स्‍वास्‍थ्‍य के लिये खतरनाक होता है बिस्‍फेनॉल-ए

Submitted by Hindi on Thu, 10/27/2016 - 14:30
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विज्ञान आपके लिये, जनवरी-मार्च, 2016

क्या आप बैंक एटीएम के संक्षिप्त विवरण, बिजली आदि के बिल, शॉपिंग मॉल अथवा पैट्रोल पम्प से प्राप्त रसीदें आदि संभाल कर रखने के अभ्यस्त हैं? यदि हाँ, तो सावधान हो जाइए, अन्वेषकों ने यह राज खोला है कि इन बिलों और विवरण पत्रों को तैयार करने में प्रयुक्त रसायन हमारे शरीर में कैंसर और अन्य घातक रोगों का कारण बन सकते हैं। यद्यपि सुनने में यह बात आमतौर पर अस्वाभाविक लग सकती है, किन्तु यह सत्य है कि बहु-कार्बोनेट प्लास्टिक, एपोक्सी रेजिन और उपर्युक्त बिलों एवं विवरणों में प्रयुक्त होने वाले थर्मल-पेपरों में बिस्फेनॉल-ए का उपयोग किया जाता है, जो मूलतः एक कैंसरकारी अर्थात कैंसर के लिये उत्तरदायी पदार्थ है। दुर्भाग्य से आधुनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाली अनेक वस्तुओं में बिस्फेनॉल-ए की घातक उपस्थिति सुस्पष्ट है। इसका उपयोग कुछ खाद्य एवं पेय पदार्थों को पैक करने वाले पदार्थों में, पानी की अथवा बच्चों को दूध पिलाने वाली बोतलों में तथा माइक्रोवेव ऑवन में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक के बर्तनों को बनाने में होता है। वास्तव में ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है जो बिस्फेनॉल-ए के अविवेकपूर्ण उपयोग परिसर के बाहर हो।

क्या होता है बिस्फेनॉल-ए?


बिस्फेनॉल-ए (BPA) एक कार्बन आधारित हाइड्रॉक्सिफिनॉल यौगिक है, जिसका रासायनिक सूत्र (CH3)2C (C6H4OH)2। यह डाइफिनाइल मीथेन संजातों के समूह से सम्बंधित है। यह एक रंगहीन अमणिभ ठोस है, जो कार्बनिक विलायकों में घुलनशील है किन्तु जल में बहुत कम विलयशील है।

.बिस्फेनॉल-ए का संश्लेषण पहली बार 1891 में रूसी रसायनज्ञ ए.डी. डायनिन ने फीनॉल के दो समतुल्य भारों के साथ एसिटोन को संघनित करके किया था। यौगिक के नाम में प्रत्येक ए एसिटोन से इसकी उत्पत्ति को ही निर्दिष्ट करता है। इस अभिक्रिया को हाइड्रोक्लोरिक अम्ल अथवा एक सल्फोनीकृत पॉलिस्टीरिन रेजिन द्वारा उत्प्रेरित किया गया था।

