पौष्टिक भोजन स्वास्थ्य की एक महत्त्वपूर्ण आधारशिला है। इसलिए शरीर की जरूरतों को पूरा करने के लिए भोजन में उचित मात्रा में आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति होनी चाहिए। पोषक तत्वों की अधिकता और कमी-दोनों समान रूप से हानिकारक हैं और व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामुदायिक स्वास्थ्य पर लम्बे समय तक चलने वाले प्रतिकूल प्रभाव हैं। इस प्रकार, इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से सम्बन्धित करना और समुदाय को अच्छे स्वास्थ्य और इष्टतम पोषण के महत्व के बारे में जागरूक करना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। अच्छा पोषण, नियमित शारीरिक गतिविधि और पर्याप्त नींद स्वस्थ जीवन के आवश्यक नियम हैं। सम्पूर्ण राष्ट्र में इष्टतम पोषण की अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
विश्वभर में कुपोषण, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी, मोटापा और आहार सम्बन्धी गैर-संक्रामक बीमारियों की समस्याओं में लगातार वृद्धि हो रही है। ऊर्जा/पोषण असंतुलन के परिणामस्वरूप शारीरिक और संज्ञानात्मक विकास, रुग्णता मृत्युदर पर दुष्प्रभाव पड़ने के साथ-साथ मानव क्षमता का बहुपक्षीय नुकसान भी हो सकता है तथा इस प्रकार सामाजिक/आर्थिक विकास को भी प्रभावित कर सकता है।
भारत सहित की विकासशील राष्ट्र वर्तमान में कुपोषण के दोहरे बोझ के पोषण-स्पेक्ट्रम के दोनों छोर पर गम्भीर स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार कुपोषम ऊर्जा और/या पोषक तत्वों के एक व्यक्ति के सेवन में कमियों, बढोत्तरी, या असंतुलन को दर्शाता है। एक ओर लाखों लोग अत्यधिक या असंतुलित आहार के कारण गैर-संचारी रोगों से पीड़ित हैं और मोटापे को रोकने और आहार से सम्बन्धित गैर-संचारी रोगी (एनसीडी) के इलाज पर भारी खर्च का भी सामना कर रहे हैं। वही दूसरी ओर, अभी भी कई देश आबादी को खिलाने मात्र के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वर्ष 2019 ग्लोबल हंगर इंडेक्स के मुताबिक भारत 117 योग्य देशों में से 102 वें स्थान पर है।
संविधान के अनुच्छेद 47 के अनुसार पोषण-स्तर, रहन-सहन और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार लाना राज्य का कर्तव्य है-
सामाजिक/आर्थिक/औद्योगिक विकास के साथ जीवनशैली में बदलाव के कारण संचारी से गैर-संचारी रोगों के पैटर्न में भारी बदलाव आया है। इसके अलावा, सामाजिक न्याय/ इक्विटी में असमानता मौजूदा चिंताओं को बढ़ावा देती है। विभिन्न कारकों के कारण, इन रोगों का उपचार आम लोगों के लिए दुर्गम बना हुआ है और इनके निदान में भी अक्सर कमी देखी गई है। वर्तमान स्थिति में, रोग-निवारक दृष्टिकोण से उपचारात्मक दृष्टिकोण में बदलाव व्यक्तिगत-स्तर के साथ-साथ जनसंख्या-स्तर पर भी आवश्यक है। एनसीडी सम्बन्धी स्वास्थ्य निर्धारकों को सम्बोधित करने के लिए, सभी क्षेत्रों के लिए स्वस्थ आहार/वातावरण बनाने की आवश्यकता है और यह चुनौतियों का सामना करने के लिए सबसे प्रभावी तरीका भी है। इसके अलावा, स्वास्थ्य संवर्धन दृष्टिकोण अपनाने से यह परिकल्पित किया गया है कि यह जनसंख्या को भली-भांति सूचित एवं उचित स्वास्थ्य सम्बन्धी विकल्पों को चुनने के लिए सशक्त बनाता है।
