आरओ प्लांट कैसे काम करता है

Submitted by Editorial Team on Wed, 07/22/2020 - 08:54
Source
जल चेतना, खण्ड 7, अंक 1, जनवरी 2018, जलविज्ञान संस्थान, रुड़की

प्रतीकात्मक तस्वीर, फोटो : https://www.pendleton.marines.milप्रतीकात्मक तस्वीर, फोटो : https://www.pendleton.marines.mil

‘आरओ प्लांट’ का शाब्दिक अर्थ है ‘‘रिवर्स ऑस्मोसिस प्लांट’’। यह एक ऐसी आधुनिक मशीन है, जो खारे पानी में मौजूद विभिन्न प्रकार के लवण (नमक) और अन्य हानिकारक जीवाणुओं को अलग करके स्वच्छ व शुद्ध पेयजल उपलब्ध करवाती है।

‘आरओ प्लांट’ के भाग - 

‘आरओ प्लांट’ विभिन्न प्रकार के छोटे-बड़े उपकरणों को जोड़कर तैयार की गई मशीन है। इस प्लांट के प्रमुख भाग इस प्रकार हैंः

1. कंट्रोल पैनल: पूरे प्लांट को नियंत्रित करने के लिए कंट्रोल पैनल का सहारा लिया जाता है। यह पैनल प्लांट को मिलने वाले विद्युत प्रवाह व उसके विभिन्न उपकरणों को होने वाली विद्युत सप्लाई को नियंत्रित करता है। इसमें कई छोटे-बड़े बटन लगे होते हैं, इनमें प्रमुख हैं - 

  • ऑटो: इस बटन को दबाने पर मशीन स्वतः ही कार्य करने लगती है। इस प्रणाली में सबसे पहले आरडब्ल्यू पंप (राॅ वाटर पंप) चलता है, जिसके दस सेकंड बाद हाई प्रेशर पंप स्वतः कार्यरत हो जाता है।
  • मैन्यूअल: इस बटन को दबाने से मशीन स्वतः कार्य नहीं करती, बल्कि हमें स्वयं कंट्रोल पैनल पर लगे अलग-अलग बटनों को दबाना पड़ता है ताकि मशीन शुरू हो सके। यह बटन बैक वाॅश व मेम्ब्रेन वाॅश (फिल्टरों की सफाई) प्रक्रिया में भी कार्य करता है।
  • वोल्टमीटर: यह मीटर बिजली के वोल्टेज को दर्शाता है। इस मीटर में 400 वोल्टेज की बिजली सप्लाई दर्ज होनी चाहिए। अगर मीटर में बिजली 400 वोल्टेज से कम है, तो प्लांट न चलाएं। इसका अर्थ है कि 3 फेस बिजली की आपूर्ति नहीं हो रही है और मशीन चलाने पर खराब हो जाती है।
  • एम्पियर मीटर: यह मीटर बिजली के एम्पियर को दर्शाता है। एम्पियर बिजली नापने की एक इकाई है। 
  • टी.डी.एस. मीटर: यह मीटर मशीन द्वारा उत्पादित किए गए स्वच्छ पानी के टी.डी.एस. (कुल घुलनशील अवयव) की मात्रा को दर्शाता है। इस मीटर से प्राप्त रीडिंग को रजिस्टर में प्रतिदिन दर्ज करना चाहिए। यदि मशीन 500 टीडीएस से अधिक दर्शा रही है तो प्लाटं न चलाएं और संबंधित व्यक्ति को तुरंत सम्पर्क करें।

2. आर.डब्ल्यू. पंप: यह पंप खारे पानी के टांके/टंकी से पानी को खींचकर मशीन में लगे फिल्टरों तक पहुँचाता है। इसलिए इसे आम भाषा में खारे पानी का पंप भी कहा जाता है। इस पंप की शक्ति 2 एचपी (हाॅर्स पावर) की होती है। यह पंप मशीन का महत्वपूर्ण अंग है। इस पंप की मदद से न केवल आरओ की प्रक्रिया बल्कि मेम्ब्रेन वाॅश व बैक वाॅश की प्रक्रिया भी की जाती है।