बिस्फेनॉल-ए का उपयोग मुख्यतः प्लास्टिक निर्माण में किया जाता है और बिस्फेनाॅल-ए आधारित प्लास्टिकों का उपयोग करके बने उत्पाद 1957 से व्यावसायिक स्तर पर काम में लाए जा रहे हैं। वर्तमान में कम से कम 36 लाख टन बिस्फेनॉल-ए का उपयोग प्रतिवर्ष विश्व में विभिन्न उत्पाद निर्माताओं द्वारा किया जा रहा है। यह एपॉक्सी रेजिनों के और बहु कार्बोनेट प्लास्टिकों के सर्वसामान्य रूप के उत्पादन के काम आने वाला प्रमुख मोनोमर यानि एकलक है। बिस्फेनॉल-ए आधारित प्लास्टिक पारदर्शी और दृढ़ होते हैं। आम उपभोक्ता सामग्री जैसे पानी की बोतलें, शिशु-आहार बोतलें, संहत डिस्क, डीवीडी, संघात प्रतिरोधी सुरक्षा उपकरण, चश्मों के लेंस, खेल-सामग्री, घरेलू इलैक्ट्रॉनिक उपकरण, ढलाई यंत्र और चिकित्सकीय युक्तियों आदि बनाने के काम आते हैं। कुछ दाँतों में भराई करने और उन्हें सील करने के काम आने वाले सम्मिश्रों में भी बिस्फेनॉल-ए हो सकता है। एपॉक्सी रेजिनों का उपयोग धातु उत्पादों, बोतल के ढक्कनों और जल-आपूर्ति पाइयों इत्यादि में होता है। BPA का उपयोग कार्बन रहित कॉपी पेपर और बिक्री रसीदों एवं एटीएम विवरणों में प्रयुक्त होने वाले कागज बनाने में रंग विकासक के रूप में प्रायः पसंद किया जाता है।

इसके अतिरिक्त बिस्फेनॉल-ए का उपयोग पॉलीसल्फोंस जैसे कुछ थर्मोप्लास्टिक पॉलिमरों (बहुलकों) तथा कुछ प्लास्टिक निर्माणकों में प्रतिऑक्सीकरकों के रूप में इस्तेमाल होने वाले पॉलिईथर कीटोनों के संश्लेषण में भी किया जाता है। बिस्फेनॉल-ए का उपयोग पॉलिविनाइल कलोराइड (PVC) के निर्माण के दौरान एक बहुलकीकरण निरोधक के रूप में किया जाता है। बिस्फेनॉल-ए का उपयोग ज्वाला मंदक रसायन टेट्राब्रोमोबिस्फेनॉल-ए के व्यावसायिक उत्पादन में भी किया जाता है और पहले यह एक कवकनाशी के रूप में भी उपयोग में लाया जाता था।

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मानव शरीर पर बिस्‍फेनॉल-ए प्रभावन


बिस्फेनॉल-ए के द्वारा मानव देह प्रभावन का मुख्य स्रोत आहार है जबकि वायु, धूल और जल इसके अन्य संभावित स्रोत हैं। बिस्फेनॉल-ए उपभोक्ता उत्पादों जैसे पॉलिकार्बोनेट बर्तनों, आहार संग्राही धारकों, पानी की बोतलों, बच्चों की दूध की बोतलों तथा खाद्य पदार्थों के कैन के अंदर खाद्य पदार्थों को कैन के सीधे सम्पर्क में आने से बचाने के लिये लगाई गई प्लास्टिक की परत के घटक रूप में मौजूद होने के कारण वहाँ से घुल कर आहार में आ जाता है। बिस्फेनॉल-ए किस कोटि तक पॉलिकार्बोनेट बोतलों से घुल कर द्रव में आएगा यह धारक की उम्र से ज्यादा इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें तेज डिटरजेंट से कब साफ किया गया था अथवा उनमें अम्लीय द्रव अथवा उच्च ताप द्रव है। बिस्फेनॉल-ए युक्त प्लास्टिकों का उपयोग कुछ माइक्रोवेव ऑवन में प्रयुक्त होने वाले पात्रों के निर्माण में होता है। ऑवन के अंदर, उच्च ताप पर, बिस्फेनॉल-ए अपघटित हो जाता है और पकाए गए खाने में चला जाता है। बिस्फेनॉल-ए का उपयोग पानी के पाइपों के अंदर एपोक्सी रेजिन की परत में किया जाता है, ये रेजिन की परतें पाइपों के खराब होने के कारण उनको बदलने के झंझट से बचाने के लिये लगाई जाती है। इस प्रकार के पाइपों में बिस्फेनॉल-ए इन परतों से पेयजल में आ जाता है।

