सागर के तटीय भाग पर सागरीय तरंगों द्वारा होने वाला अपरदन। इसके अतर्गत सागरीय लहरों, धाराओं, सुनामी तथा ज्वारीय तरंगों द्वारा किया गया अपरदन सम्मिलित होता है। सागरीय अपरदन जल गति क्रिया, अपघर्षण, सन्निघर्षण तथा जलदाब क्रिया द्वारा होता है। सागरीय अपरदन की मात्रा तथा प्रकृति पर तटरेखा की आकृति एवं प्रकृति, शैलों की संरचना, सागरीय तरंगों की गति एवं लम्बाई, अपरदनात्मक यंत्रों की उपस्थिति, तटरेखा की स्थिरता आदि का प्रभाव होता है। सागरीय अपरदन से उत्पन्न स्थलाकृतियों में तटीय भृगु, तटीय कंदरा, लघु निवेशिका, तरंग घर्षित वेदिका आदि प्रमुख हैं।
अन्य स्रोतों से
वेबस्टर शब्दकोश ( Meaning With Webster's Online Dictionary )
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