3. फ्लोमीटर: आरओ प्लांट में दो फ्लोमीटर लगे होते हैं। यह फ्लोमीटर पारदर्शी होते हैं और इन पर स्केल बनी होती है, जिसके माध्यम से हम यह जान सकते हैं कि पानी के बहाव की गति कितनी है। इन दोनों में से पहला फ्लोमीटर (क) यह दर्शाता है कि खारा पानी कितने लीटर प्रति घंटे के तहत मशीन में जाता है। वैसे सामान्यतः इसकी रीडिंग 2000-2500 लीटर प्रति घंटे होनी चाहिए। जबकि, दूसरा फ्लोमीटर (ख) शुद्ध पानी के बहाव को दर्शाता है और इसकी गति 1000 लीटर प्रति घंटा होनी चाहिए। इनकी गति को मेम्ब्रेन व ‘आरडब्ल्यू पंप’ पर बने वाॅल्व से नियंत्रित किया जा सकता है।

4. प्रेशर सैंड फिल्टर: यह प्लास्टिक से बना सिलिंडर के आकार का फिल्टर है, जिसमें बजरी, कंकर तथा छोटे पत्थरों की विभिन्न परतें होती हैं। खारा पानी जब इन परतों से गुजरता है, तो पानी में मौजूद तमाम सूक्ष्म तत्व (जिन्हें आंखों से नहीं देखा जा सकता) इसी में रह जाते हैं। इसे नियमित रूप से बैक वाॅश करना आवश्यक होता है।

5. कार्बन फिल्टर: यह प्लास्टिक से बना हुआ सिलिंडर के आकार का दूसरा फिल्टर है। इस फिल्टर में उच्च गुणवत्ता वाले कोयले की कई परतें होती हैं। यह सैंड फिल्टर से आने वाले पानी को पुनः फिल्टर करता है। इसे भी नियमित रूप से बैक वाॅश करना अति आवश्यक है। इन फिल्टरों से गुजरने पर पानी में मौजूद सूक्ष्म कण, रंग व दुर्गंध आदि साफ हो जाती है।

6. काॅल्टेज फिल्टर: यह प्लास्टिक के आवरण में ढका हुआ एक छोटा सिलिंडर के आकार का फिल्टर है। इस फिल्टर में स्पंजनुमा एक गट्टा लगा होता है, जो पानी के मट-मैलेपन तथा अन्य अशुद्धियों को दूर करता है। इसे हर 15 दिन के अंतराल में खोलकर देखना चाहिए। अगर इसका रंग गाढ़ा मटमैला हो तो इसे तुरंत बदल देना चाहिए। यह फिल्टर प्लांट की आरओ मेम्ब्रेन में सूक्ष्म कणों को जाने से रोकता है जिनसे मेम्ब्रेन को नुकसान पहुंच सकता है।

7. डोजिंग पंप: 'आरओ प्लांट' में चार डोजिंग पंप होते हैं। प्रत्येक डाेजिंग पंप प्लास्टिक की छोटी टंकी पर लगा होता है। इन पंप का प्रमुख काम प्लास्टिक की टंकी में मौजूद रसायनों को नियंत्रित मात्रा में आवश्यकतानुसार पानी में मिलाने का होता है। एक बार डोजिंग कन्टेनर भरने पर डोजिंग की प्रक्रिया से लगभग 8000 लीटर शुद्ध पानी का उत्पादन होता है। डोजिंग टंकियों को समय-समय पर पुनः रसायनों से भरते रहना चाहिए। 

चारों डोजिंग टंकियों में अलग-अलग रसायन भरे होते हैं और इनका अलग-अलग महत्व होता हैः