उचित स्वास्थ्य नीतियों के साथ-साथ स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों/नई तकनीकों का उपयोग करके जागरूकता बढ़ाना तथा अधिक सामुदायिक जुड़ाव पैदा करने के लिए प्रभावी संचार रणनीति अपनाना समय की आवश्यकता है। शोध द्वारा स्वास्थ्य संवर्धन और पोषण सम्बन्धी हस्तक्षेप को स्वास्थ्य के विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय निर्धारकों को सम्बोधित करने हेतु अत्यधिक प्रभावी साबित किया गया है। देश के लोगों में पोषण/स्वास्थ्य सम्बन्धी व्यवहार को प्रभावित करने हेतु जागरुकता पैदा करने के ले मीडिया का प्रभावित रूप से उपयोग करना आवश्यक है। ‘सभी के लिए स्वास्थ्य और पोषण’ का लक्ष्य अच्छे स्वास्थ्य/ कल्याण और अच्छे पोषण के उच्चतम सम्भव स्तर को प्राप्त करना है।
बचपन के कुपोषण-स्तर को कम करने के लिए आर्थिक विकास का बहुत कम प्रभाव पड़ता है और इसलिए अच्छा स्वास्थ्य/पोषण सम्बन्धित शिक्षा, बच्चे को खिलाने की प्रथाएं (स्तनपान सहित), संतुलित आहार, उचित स्वास्थ्य, स्वच्छता, आहार विविधीकरण, माइक्रोन्यूट्रिएंट पूरकता, बायोफोर्टिफिकेशन जैसे हस्तक्षेप तथा रोगों की रोकथाम को नियमित रूप से व्यवस्थित करने की आवश्यकता है। पोषण एक दोहरे धार वाली तलवार है- अल्प-पोषण और अति-पोषण दोनों ही हानिकारक हैं। इसलिए, नियमित शारीरिक गतिविधि के साथ इष्टतम पोषण अच्छे स्वास्थ्य की आधारशिला है। पोषण-सम्बन्धी डाटाबेस बनाने के लिए भारत सदैव आगे रहा है तथा भारतीय खाद्य संरचना टेबल्स (2017) सहित विभिन्न शोध अध्ययन/सर्वेक्षण जिसमें खाद्य, कृषि पोषण संक्रमण का विवरण रहता है, करता रहा है। हमारा देश खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में सुधार लाने के लिए कई पोषण हस्तक्षेप कार्यक्रमों में भी निवेश करता रहा है, जिससे समाज के कमजोर वर्गों के पोषण-स्तर में सुधार हो रहा है। भारत सरकार निरंतर पोषण सम्बन्धी प्रयासों में सुधार लाने के लिए वचनबद्ध है तथा मौजूदा कार्यक्रमों को समय-समय पर परिवर्तित करने और आवश्यकतानुसार नई योजनाएं शुरू करने के लिए सदैव तत्पर हैं- सभी का उद्देश्य राष्ट्र में कुपोषण की रोकथाम, शीघ्र पता चलाना और दूर करने के लिए प्रभावी प्रबंधन करना है। कुपोषण से निपटने तथा स्वास्थ्य/पोषण स्थिति में सुधार लाने के लिए भारत सरकार द्वारा विभिन्न कार्यक्रम और योजनाएं लागू की गई हैं। पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा को पोषण संवर्धन के लिए एक महत्त्वपूर्ण तकनीक के रूप में मान्यता दी गई है जोकि सामुदायिक और राष्ट्र जीवन और विकास की गुणवत्ता में सुधार के लिए सबसे अधिक लागत प्रभावी तकनीक भी है। स्वास्थ्य/पोषण शिक्षा के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के महत्व को मद्देनजर रखते हुए सरकार जमीनी-स्तर के अधिकारियों के प्रशिक्षण का आयोजन ग्रामीण/ब्लॉक-स्तर पर करती है जोकि कृषि, स्वास्थ्य, महिला और बाल विकास, शिक्षा, ग्रामीण विकास आदि क्षेत्रों से सम्बन्धित हैं।
पोषण अभियान
(राष्ट्रीय पोषण मिशन) भारत का प्रमुख कार्यक्रम है, जोकि मार्च 2018 में शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य 6 वर्ष तक के बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और धात्री माताओं के पोषण की स्थिति में सुधार लाना है ताकि कम वजन वाले शिशुओं, स्टंटिंग, अल्प-पोषण, एनीमिया आदि में कमी जैसे विशिष्ट लक्ष्यों को अगले तीन वर्षों में प्राप्त किया जा सके। पोषण अभियान एक जन-आन्दोलन और भागीदारी है। पोषण अभियान को गति देने के लिए, 24 जुलाई, 2018 को नेशनल कौंसिल ऑफ इंडिया के न्यूट्रिशन चैलेंजेज ने सितम्बर को राष्ट्रीय पोषण माह के रूप में मानने का निर्णय लिया। इस