बिन माँगे वायु मिली, बिन माँगे ही नीर।
मोल न समझा आदमी, यही प्रकृति की पीर।।
यक्ष प्रश्न आज भी जस-के-तस खड़े हैं मृत्यु सबको आनी है लेकिन कोई मरना नहीं चाहता, जिन्दा रहने के लिये खाना सबको खाना है, अन्न उगाना कोई नहीं चाहता, इसी तरह पानी सब पीना चाहते हैं पर कोई संचय नहीं करना चाहता। पानी के संचय की तो बात दूर वर्षों पुराने स्रोतों पर स्वार्थों के चलते अतिक्रमण कर उन्हें नष्ट जरूर करना चाहता है।
लगभग 300 वर्ष पूर्व मध्य प्रदेश राज्य के दतिया शहर को पानी से निजात दिलाने को दतिया के महाराज ने महारानी सीता के नाम पर सीतासागर तालाब का निर्माण करवाया था लेकिन स्वार्थी तत्वों ने उच्चतम न्यायालय के आदेशों को भी अनदेखा कर उस पर भी अपने घर बना लिये और इस अपराध में तंत्र साधना की देवी पीताम्बरा माई को भी शामिल कर लिया जिसकी आड़ में अपने अपराधों को बचाया जा सके।
मध्य प्रदेश दतिया के प्रथम शासक की छोटी सी रियासत पहाड़ों तथा जंगलों के बीच घिरी बडोंनी से शुरू हुई थी लेकिन समाप्त ओरछा के शासक बनने पर हुई। दतिया राज्य के अंग बुन्देलखण्ड राज्य की नींव कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहारों तथा चन्देलों ने डाली थी। सबसे पहले बुन्देला राजा रुद्रप्रताप ने अप्रैल 1531 में बुन्देलों की प्रसिद्ध राजधानी ओरछा की नींव रखी। राजा रुद्रप्रताप की मृत्यु के उपरान्त उनके ज्येष्ठ पुत्र भारतीचन्द्र ने ओरछा का राजपाट सम्भाला। भारतीचन्द्र ने 1531 से 1554 तक शासन किया।
राजा भारतीचन्द्र की मृत्यु के बाद उनके कोई पुत्र न होने के कारण अनुज मधुकर शाह ओरछा के शासक बने जिन्होंने 1554 से 1592 तक शासन किया। राजा मधुकर के आठ पुत्र थे। वीर सिंह बुंदेला उन्हीं आठ पुत्रों में से एक थे। वीर सिंह बुन्देला को बडोंनी का शासक बनाया गया। वीर सिंह बुन्देला ने बडोंनी को अपना मुख्यालय न बनाकर दतिया को मुख्यालय बनाया। वीर सिंह अपना शासन दतिया से शुरू कर ओरछा तक का सफर तय किया। वीर सिंह बुन्देला ने अपने पुत्र भगवान राय को दतिया का प्रथम शासक बनाया।
भगवान राय के पुत्र शुभकरन बुन्देला जब दतिया के शासक बने तब उन्होंने पहले तालाब की नींव रखी। तालाब का नाम करनसागर रखा गया। करनसागर तालाब लगभग 250 से 300 एकड़ में फैला हुआ था। शुभकरन बुन्देला ने सन 1640 से 1678 तक राज किया। शुभकरन के बाद रामचन्द्र बुन्देला ने रामसागर तालाब बनवाया। रामचन्द्र का कार्यकाल सन 1707 से 1733 था। राजा रामचन्द्र बुन्देला की मृत्यु के बाद रामचन्द्र की पत्नी रानी सीताजू बुन्देला ने सीतासागर तालाब बनवाया था जिसका क्षेत्रफल लगभग 800 एकड़ था। सैकड़ों एकड़ तालाब अब सिमट कर दहाई के आँकड़े में हो गया है।
14 सितम्बर 2015 में दतिया के तीन वकीलों राजेश पाठक गणेश पाण्डेय तथा दीपू शुक्ला ने एक जनहित याचिका उच्च न्यायालय ग्वालियर में दाखिल की और माँग रखी कि सीतासागर तालाब के रकबे को अतिक्रमणकारियों से मुक्त करा, आजादी के बाद वर्ष 1947 की स्थिति में लाया जाये जिससे नागरिकों को पानी की उपलब्धता बनी रहे।
उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं से प्रश्न किया क्या आपने दतिया के प्रशासन को तालाब पर होने वाले अतिक्रमण के बारे में बताया है। याचिकाकर्ताओं ने बताया इस बारे में कई बार वह कलेक्टर दतिया से मिल चुके हैं लेकिन तमाम दलीलों के बाद भी कोई कार्यवाही अमल में नहीं लाई गई प्रशासन में मिली निराशा के बाद ही उन्हें उच्च न्यायालय में आना पड़ा है। उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि एक बार फिर वह अपना पक्ष कलेक्टर दतिया के सामने रखें। याचिकाकर्ताओं को अपना पक्ष रखने तथा कलेक्टर को कार्यवाही करने के लिये 45 दिन समय दिया गया।
