रुक्मणी देवी की सक्रिय भागीदारी से बदली गांव की तस्वीर

Submitted by birendrakrgupta on Thu, 10/02/2014 - 23:46
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कुरुक्षेत्र, सितंबर 2011
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और सूचना के अधिकार ने गरीब तबके को किस तरह से सशक्त किया है - राजस्थान के राजसमंद की विजयपुरा ग्राम पंचायत का भ्रमण कर यह जाना जा सकता है। यहां की सरपंच रुक्मणी देवी ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल कर यह साबित कर दिया कि भ्रष्टाचार रोकने में इसे हथियार के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। उन्होंने सूचना के अधिकार का प्रयोग कर 85 महिलाओं को पेंशन दिलाई। राशन वितरण में चल रही मनमानी को रुकवाया और मनरेगा के तहत गांव की सैकड़ों महिलाओं को स्वावलंबी बनाया। इनकी इसी प्रतिबद्धता के कारण उन्हें ‘इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंस’ की ओर से महिला सरपंच लीडर अवार्ड से सम्मानित किया गया है।पद एवं प्रतिष्ठा किसी की जागीर नहीं होती है। जो समाज के बीच ईमानदारी से काम करते हैं और नेतृत्व करने की क्षमता रखते हैं, उन्हें इस देश की जनता अपना नेता चुनती है। ईमानदारी और नेतृत्व क्षमता किसी की मोहताज नहीं है। कुछ ऐसी ही कामयाबी हासिल की है राजस्थान के राजसमंद जिले की ग्राम पंचायत विजयपुरा की सरपंच रुक्मणी देवी साल्वी ने। इस ग्राम पंचायत में प्रवेश करते ही बड़ा-सा बोर्ड दिखता है, जिस पर लिखा है - विजयपुरा ग्राम पंचायत में आपका स्वागत है। यहां की सूचनाएं सबके लिए खुली हैं। आज यह ग्राम पंचायत और यहां की सरपंच अपनी ईमानदारी के दम पर पूरे देश में चर्चा में हैं। रुक्मणी दलित हैं। ये साल्वी समाज का हिस्सा हैं जो पेशे से बुनकर हैं। वह पहले मनरेगा में काम करती थी और आज मनरेगा की मॉनीटर (सरपंच) हैं। रुक्मणी देवी बिना किसी लाग-लपटे के कहती हैं कि गावों में भ्रष्टाचार रोकने के लिए सबसे पहले सरपंच को ईमानदार होना होगा। सरपंच चाहे तो भ्रष्टाचार को रोका जा सकता है। वह कहती हैं कि महिलाएं किसी भी मामले में पीछे नहीं हैं, वह हर काम कर सकती हैं। बस कुछ करने के लिए इरादा पक्का होना चाहिए। उनका सबसे बड़ा सपना है ग्राम पंचायत की हर बालिका को उच्च शिक्षा दिलाकर रोजगार से जोड़ना और ग्राम पंचायत में इतने विकास कार्य करना, जिससे उनकी ग्राम पंचायत का नाम भारत ही नहीं पूरी दुनिया में हो।

सरपंच रुक्मणी देवी साल्वी की सक्रियता का ही परिणाम है कि विजयपुरा ग्राम पंचायत में अगर कोई कुछ भी गड़बड़ करने की बात सोचता भी है तो उसे मुंह की खानी पड़ती है क्योंकि वह सूचना के अधिकार को हथियार के रूप में प्रयोग करती हैं। वह सिर्फ साक्षर हैं, लेकिन उन्हें यह तरीका पता है कि पारदर्शिता से सरपंच की जिम्मेदारी कैसे निभाई जा सकती है। गांव के लोगों ने उन्हें जो अधिकार सौंपे हैं, उसका प्रयोग कैसे किया जा सकता है? उनकी सक्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ग्राम पंचायत की बैठक कभी भी टलती नहीं है। नियमित समय पर ग्राम पंचायत की बैठक होती है और उसमें लिए गए निर्णय भी सार्वजनिक किए जाते हैं। वह लोगों के बीच जाकर समस्याएं सुनती हैं। अपने स्तर पर निस्तारण की कोशिश करती हैं और खुद निस्तारण करने में असफल होने पर शिकायतकर्ता की समस्या को अपनी समस्या मान कर उनका निस्तारण कराने के लिए संबंधित अधिकारियों के पास पहुंच जाती हैं।

