नैनो प्रौद्योगिकी द्वारा अब किसी भी स्रोत से साफ पेयजल तैयार कर पाना संभव हो गया है। वस्तुतः प्रचलित विधियों में पानी के शुद्धिकरण में जिन फिल्टरों का उपयोग होता है, वे स्वंय ही बैक्टीरिया आदि के कारण दूषित हो जाते हैं और फिल्टर के छिद्र भी बंद हो जाते हैं। नैनो प्रोद्योगिकी की सहायता से ऐसे प्राकृतिक नैनो कण तैयार किए गए हैं, जो पानी में उपस्थित जीवाणुओं को नष्ट तो कर ही देते हैं, साथ ही फिल्टरों को भी साफ करते रहते हैं ऐसी ही एक नैनो विधि से समुद्र का लवणीय (खारा) पानी भी मीठा बनाया जा रहा है। इन नैनो की कीमत भी कम होगी तथा इनसे सतही एवं भू-जल के दूषित होने पर उन्हें पीने योग्य बना लिया जाएगा।
वस्तुतः नैनो विज्ञान अणुओं और परमाणुओं एवं 1-100 नैनोमीटर के कणों के परिचालन से संबंधित ज्ञान एवं इनके विशेष गुणों का उचित उपयोग करने का विज्ञान है। नैनो विज्ञान का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है और यह भौतिकी, रसायन, जैविकी, औषधि, यांत्रिकी एवं अन्य वैज्ञानिक धाराओं के बीच की दीवारों को कम करने एवं प्रकृति की गहराइयों पर उचित प्रकाश डालने में सहायक होगा। नैनो पदार्थों के व्यवहार को वैज्ञानिक विगत लगभग ढाई दशकों से समझने का प्रयत्न कर रहे हैं। अब तक के अनुसंधान परिणामों से वैज्ञानिकों को यही लगता है कि न तो क्वांटम यांत्रिकी और न चिरसम्मत भौतिकी के नियमों से ही इन पदार्थों के व्यवहार को समझा जा सकता है। वस्तुतः नैनो पदार्थ के संसार को संभवतः क्वांटम भौतिकी तथा चिरसम्मत भौतिकी के सम्मिलित नियमों से ही समझा पाना संभव है।
जैसा कि विदित है कि एशिया में आई सुनामी या फिर अमेरिका में आए चक्रवात-ये सभी जिस गंभीर समस्या को जन्म देते हैं, उनमें सबसे ऊपर है पीने के पानी की समस्या। आज संपूर्ण विश्व समुदाय पीने के पानी की त्रासदी से त्रस्त है। हमें ज्ञात है कि पृथ्वी का दो-तिहाई हिस्सा जलाच्छादित है, परंतु इस जलराशि का अधिकांश हिस्सा यानी 97 प्रतिशत तो सागरों में समाया हुआ है, जो लवणीय है और पीने योग्य भी नहीं है। 2 प्रतिशत ध्रुवों में बर्फ के रूप में जमा है। इस प्रकार पीने योग्य मात्रा 1 प्रतिशत ही जल उपलब्ध है और उस पर भी गुणवत्ता का प्रश्नचिन्ह लग जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिवेदन के अनुसार, 80 प्रतिशत बीमारियाँ जलजन्य रोगों के कारण होती है।
हमारे देश में जनसंख्या की बेतहाशा वृद्धि के कारण जल की कमी हो गई है। इसमें जल का अत्यधिक उपयोग एवं भौतिकवादी प्रवृत्ति भी एक मुख्य कारक है। वैज्ञानिकों ने समुद्र के लवणीय जल को पेयजल में परिवर्तित करने के भी प्रयास किए हैं। विश्व के अधिकांश क्षेत्रों में जलापूर्ति में लवण अवरोधक बन चुके हैं। अतएव विलवणीकरण एक बहुत ही प्रभावी विधि है। यद्यपि इसमें ऊर्जा की खपत होती है, परंतु पेयजल की प्राथमिकता एवं महत्त्व को देखते हुए यह उपादेय है।
