मेगावाट है। यदि टोंस नदी की बात करें तो टोंस नदी का कुल जल लगभग 50 प्रतिशत भाग मानसूनी वर्षा से, 40 प्रतिशत भाग हिमनदों के पिघलने से तथा 10 प्रतिशत भाग जल स्रोतों तथा झीलों से प्राप्त होता है।
5.1 हिम जल संसाधन
भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग ने 2009 में एक ग्लेशियर इन्वेंट्री जारी की जिसमें उत्तराखण्ड में कुल 968 हिमनद हैं जिसमें सबसे अधिक चमोली जिले में 310 हिमनद जिनका कुल क्षेत्रफल 1038.53 वर्ग कि.मी. है। सबसे कम टिहरी जिले में है जिनकी संख्या 13 है तथा कुल क्षेत्रफल 88.23 वर्ग कि.मी. है। पिथौरागढ़ जिले में हिमनदों की संख्या 295 है जिनका कुल क्षेत्रफल 779.26 वर्ग कि.मी. है, यह जनपद राज्य का दूसरा सबसे अधिक हिमनद वाला जनपद है। उत्तरकाशी जिला का संख्या के हिसाब से तीसरा स्थान है जबकि हिमनद क्षेत्रफल के हिसाब से दूसरा स्थान है जिसमें कुल 277 हिमनद हैं जिनका कुल क्षेत्रफल 812.51 वर्ग कि.मी. है। रूद्रप्रयाग जिले में 24 हिमनदों ने 56.8 वर्ग कि.मी. तथा बागेश्वर जिले में 49 हिमनदों ने 108.75 वर्ग कि.मी. क्षेत्र घेरा हुआ है।
यदि नदी घाटी के हिसाब से बात करें तो सबसे अधिक हिमनद अलकनंदा घाटी में है जिनकी संख्या 457 है तथा क्षेत्रफल 1434.56 वर्ग कि.मी. जिसका आयतन 170.37 घन कि.मी. है। सबसे कम हिमनद रामगंगा बेसिन में अंकित किये गये हैं जिनकी संख्या 7 हैं तथा क्षेत्रफल 6.74 वर्ग कि.मी. व आयतन 0.322 घन कि.मी. है। टोंस नदी में कुल 102 हिमनद हैं जिनका कुल क्षेत्रफल 162.58 वर्ग कि.मी. और आयतन 17.43 घन कि.मी. है। हिमनद की संख्या, क्षेत्रफल तथा आयतन के हिसाब से टोंस नदी उत्तराखण्ड में छठवां स्थान रखती है जोकि क्रमशः 102, 162.58 वर्ग कि.मी. तथा 17.43 घन कि.मी. है। सारणी संख्या 8 से स्पष्ट होता है कि टोंस नदी में हिमनद भी जल संसाधन का प्रमुख स्रोत है।
6. वर्षाजल संसाधन (Rain Fall)
सारणी 9 से स्पष्ट है कि टोंस नदी बेसिन में 17 वर्ष की औसत वर्षा 116.39 से.मी. मापी गयी है। सबसे अधिक वर्षा 143.79 से.मी. वर्ष 2010 में मापी गयी जबकि सबसे कम वर्षा 73.09 से.मी. 1993 में मापी गयी। सत्रह साल के वर्षा के आँकड़े यह बताते हैं कि वर्षा का सबसे अधिक प्रतिशत जुलाई अगस्त तथा सितम्बर के महीनों में मापा गया है। सामान्य वर्षा के आधार पर 1998, 2008, 2010, 2011 तथा 2013 को सामान्य से अधिक वर्षा वाला काल तथा वर्ष 1994, 2000, 2002, 2004 तथा 2014 को सामान्य से कम वर्षा होने के कारण सूखाग्रस्त काल माना गया। उच्चावचन में भिन्नता के साथ तापमान में भी परिवर्तन दिखाई देता है। घाटियाँ तुलनात्मक दृष्टि से अधिक गरम तथा पर्वत श्रृंखलायें अत्यधिक ठण्डी हैं। टोंस नदी बेसिन के ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं पर शीतकाल में बर्फ पड़ना एक सामान्य प्रक्रिया है।