प्रश्वास के दौरान इसके प्रभावन के प्रमाण बहुत कम हैं किन्तु त्वचीय अवशोषण बढ़ता जाता है। बिस्फेनॉल-ए हमारी त्वचा को भेद कर अंदर प्रविष्ट हो जाता है। भारत जैसे ऊष्णकटिबंधीय देश में यह सम्भावना सामान्य दर से 10 गुना अधिक तक हो जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति लम्बे समय तक थर्मल पेपर या कार्बन रहित कॉपी पेपर का उपयोग करता है तो बिस्फेनॉल-ए सरलता से उसकी त्वचा में प्रविष्ट हो जाता है और रक्त के साथ मिश्रित हो जाता है। और भी बड़ी बात यह है कि थर्मल पेपर्स में एपॉक्सी रेजिनों अथवा पोलिकार्बोनेट प्लास्टिकों की तरह बहुलकीकृत बिस्फेनॉल-ए का उपयोग न करके अबहुलकीकृत बिस्फेनॉल-ए का उपयोग किया जाता है। बिस्फेनॉल-ए का यह अबहुलकीकृत रूप इसके बहुलकीकृत रूप की अपेक्षा अधिक प्रभावकारी है।

तथापि, अनेक प्रकरणों में जैसे कि आसंजकों, स्वचालित वाहनों, डिजिटली संचार माध्यमों, विद्युतीय एवं इलैक्ट्रॉनिकीय उपकरणों, खेल सुरक्षा उपकरणों, मुद्रित परिपथ बोर्डों के विद्युतीय फलकों, संयोजनकारियों एवं पेंटों में बिस्फेनॉल-ए की संभावित प्रभावकता का पूरा आकलन अभी तक नहीं किया जा सकता है।

लक्षित आयु समूह और बिस्‍फेनॉल


वयस्कों की अपेक्षा बच्चे बिस्फेनॉल-ए के प्रति अधिक प्रभावन संवेदी हो सकते हैं। एक अध्ययन में पाया गया है कि प्रारूपिकतः विशिष्ट प्रभावन परिदृश्य में छोटे बच्चों के मूत्र में बिस्फेनॉल-ए की सांद्रता वयस्कों की तुलना में अधिक थी। वयस्कों में बिस्फेनॉल-ए यकृत से एक निर्विषीयकरण प्रक्रम के माध्यम से शरीर से निकल जाता है। शिशुओं और बच्चों में यह प्रक्रम पूरी तरह विकसित नहीं होता इसलिये उनके तंत्र से साफ होने की उनकी क्षमता कम होती है। बिस्फेनॉल-ए भू्रणों, शिशुओं और छोटे बच्चों के लिये खतरनाक होता है। जिन बच्चों को बिस्फेनॉल-ए की परत लगे टिन में पैक किया गया शिशु आहार अथवा पोलिकार्बोनेट शिशु बोतलों से द्रव पदार्थ दिया जाता है, वे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। शिशुओं और छोटे बच्चों में बिस्फेनॉल-ए प्रभावन कुछ प्लास्टिक शिशु पुस्तकों या खिलौनों को चूसने या दुर्घटनावश निगल जाने से भी होता है।

अन्वेषकों ने यह दर्शाया है कि बिस्फेनॉल-ए, प्लौसेंटा और गर्भवती महिलाओं के एमनोइक फ्लूड दोनों में पाया जा सकता है। इसलिये जब एक गर्भवती महिला पर इसका प्रभावन होता है तो भ्रूण में भी बिस्फेनॉल-ए प्रभावन की सम्भावना बढ़ जाती है। बिस्फेनॉल-ए महिला के दूध में भी पाया जा सकता है।