  • क्लोरीन डोजिंग: क्लोरीन की मात्रा 80 एम.एल. प्रति 35 लीटर होती है। इसका प्रमुख कार्य पानी में मौजूद अशुद्धियों को दूर करना होता है। यह डोजिंग सैंड फिल्टर से पहले पानी में मिलती है।
  • एसएमबीएस (सोडियम मैटा- बाईसल्फेट) डोजिंग: इसकी मात्रा 50 ग्राम प्रति 35 लीटर होती है। इसका कार्य पानी में घुली हुई क्लोरीन की मात्रा को न्यूनतम रखने का होता है, जिसे डी-क्लोरीन भी कहते हैं। क्लोरीन के कण मेम्ब्रेन के छिद्रों को बढ़ा देते हैं, इसलिए हमें क्लोरीन को मेम्ब्रेन में पहुंचने से पहले ही रोकना होता है।
  • एंटी स्कैलेंट डोजिंग: इसकी मात्रा 72 एमएल प्रति 35 लीटर होती है। यह ‘आरओ प्लांट’ के मेम्ब्रेन पर नमक को जमने नहीं देता है। यह सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसकी अनुपस्थिति में प्लांट किसी भी हालत में नहीं चलाना चाहिए। एसएमबीएस व एन्टी स्कैलेन्ट की डोजिंग नली हाई प्रेशर पंप से पहले पानी में मिलती है ताकि मेम्ब्रेन में जा रहे पानी में इनका अच्छे से मिश्रण हो सके। 
  • पीएच पाउडर डोजिंग: इस पाउडर की मात्रा 50 ग्राम प्रति 35 लीटर होती है। यह पाउडर पानी के पीएच मान को बराबर रखने में मदद करता है। पीएच एक वैज्ञानिक शब्द है जो कि किसी द्रव्य की अम्ल या क्षारियता को दर्शाता है। इसलिए पानी के संदर्भ में पीएच मान 7 होना चाहिए। अतः यह पाउडर पीएच मान को 6.5 से 7.5 के बीच बनाए रखने में मदद करता है।

8. एच. पी. पंप: एच. पी. यानी हाई प्रेशर पंप का प्रमुख काम खारे पानी को मेम्ब्रेन तक बहुत ही अधिक प्रेशर में पहुंचाने का होता है। यह पंप 5 हाॅर्स पावर का होता है। इस पंप द्वारा पानी में उच्च दबाव बनाया जाता है जिससे ‘आरओ’ की प्रक्रिया कार्यान्वित होती है।

9. मेम्ब्रेन: 'आरओ प्लांट' का सबसे अहम हिस्सा है मेम्ब्रेन। यह मेम्ब्रेन 4 इंच के गोलाकार प्लास्टिक पाइप के अंदर लगी होती है। यह मेम्ब्रेन असल में पोलिएस्टर के धागों से बना एक रोल होता है और इन धागों के मध्य में बहुत ही महीन कपड़ा लगा होता है, जो एक प्रकार से छन्नी के तौर पर काम करता है। यह मेम्ब्रेन चार भागों में बंटी होती है। मेम्ब्रेन का प्रमुख कार्य एचपी पंप से प्राप्त खारे पानी में मौजूद अशुद्धियों को दूर करना है एवं पीने योग्य शुद्ध जल का उत्पादन करना है। एक मेम्ब्रेन का आकार (40 x 4) इंच होता है जो हमें 250 लीटर प्रति घंटा पानी का उत्पादन देती है। चूंकि प्लांट की उत्पादन क्षमता 1000 लीटर प्रति घंटा है तो इस बड़ी नली में चार मेम्ब्रेन (250 x 4) कार्यरत रहती हैं।

10. यूवी फिल्टर: यू.वी. का शाब्दिक अर्थ है अल्ट्रा वाॅयलेट। 'आरओ प्लांट' में लगे इस उपकरण में मौजूद यू.वी. किरणों के बीच से पानी बहता है। ये यू.वी. किरणें पानी में मौजूद बैक्टीरिया व अन्य कीटाणुओं को खत्म कर देती हैं।

11. वाॅटर मीटर: यह मीटर उत्पादित पानी की कुल मात्रा को किलो लीटर में दर्शाता है। इससे हम जान सकते हैं कि आर.ओ. प्लांट ने कितना पानी अब तक उत्पादित किया है। इस रीडिंग को प्लांट चलाते समय व बंद करते समय लिखना होता है।

12. प्रेशर गेज: ‘आरओ प्लांट’ में 5 प्रेशर गेज लगे होते हैं। यह पानी के दबाव को केजी प्रति स्क्वेयर सेंटीमीटर के रूप में दर्शाते हैं। 

 