महीने के दौरान पोषण से जुड़ी जागरूकता सम्बन्धी गतिविधियां सभी राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों द्वारा जमीनी-स्तर पर की जाती हैं। पोषण अभियान का उद्देश्य छोटे बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं/धात्री माताओं, परिवार के सदस्यों (पति, पिता, सास), सामुदायिक सदस्यों, स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं (एएनएम, आशा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता) में पोषण सम्बन्धी जागरूकता को बढ़ाना है।
कुछ अन्य प्रमुख योजनाएं हैं
एकीकृत बाल विकास योजना, मध्याह्न भोजन योजना, लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली, सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान, निर्मल भारत अभियान, राष्ट्रीय ग्रामीण पेय कार्यक्रम, स्वच्छ भारत अभियान, सामुदायिक खाद्य और पोषण विस्तार इकाइयों के माध्यम से पोषण शिक्षा और प्रशिक्षण।
प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा
योजना की शुरुआत 2003 में सस्ती एवं विश्वसनीय तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता हेतु क्षेत्रीय असंतुलन में सुधार के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा शिक्षा प्रदान करने के लिए की गई थी।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन
(एनएचएम) के अन्तर्गत दो उप-मिशन, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन और राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य स्वास्थ्य मिशन शामिल हैं। प्रोग्राम के मुख्य घटकों में स्वास्थ्य प्रणाली सुदृढ़ीकरण, प्रजनन-मातृ नवजात शिशु और किशोर स्वास्थ्य (आरएमएनसीएच+ए), और संचारी और गैर-संचारी रोग शामिल हैं। एनएचएम सार्वभौमिक रूप से समान, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को पहुंचाने तथा लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जिम्मेदार और उत्तरदाई है।
नेशनल हेल्थकेयर इनोवेशन पोर्टल भारत के सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में नवीन कार्यक्रमों के डिजाइन, प्रथाओं, प्रौद्योगिकी समाधान और उत्पादों को पूल-इन और भली प्रकार प्रदर्शित करने का एक अहम प्रयास है।
आयुष्मान भारत
स्वास्थ्य और कल्याण केन्द्र, एक चयनात्मक दृष्टिकोण से उचित स्वास्थ्य देखभाल की ओर बढ़ने के साथ-साथ व्यापक सेवाएं जैसे कि निवारक, प्रोत्साहन, उपचार, पुनर्वास और उपशासक देखभाल आदि प्रदान करते हैं। इसके दो घटक हैः
1. पहले घटक के तहत, व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल देने के लिए 1.5 लाख हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर (एचडब्ल्यूसी) बनाए जा रहे हैं, जो उपयोगकर्ताओं के लिए सार्वभौमिक और मुफ्त हैं। यह समुदाय के कल्याण एवं व्यापक सेवाओं को प्रदान करने पर ध्यान केन्द्रित करते हैं (गैर-संचारिक रोगों के लिए देखभाल, उपशामक/पुनर्वास सम्बन्धी देखभाल, ओरल, आई और ईएनटी देखभाल मानसिक स्वास्थ्य और आपातस्थिति/ आघात के दौरान प्रथम-स्तरीय देखभाल, मुफ्त आवश्यक दवाएं और नैदानिक सेवाएं)।
2. दूसरा घटक प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जेएवाई) जो माध्यमिक/तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल के लिए 10 करोड़ से अधिक गरीब और कमजोर परिवारों को प्रति वर्ष 5 लाख रुपए तक का स्वास्थ्य बीमा कवर प्रदान करती है।