याचिकाकर्ताओं ने 15 दिन के अन्दर अपना पक्ष कलेक्टर दतिया के समक्ष रखा लेकिन कलेक्टर दतिया ने उच्च न्यायालय के आदेश की अनदेखी करते हुए कोई कार्यवाही नहीं की। याचिकाकर्ताओं ने 45 दिन में कोई कार्यवाही न किये जाने पर अवमानना की कार्यवाही को अमल में लाने के लिये उच्च न्यायालय को आवेदन दिया।
उच्च न्यायालय ने कलेक्टर दतिया के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही का नोटिस कलेक्टर को दिया बावजूद अवमानना नोटिस दतिया कलेक्टर उच्च न्यायालय से समय लेते रहे। कलेक्टर दतिया के रवैए पर उच्च न्यायालय ने कलेक्टर दतिया श्री कुमार को 19 दिसम्बर 2016 को व्यक्तिगत उपस्थित होकर अपना पक्ष रखने का सख्त आदेश दिया।
आदेश की गम्भीरता को देखते हुए कलेक्टर दतिया ने आनन-फानन में 124 अतिक्रमणकारियों को धारा 248 एम.एल.आर.सी. बेदखली का नोटिस दिया लेकिन बेदखल नहीं किया। उच्च न्यायालय से राहत न मिलती देख प्रशासन ने 74 अतिक्रमणकारियों के खिलाफ जेल वारंट जारी किये और 10 को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया साथ ही 20 टीमें गठित की जिससे तालाब क्षेत्र में अतिक्रमण करने वाले चिन्हित किये जा सकें। प्रशासन की गठित टीमों के सामने सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि उन्हें नहीं मालूम है कि तालाब का रकबा कितना है क्योंकि प्रशासन के पास असली नक्शा ही नहीं है।
तालाब के अन्दर भू-माफियाओं ने तो अपना कमाल दिखाया ही है सरकारी विभागों ने भी तालाब में अतिक्रमण कर अपना नाम अतिक्रमणकारियों की फेहरिस्त में अपना नाम दर्ज करवाया है। अभी हाल ही में पुलिस कर्मियों के लिये एक आवासीय कॉलोनी का निर्माण करवाया गया है।
पानी के स्रोतों को बचाए रखने को उच्चतम न्यायालय के आदेश हैं कि पानी के स्रोतों को न बेचा जा सकता है और न खरीदा जा सकता है यदि कोई ऐसा करता है तो उसे बेदखल कर सख्त कार्यवाही कि जाये। बावजूद आदेश के सीतासागर तालाब में सरकारी विभागों के गोदाम, विधि कॉलेज, सरकारी छात्रावास, सरकारी पार्क, पीताम्बरा पीठ मन्दिर का बड़ा हिस्सा भी अपना कब्जा जमाए हुए है। मन्दिर न्यास आज भी अतिक्रमण वाले क्षेत्र में निर्माण करने से बाज नहीं आ रहा है।
प्रशासन ने भी उन्हीं लोगों पर कार्यवाही की है जो सीतासागर तालाब के चारदीवारी पर अपनी दुकानें बनाकर अपना व्यापार कर रहे हैं जिन 74 अतिक्रमणकारियों के खिलाफ एसडीएम वीरेंद्र कटारे ने सिविल जेल सुपुर्द वारंट जारी किये हैं, उनमें विवेक चौरसिया, श्यामाचरण साहू, बाबूलाल, राजू अहिरवार, रामबाबू ब्राह्मण, रामचरण, पप्पू, हुकुमसिंह कुशवाहा, रामबाबू, परशुराम, लखन, बाबूलाल केवट, रामकुमार केवट, सन्तोष अहिरवार, ओमप्रकाश, विजयराम, कमलेश बढ़ाई, अमान, रामबाबू, पप्पू बढ़ाई, अतर सिंह दाऊ खैरीवाले, राधावल्लभ मिश्रा, रामनिवास, रज्जन, किशोरी, चंदू, भग्गू, रामबाबू, सन्तोष, सीताराम लुहार, चतुर्भुज कुशवाहा, सन्तु सिंह सरदार, दक्ष प्रजापति, कमलेश झा, नीरज सिन्धी, चंदू मेंबर, जीतू किरायदार, दौलतराम सिन्धी, हरनारायन अहिरवार, अजय खंगार, जशतसिंह पाल, रमजान खां, देवा आदिवासी, तुलसी अहिरवार, संजीव, प्रमोद पाल, बबलू यादव, सामुदायिक भवन वीरांगना झलकारी बाई सर्व कोरी समाज, अवधेश कड़ेरे, मेहरवान ढीमर, पर्वत कुशवाहा, रामकिशन कुशवाह, केदार मिश्रा, रामस्वरूप यादव, अनुराग पाल, देवेन्द्र शर्मा, अशोक खारे, राकेश कुमार सरदार, सन्तु सिंह सरदार, सीताराम कुशवाहा, प्रदान दांगी, चिंटू कुशवाह, अंधरे पप्पू कुशवाहा, राधेश्याम दांगी, राम महाराज, प्रदीप गंगोटिया, गोविन्द दास माँझी, रामेश्वर माँझी, हरीश प्रकाश माँझी, पप्पू, नवकिरण बिल्डर्स के नाम शामिल हैं। प्रशासन द्वारा बनाई गई टीमों ने 160 अतिक्रमणकारियों को और खोज निकाला है जिसमें से 56 अतिक्रमणकारियों को और सिविल वारंट जारी किया है।
अतिक्रमणकारियों के खिलाफ प्रशासन की कार्यवाही से अतिक्रमणकारी बौखला गए और उन्होंने जनहित याचिका दाखिल करने वाले वकील राजेश पाठक के घर पथराव कर दिया।