समस्या जाने बिना ही कर रहे बड़खल झील को पुनर्जीवित करने का प्रयास

Submitted by Shivendra on Sat, 07/13/2019 - 12:45

सूखने के बाद कुछ इस प्रकार दिखती है बड़खल झील। सूखने के बाद कुछ इस प्रकार दिखती है बड़खल झील।

स्मार्ट का शाब्दिक हिंदी अर्थ है चालाक। इसलिए बड़ी चालाकी से बड़खल को (क्योंकि चालाक व्यक्ति मरे हुए से भी लाभ उठाने से नहीं चूकता) को भी स्मार्ट सिटी में शामिल कराया और फिर ऐसे लोग अब बड़खल के उपचार में लगे हैं, जिन्हें यह भी नहीं मालूम कि इसको बीमारी क्या है ? इन तथाकथित डॉक्टरों से कोई इनकी योग्यता पूछे तो पता चलेगा कि मैकेनिकल इंजीनियर हैं और बड़खल की जल समस्या का उपचार करने निकले हैं। फरीदाबाद के लिए अगर यमुना मां है तो बड़खल झील मौसी। मां जहां मैदान में लहलहाती हुई आगे बढ़ जाती है तो वहीं बड़खल अरावली के अप्रतिम सौंदर्य के किनारे अपने जल से फरीदाबाद के एक बड़े क्षेत्र के भूजल स्तर को बनाये रखने में बड़ी भूमिका में रही है। आज मां तो मैला ढ़ोने वाली गाड़ी के रूप में जो कि मुख्यतः दिल्ली का सीवर और उद्योगों का कचरा लेकर अपने जीते जी मृत्यु से भी भयंकर कष्ट को सह रही है। यमुना में अब न तो वह जीव तंत्र बाकी है और न ही पक्षी व प्रकृति तंत्र। केवल षड्यंत्र बाकी है। वहीं दूसरी ओर बड़खल मौसी भी बेहोशी की हालत में है और उनको होश में लाने हेतु जल की नितांत आवश्यकता है। आज जलदायिनी जल को तरस रही है। उनकी छाती पर कीकड़ उग गये हैं, जो उनमें और उनकी संतानों (पक्षियों व जीव जगत) में लगातार कांटे चुभों रहे हैं और हम फरीदाबादवासी, जो कि बहुत धनाढय बनते हैं, एक दरिद्र की तरह सिर्फ मूकदर्शक बने हैं। हमारी संवेदनाएं केवल स्वयं तक सीमित हो गई हैं। अभी तो कष्ट मौसी पर है, जब हम पर कष्ट आएगा तब देखेंगे और फरीदाबाद के लगभग 18 लाख लोगों में से 18 ऐसी संतान निकल कर आई, जो अपनी मौसी के स्वास्थ्य को ठीक करें।

बड़खल को जीवन देने के लिए उसमें बड़खल के नैसर्गिक गुणों का होना बहुत जरूरी है। इसकी सुगंध प्राकृतिक जल, जीव जगत, वनस्पति और अरावली के खनिज तत्व की पहचान रहे हैं। हम वैसा ही बड़खल पा सकते हैं, जो सनातन हो, जो अपना भरण-पोषण खुद कर सके। हां हमने अपने स्वार्थ में इसके एक-एक गुण को खत्म करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। अभी भी पीछा नहीं छोड़ रहे हैं। इसमें सर्वप्रथम की कीकड़ को हटाना होगा, जो इसका जलस्तर मिट्टी व पक्षी जगत के लिए सबसे बड़ा खतरा है। 