‘मेरा अस्पताल’ स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा उपयोगकर्ताओं के अनुकूल कई चैनलों जैसे लघु संदेश सेवा (एसएमएस), आउटबाउंड डायलिंग (ओबीडी) मोबाइल एप्लिकेशन और वेबपोर्टल के माध्यम से अस्पताल में प्राप्त सेवाओं के लिए रोगी की प्रतिक्रिया प्राप्त करने की पहल है। इसका उद्देश्य सरकार को सार्वजनिक सुविधाओं में स्वास्थ्य सेवा वितरण की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए उचित निर्णय लेने में मदद करना है, जिससे रोगी के अनुभव में सुधार हो सके।
टीकाकरण कार्यक्रम को और सशक्त बनाने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 8 अक्टूबर, 2017 को गहन मिशन इन्द्रधनुष का शुभारम्भ किया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य 2 वर्ष तक के प्रत्येक बच्चे और उन सभी गर्भवती महिलाओं तक पहुँचना है, जिन्हें नियमित टीकाकरम कार्यक्रम/ यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम के तहत छोड़ दिया गया था। हाल ही में मिशन इंद्रधनुष 2.0 शुरू किया गया है जोकि दिसम्बर 2019 से मार्च 2020 तक चलेगा।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने स्वास्थ्य शिक्षा और प्रारम्भिक निदान प्रदान करने के अतिरिक्त स्वास्थ्य देखभाल सम्बन्धी सेवाएं पूरी तरह से मुफ्त प्रदान करने के लिए स्वास्थ्य मेला आयोजित करने की रणनीति अपनाई है। इन स्वास्थ्य मेलों की परिकल्पना आवश्यक पैथोलॉजिकल परीक्षणों/दवाओं के साथ गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं का लाभ उठाने के इच्छुक नागरिकों को आकर्षित करना है। मेला केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, गैर-सरकारी संगठनों और चिकित्सा की विभिन्न प्रणालियों (एलोपैथी, होम्योपैथी, आयुर्वेद और यूनानी आदि) द्वारा किए जा रहे विभिन्न स्वास्थ्य कार्यक्रमों के बारे में लोगों को अवगत कराने में एक शक्तिशाली वाहक साबित हो रहा है।
ईट राइट इंडिया
आन्दोलन जन-जागरूकता उत्पन्न करने के लिए सोशल मीडिया सहित बड़े पैमाने पर मीडिया को शामिल करता है। ईट राइट इंडिया का ‘लोगों’ इष्टतम आहार के घटकों को दर्शाता है। फ्रंटलाइन हेल्थकेयर अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण; स्वस्थ आहार को बढ़ावा देने वाला एक ऑनलाइन रिटेलर; और उपयुक्त पोषण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए ऑनलाइन क्विज करता है। इसके अलावा, स्कूल/कॉलेज वातावरण में भोजन और पोषण सम्बन्धित शिक्षा बच्चों, किशोरों, स्कूल स्टाफ और समुदायों को स्वस्थ खाने की आदतों और अन्य सकारात्मक स्वास्थ्य और इष्टतम पोषण से सम्बन्धित व्यवहारों को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ सीखने के अनुभव को भी बेहतर करती है। शोध के अनुसार और व्यावहारिक रूप से भी, केन्द्रित शैक्षिक-रणनीतियों के संयोजन का उपयोग करना महत्त्वपूर्ण है जिसमें छात्रों, स्कूल/कॉलेज के कर्मचारियों और व्यापक समुदाय की सक्रिय भागीदारी शामिल है। राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली में स्वास्थ्य/पोषण की परिभाषित भूमिका सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य-उन्मुख, खाद्य/पोषण पाठ्यक्रम को लागू करने हेतु उचित मार्गदर्शन राष्ट्रीय-स्तर पर स्थापित किया जाना चाहिए। हालांकि, स्कूली पाठ्यक्रम को स्थानीय परिदृश्य, संसाधनों की उपलब्धता और लोगों की जरूरतों के अनुसार प्राथमिकता दी जानी चाहिए। स्वास्थ्य, खाद्य और पोषण शिक्षा असंख्य लाभ प्रदान कर सकती है। शोधकर्ताओं ने सूक्ष्म पोषक तत्वों के सेवन का मोटापे की रोकथाम में व्यापक रूप से सकारात्मक प्रभाव प्रलेखित किया है। एफ.