सरपंच बनने के बाद भी रुक्मणी देवी के रहन-सहन में किसी तरह का बदलाव नहीं आया है। ‘सादा जीवन उच्च विचार’ की धारणा बचपन से थी और उस पर आज भी कायम हैं। ईमानदारी को सबसे बड़ी पूंजी मानती हैं। उनकी इसी सक्रियता के कारण विजयपुरा ग्राम पंचायत की पहचान राजस्थान ही नहीं पूरे देश में हो चुकी है। एक महिला सरपंच की ओर से सूचना के अधिकार का सर्वाधिक प्रयोग करने के लिए विजयपुरा की सरपंच रुक्मणी देवी को कई सम्मान भी दिए जा चुके हैं।

रुक्मणी देवी कहती हैं कि बालिकाएं किसी से कम नहीं हैं बस उन्हें मौका दिए जाने की जरूरत है। जब तक लड़कों की तरह लड़कियों को भी उच्च शिक्षा नहीं दिलाई जाएगी तब तक समाज व देश का विकास नहीं हो सकता है।ग्राम पंचायत में पारदर्शिता कैसे बरती जाए, के सवाल पर रुक्मणी देवी जवाब देती हैं कि सबसे पहले सरपंच को ईमानदार होना होगा। जब सरपंच ईमानदार होगा तो ग्राम पंचायत विकास अधिकारी भी पारदर्शी होने के लिए विवश हो जाएगा। इसके अलावा ग्राम पंचायत के विकास में भूमिका निभाने वाले दूसरे लोग भी किसी तरह का भ्रष्टाचार नहीं फैला पाएंगे। ईमानदारी की वजह से जब ग्रामीणों का साथ होगा तो हर भ्रष्टाचारी को सजा दिलाई जा सकेगी। इसलिए हर व्यक्ति को अपने स्तर पर सबसे पहले खुद ईमानदार और पारदर्शी होना होगा।

वह बताती हैं कि अपने गांव की सूचनाएं और हिसाब-किताब पंचायत दफ्तर की दीवारों पर लिखवाती हैं। कोई भी व्यक्ति किसी भी समय ग्राम पंचायत के कार्यों के बारे में जानकारी ले सकता है। वह ग्राम पंचायत के विकास कार्यों का लेखा-जोखा भी खुली किताब की तरह रखती हैं। यही वजह है कि गांव में प्रवेश करते ही दीवारों पर योजनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी लिखी हुई मिल जाती है। किस योजना में किसे किस तरह लाभ दिया गया इसका भी हिसाब-किताब सूचना बोर्ड की तरह सबके सामने रहता है।

सूचना के अधिकार को बनाया हथियार


सूचना के अधिकार का गरीब किस तरह से इस्तेमाल करें, ये रुक्मणी देवी से सीखा जा सकता है। वह बताती हैं कि उनके गांव में विधवा महिलाओं को पेंशन नहीं मिलती थी। उनके सरपंच बनने के बाद महिलाओं ने शिकायत की और उन्हीं के जरिए सूचना के अधिकार के तहत पेंशन के बारे में जानकारी मांगी गई। धीरे-धीरे सारी व्यवस्थाएं अपने आप ढर्रे पर आ गई और 85 महिलाओं को पेंशन मिलने लगी है। सूचना के अधिकार के तहत एक के बाद एक मांगी गई सूचनाओं की वजह से यह गांव सुर्खियों में आ गया। ब्लॉक से लेकर जिले और राजधानी तक में सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारियों की चर्चा होने लगी। सभी ने इस प्रयास को सराहा। अभी भी यह सफर जारी है।

अगर गांव में किसी गरीब को राशन नहीं मिल रहा है या किसी विधवा को पेंशन के लिए बार-बार चक्कर काटने पड़ रहे हैं तो वह सीधे रुक्मणी देवी के पास पहुंचती है। सरकार ने रुक्मणी देवी को सूचना का ऐसा अधिकार दिया है, जिसके जरिए वह हर समस्या का समाधान ढूंढ लेती हैं और सरकारी मशीनरी को गरीबों की बात सुनने के लिए विवश कर देती हैं।

