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जनसत्ता, 27 अगस्त 2012
कानूनों को दरकिनार कर संरक्षित वन क्षेत्र बन रहा है कंक्रीट का जंगल
संरक्षित वन्य क्षेत्रों के आसपास बढ़ रहे अवैध निर्माणों के बाद केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने 2006 में एक शासनादेश जारी कर किसी भी संरक्षित वन्य क्षेत्र के 10 किलोमीटर दायरे में कोई भी व्यावसायिक कार्य करने से पहले मंत्रालय की मंजूरी जरूरी कर दी थी। लेकिन समिति के सदस्य जोशी की रिपोर्ट बताती है कि इस 10 किलोमीटर के क्षेत्र में अभी भी दर्जनों निर्माण कार्य चल रहे हैं। इन सभी का सीवेज व प्रदूषित जल भूगर्भ में किया जा रहा है।
आगरा के कीठम में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा सूर सरोवर पक्षी विहार का अस्तित्व खतरे में है। इसे बचाने को किए गए सारे उपाय अभी तक प्रभावशाली व्यक्तियों के कारण बौने साबित हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट व केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के आदेशों के अनुपालन में किसी भी संबंधित विभाग की तरफ से कोई कार्रवाई करना तो दूर, इस पक्षी विहार के आसपास संरक्षित वन क्षेत्र में धीरे-धीरे कंक्रीट के जंगल खड़े होते जा रहे हैं। इस क्षेत्र में प्रतिबंधित व्यावसायिक गतिविधियां भी तेजी से फैल रही हैं। ताज ट्रैपिजियम (टीटीजेड) क्षेत्र के लिए गठित सुप्रीम कोर्ट अनुश्रणव समिति के सदस्य डीके जोशी ने एक विस्तृत रिपोर्ट इस क्षेत्र का दौरा करने के बाद समिति के अध्यक्ष आगरा के मंडलायुक्त, सुप्रीम कोर्ट, केंद्र सरकार व राज्य सरकार को भेजी है। सूर सरोवर पक्षी विहार में विशाल भालू संरक्षण गृह भी है। जिसमें कि वर्तमान में 249 भालूओं को रखा गया है।सुप्रीम कोर्ट अनुश्रवण समिति के सदस्य डीके जोशी ने बताया कि सूर सरोवर पक्षी विहार की सीमा में शारदा ग्रुप का आनंद इंजीनियरिंग कॉलेज व हिंदुस्तान इंजीनियरिंग कालेज हैं। पिछले 10 साल से इन कालेजों का सीवेज, जहरीला व प्रदूषित जल लगातार कीठम झील में डाला जा रहा है। इसके अलावा कॉलेजों का अनधिकृत रूप से बहुमंजिली इमारत बनाना, स्टेडियम, हाइपावर फ्लैश लाइट, जनरेटर इत्यादि लगाना वन्य जीव-जन्तु व पक्षियों के लिए नुकसानदायक है।
उन्होंने कहा कि 1991 में सूर सरोवर पक्षी विहार को वन्य जीव विहार के रूप में घोषित किया गया था। इसका क्षेत्रफल 403.09 हेक्टेयर है। लेकिन 1998 के बाद से इस क्षेत्र में व्यावसायिक निर्माण होना शुरू हो गए और कई इंजीनियरिंग कॉलेज खुल गए। जबकि वन विभाग इस ओर से आंखें मूंदे है। आनंद इंजीनियरिंग कॉलेज तो संरक्षित वन क्षेत्र की भूमि का इस्तेमाल कर रहा है जो कि वन संरक्षण कानून 1980 का सीधा उल्लंघन है। इस पक्षी विहार में चिड़ियों की 222 प्रजातियां, 229 प्रजातियों के पौधे, कछुए की सात प्रजातियां, सांपों की 15 प्रजातियां, नौ प्रकार के स्तनधारी व कई अन्य जीव-जन्तु हैं।
आगरा-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग-2 पर बसा है कीठम गांव। इसे सूरदास की जन्मस्थली माना जाता है। यहां विशाल कीठम झील है। कभी इस झील के आसपास मीलों दूर तक घना जंगल होता था। इसी कारण यहां हजारों देशी व विदेशी पक्षियों, वन्य जीव-जंतुओं ने अपना ठिकाना बना लिया था। 1991 में इसे सूर सरोवर पक्षी विहार घोषित कर दिया गया। लेकिन 1998 से इस पक्षी विहार की भूमि व इसके आसपास के क्षेत्र में शैक्षणिक, व्यावसायिक निर्माण कार्य शुरू हो गया। इसके लिए किसी भी विभाग या सुप्रीम कोर्ट से इजाजत नहीं ली गई। 14 फरवरी 2000 को सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश पारित कर कहा था कि देश के किसी भी नेशनल पार्क व सेंचुरी की सीमा के भीतर कोई भी गैर वानिकी काम उसकी अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद इस क्षेत्र में इंजीनियरिंग कॉलेजों का निर्माण हुआ और कंक्रीट की बहुमंजिला इमारतें इस क्षेत्र में सीना तान कर खड़ी हो गईं।
संरक्षित वन्य क्षेत्रों के आसपास बढ़ रहे अवैध निर्माणों के बाद केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने 2006 में एक शासनादेश जारी कर किसी भी संरक्षित वन्य क्षेत्र के 10 किलोमीटर दायरे में कोई भी व्यावसायिक कार्य करने से पहले मंत्रालय की मंजूरी जरूरी कर दी थी। लेकिन समिति के सदस्य जोशी की रिपोर्ट बताती है कि इस 10 किलोमीटर के क्षेत्र में अभी भी दर्जनों निर्माण कार्य चल रहे हैं। इन सभी का सीवेज व प्रदूषित जल भूगर्भ में किया जा रहा है। इससे इस क्षेत्र के पर्यावरण और वन्य जीव-जंतुओं के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है। आगरा के प्रभागीय निदेशक (वन्य विभाग) सुजोय बनर्जी ने बतदाय कि सूर सरोवर पक्षी विहार की सीमा में स्थित आनंद इंजीनियरिंग कॉलेज व हिंदुस्तान कॉलेज कीठम झील में जल संरक्षण कानून का उल्लंघन कर सीवेज व प्रदूषित जल का निस्तारण कर रहे हैं। इसके लिए छह करोड़ रुपए आनंद इंजीनियरिंग कॉलेज पर और चार करोड़ रुपए हिंदुस्तान इंजीनियरिंग कॉलेज पर जुर्माना लगाया गया है। लेकिन मामला अभी न्यायालय के विचाराधीन है।
प्रभागीय निर्देशक सामाजिक वानिकी आगरा एनके जानू ने माना कि पिछले कई वर्षों से नियमों का उल्लंघन कर निर्माण कार्य हुए हैं। यहां शैक्षणिक, व्यावसायिक गतिविधियां बिना अनुमति के चल रही हैं। आनंद इंजीनियरिंग कॉलेज में लगाई गई हाई पावर फ्लैश लाइट स रात में विचरण करने वाले वन्य जीव-जंतुओं को भयंकर नुकसान हुआ है। संरक्षित वन्य क्षेत्र में गैरवानिकी कार्य करना वन्य कानूनों का सीधा-सीधा उल्लंघन है। समिति के सदस्य जोशी ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि इंजीनियरिंग कॉलेजों की इमारतों को सील कर उसके संचालकों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाए और वन विभाग, वन्य जीव विभाग व प्रदूषण विभाग के कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। उन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेजों को भी तुरंत स्थानांतरित करने की सिफारिश की है।