धन का चश्मा इतना भारी है कि उन्हें इसके अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा है। संवेदनाएं मर चुकी हैं। बाकी है तो सिर्फ कभी न खत्म होने जैसा स्वार्थ और लालच, लेकिन लोग भूल जाते हैं कि भस्मासुर जैसी कोई भी बुराई क्यों न हो, उसके गलत कर्म अंत में उसे ले डूबते हैं। इसलिए माना कि आज उन्हें धन के लालच में अंधा कर दिया है। सत्ता के मद ने अहंकार से भर दिया है। इनका यही लालच और अहंकार एक दिन इनको भी मिल जाएगा, लेकिन ऐसा न हो कि बड़खल ऐसे षड्यंत्र कार्यों की बलि चढ़ जाए, जो इसे तेजाब में डुबोकर तड़पा-तड़पा कर मारने की तैयारी कर रहे हैं, कि फिर यह कभी जीवित न हो सके। बड़खल के प्रोजेक्ट अधिकारी के अनुसार सेक्टर 21ए फरीदाबाद में 10 एमएलडी का एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की तैयारी है और उससे बड़खल को भरा जाएगा। उन्होंने स्वयं स्वीकार किया कि आप इस जल में हाथ नहीं डाल सकेंगे। ये जल बदबूदार होगा और कुल्ला करने की तो सोचना भी मत। आज दिल्ली द्वारा यमुना में जितना भी सीवेज आता है सभी एसटीपी से होकर आता है और उसकी स्थिति आपको पता है। यमुना की मिट्टी, जल, वनस्पति, जीव जगत सब खत्म हो चुका है और इस स्थिति में है कि इसे ठीक करना अब आसान नहीं। यह सब तब है जब तथाकथित एसटीपी से शुद्ध होकर ही पानी यमुना में जाता है। अब वैसी ही स्थिति बड़खल के लिए तैयार की जा रही है। उसके बाद यह अधिकारी बड़े ही खुश होकर दम भरते हैं कि जो अति आधुनिक एसटीपी का जल होगा, उससे भूजल का पुनर्भरण होगा। इसका अर्थ हुआ कि अब भूजल का भी सत्यानाश तय है। अब जमीन को अंदर और बाहर हर जगह ऐसा कर दिया जायेगा कि आप फरीदाबाद को कभी भी पानीदार न बना सकेंगे, क्योंकि इसमें इतना जहर घुला होगा कि यहां का जीवन चक्र पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा। जीव जंतु, पक्षी, वृक्ष, फसलें और मनुष्य सब अपाहिज होकर सड़-सड़ कर मरने के लिए छोड़ दिए जाएंगे। क्योंकि अब फरीदाबाद स्मार्ट सिटी की राह पर है, जो कोई कोर कसर अभी तक खनिज, जल, मिट्टी, वायु आदि के पोषण में उपभोग में रह गई हो, वह पूरी हो जायेगी। अब वाकई फरीदाबाद स्मार्ट होने की राह पर है। जिस मामले का क, ख, ग न पता हो और आप उसके आचार्य बन बैठे हैं, यह सिर्फ स्मार्ट सिटी के स्मार्ट अधिकारी ही कर सकते हैं। जो अधिकारी बड़खल को पुनर्जीवन देने के मुखिया नियुक्त किये गए हैं। वह जल या प्रकृति की न तो समझ रखते हैं और न वाकई कोई संबंध। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यदि कोई बेहोश हो जाए तो उसे होश में लाने के लिए सरल प्रयोग किया जा सकता है, फिर चाहे वह पानी हो या फिर तेजाब। हमारे स्वार्थ ने हमारी चेतना को छीन लिया है। मौसी बेहोश हो गई है, अवैध खनन ने इसको निचोड़ कर रख दिया है। 

कोई किसी की जरूरतों को तो पूरा कर सकता है परंतु लालच को नहीं और इस मौसी की किस्मत में लोग तो इतने लालची निकले की उसके अंगों को अंदर तक खोद डाला। इसलिए बड़खल को होश में लाने के लिए उन पर तेजाब छिड़कने की तैयारी है। फिर से चाहे उनकी हालत इतनी खराब हो जाए कि बचने की कोई संभावना भी न रहे। इससे स्मार्ट सिटी को क्या फर्क पड़ता है ? आज की संतानों पर फिर कोई दूसरा बजट लाएंगे इसके लिए और क्योंकि फरीदाबाद में तेजाब आसानी से उपलब्ध है। इसलिए सभी घरों से निकला तेजाब इकट्ठा कर जिस दिन लगेगा, उसी दिन मिट्टी, पेड़-पौधे, वनस्पतियां, जीव जगत, जमीन, जल मर जाएंगे। हां बड़खल की बेहोशी से अब बड़खल की हत्या के हम दर्शक जरूर बनते जा रहे हैं और मनुष्य अभी ऐसी शक्ति नहीं प्राप्त कर सका की मृत को जीवित कर सकें। यह हत्या सरकारी पैसे से सरकार द्वारा सरकारी तंत्र से कराने की तैयारी है। इसकी जिम्मेदारी किस पर होगी ? सरकारी तंत्र पर तो यह जिम्मेदारी होगी है ही, साथ ही साथ इस प्रकार से बड़खल हेतु कार्य योजना तैयार करने वाले, क्रियान्वयन करने वाले तो सीधे-सीधे दोषी होंगे ही और फरीदाबाद के नागरिक भी परोक्ष रूप से जिम्मेदार है। 