मनरेगा श्रमिक का अनुभव काम आया


केंद्र सरकार की ओर से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून बनने के बाद मजदूर किस तरह से सशक्त हुए हैं, इसे भी रुक्मणी की जुबानी बहुत ही बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। वह बताती हैं कि सरपंच बनने से पहले वह खुद मनरेगा श्रमिक थीं। उन्होंने खुद मनरेगा के तहत सौ दिन काम किया। मनरेगा ने ग्रामीण इलाके की महिलाओं का बहुत भला किया है। इससे महिलाएं स्वावलंबी बन सकी हैं। वे अपने जीविकोपार्जन के लिए परिवार के दूसरे सदस्यों पर आश्रित नहीं रह गई हैं। मनरेगा में महिलाओं के लिए दी गई अतिरिक्त सुविधाओं की वजह से महिलाओं की कई समस्याओं का समाधान हो गया है।

मनरेगा में कहां-कहां खामियां हो सकती हैं, इसके बारे में उन्हें बहुत ही गहराई से समझ है। वह पढ़ी-लिखी भले नहीं हैं, लेकिन अनुभव इतना है कि अच्छे-अच्छे पढ़े-लिखे लोगों को मनरेगा के एक-एक पहलू को समझाने का माद्दा रखती हैं। वह कहती हैं कि सरपंच जानकार हो तो मनरेगा में किसी भी कीमत पर धांधली नहीं हो सकती है। जैसाकि उन्होंने कर दिखाया है। काम कुछ, पैसा कुछ और यूं ही अंगूठा यहां कोई करता ही नहीं, क्योंकि इसी तरह की कितनी ही गड़बड़ियां रुक्मणी रोक चुकी हैं। वह बताती है कि मनरेगा में काम करते समय गड़बड़ियां पकड़ने की वजह से ही उनकी गांव में पहचान बनीं। मजदूरों की समस्याओं को लेकर संघर्ष करने वाले पति कालूराम का सहयोग मिला। उन्होंने महिलाओं का नेतृत्व किया और उनके हक को लेकर लड़ाई लड़ी। इस वजह से सभी की चहेती हो गईं और गांव के लोगों ने उन्हें सरपंच की जिम्मेदारी सौंप दी।

न गाड़ी न घोड़ा, ईमानदारी से वोट देना


पंचायत चुनाव के दौरान व्यापक तौर पर होने वाले धन-बल के इस्तेमाल को भी रुक्मणी देवी ने नकार दिया। वह बताती हैं कि उनके पति भी सरपंच रह चुके हैं। बीते चुनाव में उनके ग्राम पंचायत में आर्थिक रूप से ताकतवर कई लोग चुनाव लड़ रहे थे। काफी दबाव भी था, लेकिन गांव की महिलाओं ने उनके नाम का प्रस्ताव रखा। महिलाओं के हौंसले को देखते हुए चुनाव मैदान में उतरी। फरवरी में चुनाव हुए। उस समय मेरे पास सिर्फ तीन हजार रुपये थे, जिसे हमने नामांकन से लेकर चुनाव होने तक खर्च किया।

एक तरफ आर्थिक रूप से सुदृढ़ लोग धनबल का प्रयोग कर रहे थे। दूसरी तरफ हमारे साथ मौजूद महिलाएं घर-घर जाकर लोगों को समझा रही थीं। हमारा नारा था- दारु पियोगे तो पांच साल पछताओगे, ईमानदारी लानी है तो रुक्मणी को जिताना है। न गाड़ी है न घोड़ा, ईमानदारी से वोट देना। ये नारे विजयपुरा की हर गली में गूंजे। लोगों को हमारी बात समझ में आ गई। महिला मतदाताओं ने मतदान के दौरान अपनी ताकत का अहसास कराया और हमें सरपंच बनाकर ही दम लिया। चुनाव के समय गांव वालों से वादा किया कि अगर जीतीं तो पंचायत के काम में पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता बरतेंगी। जहां और सरपंचों को खुद को और अपने काम को साबित करने में अरसा लग जाता है, वहीं महज डेढ़ साल के कम वक्त में ही रुक्मणी देवी साल्वी ने खुद को साबित कर दिखाया। गांव में प्यार से उन्हें सब सरपंच साहब कहते हैं।

उनकी दूसरी सबसे बड़ी कामयाबी यह है कि उनकी पंचायत पूरे वक्त खुली रहती है। ग्रामसभा और वार्डसभा की बैठकें भी बराबर होती हैं। आमतौर पर ऐसा कम ही देखा जाता है। इससे इलाके के गरीबों, विधवाओं, बेरोजगारों और पिछड़ों को अपना हक मिलना आसान हो गया है। आंगनवाड़ी, स्कूल, दाई, राशन डीलर सभी के कामकाज पर पूरी निगाह रखती हैं।