  • प्रेशर गेज (ए) व (बी): दो प्रेशर गेज सैंड फिल्टर व कार्बन फिल्टर पर लगे होते हैं तथा इनका दबाव 1 से 1.5 केजी प्रति स्क्वेयर सेंटीमीटर होना चाहिए। अगर प्रेशर गेज में दबाव बढ़ता है, तो इसका मतलब है फिल्टर में अशुद्धियां अधिक जमा हो गई हैं। इसलिए हमें फिल्टरों को बैक वाॅश करना पड़ेगा। इसके अलावा यदि दबाव कम है तो आर.डब्ल्यू पंप सही मात्रा में पानी सप्लाई नहीं कर पा रहा। ऐसे में पंप की तुरंत जांच करें।
  • प्रेशर गेज (सी): एक प्रेशर गेज काॅल्टेज फिल्टर से पहले लगा होता है तथा इसका दबाव भी 1 से 1.5 केजी प्रति स्क्वेयर सेंटीमीटर होना चाहिए। आमतौर पर काॅल्टेज फिल्टर में अशुद्धियां जमा होने पर प्रेशर गेज में दबाव बढ़ जाता है, इससे पानी की सप्लाई पर असर पड़ता है।
  • प्रेशर गेज (डी) व (इ): दो प्रेशर गेज मेम्ब्रेन पर लगे होते हैं। इनमें से पहला हाई प्रेशर पंप द्वारा मेम्ब्रेन में भेजे गए पानी का दबाव दर्शाता है, जो 10 से 16 केजी प्रति स्क्वेयर सेंटीमीटर हो सकता है। प्रेशर गेज का अगर दबाव कम है तो इसका मतलब है कि हाई प्रेशर पंप अपनी क्षमतानुसार कार्य नहीं कर रहा है या उसे फिल्टरों से उचित मात्रा में पानी नहीं मिल पा रहा। वहीं अगर दबाव अधिक है तो मेम्ब्रेन के चोक या जाम होने की संभावना है व उसे कैमिकल क्लीनिंग की आवश्यकता है। ध्यान न दिए जाने पर मेम्ब्रेन को नुकसान हो सकता है और प्लांट के उत्पादन पर असर पड़ सकता है।
  • प्रेशर गेज (ई): प्लाटं से निकलने वाले अशुद्ध पानी के दबाव को दर्शाता है तथा इसका दबाव 10 से 15 केजी सेमी. प्रति स्क्वेयर सेंटीमीटर तक होना चाहिए। इससे यह पता चलता है कि आर.ओ. प्लांट एक हजार लीटर प्रति घंटा स्वच्छ पानी का उत्पादन कर रहा है। यह दो प्रेशर गेज दरअसल मेम्ब्रेन की स्थिति पर निर्भर करते हैं व दिए गए दायरे में कार्य करते हैं।

सबसे पहले कंट्रोल पेनल पर लगे मेन स्विच को चालू करें तथा ऑटो बटन को दबा दें। इससे आरडब्ल्यू पंप चालू हो जाएगा और वह खारे पानी की टंकी से पानी को खींचकर सैंड फिल्टर में सप्लाई कर देगा। सैंड फिल्टर में खारा पानी कंकड़, बजरी आदि की विभिन्न परतों से होता हुआ फिल्टर होगा और उसके बाद पानी कार्बन फिल्टर में पहुंचेगा। कार्बन फिल्टर में पानी पुनः फिल्टर होगा और उसके बाद काॅल्टेज फिल्टर से होता हुआ पानी एच.पी. पंप तक पहुंचेगा। ऑटो व्यवस्था अनुसार टाइमर से एच.पी. पंप स्वतः आर.डब्ल्यू. पंप के दस सेकंड बाद शुरू हो जाता है। फिर एचपी. पंप प्रेशर से पानी को मेम्ब्रेन में भेजेगा। मेम्ब्रेन में स्वच्छ व दूषित पानी अलग हो जाएगा। इस प्रकार हमें आर.ओ. प्लांट से पीने का पानी उपलब्ध हो जाता है।

बैक वाॅश (फिल्टरों की सफाई): सैंड फिल्टर तथा कार्बन फिल्टर को साफ करने की प्रक्रिया बैक वाॅश कहलाती है। पानी के नियमित बहाव से इन फिल्टरों में ऊपर वाली परत पर अशु़िद्धयों की एक परत बन जाती है, जिन्हें इस प्रक्रिया द्वारा हटाया जाता है। यह प्रक्रिया आर.ओ. पंप को शुरू करने से पहले की जाती है, ताकि फिल्टरों में मौजूद अशुद्धियां साफ की जा सकें। बैक वाॅश की प्रक्रिया निम्न प्रकार से की जाती हैः