नैनो प्रौद्योगिकी द्वारा अब किसी भी स्रोत से साफ पेयजल तैयार कर पाना संभव हो गया है। वस्तुतः प्रचलित विधियों में पानी के शुद्धिकरण में जिन फिल्टरों का उपयोग होता है, वे स्वंय ही बैक्टीरिया आदि के कारण दूषित हो जाते हैं और फिल्टर के छिद्र भी बंद हो जाते हैं। नैनो प्रोद्योगिकी की सहायता से ऐसे प्राकृतिक नैनो कण तैयार किए गए हैं, जो पानी में उपस्थित जीवाणुओं को नष्ट तो कर ही देते हैं, साथ ही फिल्टरों को भी साफ करते रहते हैं ऐसी ही एक नैनो विधि से समुद्र का लवणीय (खारा) पानी भी मीठा बनाया जा रहा है। इन नैनो की कीमत भी कम होगी तथा इनसे सतही एवं भूजल के दूषित होने पर उन्हें पीने योग्य बना लिया जाएगा।
कालांतर में नैनो संवेदकों तथा नैनो झिल्लियों-युक्त उपकरणों से कार्बनिक पदार्थों, वायरस, अविषालु धातुओं-युक्त जल का भी शोधन संभव हो सकेगा। इस क्षेत्र में अमेरिका, इजराइल तथा आस्ट्रेलिया के अनुसंधान संस्थान सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं।
नैनो नलिका (ट्यूब) झिल्ली की जल के विलवणीकरण में उपादेयता
विश्व स्तर पर हो रही जल संसाधनों की कमी, तीव्र गति से हो रही जनसंख्या-वृद्धि, बढ़ता प्रदूषण का कहर तथा जलवायु में हो रहे निरंतर परिवर्तन मानव समुदाय के लिए चिंता का विषय बन चुके हैं। आंकड़े दर्शाते हैं कि विश्व स्तर पर 1.1 अरब लोगों को शुद्ध एवं स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है तथा 2.4 अरब लोगों में स्वच्छता का अभाव है। एक अनुमान के अनुसार, विश्व की एक-तिहाई जनसंख्या ऐसे देशों में प्रवास करती है, जहां जलाभाव है तथा ऐसी संभावना है कि सन 2025 तक यह संख्या दो-तिहाई हो जाएगी।
इस मंडराते हुए जल संकट तथा इसके समाधान हेतु यह आवश्यक समझा गया कि अपशिष्ट जल उपचार तथा प्रदूषण नियंत्रण हेतु नई प्रौद्योगिकियां विकसित की जाएं। इस समस्या का समाधान वैज्ञानिकों ने नैनो प्रौद्योगिकी से निकाला है। विश्व स्तर पर नवीनतम खोजों के अनुसार, वैज्ञानिकों ने पाया कि कार्बन नैनो नलिकाओं या ट्यूब्स (CNTS) का वियुक्ति-विज्ञान (Separation Science) में महत्वपूर्ण अनुप्रयोग हो सकता है। कार्बन नैनो नलिकाओं की खोज तथा फुल्लरीन के संश्लेषण ने अनुसंधान क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किए हैं।
यद्यपि जल से लवणों के निष्कासन की परंपरागत कई विधियां हैं, जैसे-उत्क्रम परासरण (Reverse osmosis), बहु अवस्था फ्लैश वाष्पीकरण (Multi stage flash vaporization), बहु प्रभावी आसवन (Multi Effect Distillation), वाष्प संपीडन (Vapour Compression) और विद्युत अपोहन आदि। इन सभी वर्णित विधियों की कुछ न कुछ सीमाएं हैं, चाहे वे प्रचालन संबंधी हों अथवा मुल्य संबंधी। उत्क्रम परासरण में लवणीय जल अधिक दाब पर अर्द्धपारगम्य झिल्ली के माध्यम से परासरण दाब को ऑफसेट करने के लिए झिल्ली के माध्यम से गुजारा जाता है। इस प्रकार इस विधि में उच्च दाब की आवश्यकता होती है तथा उत्क्रम परासरण संयंत्र की प्रचालन कीमत भी अधिक होती है।
जल के विलवणीकरण में नैनो नलिका झिल्ली का विकास बहुत ही नवीनतम अनुसंधान की देन है। वस्तुतः कार्बन नैनो नलिका कार्बन का एक नलिकाकार रूप है। जिसका व्यास 1 नेनोमीटर जितना छोटा होता है तथा इसकी लंबाई कुछ नैनोमीटर से लेकर कई माइक्रोन तक हो सकती है। ये कार्बन परमाणुओं के अनुपम विन्यास में बनी विशिष्ट अणु होती हैं तथा मानव के बाल से 50,000 गुना पतली होती हैं। झिल्ली में ये लाखों नलिकाएं छिद्र की तरह कार्य करती हैं।