नौ गांवों का समुचित विकास


विजयपुरा ग्राम पंचायत में कुल नौ गांव आते हैं। अब उनकी कोशिश है कि हर गांव में एक तालाब बने, जिससे गांववालों की रोजमर्रा के पानी की जरूरत पूरी हो सके। इसी के मद्देनजर पीने के पानी की कमी पूरी करने के लिए छोटे गांवों में उन्होंने पनघट योजना शुरू की है। चारागाहों में सुधार और पौधारोपण के जरिए भी जल संरक्षण किया। इस तरह उनके गांव में पानी की समस्या भी खत्म हो गई और पर्यावरण की दृष्टि से उनका गांव हरा-भरा हो गया है।

गांव के 125 लोगों को बापी पट्टे (आवासिक पुराने घरों को पट्टे जारी करना) दिए। पालनहारी योजना के तहत गांव की विधवा औरतों के बच्चों को 18 साल की उम्र तक पढ़ाई के लिए 700 रुपये महीने और 2,000 रुपये सालाना मिल रहे हैं। इसके अलावा, गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों के लिए जनश्री योजना भी चल रही है। इसके अतिरिक्त केंद्र एवं राज्य सरकार की ओर से चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं का वरीयता के आधार पर संचालन किया जा रहा है।

दीवारों पर लिखी मिलेंगी सभी योजनाएं


रुक्मणी देवी का मानना है कि सरकार की ओर से चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के बारे में जब ग्रामीणों को जानकारी होगी तो धांधली की गुंजाइश अपने आप कम हो जाएगी। यही वजह है कि वह ग्राम पंचायत के कामकाज के बारे में छोटी-बड़ी सारी जानकारी ग्राम पंचायत के दफ्तर के दीवारों पर लिखवा देती हैं। रुक्मणी बताती हैं कि पंचायत, सामुदायिक भवन, आंगनवाड़ी, स्कूल, हेल्थ सेंटर जैसे सभी सार्वजनिक स्थलों की दीवारों को पीला पेंट कराकर उस पर हरे पेंट से आरटीआई, मनरेगा, पंचायत बिल, वाउचर और मस्टर रोल्स का पूरा खुलासा हम करते हैं। इसे गांववाले भी देखते हैं और अनजान लोग भी। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि लोगों को ज्यादा से ज्यादा जानकारी मिलती है और उनकी ईमानदारी पर शक की गुंजाइश ही नहीं रह जाती है।

काम आए अनुभव


महिलाओं के साथ काम करने का उनका अनुभव आज सरपंच के रूप में भी काम आ रहा है। उनके पति कालूराम पहले सरपंच रह चुके हैं। उनके कार्यकाल में आने वाली समस्याओं को वह भी जानती थीं। इस वजह से आज सशक्त रूप से हर समस्या का सामना कर पा रही हैं। रुक्मणी की मानें तो वह ईमानदारी को जीवन की सबसे बड़ी खुशी मानती हैं। पति का साथ मिलने के बाद सबसे पहले यही सपना संजोया था कि जीवन में चाहे जितने भी झंझावात आए, ईमानदारी का जीवन जीना है। अपनी कामयाबी के पीछे भी ईमानदार छवि का होना सबसे बड़ा कारण मानती हैं।

अब स्टांप पैड नहीं हैं महिलाएं


रुक्मणी देवी कहती हैं कि अब महिलाएं स्टांप पैड नहीं हैं। पंचायती राज अधिनियम में हुए संशोधन के बाद महिलाओं को जो अधिकार मिले हैं, उससे वे सशक्त हुई हैं। वह अपने बारे में खुद बताती हैं कि उनके पति अपना काम करते हैं और वह अपना। जब उनके पति सरपंच थे तो उन्होंने कभी भी उनके फैसले को प्रभावित करने की कोशिश नहीं की। आज वह सरपंच हैं तो उनके पति भी किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं करते हैं। मैं जो भी योजना बनाती हूं, उसमें पूरे ग्राम पंचायत के लोगों की भागीदारी होती है। वह राष्ट्रपति तक का उदाहरण देती हैं और कहती हैं कि देश की प्रथम नागरिक भी महिला ही हैं, इसलिए ग्राम पंचायत स्तर पर महिलाओं को कभी भी कमजोर नहीं समझा जाना चाहिए। महिलाएं हर तरह के फैसले लेने की कूबत रखती हैं।