भारत जैसे देश में किशोर बड़े पैमाने में बिस्फेनॉल-ए प्रभावन ग्रस्त हैं। आज की शॉपिंग मॉल संस्कृति तथा डिब्बाबंद आहार और पेय पदार्थों के उपभोग की आदत की किशोरों के इस प्रभावन में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। बिस्फेनॉल-ए प्रभावन का अन्य लक्ष्य समूह वयस्क हैं। वयस्कों में बिस्फेनॉल-ए प्रभावन का मुख्य तरीका आहार है। आहार के अतिरिक्त यह हवा और त्वचा अवशोषण द्वारा भी हो सकता है, जिसमें मुख्यतः रसीदों के लेन-देन की विशेष भूमिका रहती है। इसके अतिरिक्त यह दर्शाया गया है कि थर्मल रसीदें जब नोटों के साथ बटुए में रखी जाती हैं तो नोटों की बिस्फेनॉल-ए सांद्रता 24 घंटे में नाटकीय रूप से बढ़ जाती है, जिससे नोट प्रभावन के द्वितीयक स्रोत बन जाते हैं।

मानव स्‍वास्‍थ्‍य पर प्रभाव


1950 के दशक के शुरुआती वर्षों में पॉलिकार्बोनेट प्लास्टिकों और रेजिनों में उपयोग किए जाने से भी बहुत पहले 1936 में यह पहचान लिया गया था कि बिस्फेनॉल-ए की भूमिका कृत्रिम एस्ट्रोजेन से मिलती-जुलती है। बिस्फेनॉल-ए की प्राकृतिक एस्ट्रोजेन (जैसे एस्ट्रायोल अथवा ई) के प्रभावों की अनुकृति करने की क्षमता, बिस्फेनॉल-ए और एस्ट्रोडायोल दोनों में फीनॉल समूह में समानता से व्युत्पन्न होती है। दीर्घकालिक बिस्फेनॉल-ए प्रभावन की वन्यजीवों और मानवों दोनों में ही प्रजनन समस्याओं से जोड़ी जाती हैं। अध्ययनों ने शुक्राणु संख्या और गुणवत्ता में कमी, जननांगों में असामान्यता जैसे पुरुषों में लिंग अथवा मूत्र नली में विकृति तथा स्त्रियों में तारुण्य का जल्दी आगमन, जनना क्षमता पर प्रभाव, गर्भपात एवं जन्म-दोषों का होना दर्शाये हैं।बिस्फेनॉल-ए एक कैंसरकारी है और मानव शरीर में इसके निक्षेप से स्तनों एवं पौरुष ग्रंथि के कैंसर होने का जोखिम बढ़ता है।

इसके अतिरिक्त बीपीए प्रभावन मस्तिष्क अर्बुद अथवा मेनिनगियोमा की सम्भावना बढ़ाता है। बिस्फेनॉल-ए एक थायरॉयड विदारी रसायन है जो विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं, नवजातों और छोटे बच्चों को प्रभावित करता है। हाल ही का अनुसंधान बताता है कि बिस्फेनॉल-ए कोशिकांग सेंट्रोसोम के प्रकार्य दोष के लिये उत्तरदाई है। बिस्फेनॉल-ए को बढ़ती हुई तंत्रिका व्यवहार समस्याओं, मोटापे के बढ़ते कारण, प्रकार-2 मधुमेह एवं प्रतिरक्षा तंत्र प्रभावों के साथ भी संबद्ध किया जाता है।

बिस्फेनॉल-ए प्रभावन के कारण मोटापे के साथ अतिरिक्त भार का बढ़ना हमारे शरीर में कुछ द्वितीयक जटिलताओं, जैसे निद्रा श्वांसरोध, असामान्य लिपिड प्रोफाइल, उच्च रक्तचाप, पक्षाघात, वाहिनीय रक्त क्लोट, दमा, अग्न्याशय शोथ, यकृत सूत्रण रोग, आंत्र कैंसर, गठिया और संधिशोथ का होना सम्भव हो सकता है।