दोनों फिल्टरों पर एक हत्थानुमा बटन लगा होता है, जिसे सदैव फिल्टर-1 पर रखें। जब आपको बैक वाॅश करना हो तो हत्थानुमा बटन को बैक वाॅश-2 पर ले जाएं तथा खारे पानी के पंप को 15 मिनट तक चला दें। उसके बाद पंप को बंद करके बटन को रिन्स-3 पर ले जाएं और 5 मिनट चलाएं। यह प्रक्रिया सैंड फिल्टर के बाद कार्बन फिल्टर पर भी दोहराएं। इन दोनों फिल्टरों की सफाई करने के पश्चात यह ध्यानपूर्वक देखलें कि दोनों फिल्टरों के बटन एफ-1 पर वापस आ गए हों।

मेम्ब्रेन वॉश (मेम्ब्रेन की सफाई): हर दिन पानी उत्पादित करने (लगभग 5000 लीटर) के बाद मेम्ब्रेन वाॅश करना अनिवार्य होता है। पैनल को मैन्यूअल करने के बाद मेम्ब्रेन तथा साफ पानी की टंकी का वाॅल्व खोलकर आर.डब्ल्यू. पंप 10 मिनट तक चलाना चाहिए। इससे मेम्ब्रेन मीठे पानी से साफ हो जाती है। ध्यान रखें कि खारे पानी की टंकी का वाॅल्व मेम्ब्रेन वाॅश करते समय बंद रहे।

आर.ओ. प्लांट संचालन के नियम - 

  • 1. आर.ओ. मशीन को प्रतिदिन बैक वाॅश करना आवश्यक है। इससे फिल्टरों में अशुद्धियां जमा नहीं होंगी तथा स्वच्छ जल उपलब्ध हो सकेगा।
  • 2. बैक वाॅश प्रक्रिया में केवल खारे पानी का पंप ही कार्य करता है तथा एच.पी. पंप का इसमें कोई कार्य नहीं होता है।
  • 3. मेम्ब्रेन वाॅश रोज पानी उत्पादित करने के बाद जरूर करनी चाहिए।

‘आरओ प्लांट’ चलाने हेतु महत्वपूर्ण सावधानियां -

आर.ओ. मशीन एक तकनीकी इकाई है तथा इसके प्रत्येक भाग का अपना एक अलग महत्व है। प्रत्येक भाग अपनी कार्य प्रणाली के अंतर्गत ही कार्य करता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि, ये थ्री फेज बिजली से चलने वाली मशीन है। अतः इसे चलाने में सावधानी बरतें।

  • 1. मशीन चलाते समय हमेशा रबड़ की चप्पलें पहने रखें।
  • 2. मशीन को चालू करने से पहले कंट्रोल पैनल बोर्ड पर लगे वोल्टमीटर को अवश्य देखें, ताकि बिजली कम-ज्यादा होने पर कोई नुकसान न हो।
  • 3. कंट्रोल पैनल बोर्ड को नहीं खोलें।
  • 4. प्लांट भवन में अनावश्यक पानी नहीं गिराएं।
  • 5. बैक वाॅश प्रतिदिन करें।
  • 6. डोजिंग प्रतिदिन करें।
  • 7. मशीन चालू व बंद करते समय वाॅटर मीटर से रीडिंग आवश्यक रूप से लें।

पानी में मौजूद लवण व रसायनों की निर्धारित मात्रा

पानी में कई प्रकार के लवण मौजूद होतेे हैं। इनकी पानी में मौजूदगी अगर निर्धारित मात्रा से ज्यादा हो तो शरीर में पहुंचने पर विभिन्न विकार उत्पन्न कर सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि पानी में मौजूद प्रमुख लवणों की निर्धारित मात्रा हमें पता हो, ताकि विभिन्न शारीरिक समस्याओं से बचा जा सके।
 

क्र.सं.

पानी में मौजूद तत्व

क्यों जरूरी

निर्धारित मात्रा

अधिक मात्रा से उत्पन्न हानिकारक प्रभाव

1.

कुल घुलनशील पदार्थ (टी.डी.एस)

पानी में सभी प्रकार के घुले हुए लवण पदार्थों की मात्रा को टी.डी.एस कहते हैं।

500 पी.पी.एम

पेट दर्द व अपच की शिकायत रहती है। छोटी व बड़ी आंत में विकार उत्पन्न हो जाता है।

2.

