सरदार सरोवर परियोजना से प्रभावितों का 15 दिनों (11 अप्रैल से 26 अप्रैल तक) से जारी धरना व संघर्ष अपने अधिकारों को हासिल करने के नये संकल्प के साथ कल सम्पन्न हुआ।
जबरदस्त गर्मी में पैदल एवं ट्रकों से यात्रा करके इंदौर पहुंचे प्रभावितों ने नर्मदा कंट्रोल अथोरिटी (एनसीए) के प्रांगण पर कब्जा करते हुए अपना धरना शुरू किया था, जहां एनसीए के अधिकारियों के साथ ठोस वार्ता हुई, और उन्होंने राज्यों को प्रतिक्रिया व्यक्त करने एवं जवाब देने की मांग करते हुए संदेश भेजा।
इसके बाद हालांकि, मध्य प्रदेश सरकार के अथॉरिटी नर्मदा वैली डेवलपमेंट अथोरिटी ‘एनवीडीए’ से कोई भी वार्ता के लिए नहीं आया और उन आदिवासियों के बारे में कोई संज्ञान नहीं लिया गया, जिन्होंने प्रगति के लिए सब कुछ त्याग किया है, और जिनके आजीविका के मुख्य साधन जमीन विभिन्न नदी महाकायी सरदार सरोवर सहित कई परियोजनाओं की नहरों के लिए इस्तेमाल होनी हैं।
एनवीडीए के रवैए से आहत उसके बाद युवा पीढ़ी के पांच सौ आदिवासी, महिलाओं और पुरूषों ने एनवीडीए के दफ्तर भोपाल कूच किया, जहां लोगों ने फिर से एनवीडीए परिसर के विशाल गेट को धकियाते हुए नर्मदा भवन में प्रवेश किया। कल भोपाल के नर्मदा भवन के परिसर में चार घंटे तक आदिवासियों द्वारा प्रदर्शन एवं चर्चा सहित सामूहिक ऐक्शन के बाद कार्रवाई सम्पन्न हुई, लेकिन सिर्फ पुनर्वास की प्रगति दिखाने एवं पर्यावरणीय शर्तों के पालन के अल्टीमेटम के साथ ही सम्पन्न हुई। तपती घूप में बैठे लोगों ने एनवीडीए के उपाध्यक्ष ओपी रावत को नीचे आने और डेढ़ घंटे तक बातचीत करने को बाध्य किया, जबकि विस्थापितों ने आक्रोश के साथ अपनी समस्याओं व दुखड़े का बयान किया।
सुगत गांव के रतनभाई ने मध्य प्रदेश सरकार से सवाल किया कि सरकार बांध में गेट लगाकर ऊंचाई 17 मीटर बढ़ाकर 138 मीटर करने का प्रस्ताव कैसे कर सकती है, जबकि अलीराजपुर एवं बड़वानी के पहाड़ी क्षेत्रों में डूब में आ चुके वनवासी आदिवासी गांवों के लिए कोई पुनर्वास स्थल ही तैयार नहीं है?
अंजनवाड़ा के खजानभाई ने इस तथ्य पर आश्चर्य जाहिर किया कि राज्य सरकार प्रमुख रूप से जमीन खोने वाले लोगों के लिए जमीन खरीद कर जमीन आबंटित करने को टाल रही है। जलसिंधी की पेरवीबाई अधिकारियों के ठंढे रवैये से परेशान है, और मांग की कि उन्हें जमीन आबंटित किया जाना चाहिए, जो कि उनके जीवन का अधिकार है।
मेधापटकर ने सवाल किया कि, ‘‘विधानसभा के विशेष सत्र का क्या मतलब है जब तक कि कंपनी अनुकूल दृष्टिकोण में बदलाव नहीं आता है?’’ मेधा पाटकर ने सवाल उठाते हुए कहा कि पहले चरण में भी कानून और नियमों का घोर उल्लंघन हुआ और आदिवासियों को न तो कोई जमीन आबंटित हुई और न ही घर के प्लॉट मिले। आदिवासियों से 90 के दशक के शुरूआत में ही जमीन और सम्पत्ति का अधिग्रहण कर लिया गया था जबकि उस समय बांध की ऊंचाई 80 मीटर थी।
निमाड़ के किसानों की संख्या लगभग 3000 पाई गई और उन्हें फर्जी रजिस्ट्री के माध्यम से धोखा दिया गया या पुनर्वास अधिकारी एवं एजेंटो द्वारा कोई रजिस्ट्री नहीं की गई और सभी आजीविकाओं के हकदार मछुआरों, कुम्हारों सहित कुछ हजार भूमिहीनों को फर्जी दस्तावेज दिया गया, जो कि एक घोटाला है। फर्जी मुआवजा वितरण का मामला न्यायमूर्ति झा आयोग के न्यायिक जांच के अधीन हैं और इस तरह उनके हजारों परिवारों को पुनर्वास हुआ नहीं कहा जा सकता।
यहां तक कि 70 फीसदी नहर नेटवर्क के अभाव में गुजरात के इलाकों में 10 फीसदी भी पानी का उपयोग नहीं किया जा सकता तो मध्य प्रदेश सरकार अपने राज्य के घनी आबादी वाले गांवो व कस्बों को डुबाने के लिए इतनी कठोर क्यों है?
आन्दोलन ने अल्टीमेटम देते हुए कहा कि जमीन खरीदने, ‘‘पुनर्वास गांव’’ स्थापित करने और अनिर्णित परियोजना प्रभावितों की बड़ी संख्या आदि जैसे अन्य मामलों को हल करने के मामले में कोई प्रगति नहीं हुई साथ ही फिर गेट लगाने और बांध की ऊंचाई बढ़ाने की कोशिश हुई तो करो या मरो का संघर्ष होगा।
एनवीडीए के उपाध्यक्ष श्री रावत कोई निर्णय नहीं दे सके और ऐसा करने में अपनी अक्षमता और सीमा बतायी, लेकिन हरेक आवेदनों/शिकयतों पर जवाब देने की वचनबद्धता जतायी। उन्होंने महाराष्ट्र और गुजरात की तरह निजी जमीन खरीदने का वादा किया। उन्होंने सरदार सरोवर परियोजना के प्रभावित इलाकों एवं बसाहटों दोनों का दौरा करने का वादा किया।
एनवीडीए परिसर में धरनारत लोगों ने उपस्थित समर्थक कार्यकर्ताओं के साथ गोष्ठी किया, जिनमें प्रमुख रूप से विकास संवाद से रोली शिवहरे, एकलव्य के मोनू, रिनचिन एवं अन्य लोगों ने गोष्ठी में शामिल होकर अपना समर्थन व्यक्त किया।