सूखने से पहले बड़खल झील का मंत्रमुग्ध करने वाला दृश्य।सूखने से पहले बड़खल झील का मंत्रमुग्ध करने वाला दृश्य।

एक चौथाई फरीदाबाद की जल समस्या को स्थाई करने की तैयारी है। 1 जून 2019 को भारतवर्ष के 45 लोग बड़खल झील आये थे। राजनेता, प्रशासन और संबंधित अधिकारी बड़खल के साथ क्या करने जा रहे हैं उन्हें खुद समझ नहीं आ रहा। इसके लिए वे खुद दोषी हैं। जिस विषय को हमे समझना हो उस दिशा में हमें अगुवाई नहीं करनी चाहिए और जब विषय लाखों लोगों और जीव जगत का हो तो अपरिपक्व निर्णय व कार्यवाही तो बिल्कुल नहीं। इसलिए हम समझ ले कि बड़खल अभी मरी नहीं है। हां बेहोश जरूर है। अभी उनकी मिट्टी उपजाऊ है। अरावली घायल है, परंतु सांस ले रही है। अप्रवासी नहीं, परंतु क्षेत्रीय पक्षी जगत अभी है। पेड़-पौधों व औषधीय खनिज युक्त पहाड़ पर छिपी हुई हैं। जल किसी विशेष क्षेत्र में नीचे चला गया है, परंतु बहुत बड़े क्षेत्र में अभी है। इसका मतलब साफ है कि बड़खल को पुनः होश में लाना थोड़ा कठिन जरूर है, लेकिन किया जा सकता है। 

बड़खल को जीवन देने के लिए उसमें बड़खल के नैसर्गिक गुणों का होना बहुत जरूरी है। इसकी सुगंध प्राकृतिक जल, जीव जगत, वनस्पति और अरावली के खनिज तत्व की पहचान रहे हैं। हम वैसा ही बड़खल पा सकते हैं, जो सनातन हो, जो अपना भरण-पोषण खुद कर सके। हां हमने अपने स्वार्थ में इसके एक-एक गुण को खत्म करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। अभी भी पीछा नहीं छोड़ रहे हैं। इसमें सर्वप्रथम की कीकड़ को हटाना होगा, जो इसका जलस्तर मिट्टी व पक्षी जगत के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इसके स्थान पर वेटीवर झाड़ियों व शतायु वृक्ष लगाने होंगे। दूसरा जहां अतिरिक्त मिट्टी है उसको जहां जरूरत हटाने की है हटाना होगा और जहां ठीक करने की है ठीक करना होगा। तीसरा इसके केचमेंट क्षेत्र में जितनी बाधाएं हैं उनको हटाना होगा और खोलना होगा। जहां जरूरत है वहां मरम्मत भी करनी होगी। चौथा समर्पित जन जागरण व प्रशासनिक सहयोग से जल चोरी पर नियंत्रण करना होगा। पांचवा अवैध खनन के कारण बड़खल में जहां-जहां घाव हुए हैं उन्हें भरना या फिर बड़खल से जोड़ना होगा। पांचवा वन विभाग से अतीत में जो खामियां हुई है भविष्य में पुनरावृत्ति न हो सके, इसके लिए संकल्पित होना होगा। 18 बांध पर काम करने का सवाल तो हमारे स्मार्ट सिटी के अधिकारियों को कुछ और आये या न आये यह काम वह बखूबी कर ले इसके इस मामले में वह बहुत दक्ष है और अभी जो योजना बड़खल को लेकर उनके पास हैं उनमें उनका पूरा ध्यान और मुख्य बजट इसी को लेकर तो है कि किस प्रकार बांध को सजाना है। मनोरंजन क्षेत्रों का निर्माण और भोग विलास का मसौदा कैसे आकर्षक बनाना है। और सातवां इसके बाद जरूरत हो तो यमुना नदी से एसटीपी से तो कभी नहीं केवल वर्षा समय में जब इसमें यमुनत्व रहता है। पानी बड़खल में छोड़ा जा सकता है, इससे इसे अपने आप को जल सामान्य करने का सहयोग मिलेगा कुल 3 से 4 वर्ष का समय लगेगा। इस पूरी प्रक्रिया में हमें मिलेगी एक सदानीरा, सुगंधित, फरीदाबाद की जीवनदायिनी, पक्षियों व जीव जगत की क्रीड़ा स्थली औषधियों की पालक सुहासिनी बड़खल।

 

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