नैनो नलिका के अति चिकने आंतरिक भाग से द्रव एवं गैसें तीव्र गति से बह सकते हैं, जबकि लघु छिद्र आकार के कण बड़े अणुओं को रोक देते हैं। ऐसी झिल्लियां, जिनमें कार्बन नैनो नलिकाएं छिद्र के समान होती हैं, को विलवणीकरण तथा विखनिजीकरण में उपयोग किया जा सकता है। यह प्रेक्षित किया गया है कि साधरणतया जल से लवणों का निष्कासन उत्क्रम परासरण विधि से किया जाता है तथा इसमें अधिक मात्रा में दाब की आवश्यकता होती है। यह विधि बहुत महंगी भी है।
कार्बन नैनो नलिकाओं की अधिक पारगम्यता के कारण इनके उपयोग से जल के विलवणीकरण में उत्क्रम परासरण विधि की अपेक्षा 75 प्रतिशत कीमत में बचत होती है। वस्तुतः यह बहुमुखी पदार्थ होते हैं, जिनके विभिन्न क्षेत्रों में अनुप्रयोग होते हैं तथा इनकी घर्षण-रहित सतह के कारण यह द्रव्य को बहुत तीव्रता से निकाल सकते हैं।
कार्बन नैनो नलिका झिल्ली (मेम्ब्रेन) के उत्पादन का प्रक्रम बहुत लम्बा तथा जटिल है। सामान्यतया इनका उत्पादन तीन विधियों, जैसे-विद्युत ऑर्क विसर्जन (Electric orc discharge), लेसर अपक्षरण (Laser Ablation) तथा रासायनिक वाष्प निक्षेपण (Chemical Vapour Deposition) द्वारा किया जाता है। वहृ त स्तर पर नैनों नलिका का उत्पादन रासायनिक वाष्प निक्षेपण विधि से किया जाता है।
बहुदिवारीय नैनो नलिका
बहुदिवारीय कार्बन नैनो नलिका (MW CNTs) का निर्माण मिथेन के 680-7000 से. पर निकेल ऑक्साइड-सिलिका द्विअंगी एरोजैल की उपस्थिति में उत्प्रेरकीय अपघटन से किया जाता है। निम्नवत सारणी 1 में विभिन्न कार्बन नैनो ट्यूब के प्रकार, दशा, अनुप्रयोग एवं निष्पादन को वर्णित किया गया है।
इस नैनो नलिका का रूपान्तरण नाइट्रिक अम्ल के विलयन से पराश्रव्य (Ultra Sonic) एवं बाॅल मिलिंग के साथ किया जाता है। रूपान्तरण के कारण नैनो नलिका के ऊपरी भाग पर उत्प्रेरकीय धातु के कण विलुप्त हो जाते हैं, नेनो नलिका की लंबाई छोटी हो जाती है तथा इसकी टोपी खुल जाती है। इसकी आंतरिक सतह का उपयोग विशिष्ट सतही क्षेत्र तथा बहुदीवारीय नैनो नलिका के रंध्रों के आयतन बढ़ाने में किया जाता है। कार्बन नैनो ट्यूब की अधिक पारगम्यता के कारण जल के विलवणीकरण के क्षेत्र में इसने नये क्षितिज प्रदान किये हैं।
नैनो नलिका (ट्यूब) झिल्ली की जल के विलवणीकरण में उपादेयता
कार्बन नैनो नलिकाओं (CNTs) का संदूषकों के निष्कासन में अनुप्रयोग -
1. जल से आर्सेनेट का निष्कासन-
पेंग (Peng) तथा उनके सहयोगी वैज्ञानिकों ने सन् 2005 में जल से आर्सेनेट के निष्कासन हेतु एक नया अधिशोषक सीरिया तथा कार्बन नैनो ट्यूब के सहयोग (CeO2–CNTs) से विकसित किया। इससे सामान्य पीएच की दशा में (ca) तथा (Mg) के सांद्रण में 0 से 10 मि.ग्रा. प्रति लीटर की वृद्धि प्रेक्षित की गई। इससे आर्सेनिक (As) के अधिशोषण की मात्रा में क्रमशः 10 से 81.9 तथा 78.8 मि.ग्रा/ग्राम वृद्धि प्रेक्षित की गई। यह अधिशोषण पीएच आधारित था।
2. जल से फ्लोराइड का निष्कासन -
वैज्ञानिकों ने जल से फ्लोराइड की समस्या से निजात पाने हेतु संरेखीय कार्बन नैनो नलिकाओं (Aligned Carbon Neno Tubes) ; kuh ACNTs का उपयोग किया। यह अधिशोषण आंशिक रूप से पीएच आधारित था। अधिकतम अधिशोषण क्षमता पीएच 7 पर देखी गई।