वैज्ञानिक अब यह मानते हैं कि कम से कम ऐसे दो तरीके हैं, जिनके द्वारा बिस्फेनॉल-ए मानवों में सामान्य कार्य-प्रकार्यों को क्षति पहुँचाता है। अंतःस्रावी तंत्र मानवों में पाया जाने वाला रासायनिक संचार तंत्र है। अंतःस्रावी तंत्र प्रारूपिकतः दीर्घकालिक प्रकार्यों एवं प्रक्रमों को नियंत्रित करता है, जिसमें मस्तिष्क, तंत्रिका तंत्र एवं अन्य अंगों और ऊतकों का विकास, वृद्धि एवं चयापचय तथा प्रजनन तंत्र के प्रकार्य शामिल हैं। हार्मोन अंतःस्रावी-तंत्र के रासायनिक संदेशवाहक हैं। दूसरी ओर तंत्रिका तंत्र द्रुत संचार प्रणाली है जो हृतस्पंदनों, श्वसन एवं गति जैसे प्रकार्यों को नियंत्रित करता है। बिस्फेनॉल-ए एक शक्तिशाली एस्ट्रोजन की तरह कार्य करता है जो एस्ट्रोजेन ग्राही से बंधित रहता है। विकल्प के रूप में बिस्फेनॉल-ए प्रबल प्राकृतिक एस्ट्रोजेनों के प्रभावों को अवरुद्ध कर सकता है और एस्ट्रोजेन के प्रकार्य को अवरुद्ध कर सकता है। सामान्यतः यह माना जाता है कि वे कोशिका नाभिक के एस्ट्रोजेन ग्राहियों के माध्यम से कार्य करता है जो कोशिका संकेतन का नियमन करता है और जीन अभिव्यक्ति को प्रभावित करता है। इसके अतिरिक्त बिस्फोनॉल डीएनए में मिथाइल समूह जोड़कर उसकी संरचना परिवर्तित करता है और उनकी अभिव्यक्ति को शांत कर देता है।

बिस्‍फेनॉल प्रभावन की रोक-थाम के लिये हम क्‍या कर सकते हैं ?


1. कठोर, पारदर्शी पॉलीकार्बोनेट प्लास्टिक धारकों का उपयोग बंद कीजिए जिन पर पुनर्चक्रण संकेत या ‘7’ या ‘पीसी’ अंकित न हो।

2. यदि उपयोग करना ही पड़े तो भी माइक्रोवेव में तो इनका उपयोग कभी भी नहीं किया जाना चाहिए। उच्च ताप प्लास्टिक को अपघटित कर सकता है।

3. यथासम्भव काँच, पोर्सिलिन, अथवा स्टेनलेस स्टील का उपयोग कीजिए, विशेषकर तब जब उनका उपयोग गर्म खाने या द्रवों के लिये किया जाना हो। इससे न केवल बिस्फोनॉल-ए प्रभावन कम होगा बल्कि थेलेंटों जैसे प्लास्टिक योगजों का प्रभावन भी कम होगा।

4. केवल ऐसी दूध की बोतलों का उपयोग कीजिए जो बिस्फोनॉल-ए मुक्त पदार्थों जैसे काँच पोलिइथाइलीन आदि से बनी हों।

5. डिब्बाबंद आहार और पेय पदार्थों का उपयोग बंद कीजिए, ताजी और जमी हुई सब्जियों एवं ताजे पेयों का विकल्प चुनिए।

6. थर्मल पेपर्स एवं कार्बन रहित कॉपी पेपर्स का उपयोग यथासंभव न्यूनतम करने का प्रयास कीजिए।

पर्यावरण सरोकार


साफ-साफ कहें तो बिस्फेनॉल-ए अपना प्रभाव मानवों और पर्यावरण दोनों पर छोड़ता है। बिस्फेनॉल-ए पर्यावरण में या तो सीधे रसायनों, प्लास्टिकों, परत एवं अभिरंजन निर्माताओं, कागज या पुनर्चक्रण कम्पनियों, रेत के सांचों में बिस्फेनॉल का उपयोग करने वाले ढलाई घरों से आता है या फिर अपरोक्ष रूप से भू-भरण स्थलों में प्लास्टिक, कागज और धातु अपशिष्टों के विक्षालन से अथवा सागर समाहित प्लास्टिक कचरे से प्रविष्ट हो सकता है। अपनी सर्वव्यापकता के कारण बिस्फेनॉल-ए एक महत्त्वपूर्ण मृदा अपशिष्ट है।