कैल्शियम

हड्डियों व दांतों की मजबूती व उनके विकास के लिए जरूरी

75 पी.पी.एम.

कैल्सियम की अधिकता से रक्तचाप व पत्थरी होती है व गुर्दा खराब हो सकता है। इसकी कमी से हड्डियां कमजोर होती है। इससे उनके आसानी से टूटने का डर रहता है और ठीक होने मे काफी समय लेती है। पानी कड़ा हो जाता है।

3.

सोडियम

शरीर में सामान्य रक्तचाप बनाए रखने के लिए और मांसपेशियों व तंत्रिका तंत्रा के लिए जरूरी

200 पी.पी.एम

इसकी अधिक मात्रा गुर्दे को नुकसान पहुंचाती है उच्च रक्तचाप होता है जिससे हृदय घात की संभावना बढ़ती है। पाचन तंत्र प्रभावित होता है पानी बेस्वाद हो जाता है।

4.

सिलिका

पानी में मौजूद मिट्टी के महीन कण सिलिका कहलाते हैं।

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सीलिका युक्त पानी को लंबे समय तक पीने के कारण पत्थरी होती है।

5.

लोहा

रक्त के रंजक द्रव्य को बनाने के लिए लोहा महत्वपूर्ण होता है।

0.3 पी.पी.एम.

लोह तत्वों की कमी से रक्त की कमी होती है। पेट की समस्या व अपच, चर्म रोग, दांतों से जुड़ी समस्या।

6.

फ्लोराइड

इसकी बहुत ही न्यूनतम मात्रा दाँतों के लिए जरूरी है।

1.0 पी.पी.एम.

लंबे समय तक फ्लोराइड युक्त पानी पीने से दांतों में पीलापन व काले धब्बे हो जाते हैं, हड्डियों में विकार होता है।

7.

नाइट्रेट

इसकी कुछ मात्रा शरीर के लिए आवश्यक है।

400 एम.जी. प्रति लीटर

इसकी अधिक मात्रा से बच्चों में मिथेमोग्लोबीनीमिया या ब्लू बेबी नामक बीमारी हो जाती है। इसमें शरीर पर जगह-जगह नीले चकते हो जाते हैं। यह बीमारी गंदा व कचरा युक्त पानी के सेवन से होती है।

8.

सल्फेट

इसकी कुछ मात्रा पाचन शक्ति के लिए आवश्यक है।

400 एम.जी. प्रति लीटर

इसकी अधिक मात्रा से अपच व दस्त हो जाते हैं।

9.

क्लोराइड

शरीर में सामान्य रक्तचाप के लिए।

250 पी.पी.एम.

उच्च रक्तचाप, पानी कड़वा हो जाता है। लंबे समय तक अधिक मात्रा का सेवन करने से तनाव की बीमारी हो जाती है।

10.

पोटेशियम

सामान्य रक्तचाप बनाए रखने में कारगर।

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अत्याधिक मात्रा से उल्टी-दस्त, सीने में भारीपन व हृदयघात हो सकता है।


पानी में मौजूद जीवाणु-कीटाणु:

पानी में कई प्रकार के जीवाणु-कीटाणु भी पाए जाते हैं। इनकी उपस्थिति इतनी व्यापक होती है कि एक बूंद पानी में ही यह असंख्य मात्रा में मौजूद रहते हैं। इन्हें सामान्यतः आंखों से नहीं देखा जा सकता है। इनकी जरा सी उपस्थिति भी हानिकारक साबित हो सकती है। एक सर्वे के मुताबिक लगभग दस में से सात बीमारियाँ अशद्वु पानी पीने से होती हैं। पानी में मुख्य रूप से निम्नलिखित जीवाणुओं की मौजूदगी होती है जिनसे हमें पीलिया, उल्टी, दस्त, तेज बुखार, हैजा व अन्य बीमारियाँ हो सकती है। 

  • 1. काॅलीफोर्म 
  • 2. स्यूडोमोनास 
  • 3. ईकाॅली
  • 4. फिकल काॅलीफोर्म


(विमला गोयल आयुर्वेदरत्न, सेक्टर एफ एच 369, स्कीम नं 54, विजय नगर, इन्दौर, मध्यप्रदेश, पिन-452 010 मो.नं. 9425382228 ईमेलः sunilgoyal1967@gmail.com)