3. जल से कैडमियम का निष्कासन-
औद्योगिक बहिस्रावों में कैडमियम तथा सीसे की आविषालुता बहुत खतरनाक होती है। ‘ली’ तथा उनके सहयोगी वैज्ञानिकों ने सन् 2003 में जल से कैडमियम (ii) निष्कासित करने हेतु तीन ऑक्सीकृत नैनो नलिकाओं का उपयाेग कर सफलता प्राप्त की है। इस प्रक्रम में हाइड्रोजन-पैरा-ऑक्साइड, नाइट्रिक अम्ल तथा पोटेशियम परमैगनेट का उपयोग किया गया। कार्बन नैनो नलिकाओं द्वारा कैडमियम का अधिशोषण भी पीएच आश्रित था।
4. जल से सीसे Pb(ii) का निष्कासन-
जल से सीसे या Pb(ii) के निष्कासन में नैनो नलिकाओं की भूमिका अद्वितीय रही है। यह अधिशोषण भी विलियन के पीएच मान तथा नैनो नलिका के सतही स्तर से प्रभावित होता प्रेक्षित किया गया।
जल शुद्धिकरण में नैनो निस्यंदन -बहुमुखी प्रक्रम
वर्तमान काल में नैनो निस्यंदन एक झिल्ली (मेंब्रेन) पृथक्करण प्रक्रम है, जिसकी अनेक क्षेत्रों में, जैसे जल मृदुकरण अपशिष्ट सरिता उपचार, रासायनिक प्रक्रम उद्योग, कागज तथा लुगदी उद्योग, जैव प्रौद्योगिकी, औषधीय उद्योग, अतिसूक्ष्म पदार्थों के निष्कासन, जैसे पीड़कनाशियों के भू-जल से निष्कासन में उपादेयता है।
वस्तुतः नैनो निस्यंदन एक तेजी से बढ़ती हुई झिल्ली (मेंब्रेन) पृथक्करण प्रक्रम है, जो कि अति सूक्ष्म निस्यंदन एवं उत्क्रम परासरण के मध्य प्रचालित होता है। यह झिल्ली, जो ट्रांस मेंब्रेन प्रवणता (Trans Membrane Gradient) के परास में 7-15 कि.ग्रा. /मीटर2 में प्ररूपी तरीके से द्विसंयोजी एवं बहुसंयोजी लवणों को तथा कार्बनिक विलय को एकल संयोजी लवणों से पृथक करती है, का उपयोग एक विलक्षण साधन के रूप में रासायनिक वर्ग (Species) के प्रभंजन (Fractionation) में किया जाता है।
नैनो निस्यंदन मेंब्रेन पदार्थ तथा उनके निर्माण के तरीके -
सामान्यतया नैनो निस्यंदन झिल्लियों (Membranes) के निर्माण में बहुलक या Polymer का बहुतायत से उपयोग किया जाता है। सबसे पहली नैनो निस्यंदन झिल्ली लौब सौरीराजन (Loeb - sourirajan) प्रकार की प्रलेपित असमरूप झिल्ली का निर्माण उपर्युक्त बहुलक (Polymer) से ही किया गया था। उत्क्रम परासरण RO तथा नैनो निस्यंदन झिल्ली के मेंब्रेन पदार्थों एवं संश्लेषण तकनीकों में बहुत समानताएं हैं।
असमरूप प्रलेपित झिल्लियां (Asymmetric-Skinned Membranes) -
सर्वप्रथम सेलुलोस एस्टर आधारित बहुलकों का उपयोग इन झिल्लियों के निर्माण में किया जाता था इसके पश्चात् संश्लेषित बहुलकों (पोलीमर) का साधारणतया सगंध (aromatic) प्रकार के बहुलकों का उपयोग सेलुलोस बहुलकों के प्रयोग में हुई त्रुटियों के निराकरण हेतु किया गया। नैनो निस्यंदन झिल्ली के निर्माण हेतु प्रयुक्त पदार्थों में एरोमेटिक पाॅलीएमाइड, पाॅलीएमाइड हाइड्रा जाइडस (Polyamides Hydra- zides) का बहुतायत से उपयोग किया गया। इसी प्रकार अन्य बहुलक, जैसे सल्फोनेटेड पालीसल्फाॅन, ब्रोमीनीकृत पाॅलीफिनाइलीन ऑक्साइड (Poly Phenylene Oxide) का भी नैनो निस्यंदन मेंब्रेन पदार्थ के रूप में उपयोग किया गया।
अंतराफलक बहुलीकरण द्वारा मेंब्रेन (Membrane by Inter-Facial Polymerization) -
