कुदरत खुद जो भी पैदा करती है तो उसके सृजन से लेकर विसर्जन तक की जिम्मेदारी भी खुद ही निभाती है। मगर मानव अपने कारखानों में जो भी बनाता है और उस बने हुए कृत्रिम सामान का उपयोग करता है परन्तु उसके विसर्जन की जिम्मेदारी न उत्पादनकर्ता लेता है और न उपभोक्ता लेता है चूंकि जो मानव ने कृत्रिम तरीके से बनाया है उसके अपव्यय को धरती भी स्वीकार नही करती। अर्थात् समस्त संसार में प्रदूषणरूपी राक्षस संसार से जीवन खत्म करने के लिए अपनी प्रदूषणरूपी सेना बढ़ा रहा है। हमारे वेदों में राक्षस उसी को कहते हैं जिसका क्षय नहीं होता है।
यह कुदरत का नियम है जो समाप्त नहीं होता वह समाप्त कर देता है। अतंतः अब समय आ गया है कि हमें अपने परिवार, जाति/सीमा/देश/काल से ऊपर उठकर धरती को बचाने हेतु अपने ही घर से प्रयास शुरू करने होंगे। अन्यथा आज के परिवेश में तो यह लाइन ही ठीक बैठती है “सृष्टि के डूबते जहाज पर लोग लूट रहे हैं माल को, किसी को नहीं है फुर्सत, जो मुड़ कर देखे काल को”।
अब हमें अपने परिवारों को, लघुउद्योग इकाइयों को व कलकारखानों को कुदरत की तरह शून्य विसर्जन मानक के अन्तर्गत लाना होगा। हमारा मानव शरीर ही प्रदूषण से मुक्ति का उपाय देता है, काश हम समझ पाते। हम नाना प्रकार की चीजें अपने एक ही मुख से खा-पी लेते हैं, पर कुदरत का चमत्कार देखो उसने हमारे शरीर में जल का मार्ग अलग और मल का मार्ग अलग, नाक, कान का मैल अलग, हड्डियों का मैल, नाखूनों के रास्ते अलग इसका सार यह हुआ कि हम अर्जन तो एक जगह से करें पर विसर्जन अलग-अलग। जब हम संसार को कुदरत की तरह शून्य विसर्जन मानक के अन्तर्गत ला सकेंगे। तभी महानगरों के बाहर, भीतर कीमती जमीनों पर खत्ता घरों का खात्मा होगा और हमें प्रदूषण से मुक्ति मिलेगी।
हमारे लिए ग्लेशियर, नदी, तालाब व भूभर्ग ही जीवनदायी मीठे जल को भर कर रखने के लिए सबसे बड़े बर्तन है। और बारिश इसको हम तक पहुंचाने का सबसे शुद्ध माध्यम है। तो क्या हम आकाश गंगा का सबसे अमृत तुल्य जल धरती के पेट में उतारने में पूरी तरह कामयाब हुए? नहीं। जो बर्तन हमने अपने लोभ के कारण बन्द कर दिए हैं अब वही कुदरत के अनमोल, नायाब बर्तन भरने होंगे।
नदियों को सदानीरा बनाने के लिए वृक्षारोपण से ज्यादा जंगलों का संरक्षण करना होगा तभी ग्लेशियरों का सुरक्षा कवच मजबूत होगा। कुदरत के फ्री जल शोधन करने वाले वाटर ट्रीटमेंट प्लांट, तालाब, पोखर, कच्चे नाले-नाली, व नदियों का सत्यानाश कर मनुष्य अब करोड़ों अरबों लगाकर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगा रहा है, कुदरत के कौड़ियों के काम को करोड़ों अरबों रूपयों में कर रहा है। चूंकि सृजन और विसर्जन कुदरत के अनमोल कार्य है। यह अपने आप होता है, इसके लिये धन से ज्यादा धुन चाहिये।
यमुना व शहर को प्रदूषण के बचाने के लिए हम क्या-क्या कर सकते हैं।
क्र.सं. |
मनुष्य का कारण |
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प्रदूषक का निवारण |
1. |
नाले |
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नालों पर फिल्टर सिस्टम बनाकर, नदी को तत्काल कीचड़ व कचड़े से बचाया जा सकता है। इससे केवल पानी ही नदियों में जायेगा |
2. |
नदी के किनारे शौच करने वाले |
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पास-पास शौचालय बनाकर जहां जगह नहीं वहाँ मोबाइल शौचालय की व्यवस्था करा कर। |
3. |
पूजा की विसर्जन सामग्री |
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घाटों व किनारों पर विसर्जन कुण्ड बनाकर व उसकी खाद बनाकर। |
4. |
नदियों के पास अन्य कचरा |