महिला शिक्षा पर जोर


रुक्मणी देवी साल्वी खुद पढ़ी-लिखी नहीं हैं, बस साक्षर हैं। इस वजह से वह चाहती हैं कि उनकी ग्राम पंचायत के बालक-बालिकाओं को उच्च शिक्षा मिले। वह बालिकाओं को अधिक से अधिक पढ़ाने पर जोर देती हैं। जिस भी घर में जाती हैं, सबको यही समझाती हैं कि बेटी को खूब पढ़ाओ, ताकि वे कुछ बनकर दिखा सकें। बालिकाएं किसी से कम नहीं हैं बस उन्हें मौका दिए जाने की जरूरत है। जब तक लड़कों की तरह लड़कियों को भी उच्च शिक्षा नहीं दिलाई जाएगी तब तक समाज व देश का विकास नहीं हो सकता है। वह कहती हैं कि संयोग से उनके पास अनुभव है, इस वजह से अधिकारी उन्हें किसी तरह का झांसा नहीं दे सकते हैं। लेकिन कम पढ़ी-लिखी होने का नुकसान कई बार उठाना पड़ता है। उनके जमाने में परिस्थितियां अलग थी, जिसकी वजह से वह पढ़ाई नहीं कर सकीं।

हालांकि वह यह भी दोहराती हैं कि अभी भी उन्होंने हार नहीं मानी है। सरपंच चुने जाने के बाद यह उत्साह और बढ़ गया है। वह साक्षर से शिक्षित बनना चाहती हैं और इस दिशा में अग्रसर भी हैं। इसके अलावा वह बाल-विवाह रोकने की दिशा में भी अग्रसर हैं। वह घर-घर जाकर बालिकाओं को स्कूल भेजने के लिए अभिभावकों को प्रेरित कर रही हैं। साथ ही उन्हें यह भी समझा रही हैं कि बाल-विवाह से किस तरह की खामियों का सामना करना पड़ता है। वे लोगों को बताती हैं कि पहले बेटियों को पढ़ाओ और उन्हें कुछ करने लायक बनाओ, फिर शादी करो। क्योंकि जमाना बदल रहा है। इस जमाने में बेटियों का स्वावलंबी होना जरूरी है।

मिला सम्मान


ब्लॉक से लेकर जिला स्तर और फिर राष्ट्रीय स्तर पर मिलने वाले सम्मान से रुक्मणी खुश हैं। महिला पंचायत नेता का अवार्ड मिलने से प्रसन्न रुक्मणी कहती हैं कि उनके काम पर देशभर की निगाह है, यह उनके लिए गर्व की बात है। वह कहती हैं कि वह अपनी ग्राम पंचायत को देशभर की सबसे मॉडल ग्राम पंचायत बनाना चाहती हैं ताकि पूरी दुनिया विजयपुरा देखने को लालायित हो जाए। वह कहती हैं कि पांच साल के कार्यकाल में विजयपुरा को दुनिया का सबसे विकसित ग्राम पंचायत बनाने का सपना है और इस सपने को पूरा करने के लिए वह किसी तरह की कोर-कसर बाकी नहीं रखेंगी।

इस तरह देखा जाए तो रुक्णणी देवी ने यह साबित कर दिया कि एक सरपंच की सक्रिय भागीदारी से गांव की तस्वीर बदल सकती है। बिना कागज और बिना कंप्यूटर के भी कैसे एक-एक पैसे का हिसाब और सूचनाएं लोगों तक पहुंचाई जा सकती हैं। अब सरपंच बनने के बाद रुक्मणी देवी ने खुद को दूसरों की सेवा में समर्पित कर दिया है। सुबह होते ही उनके घर पर फरियादियों की भीड़ लग जाती है। किसी का राशनकार्ड दुरुस्त कराना होता है या किसी की जमीन पर हुए अवैध कब्जे को हटवाना। इन सभी जिम्मेदारियों को वह बखूबी निभा रही हैं। रुक्मणी ने पंचायत में औरतों को नई राह दिखाई है। मनरेगा को सही तरीके से लागू करना, सूचना के अधिकार का सही इस्तेमाल और रोजमर्रा के पंचायत के कामकाज में पारदर्शिता रुक्मणी के ऐसे बेमिसाल काम हैं जिनके बारे में जितनी भी तारीफ की जाए, कम है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
ई-मेल: poorankumawat_1@yahoo.com