ए.ओ. (2010, 2013) के अनुसार, पाठ्यक्रम को स्थानीय खाद्य संस्कृतियों, जैव विविधता से जोड़कर, सांस्कृतिक संरक्षण और पर्यावरणीय स्थिरता के तत्वों को प्रभावी रूप से एक अधिक एकीकृत दृष्टिकोण में शामिल किया जा सकता है। खाद्य और पोषण शिक्षा को स्कूली-मील से जोड़ना भी छात्रों और उनके परिवारों को पाठ्यक्रम के अहम अंगों का अनुभव कराने में मदद करता है, जैसे विविध पौष्टिक खाद्य पदार्थ खाने के तरीके, स्थानीय खाद्य प्रथाओं/संस्कृतियों को शामिल करना और स्थानीय रूप से विकसित खाद्य पदार्थों के उपयोग एवं लाभों को प्राप्त करना।
स्कूल, कॉलेज, रसोईघर, सामुदायिक उद्यान व्यक्तियों और उनके परिवारों की पोषण स्थिति को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। जनता को अपने स्थानीय वातावरण में पौष्टिक मौसमी उत्पाद उगाने, फसल लगाने और तैयार करने के लिए शिक्षित करने की आवश्यकता है। यह एक तरीके से सामुदायिक पर्यावरण, समाज और भौतिक रूप से समुदाय को बेहतर बनाएगा, जिससे लोगों में प्रकृति की स्थिरता की गहरी समझ को बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा, होम गार्डन को जोड़कर हम इस अवधारणा को और भी सुदृढ़ कर सकते हैं, स्कूलों/कॉलेजों और समुदाय के बीच ज्ञान और अनुभव के आदान-प्रदान का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं; और स्वस्थ भोजन और जीवनशैली सम्बन्धी आदतों के बारे में सीख सकते हैं।888 खाद्य/पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रमों को लागू करने से छात्रों को आजीवन ज्ञान और कौशल प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है तथा इसका असर पीढ़ी-दर-पीढ़ी रहता है। शिक्षक, स्कूल/कॉलेज के कर्मचारी, छात्र, अभिभावक, कैटरर, खाद्य विक्रेता और किसान पोषण और स्वास्थ्य व्यवहार परिवर्तन एजेंट बन सकते हैं तथा सभी सकारात्मक स्वास्थ्य/पोषण व्यवहार को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसके लिए, इन बदलाव एजेंटों के लिए क्षमता विकसित करना और उन्हें अच्छे स्वास्थ्य, पोषण, स्वच्छता, रखरखाव, स्वस्थ आहार, जीवनशैली आदि के बारे में उचित ज्ञान/कौशल से प्रशिक्षित करना सर्वोपरि है। कई देशों द्वारा सकारात्मक कदम उठाए जा रहे हैं और भारत में भी इसे लागू करने की योजना है ताकि स्वस्थ भोजन/पेयजल को बढ़ावा दिया जा सके और स्कूल/कॉलेज के कैफेटेरिया, दुकानों में और आस-पास स्कूल परिसर में जंक फूड/चीनी-मीठे पेय पदार्थों की बिक्री या सेवा पर प्रतिबंध लगाया जा सके।
स्वास्थ्य-उन्मुख भोजन और पोषण-आधारित शैक्षिक हस्तक्षेपों में लोगों के सकारात्मक व्यवहार को सीधे तौर पर सुधारने की क्षमता है। हस्तक्षेप राष्ट्रीय खाद्य-आधारित आहार सम्बन्धी दिशा-निर्देशों पर आधारित होना चाहिए, जिसमें पारम्परिक, उपेक्षित और अल्प-भोजन पदार्थों के उपयोग सहित आहार विविधता को बढ़ावा देना, फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों/पोषक तत्वों की खुराक को शामिल करना (अगर पोषक तत्वों की कमी को पूरा नहीं किया जा सकता है), जैव विविधता संरक्षण और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देना शामिल है। सभी स्वास्थ्य और पोषण हस्तक्षेपों को दीर्घकालिक स्थिरता के लिए बनाया जाना चाहिए। लोगों के स्वास्थ्य/पोषक की स्थिति में एक प्रगतिशील सुधार लाने के लिए यह आवश्यक है कि लोगों को स्वस्थ जीवनशैली अपनाने