वर्तमान में बिस्फेनॉल-ए नगरपालिका अपशिष्ट जल में भी पाया जा सकता है। यह जलीय जीवों की वृद्धि और विकास को भी प्रभावित करते हैं। अलवणी जल जीवों में मछलियाँ सबसे अधिक संवेदनशील प्रजातियाँ मालूम पड़ती हैं इनके बाद फिर जलीय अकशेरुक, उभयचर एव सरीसृप आते हैं। इसके अतिरिक्त बिस्फेनॉल-ए, जलीय एवं स्थलीय एनेलिडों, मोलस्कों, कीटों पर्पटधारियों, मत्स्य एवं उभयचरों में प्रजनन को प्रभावित करते हैं, पर्पटधारियों एवं उभयचरों में विकास रुद्ध करते हैं और आनुवंशिक दोष प्रेरित करते हैं।

अंतिम कुछ शब्‍द


वर्तमान में, बिस्फेनॉन-ए अंतरंग एवं जटिल रूप से हमारी जीवनशैली से जुड़े हैं। यूरोप के लोगों के एक अध्ययन ने सुझाया है कि पॉलिकार्बोनेट की शिशु बोतलें शिशुओं तथा डिब्बा बंद आहार वयस्कों एवं किशोरों के बिस्फेनॉल-ए प्रभावन में सर्वाधिक प्रमुख भूमिका अदा करते हैं। वास्तव में बिस्फेनॉल-ए प्रभावन की शुरुआत माँ के गर्भ से ही हो जाती है। शिशु जन्म के बाद माता के प्रभावन से शिशु में माता के दूध से इस रासायनिक यौगिक के हस्तांतरण द्वारा शिशु पर प्रभाव पड़ना जारी रहता है। बिस्फेनॉल-ए की विषाक्तता का मुकाबला करने के लिये यूरोपियन यूनियन और कनाडा ने शिशु आहार बोतलों में बिस्फेनॉल-ए के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है।

जापान में कैनो के एपोक्सी लेप के स्थान पर प्रायः पीईटी (पोलिइथालीन टेरेफ्थेलेट) फिल्म लगाई जाने लगी है। विस्फेनॉल यौगिकों के बढ़ते खतरे को देखते हुए विश्वभर के पहली श्रेणी के देशों ने पहले ही बिस्फेनॉल-ए के अंधाधुंध उपयोग पर रोग लगानी शुरू कर दी है। समय के साथ कुछ प्लास्टिक की वस्तुओं में बिस्फेनॉल-ए की विषाक्तता को कम करने के लिये इसके स्थान पर दूसरा फिनोलिक यौगिक बिस्फेनॉल-एस बिस्फेनॉल-एस उपयोग में लाया जाने लगा है। किन्तु, यह प्रयास व्यर्थ हो गया क्योंकि मानव प्रभावन की दृष्टि से बिस्फेनॉल-एस बिस्फेनॉल-ए की तुलना में अधिक सक्रिय है। किन्तु अफसोस की बात यह है कि भारत जैसे तीसरी दुनिया के देशों में जहाँ विभिन्न प्लास्टिक और फीनोलीय उत्पाद बनाने में बिस्फेनॉल-ए का व्यापक उपयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। सामान्य जन और सरकार इस बढ़ते खतरे से बिल्कुल बेखबर है।

सम्पर्क


दीपांजन घोष
ई-मेल : dpanjanghosh@gmail.com
अनुवाद : राम शरण दास