सारणी संख्या 9 में 17 वर्ष के (1998-2014) आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि टोंस नदी में कुल वर्षा 1978.67 से.मी. हुई जिससे 101.81 घन मी. पानी प्रवाहित हुआ। टोंस नदी की अन्य आठ उपत्यकाओं में सबसे अधिक प्रवाहित जल ऊपरी टोंस में 35.98 घन मी. हुआ जिसका स्रोत कुल 1789.33 से.मी. वर्षा थी। सबसे कम प्रवाहित जल अमत्यारगाड में 1.00 घन मी. रहा तथा कुल वर्षा 2402.60 से.मी. थी। अन्य उपत्यकाओं जैसे नीरा गाड में कुल वर्षा 2394.30 से.मी. तथा प्रवाहित जल 7.95 घन मी., शाणोगाड में कुल वर्षा 2086.99 से.मी. तथा प्रवाहित जल 11.05 घन.मी., इसी क्रम में पबार नदी में कुल वर्षा 1789.33 से.मी. तथा प्रवाहित जल 25.77 घन.मी., दारागाड में कुल वर्षा 2853.13 से.मी. तथा प्रवाहित जल 2.69 घन.मी., बेनालगाड में कुल वर्षा 2853.13 से.मी. जबकि प्रवाहित जल 3.01 घन.मी. रहा।
निष्कर्ष
भूआकारमिती को आधार मानते हुए यदि हम जल संसाधन की बात करें तो हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि ऊपरी टोंस में 35.98 घन.मी. जल प्रवाहित होता है तथा कुल वर्षा 1789.33 से.मी. है, परन्तु अमत्यारगाड जो सबसे कम जल प्रवाहित कर रही है उस घाटी में ऊपरी टोंस से अधिक वर्षा होती है। इसका प्रमुख कारण है ऊपरी टोंस नदी आठवें श्रेणीक्रम की सहायक नदी है जबकि अमत्यारगाड चौथे श्रेणी क्रम में प्रवाहित होती है। ऊपरी टोंस नदी क्षेत्रफल सबसे अधिक 194.00 वर्ग कि.मी. है तथा अमत्यारगाड का क्षेत्रफल 41.5 वर्ग कि.मी. है जो सबसे कम है। ऊपरी टोंस नदी की सापेक्षिक ऊँचाई, उच्चावचन अनुपात, अपवाह घनत्व तथा बारम्बारता का मान कम है तथा आकार सूचकांक के अनुसार यह घाटी लम्बी है परन्तु अमत्यारगाड की आकृति, सूचकांक का मान अधिक है तथा आकार सूचकांक के अनुसार यह भी लम्बी है। इन्हीं कारणों से ऊपरी टोंस, पबार नदी, शाणोगाड और मीनस नदी क्रम के अनुसार अच्छे जल संसाधन के स्रोत हैं। अन्य सभी द्रोणियाँ जल संसाधन के लिये सामान्य हैं जैसे कि नीरागाड 3.99 घन.मी., दारागाड 2.69 घन.मी., बेनालगाड 3.9 घन मी. जल प्रवाहित करती हैं।
अतः भूआकारमिति के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि जिस नदी का क्षेत्रफल, परिधि, नदी की लम्बाई, बेसिन की लम्बाई, घाटी की लम्बाई, घाटी की हवाई दूरी अधिक है, वहाँ जल घनत्व भी अधिक है, जैसे ऊपरी टोंस का जल प्रवाह 35.98 घन.मी. (सारणी सं. 10), वहीं दूसरी ओर अमत्यारगाड का जल प्रवाह सबसे कम 1.00 घन.मी. है।
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