और अभ्यास करने के लिए शिक्षित किया जाए। जागरूकता की कमी और खराब स्वास्थ्य व्यवहार को की गैर-संचारित बीमारियों का प्रमुख अंतनिर्हित कारण पाया गया है- जिन्हें शीघ्र निदान द्वारा, स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करके, समय पर रेफरल और प्रबंधन प्रदान करके रोका जा सकता है। विभिन्न अध्ययनों में स्पष्ट रूप से सुझाव दिया गया है कि प्रारम्भिक निदान और रोकथाम-रुग्णता को कम करने और मृत्यु दर को रोकने पर महत्त्वपूर्ण रूप से सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
शिक्षाविदों को चाहिए कि वह इष्टतम आहार प्रथाओं और लागत प्रभावी नीतियों पर शैक्षिक हस्तक्षेप को प्राथमिकता दें, सकारात्मक स्वास्थ्य संकेतों और नीति परिणामों की निगरानी और मूल्यांकन, समुदायों, मीडिया, नीति निर्माताओं के साथ संलग्न, और नियमित रूप से चल रहे हस्तक्षेप का मूल्यांकन अति आवश्यक है। स्वास्थ्य प्रणाली, डॉक्टरों/चिकित्सकों को रोगी के व्यवहार में उचित बदलाव लाने हेतु रणनीतियों को लागू करने की आवश्यकता है। नियोक्ताओं, समुदायों,स्कूलों, अस्पतालों और धार्मिक निकायों को स्वस्थ भोजन के लिए संगठनात्मक रणनीतियों को लागू करना जरूरी है। विभिन्न स्वास्थ्य संगठनों/गैर-सरकारी संगठनों को सर्वोत्तम स्वास्थ्य/पोषण सम्बन्धी प्रथाओं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वैज्ञानिकों के साथ हाथ मिलाने की भी आवश्यकता है। आहार सम्बन्धी दिशानिर्देशों को बढ़ावा देना भी जरूरी है।
खाद्य पदार्थों की आदतों में तीव्र बदलाव व शारीरिक गतिविधि में कमी दुनिया भर में बढ़ती जा रही है। लोग ऊर्जा, संतृप्त वसा, ट्रांस वसा, शर्करा, अधिक नमक/सोडियम युक्त खाद्य पदार्थों का अत्यधिक सेवन कर रहे हैं; और इसके विपरीत डायट्री-फाइबरयुक्त खाद्य पदार्थ जैसे फल, सब्जियां, साबुन अनाज/दालों का सेवन कम हो गया है। पौष्टिक भोजन स्वास्थ्य की एक महत्त्वपूर्ण आधारशिला है। इसलिए, शरीर की जरूरतों को पूरा करने के लिए भोजन में उचित मात्रा में आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति होनी चाहिए। पोषक तत्वों की अधिकता और कमी-दोनों समान रूप से हानिकारक हैं और व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामुदायिक स्वास्थ्य पर लम्बे समय तक चलने वाले प्रतिकूल प्रभाव है। इस प्रकार, इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से सम्बोधित करना और समुदाय को अच्छे स्वास्थ्य और इष्टतम पोषण के महत्व के बारे में जागरूक करना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। अच्छा पोषण, नियमित शारीरिक गतिविधि और पर्याप्त नींद स्वस्थ जीवन के आवश्यक नियम हैं।
सम्पूर्ण राष्ट्र में इष्टतम पोषण की अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। बहु-क्षेत्रीय नवीन दृष्टिकोणों की आवश्यकता है जो समाज के सभी वर्गों को, सभी आयु समूहों को शामिल करके लोगों की खाद्य आदतों/प्रथाओं, क्रयशक्ति समानता व सांस्कृतिक विविधता को ध्यान में रखते हुए स्वस्थ पोषण के प्रति जागरूक बनाएं। स्कूलों, बाल-देखभाल केन्द्रों और परिवारों में बचपन से ही उचित ज्ञान देने की आवश्यकता है, ताकि स्वस्थ भोजन की आदतों और अच्छे स्वास्थ्य की नींव सही उम्र में रखी जाए और भविष्य की पीढ़ियों में भी इसे अच्छी तरह से प्रसारित किया जा सके।
(लेखिका भगिनी निवेदिता कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर (खाद्य और पोषण) हैं।)
ई-मेलः jainakansha24@gmail.com