सूचना के बदले कितना शुल्क

Submitted by Hindi on Sat, 10/30/2010 - 10:12
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चौथी दुनिया ब्यूरो
सूचना का अधिकार क़ानून के तहत जब आप कोई सूचना मांगते हैं तो कई बार आपसे सूचना के बदले पैसा मांगा जाता है। आपसे कहा जाता है कि अमुक सूचना इतने पन्नों की है और प्रति पेज की फोटोकॉपी शुल्क के हिसाब से अमुक राशि जमा कराएं। कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं जिसमें लोक सूचना अधिकारी ने आवेदक से सूचना के बदले 70 लाख रुपये तक जमा कराने को कहा है। कई बार तो यह भी कहा जाता है कि अमुक सूचना काफी बड़ी है और इसे एकत्र करने के लिए एक या दो कर्मचारी को एक सप्ताह तक काम करना पड़ेगा, इसलिए उक्त कर्मचारी के एक सप्ताह का वेतन आपको देना होगा। ज़ाहिर है, सूचना न देने के लिए सरकारी बाबू इस तरह का हथकंडा अपनाते हैं। ऐसी हालत में यह ज़रूरी है कि आरटीआई आवेदक को सूचना शुल्क से संबंधित क़ानून के बारे में सही और पूरी जानकारी होनी चाहिए ताकि कोई लोक सूचना अधिकारी आपको बेवजह परेशान न कर सके। इस अंक में हम आपको आरटीआई फीस और सूचना के बदले दिए जाने वाले शुल्क के बारे में बता रहे हैं। यह सही बात है कि सूचना कानून की धारा 7 में सूचना के एवज़ में फीस की व्यवस्था बताई गई है, लेकिन धारा 7 की ही उप धारा 1 में लिखा गया है कि यह फीस सरकार द्वारा निर्धारित की जाएगी। इस व्यवस्था के तहत सरकारों को यह अधिकार दिया गया है कि वे अपने विभिन्न विभागों में सूचना के अधिकार के तहत दिया जाने वाला शुल्क आदि तय करेंगी। केंन्द्र और राज्य सरकारों ने इस अधिकार के तहत अपने-अपने यहां फीस नियमावली बनाई है और इसमें स्पष्ट किया गया है कि आवेदन करने से लेकर फोटोकॉपी आदि के लिए कितनी-कितनी फीस ली जाएगी। इसके आगे धारा 7 की उपधारा 3 में लोक सूचना अधिकारी की ज़िम्मेदारी बताई गई है कि वह सरकार द्वारा तय की गई फीस के आधार पर गणना करते हुए आवेदक को बताएगा कि उसे सूचना लेने के लिए कितनी फीस देनी होगी। उपधारा 3 में लिखा गया है कि यह फीस वही होगी जो उपधारा 1 में सरकार द्वारा तय की गई होगी। देश के सभी राज्यों में और केंद्र सरकारों ने फीस नियमावली बनाई है और इसमें आवेदन के लिए कहीं 10 रुपये का शुल्क रखा गया है तो कहीं 50 रुपये। इसी तरह दस्तावेज़ों की फोटोकॉपी लेने के लिए भी 2 रुपये से 5 रुपए तक की फीस अलग-अलग राज्यों में मिलती है। दस्तावेज़ों के निरीक्षण, काम के निरीक्षण, सीडी, फ्लॉपी पर सूचना लेने के लिए फीस भी इन नियमावालियों में बताई गई है। धारा 7 की उप धारा 3 कहती है कि लोक सूचना अधिकारी यह गणना करेगा कि आवेदक ने जो सूचना मांगी है वह कितने पृष्ठों में है, या कितनी सीडी, फ्लॉपी आदि में है। इसके बाद लोक सूचना अधिकारी सरकार द्वारा बनाई नियमावली में बताई गई दर से यह गणना करेगा कि आवेदक को सूचना लेने के लिए कुल कितनी राशि जमा करानी होगी। इसके लिए किसी लोक सूचना अधिकारी को यह अधिकार कतई नहीं दिया गया है कि वह मनमाने तरीके से फीस की गणना करे और आवेदक को मोटी रकम जमा कराने के लिए दवाब में डाले। ऐसे में जो भी लोक सूचना अधिकारी मनमाने तरीक़े से अपनी सरकार द्वारा तय फीस से कोई अलग फीस आवेदक से मांगते हैं, वह ग़ैरक़ानूनी है। इसी के साथ एक आवेदक को यह भी पता होना चाहिए कि सूचना क़ानून के प्रावधानों के मुताबिक़ अगर लोक सूचना अधिकारी मांगी गई सूचना तय समय समय के अंदर (30 दिन या जो भी अन्य समय सीमा हो) उपलब्ध नहीं कराता है तो आवेदक से सूचना देने के लिए कोई शुल्क नहीं मांग सकता। इसके आवेदक को जब भी सूचना दी जाएगी वह बिना कोई शुल्क लिए दी जाएगी।

हमें यह हमेशा याद रखना होगा कि लोक सूचना अधिकारी या कोई भी अन्य सरकारी कर्मचारी आम आदमी के टैक्स से वेतन लेने वाला व्यक्ति है। उसे यह वेतन दिया ही इसलिए जाता है कि वह आम आदमी के लिए बनाए गए विभिन्न क़ानूनों का पालन करते हुए कार्य करे। ऐसे में किसी एक क़ानून के पालन के लिए उसका वेतन किसी व्यक्ति विशेष से मांगना व्यवस्था की आत्मा के ही खिला़फ है। हमें उम्मीद है कि आप सभी पाठकों के लिए यह जानकारी काफी मददगार साबित होगी। और, आपलोग जम कर आरटीआई क़ानून का इस्तेमाल करते रहेंगे।