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जगह-जगह कूड़ेदान रखवाकर। |
5. |
भैसें व धोबी |
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स्थान दिलवाकर। |
6. |
मृत पड़े पशु व लाशें |
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जनता के मृत पशु कन्ट्रोल रूप व जे.सी.वी. मशीन तथा चिन्हित स्थान उपलब्ध कराकर |
7. |
शहर में हर जगह से नदी में घुस जाना |
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हर क्षेत्र में घाट व नदी में जाने का एक ही रास्ता हो बाकी रास्ते बन्द हों। एकल रास्ते की व्यस्था हो। |
8. |
गन्दगी फैलाने वालों पर सख्ती |
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नदी के रास्ते पर चौकीदार, रिवर पुलिस, सफाई कर्मचारी व माली जो गन्दगी करने वालों पर सख्ती व चाला कर सकें। |
9. |
वीरान उपेक्षित किनारे |
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माली, हरियाली, रखवाली। |
10. |
पानी का अभाव |
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आकाश गंगा के पानी का पूरा उपयोग व संरक्षण, तालाबों में सोख्ता गड्डों द्वारा संग्रह कर । जहां जल भराव होता है वहां वाटर हार्वेस्टिंग करें। |
11. |
कम बरसात |
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सोख्तों के द्वारा सुखाया जा सकता है, मैदानों में स्प्रे करके सुखाया जा सकता है, जंगल, खेती, पार्क व फुलवारी में उपयोग किया जा सकता है। |
12. |
नाले का पानी |
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सोख्तों के द्वारा सुखाया जा सकता है, मैदानों में स्प्रे करके सुखाया जा सकता है, जंगल, खेती, पार्क व फुलवारी में उपयोग किया जा सकता है। |
13. |
कचरे की समस्या |
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जनता के लोभ को भुनाया ज सकता है। उसके घर व क्षेत्र को मानक के अनुकूल पाये जाने पर अच्छे नागरिक का कूपन दिया जाये जिनमें लॉटरी सिस्टम भी हो। |
14. |
प्लास्टिक (पॉलिथिन) का कचरा |
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जो बिकेगा वह नहीं फिकेगा। पुरानी प्लास्टिक व पॉलीथिन की कीमत सबसिडी बढ़ाकर भी खरीददारी की जाये। |
15. |
करोड़ो रूपये खर्च कर सीवेज प्लांट द्वारा मल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना |
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इको टॉयलेट को विकसित कर आम आदमी तक इसे विस्तारित करें। (मानव मल आदि से अनादिकाल तक जहां होता है वहीं अपने आप में विसर्जित होने की क्षमता रखता है। |
16. |
करोंड़ों की लागत से गंगा जल को यमुना में मिलाना। (साथ-साथ) |
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वर्षा जल संचयन के पूर्व में निर्धारित स्थान जैसे-झरना नाला, कीठम, तेरह मोरी बांध, खारी नदी व अन्य बन्द होते तालाब इत्यादि में जल संरक्षण और प्रबन्धन की व्यवस्था करें। |
नोटः- वैसे हमारे देश में प्लास्टिक पॉलीथिन के कचरे से सीमेंट, डीजल व सड़क, बिजली बनाने के सफल प्रयोग हो चुके हैं। पंजाब में काली बेई नदी को 160 कि. मी. साफ किया जा चुका है, इस ओर भी ध्यान देने की कृपा करें।
जब आम के आम गुठलियों के भी दाम होंगे तब कहीं नहीं कचरे के ढेर सरेआम होंगे। |
मोहन कुमार
35/472, नौबस्ता, लोहामण्डी, आगरा, (उ.प्र.)
E-mail: mohan65kumar@yahoo.co.in
लेखक कोई पत्रकार नहीं बल्कि आगरा के एक व्यवसायी है अपने अनुभव के आधार पर उन्होंने जो समझा, परखा और अनुभव किया वही आप सभी से साझा कर रहे हैं। हम आशा करते हैं कि सुधी पाठकजन लेखक का उत्साहवर्धन करेंगे।