नैनो निस्यंदन मेंब्रेन निर्माण की यह अत्याधुनिक विधि है। इसमें स्वस्थाने (Insitu) उपर्युक्त एकलक (Monomer) जैसे आइसोथैओइल अथवा टैरीपथैआइल क्लोराइड (Tere-phthaoyl Chloride) तथा ऑर्थो, मेटा अथवा पैरा फिनाइलीन एमीन का बहुलीकरण अतिसूक्ष्म निस्यंदित झिल्ली (सामान्यतया पाॅली सल्फोन) पर जहां एक पतली 0.6 माइक्रोन मोटाई की पाॅलीमर की रोधिका तह बन जाती है, पर किया है। इस प्रकार की पतली संयुक्त फिल्म से यह लाभ है कि सहयोगी पदार्थों तथा राेधिका तह पदार्थों की गुणवत्ता को आपसी स्तर पर मेंब्रेन की अच्छी निष्पादन क्षमता प्राप्त करने हेतु आपस में बढ़ाया जा सकता है।
सतही रूपान्तरण द्वारा नैनो निस्यंदन झिल्लियां -
बहुधा उत्क्रम परासरण या नैनो निस्यंदन झिल्ली का सतही रूपान्तरण करके भी वांछनीय निष्पादन क्षमता की नैनो निस्यंदन झिल्लियां प्राप्त की जा सकती हैं। सतही रूपान्तरण झिल्ली की छिद्र संरचना अथवा अन्य भौतिक-रासायनिक गुणों में परिवर्तन करके झिल्ली की निष्पादन क्षमता को प्रभावित करते हैं।
सिरेमिक झिल्लियां -
सिरेमिक झिल्लियों में विभिन्न संरंध्रता की दो या तीन परतें होती हैं। सामान्यतया यह अल्युमिनियम, टाइटेनियम, सिलिकानॅ या जिरकोनियम ऑक्साइड की बनी होती हैं। कभी-कभी टिन या हैफनियम (HF) को भी आधार पदार्थों के रूप में उपयोग किया जाता है। जिरकाेनियम झिल्लियां व्यापारिक दृष्टि से कीरासेप (Ker-asep) नाम से प्रायः उपलब्ध होती हैं।
हमारे देश में ‘भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, मुम्बई’ का विलवणीकरण प्रभाग नैनो निस्यंदन झिल्लियों के विभिन्न उपयोगों के विकास में सक्रिय रूप से कार्यरत है। इस प्रभाग ने प्रावस्था प्रतिलोमन तकनीक (Phese Inversion Technique) तथा संयुक्त पतली परत (TFC) तकनीक द्वारा झिल्लियां विकसित की हैं। यह विकसित झिल्लियां उदासीन तथा आवेशित दोनों प्रकार की हैं।
अनुप्रयोग
नैनो निस्यंदन प्रक्रम का अनुप्रयोग उन क्षेत्रों में, जहां जलीय सरिताओं, जिनके बहुघटकों का प्रभाजन विभिन्न सरिताओं के भिन्न-भिन्न घटकों में होता है, अधिक पाया गया है। सामान्यतः झिल्लियां, बहुसंयोजी आयनों तथा बड़े अणुओं, जैसे शर्करा एवं अन्य कार्बनिक योगिकों के मार्ग को प्रतिबंधित करती हैं तथा छोटे वर्ग के एकल संयोजी आयनों के मार्ग को खुला रखती हैं। इस प्रकार के प्रक्रमों की उपादेयता जल शुद्धिकरण, अपशिष्ट उपचार, खाद्य एवं औषधि उद्योग, रसायन प्रक्रम उद्योग, कागज एवं लुगदी उद्योग तथा प्रदूषित जल से सूक्ष्ममात्रिक संदूषकों के निष्कासन आदि में होता है। सारणी 2 में नैनो निस्यंदन के कुछ अनुप्रयोगों का विवरण दिया गया है।
अतः यह कहा जा सकता है कि नैनो निस्यंदन एक उभरती हुई मेंब्रेन (झिल्ली) पृथक्करण तकनीक विकसित हुई है, जिसके कई क्षेत्रों में अनुप्रयोग हैं। वर्तमान में नए नैनो मेंब्रेन पदार्थों तथा नैनो मेंब्रेन निर्माण की विधियों पर गहन अनुसंधान हो रहे हैं। अपनी खोज के अल्पकाल में मेंब्रेन प्रौद्योगिकी के बहुमुखी अनुप्रयोग सिद्ध हो चुके हैं।
(डाॅ. दुर्गादत्त ओझा, गुरूकृपा, ब्रह्मपुरी, हजारी चबूतरा, जोधपुर-342001, राजस्थान)